अंतरराष्ट्रीय
चिली की संसद ने एक कानून पास किया है जिसके तहत निजी पहचान, इच्छा और मानसिक निजता को अधिकारों का दर्जा दिया गया है. ऐसा करने वाला चिली दुनिया का पहला देश बन गया है.
डॉयचे वेले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
चिली ने एक ऐसा कानून पास किया है जिसके तहत किसी व्यक्ति की मानसिक निजता और उसकी इच्छा उसका अधिकार होगी. इस कानून के जरिए न्यूरोटेक्नोलॉजी के जरिए किसी व्यक्ति को नियंत्रित करके कुछ करवाना अपराध बना दिया गया है. राष्ट्रपति के दस्तखत होने के बाद इसे कानून का औपचारिक दर्जा मिल जाएगा.
न्यूरोटेक्नोलॉजी के बारे में दुनिया में पहली बार कहीं कोई कानून पास हुआ है. यह बिल पिछले साल ही चिली की संसद के ऊपरी सदन सेनेट से पास हो गया था. बुधवार को निचले सदन से भी इसे मंजूरी मिल गई.
‘अहम शुरुआत'
विशेषज्ञ इस कानून को अहम मान रहे हैं क्योंकि यह भविष्य में मानवाधिकारों की रक्षा का आधार बन सकता है. न्यूरोटेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल ने इस कानून को अहमियत दी है.
कानून पास कराने से पहले संसद में इस पर लंबी-चौड़ी बहस हुई. इस कानून के सबसे प्रबल समर्थकों में से एक सेनेटर गीडो जिरार्डी ने कहा कि इसका मकसद इंसान के आखरी मोर्चे, उसकी सोच की रक्षा करना है,
ट्विटर पर जिरार्डी ने कहा, "हम खुश हैं कि तकनीक को इंसानियत की भलाई के लिए किस तरह इस्तेमाल करना चाहिए, उसे परखने की शुरुआत हो रही है.”
मई में जब यह कानून लाया गया था तब जिरार्डी ने दावा किया था कि यदि न्यूरोटेक्नोलॉजी को नियमित नहीं किया गया तो यह "मनुष्य की स्वायत्तता और सोचने की आजादी” के लिए खतरा बन सकती है. मीडिया में जारी एक बयान में उन्होंने कहा था, "अगर यह तकनीक आपके सोचने से पहले ही (आपके दिमाग को) पढ़ने में कामयाब हो जाती है, तो यह ऐसी भावनाएं पैदा कर सकती है जो आपकी जिंदगी में हैं ही नहीं.”
क्यों जरूरी है ऐसा कानून?
इस कानून के जरिए चिली न्यूरोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हो रहे आधुनिक तकनीकी विकास के मोर्चे पर सबसे आगे रहने की कोशिश कर रहा है. कोलंबिया यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर रफाएल युस्ते इस क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी विशेषज्ञों में गिने जाते हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि न्यूरोलॉजी कितना अधिक विकास कर चुकी है.
प्रोफेसर युस्ते कहते हैं कि शोधकर्ता चूहों के मस्तिष्क में ऐसी चीजों की छवियां प्लांट करने में सफल हो चुके हैं जिन्होंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा और इन छवियों ने चूहों के व्यवहार को प्रभावित किया.
इस तरह की तकनीकों ने विशेषज्ञों को चिंतित भी किया है क्योंकि इनका इस्तेमाल लोगों के मस्तिष्क में चल रही सोच को पढ़ने और उसे बदलने के लिए किया जा सकता है.
चिली के चैंबर ऑफ डेप्यटूजी ने एक बयान में कहा कि इसीलिए यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि वैज्ञानिक और तकनीकी विकास लोगों की भलाई के लिए हो और शोध करते वक्त मानव जीवन के साथ साथ मानव की शारीरिक व मानसिक निष्ठा का सम्मान किया जाए.
पिछले कुछ सालों में न्यूरोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है. हालांकि इसका मकसद आमतौर पर मानसिक बीमारियों जैसे पारकिन्सन्स और एपिलेप्सी आदि का इलाज रहा है. वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि मस्तिष्क को किसी तरह अपने हिसाब से चलाया जा सके.
कहां तक पहुंच चुकी है तकनीक?
ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक यूके में हर 500 में से एक व्यक्ति पारकिन्सन्स बीमारी से पीड़ित है जबकि 34 लाख लोग एपिलेप्सी के शिकार हैं.
अमेरिका में ‘ब्रेन' नाम की एक योजना के जरिए मस्तिष्क में होने वाली बीमारियों को समझने की कोशिश की जा रही है. इसमें उद्योगपति इलॉन मस्क समर्थित न्यूरालिंक कॉरपोरेशन भी है जिसने दावा किया है कि उसे बंदरों और सूअरों के मस्तिष्क में सेंसर प्लांट करने में कामयाबी मिली है.
लकवाग्रस्त लोगों की कंप्यूटर और फोन का इस्तेमाल करने में मदद के लिए किए जा रहे एक प्रयोग में दिखाया गया कि एक बंदर सिर्फ अपने मस्तिष्क से सिग्नल भेजकर बिना छुए ही वीडियो गेम खेल सकता था.
कंपनी ने कहा कि उसकी तकनीक डिमेंशिया और पीठ में चोट के कारण पैरालिसिस जैसी स्थिति में काम आ सकती है. (dw.com)