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तालिबान से पहली बार मिले भारतीय राजनयिक, क्या है वजह?
03-Jun-2022 8:49 AM
तालिबान से पहली बार मिले भारतीय राजनयिक, क्या है वजह?

भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जेपी सिंह के साथ एक शिष्टमंडल अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पहुंचा. अफ़ग़ानिस्तान में पिछले साल तालिबान की सरकार बनने के बाद से भारत के किसी सरकारी दल का ये पहला काबुल दौरा है.

जेपी सिंह के नेतृत्व में इस शिष्टमंडल ने तालिबान के विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुतक्क़ी से मुलाक़ात की और राजनयिक संबंधों, व्यापार और मानवीय सहायता पर चर्चा की.

बीबीसी पश्तो के मुताबिक, इस मुलाक़ात के बाद मुतक्क़ी ने भारतीय शिष्टमंडल के दौरे को अच्छी शुरुआत बताया. उन्होंने कहा कि भारत को अफ़ग़ानिस्तान में अपनी राजनयिक उपस्थिति और कांसुलर सेवाएं फिर शुरू करनी चाहिए.

इस यात्रा के दौरान भारतीय दल उन अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात भी करेगा जो वहां मानवीय सहायता वितरण के काम से जुड़े हुए हैं.

साथ ही भारतीय दल उन जगहों पर भी जा रहा है जहां भारत की ओर से कार्यक्रम और योजनाएँ लागू की गई हैं.

अफ़ग़ानिस्तान में क्या सहायता भेज रहा है भारत?
भारत ने तालिबान सरकार के आने के बाद से पिछले 9 महीनों के दौरान अब तक वहाँ कई खेपों में 20 हज़ार मीट्रिक टन गेहूँ, 13 टन दवाएं, कोविड वैक्सीन के 5 लाख डोज़ और सर्दियों के कपड़े भेजे हैं.

मानवीय सहायता की इन खेपों को काबुल स्थित इंदिरा गांधी चिल्ड्रेन अस्पताल और संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसियों को सौंपा गया, जिनमें डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) और डब्ल्यूएफ़पी (विश्व खाद्य संगठन) शामिल हैं. इसके अलावा भारत अभी अफ़ग़ानिस्तान को और मेडिकल सहायता और खाद्य सामग्री भेजने की प्रक्रिया में है.

विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारत अफ़ग़ानिस्तान के उन लोगों को भी सहायता पहुँचाने का प्रयास कर रहा है कि जो तालिबान के आने पर देश छोड़ कर ईरान चले गए हैं. ईरान में बतौर शरणार्थी रह रहे लोगों की सहायता के लिए भारत ने 10 लाख कोवैक्सीन डोज़ भी मुहैया कराए हैं.

विदेश मंत्रालय के मुताबिक, "हमने 6 करोड़ पोलियो वैक्सीन और दो टन आवश्यक दवाओं से यूनिसेफ की सहायता भी की है."

ग़ौरतलब है कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत से भेजे जाने वाले खाद्य सामग्री और अन्य आवश्यक वस्तुओं का वितरण संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एवं खाद्य संगठन के ज़रिए किया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान में भूख की वजह से लगभग 30 लाख लोगों के जीवन को ख़तरा है साथ ही डब्ल्यूएचओ के मुताबिक वहां की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ख़तरे में है.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान में सेहतमंदी कार्यक्रम का वहाँ की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सबसे बड़ा किरदार है जिसमें 2,331 स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों के ज़रिए लाखों लोगों के स्वास्थ्य का ख़्याल रखा जाता है.

लेकिन बीते वर्ष अगस्त में तालिबान के वहां की सत्ता पर काबिज करने के बाद इस कार्यक्रम को मिल रही वैश्विक वित्तीय सहायता बंद कर दी गई है. सेहतमंदी कार्यक्रम को पहले विश्व बैंक, यूरोपीय कमिशन और अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी से सहायता मिल रही थी.

साथ ही हाल ही में आए सूखे से भी वहाँ कृषि और जानमाल को नुकसान पहुँचा है. इससे खाद्य पदार्थों की कीमतें वहां आसमान छू रही हैं और सार्वजनिक सेवाओं की स्थिति चरमरा गई है. यही वजह है कि अक्तूबर 2021 में डब्ल्यूएचओ ने वहां क़रीब दो करोड़ लोगों पर खाद्य संकट के ख़तरे की आशंका जताई थी.

भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक यही वजह है कि भारत ने फिलहाल अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की ज़रूरतों को देखते हुए अभी वहां मानवीय सहायता को भेजना जारी रखने का फ़ैसला लिया है.

