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यूक्रेन की जंग: एक छोटे-से शहर ने रूस की बड़ी योजनाओं को कैसे नाकाम कर दिया
23-Mar-2022 2:27 PM
यूक्रेन की जंग: एक छोटे-से शहर ने रूस की बड़ी योजनाओं को कैसे नाकाम कर दिया

इमेज कैप्शन, वर्ष 1927 में पहली बार गिरफ़्तारी के बाद जेल में खींची गई भगत सिंह की फ़ोटो (तस्वीर चमन लाल ने उपलब्ध करवाई है)

-एंड्र्यू हार्डिंग

यूक्रेन में जारी रूसी हमले में एक शहर ऐसा है जिसने रूसी सेना को अपनी ज़मीन से खदेड़ दिया.

यह लड़ाई युद्ध की अब तक की सबसे निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी - खेती और उपजाऊ धरती वाले शहर वोज़्नेसेंस्क और इसके रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पुल के नियंत्रण को लेकर दो दिनों तक ज़बरदस्त संघर्ष चला.

अगर रूस यहां विजयी हो जाता तो काला सागर तट के साथ ओडेसा के विशाल बंदरगाह और एक प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर नियंत्रण पाने में सक्षम हो जाता.

लेकिन इसके बजाय, स्थानीय वॉलेंटियरों की एक सेना के समर्थन से यूक्रेनी सेना ने रूसी सैनिकों के इरादों पर पानी फेर दिया.

पहले तो यूक्रेनी सेना ने पुल को उड़ा दिया और फिर हमलावर रूसी सेना को पूर्व की ओर 100 किमी पीछे खदेड़ दिया.

स्थानीय लोगों का जज़्बा
वोज़्नेसेंस्क के 32 वर्षीय मेयर येवेनी वेलिचको टाउन हॉल के बाहर ख़ुद बॉडी आर्मर पहने हुए जनता से बात करते हुए कहते हैं, '' यह समझाना मुश्किल है कि हमने यह कैसे किया. हमारे स्थानीय लोगों और यूक्रेनी सेना को लड़ने और लोहा लेने के जज़्बे के लिए धन्यवाद है."

लेकिन उस लड़ाई के लगभग तीन हफ्ते बाद, मेयर ने चेतावनी दी कि रूसी सेना दोबारा एक और हमला कर सकती है और शहर के वॉलंटियर्स के पास दूसरी बार उन्हें रोकने के लिए हथियारों की कमी है.

उन्होंने कहा, "यह एक रणनीतिक जगह है, हम न केवल इस शहर की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि इसके पीछे के सभी क्षेत्रों की रक्षा हमारे हाथों में है और हमारे पास हमारे दुश्मनों की तरह भारी हथियार नहीं हैं."

ब्रिटिश एंटी टैंक मिसाइलों की मदद
यूक्रेन में कई मोर्चों पर भेजी गई ब्रितानी एंटी-टैंक मिसाइलों ने वोज़्नेसेंस्क में रूसी सेना को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई.

वेलिचको ने कहा, "इन हथियारों की बदौलत ही हम यहां अपने दुश्मन को हरा पाए. हम अपने सहयोगियों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद कहते हैं. लेकिन हमें और चाहिए क्योंकि दुश्मन के काफ़िले आते रहेंगे."

यूक्रेन की दूसरी सबसे बड़ी नदी दक्षिणी बुह पर बने इस बड़े ब्रिज को रूसी सेना अपने क़ब्ज़े में नहीं ले सकी और इससे वोज़्नेसेंस्क का रणनीतिक महत्व और भी स्पष्ट हो गया.

आज, वोज़्नेसेंस्क यूक्रेन के कई शहरों की तरह भूतिया शहर तो नहीं बना है, लेकिन यहां की हवाओं में नियमित हवाई हमले के सायरन जैसे घुल चुके हैं.

हालांकि हाल के हफ़्तों में हज़ारों लोग ट्रेन से या गड्ढों वाली ग्रामीण सड़कों के ज़रिए शहर को छोड़ रहे हैं.

