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चैंपियन फुटबॉलर से मणिपुर मैजिक बनने वाले एन. बीरेन सिंह
22-Mar-2022 12:37 PM
चैंपियन फुटबॉलर से मणिपुर मैजिक बनने वाले एन. बीरेन सिंह

मणिपुर में पहली बार अपने बूते बीजेपी को सत्ता दिलाने वाले मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का राजनीतिक करियर संघर्ष की मिसाल है. ऐसा संघर्ष जो उनकी पुरानी पार्टी कांग्रेस नहीं देख सकी.

   डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-

सोमवार को लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले बीरेन ने किसी पूर्वोत्तर राज्य में किसी बीजेपी नेता के लगातार दूसरी बार यह कुर्सी हासिल करने का रिकार्ड तो बनाया ही है, चुनाव नतीजों के बाद दस दिनों तक कुर्सी के लिए चलने वाली तिकोनी लड़ाई में बाकी दावेदारों को मात देने में भी कामयाबी हासिल की है. एक फुटबालर और पत्रकार के तौर पर अनुभव ने उनको इस कठिन मुकाबले में मुकाम तक पहुंचाया है.

बीरेन सिंह चुनाव अभियान के दौरान ही राज्य की 60 में से कम से कम 40 सीटें जीतने के दावे करते रहे थे. बीजेपी को 40 सीटें तो नहीं मिलीं लेकिन उसने अपने बूते बहुमत का आंकड़ा जरूर पार कर लिया. चुनाव से पहले पार्टी ने किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया था. लेकिन नतीजों के बाद दो और दावेदारों के सामने आने के बावजूद पार्टी के प्रदर्शन ने बीरेन के पक्ष में पलड़ा झुका दिया.

दावेदारों के दो-दो बार दिल्ली दौरे और तमाम केंद्रीय नेताओं से मुलाकात के बावजूद बीरेन अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़े. यही वजह थी कि रविवार को पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षकों निर्मला सीतारमण और किरेन रिजिजू की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में बीरेन को आम राय से नेता चुन लिया गया. दरअसल, पार्टी के जबरदस्त प्रदर्शन के पीछे बीरेन को ही सबसे प्रमुख वजह माना जा रहा था. जिस पार्टी का 2012 तक राज्य में कोई नामलेवा तक नहीं था उसके अपने बूते बहुमत हासिल करने की उम्मीद तो खुद बीजेपी के केंद्रीय नेताओं को भी नहीं थी. ऐसे में पार्टी का प्रदर्शन का सेहरा बीरेन सिंह को मिलना तय था क्योंकि उन्होंने पूरे राज्य में अभियान की कमान संभाल रखी थी.

एक फुटबॉलर के तौर पर उनके करियर को देखते हुए राज्य के राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि गेंद लेकर आगे बढ़ते हुए अपने प्रतिद्वंद्वियों को छकाने की कला ही राजनीति में उनके काम आई है.

फुटबॉल और पत्रकारिता
एक जनवरी, 1961 को मणिपुर की राजधानी इंफाल में पैदा होने वाले बीरेन सिंह ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मणिपुर यूनिवर्सिटी से ही ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी. लेकिन खेल में ज्यादा रुचि होने की वजह से उन्होंने शुरुआत में फुटबॉल को अपने करियर के तौर पर चुना. फुटबॉल में पारंगत होने की वजह से उनको 18 साल की उम्र में ही सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की फुटबॉल टीम में चुन लिया गया. वह राज्य के बाहर खेलने वाले मणिपुर के पहले खिलाड़ी थे. बीरेन साल 1981 में डूरंड कप जीतने के लिए कोलकाता के मोहन बागान को हराने वाली बीएसएफ की टीम का हिस्सा थे. हालांकि, उन्होंने अगले साल ही बीएसएफ टीम से नाता तोड़ लिया. लेकिन मणिपुर टीम के लिए वर्ष 1992 तक खेलते रहे.

वर्ष 1992 में बीरेन सिंह की रुचि पत्रकारिता की तरफ बढ़ी और उन्होंने मणिपुर के ही स्थानीय अखबार नाहरोल्गी थोउदांग में नौकरी शुरू की. पत्रकारिता में भी बीरेन सिंह काफी तेजी से आगे बढ़े और 2001 तक वे संपादक के पद पर पहुंच गए. पत्रकारिता के दौरान ही उन्होंने राजनीति को करीब से देखा और आखिरकार इस क्षेत्र में किस्मत आजमाने का फैसला किया.

राजनीतिक करियर
बीरेन सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत वर्ष 2002 में क्षेत्रीय पार्टी डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी (डीपीपी) से की. उन्होंने मणिपुर के हिंगांग विधानसभा क्षेत्र से अपनी पहली चुनावी लड़ाई लड़ी और जीती. उन्होंने 2007 में कांग्रेस के टिकट पर सीट बरकरार रखी. वे कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में सतर्कता राज्य मंत्री भी बनाए गए. वर्ष 2007 में एक बार फिर वह इसी विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और उनको सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण, युवा मामले और खेल मंत्री बनाया गया.

वर्ष 2012 में वह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे, लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने के कारण इबोबी सिंह से उनके संबंध खराब हो गए. आखिरकार अक्टूबर, 2016 में वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए. वर्ष 2017 में उन्होंने फिर से अपनी सीट से जीत हासिल की उसके बाद उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वे लगातार पांचवीं बार हिंगांग सीट से चुने गए हैं. इस सीट पर उन्होंने कांग्रेस के शरतचंद्र सिंह को 18 हजार वोटों से पराजित किया.

वरिष्ठ पत्रकार ओ. कंचन सिंह बताते हैं, "बीरेन सिंह ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान पहाड़ पर चलो, हर महीने की 15 तारीख को आम लोगों का दिन और पर्वतीय नेता दिवस जैसी जो योजनाएं शुरू की उससे घाटी और पर्वतीय इलाके के लोगों के बीच पनपी खाई को पाटने में काफी मदद मिली. इन योजनाओं के तहत दुर्गम इलाके में रहने वाले लोग भी महीने के तय दिन को अपने नेताओं और सरकारी अधिकारियों से मुलाकात कर पाते थे.” वह बताते हैं कि बीरेन सिंह को राज्य की नियति बन चुकी आर्थिक नाकेबंदी को खत्म करने, पर्वतीय और घाटी के बीच बढ़ती खाई को पाटने और राज्य में शांति बहाल करने का श्रेय भी दिया जाता है. उनके नेतृत्व में पार्टी के चुनावी और बीते पांच साल के कार्यकाल ने ही तमाम दावेदारों को पीछे छोड़ते हुए बीरेन सिंह के दोबारा मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ किया.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपने पहले कार्यकाल में बीरेन सिंह के सामने सहयोगी दलों के साथ संतुलन बनाए रखने की जो चुनौती थी अबकी पार्टी के पास बहुमत होने के कारण उनको वैसी चुनौती से तो नहीं जूझना पड़ेगा. लेकिन पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार उनके लिए मुश्किलें जरूर पैदा कर सकते हैं. इन चुनौतियों से बीरेन सिंह कैसे निपटते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. (dw.com)
 

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