तालिबान सरकार को लेकर भारत का अब तक रुख़ क्या रहा?
तालिबान के सत्ता में आने के बाद, पहले भारत कह रहा था कि वो तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं देगा और उसने विश्व समुदाय से भी अपील की थी कि तालिबान के शासन को मान्यता देने में कोई जल्दबाज़ी नहीं की जानी चाहिए.

हालांकि शुरुआती कुछ महीनों के दौरान ही भारतीय नीति में बदलाव के संकेत मिलने शुरू हो गए और भारत ने क़तर की राजधानी दोहा में तालिबान प्रधिनिधियों से मुलाक़ात की.

हालांकि, उस मुलाक़ात की बात को भारत ने कभी स्वीकार नहीं की लेकिन बीते वर्ष अगस्त के अंत में दोहा में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल और तालिबान के शीर्ष नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्टैनिकज़ई से मुलाक़ात और लंबी बातचीत हुई.

तालिबान के साथ भारत की ये पहली औपचारिक बातचीत थी.

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बातचीत के बारे में जो बयान दिया, उसमें कहा गया कि ये बातचीत तालिबान के अनुरोध पर की गई थी, जिसका मुख्य मुद्दा अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और वहाँ रह रहे अल्पसंख्यकों के भारत आने की अनुमति का था.

भारत ने तालिबान के शीर्ष नेता के साथ सामरिक मुद्दे को भी उठाया, जिसमें आश्वासन भी मिला कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा.

तालिबान के साथ दूसरी औपचारिक बैठक 21 अक्तूबर को हुई, तब मॉस्को में विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में भारत का एक प्रतिनिधिमंडल तालिबान के प्रतिनिधियों से मिला. तालिबान के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उनके उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनफ़ी कर रहे थे.

ये प्रतिनिधिमंडल रूस के निमंत्रण पर अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित 'मोस्को फ़ॉर्मेट' सम्मेलन में शामिल होने गया था और सम्मेलन के इतर भारत और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई.

इसके बाद भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर चीन, रूस और पाकिस्तान के साथ चार देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक आयोजित करने का प्रस्ताव रखा लेकिन नवंबर में आयोजित इस बैठक में चीन और पाकिस्तान की ओर से कोई शामिल नहीं हुआ.

भारत में ये बैठक पिछले साल 10 नवंबर को आयोजित की गई. इसमें रूस, ईरान, उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के प्रतिनिधि शामिल हुए.

बैठक के बाद 'दिल्ली डिक्लेरेशन ऑन अफ़ग़ानिस्तान' नाम से 12 पॉइंट का घोषणा पत्र भी जारी किया गया. बैठक में शामिल सभी देश इस बात पर राज़ी हुए कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल आंतकवाद को किसी तरह के पोषण देने, ट्रेनिंग, प्लानिंग या आर्थिक मदद के लिए नहीं किया जाएगा.

ये बैठक भले ही तालिबान सरकार को लेकर हुई लेकिन इसमें अफ़ग़ानिस्तान को न्योता नहीं दिया गया. इसके पीछे भारत सरकार का तर्क था कि तालिबान की सरकार को उस बैठक में शामिल हुए किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी थी.

लेकिन उस बैठक को लेकर तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने ट्वीट किया, "उम्मीद है कि ऐसी बैठकों से अफ़ग़ानिस्तान मामले को बेहतर समझ बनाने में मदद मिलेगी."

अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत की नीति
अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत की कभी 'कोई एक नीति' नहीं रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत ने अमेरिका और नेटो की फ़ौजों पर सुरक्षा और सामरिक मुद्दों को छोड़ दिया था और अपना पूरा 'फ़ोकस' अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण तक ही रखा.

चाहे वो छात्रवृत्ति देने की बात हो, नई संसद और बांध का निर्माण हो या फिर बिजली और सड़क की योजनाएँ हों. भारत ने सिर्फ़ इसी तक अपना दायरा सीमित रखा और भारी निवेश भी किया.

लेकिन सामरिक मामलों के जानकारों के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान के मामले में भारत बहुत दिनों तक 'मैदान से बाहर बैठकर' सब कुछ नहीं देखता रह सकता है. वो ये भी मानते हैं कि 'तालिबान अपना शासन नियम से चलाए' ये कहते रहने से और उसका इंतज़ार करते रहने से भारत को कुछ हासिल भी नहीं हो सकता है.

जानकारों के मुताबिक भारत को अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की ख़ातिर वहाँ अपनी मौजूदगी बनाए रखनी चाहिए. शायद यही वजह है कि तालिबान से दशकों तक दूरी बनाए रखने के बाद अब भारत अपने क़दम आगे बढ़ा रहा है. (bbc.com)

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