अंतरराष्ट्रीय
रूस-यूक्रेन संकट के बाद सबका ध्यान इस ओर गया कि भारत से इतनी बड़ी संख्या में बच्चे मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन जाते हैं। इस बात ने चिंता भी बढ़ाई है। भारत में मेडिकल की पढ़ाई में मेरिट को तवज्जो दी जाती है। मेडिकल पढ़ने वालों का सीधा संबंध लोगों के जीवन को बचाने से रहता है। ऐसे में पढ़ाई के दौरान किसी भी प्रकार की लापरवाही आगे चलकर खतरनाक हो सकती है। इस कारण भारत में नीट पास करने के बाद ही छात्रों का दाखिला लिया जाता है। उसमें भी रैंकिंग को प्रमुखता दी जाती है।
समस्या यह है कि निजी कालेजों की भारी-भरकम फीस के कारण यूक्रेन, रूस, चीन और नेपाल जैसे देश फायदा उठाते हैं। वहां बहुत से कालेज भारतीय बच्चों को बिना किसी प्रवेश परीक्षा के दाखिला देते हैं और मेडिकल की पढ़ाई करवाते हैं। भारत में इनके कई एजेंट होते हैं, जिनका लक्ष्य ही ज्यादा से ज्यादा बच्चों को वहां के कालेजों में प्रवेश दिलाना होता है। ऐसे में इनमें पढ़ाई का स्तर भी समझा जा सकता है। इन देशों में कई कालेज हैं, जो बस पैसे को ही महत्व देते हैं। कुछ कालेजों के मामले में तो कहा जा सकता है कि वहां बस पैसे के बदले डिग्री बांटने का खेल चल रहा है। पैसा कमाने के लिए कुछ कालेज कक्षा में अनुपस्थित रहने पर अच्छा-खासा जुर्माना भी लगाते हैं। पैसे और डिग्री के इस खेल में कई ऐसे बच्चे भी मेडिकल की पढ़ाई कर लेते हैं, जिनमें क्षमता नहीं होती है। यही सबसे ज्यादा चिंता वाली बात है। आज से करीब 15 वर्ष पहले तक इन देशों के मेडिकल कालेजों में पढ़ाई करने वाले बच्चे भारत में आकर सीधे प्रैक्टिस शुरू कर देते थे। बाद में भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लिया और कई देशों से पढ़कर आने वाले मेडिकल छात्रों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट अनिवार्य कर दिया।
मेडिकल की पढ़ाई छात्रों की रुचि पर निर्भर करती है। जिनमें अंदर से इस क्षेत्र में काम करने की भावना होती है, वहीं इसे कर सकते हैं। किसी की देखादेखी डाक्टर नहीं बना जा सकता है। अभिभावकों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए। अगर योग्यता के आधार पर देश के कालेजों में बच्चे को प्रवेश नहीं मिला है, तो समझना चाहिए कि उसकी तैयारी में भी कुछ कमी हो सकती है। शार्टकट खोजकर उसे कहीं से डिग्री दिला देने के बजाय अच्छी तैयारी के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। बिना योग्यता के डिग्री हासिल करने और डाक्टर बनने वाला छात्र भविष्य में किसी का जीवन भी संकट में डाल सकता है। विदेश से पढ़ना बुरा नहीं है, लेकिन देश और कालेज का चुनाव करते समय सतर्कता बरतनी बहुत जरूरी है। यह भी समझना चाहिए कि बच्चा वास्तव में अपनी रुचि से इस क्षेत्र में जाना चाह रहा है या किसी की देखादेखी ऐसा मन बनाया है। रूस-यूक्रेन संकट के बीच मेडिकल की पढ़ाई को लेकर केंद्र सरकार भी सक्रिय हुई है। इस बात के इंतजाम किए जा रहे हैं कि बच्चों को देश में ही पढ़ाई का अवसर मिले। यह एक सराहनीय पहल है। इससे पैसे के बदले डिग्री के खेल से जुड़े विदेशी कालेजों से भारतीय छात्र बचे रह पाएंगे। (jagran.com)