लेकिन इनमें से कई लोग जो अभी भी इस शहर में रह रहे हैं वो अपनी बड़ी जीत की इस कहानी को बार-बार सुनाने के लिए उत्सुक नज़र आते हैं.

एक स्थानीय दुकानदार एलेक्ज़ेंडर ने ख़ुद एके-47 के साथ फ़्रंटलाइन पर मोर्चा संभालते हुए एक वीडियो बनाया, उन्होंने कहा- "यह पूरे शहर की ओर से एक बड़ा प्रयास था. हमने शिकार करने वाली राइफ़लों का इस्तेमाल किया, लोगों ने ईंट और जार से हमले का जवाब देकर कर रूसी सेना का सामना किया, बूढ़ी महिलाओं ने रेत का भारी बैग लादा और इस लड़ाई में अपना अहम योगदान दिया.''

वह कहते हैं, ''रूसियों को नहीं पता था कि कहां देखना है या अगला हमला कहां से हो सकता है. मैंने कभी भी समुदाय को इस तरह एक साथ आते नहीं देखा." ये बात वह उस टूटे हुए पुल पर खड़े हो कर कह रहे थे जिसे यूक्रेनी सेना ने रूसी सेना के हमले के चंद घंटों के भीतर नष्ट कर दिया था. वोज़्नेसेंस्क के दक्षिणी किनारे पर राकोव गांव में स्वेतलाना निकोलायेवना के बगीचे में नज़र आने वाला रूसी टैंक और कुछ सामानों का उलझा हुआ ढेर दूर से ही ध्यान आकर्षित करता है. यहां सबसे ज़बर्दस्त लड़ाइयों में से एक लड़ाई लड़ी गई थी.

ख़ून से सनी पट्टियाँ और रूसी राशन पैकेज इस बागीचे में नज़र आते हैं. 59 साल की स्वेतलाना अपने पति के टूल शेड की ओर इशारा करते हुए बताती हैं कि रूसियों ने दो यूक्रेनी सैनिकों को बंधक बना कर वहां रखा था.

अपने जर्जर झोपड़ीनुमा घर में आगंतुकों को अंदर बुलाते हुए वह कहती हैं, "मेरे दरवाज़े पर ख़ून के धब्बे देखिए."

जब इस शहर पर हमला हुआ तो स्वेतलाना का घर रूसियों के क़ब्ज़े में था और उनका परिवार एक तहखाने में शरण लेकर रह रहा था. उस समय रूसी सेना ने उनके पूरे घर को एक अस्थायी अस्पताल में बदल दिया था.

वह बताती हैं, "जब मैं दूसरे दिन कुछ कपड़े लेने के लिए वापस आई. तो देखा हर जगह घायल लोग पड़े थे. दसियों लोग. अब मैंने अधिकांश ख़ून साफ़ कर दिया है.''

"एक रात वे जल्दी में ये जगह छोड़ कर चले गए. उन्होंने सब कुछ पीछे छोड़ दिया - जूते, मोज़े, बॉडी आर्मर, हेलमेट- और बस अपने मृतकों और घायलों को लादकर भाग गए."

यहां के स्थानीय अंतिम संस्कार निदेशक, मिखाइलो सोकुरेंको को काम दिया गया कि वह खेतों में जा कर रूसी सैनिकों के शवों को गाड़ियों में लाद कर बाहर निकालें.

उन्होंने कहा, " उन्होंने यहां जो किया उसके बाद मैं उन्हें इंसान नहीं मानता, लेकिन यह ग़लत होगा कि उन्हें मैदान में छोड़ दिया जाए, वो लोग अपनी मौत के बाद भी लोगों को डरा रहे हैं.''

'' रूसी मानसिक तौर पर बीमार हैं इसलिए हमें तैयार रहना होगा, लेकिन जीत हमारी होगी और हम रूसियों को अपनी ज़मीन से बाहर खदेड़ कर रहेंगे.'' (bbc.com)

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