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आदिवासी आरक्षण कटौती के लिए भाजपा दोषी -- कांग्रेस
08-Oct-2022 7:02 PM
आदिवासी आरक्षण कटौती के लिए भाजपा दोषी -- कांग्रेस

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम, मंत्री प्रेमसाय सिंह, मंत्री कवासी लखमा, मंत्री अनिला भेड़िया, विधायक गण गुलाब कमरो, विक्रम मंडावी, लक्ष्मी ध्रुव, यूडी मिंज, चक्रधर सिदार, राजमन बेंजाम की राजीव भवन में पत्रकार वार्ता

रायपुर, 8 अक्टूबर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के साथ चार मंत्रियों  ने पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि पूर्ववर्ती  भाजपा सरकार बदनीयती और लापरवाही के कारण आरक्षण के खिलाफ फैसला आया है और  पार्टी इस मामले में चक्काजाम और आंदोलन की नौटंकी कर रही है। भाजपा  नेताओं में थोड़ी भी नैतिकता बची हो तो वे अपनी पूर्ववर्ती सरकार की गलती के लिये राज्य के आदिवासी समाज से माफी मांगे। कांग्रेस पार्टी की सरकार आदिवासी समाज को उनका पूरा हक दिलाने को प्रतिबद्ध है। हमारी सरकार बिलासपुर हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय गयी है। हमें पूरा भरोसा है सुप्रीम कोर्ट से हमें न्याय मिलेगा।

 

मरकाम ने कहा कि हमने हाईकोर्ट में दमदारी से लड़ाई लड़ी थी, हमारे महाधिवक्ता ने आरक्षण को बढ़ाने के पक्ष में दलीले रखा लेकिन पूर्ववर्ती रमन सरकार ने मुकदमें की शुरूआत में जो लापरवाही बरता उसका नुकसान आदिवासी समाज को उठाना पड़ा। पूर्ववर्ती रमन सरकार के लापरवाही के कारण हाईकोर्ट में 58 प्रतिशत आरक्षण रद्द हुआ। भाजपा की बदनीयती के कारण आरक्षण के खिलाफ फैसला आया। रमन सरकार ने अपने दायित्व का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया था। उनकी सरकार की लापरवाही, अकर्मण्यता और गैर जिम्मेदाराना रवैये का नतीजा यह फैसला है। रमन सरकार ने 2011 में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने का निर्णय लिया था। 2012 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी। सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों जिसमें इंदिरा साहनी का फैसला प्रमुख के अनुसार कोई भी राज्य सरकार यदि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण करती है तो अत्यंत विशेष परिस्थितियों, विचार एवं तथ्यों के साथ कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करना होगा। इसका भी ख्याल नहीं किया गया। जब आरक्षण को बढ़ाने का निर्णय हुआ उसी समय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य सरकार को अदालत के सामने आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की विशेष परिस्थितियों और कारण को बताना था।

मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंहने पत्रकार वार्ता में कहा कि तत्कालीन रमन सरकार अपने इस दायित्व का सही ढंग से निर्वहन नहीं कर पायी। 2012 में बिलासपुर उच्च न्यायालय में 58 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर हुई तब भी रमन सरकार ने सही ढंग से उन विशेष कारणों को प्रस्तुत नहीं किया जिसके कारण राज्य में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत किया गया। रमन सरकार ने आरक्षण में संशोधन के पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती फैसले को ध्यान में नहीं रखा। 
मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में अजजा, जजा और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को बढ़ाने के तमाम तर्कसंगत कारण और विशेष परिस्थितियां है लेकिन रमन सरकार की नीयत में खोट थी। उन्होंने अदालत में राज्य की 95 प्रतिशत आबादी के हक में तर्क नहीं दिया और जनता को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। यदि आरक्षण बढ़ाया था तो उसके विशेष कारणों को बताने की जवाबदेही भी सरकार को थी। रमन सरकार ने नहीं बताया। हमारी सरकार ने ओबीसी वर्ग के आरक्षण को 27 प्रतिशत किया है तो हम उसके लिये क्वांटी फायबल डाटा आयोग बना कर पिछड़ा वर्ग की राज्य में जनगणना करवा रहे। हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे राज्यों के भी 50 प्रतिशत से भी अधिक आरक्षण है। अरूणांचल, मिजोरम, मेघालय जैसे राज्यों में अनुसूचित जाति वर्ग को 80 प्रतिशत आरक्षण है। आरक्षण रद्द किये जाने का विपरीत प्रभाव अब तक हुये एडमिशन में न पड़े और भर्तियां हुई है इस पर न पड़े। इसके लिये अदालत से विशेष निवेदन किया गया। अदालत ने इसको माना भी इस फैसले का अभी तक की भर्तियों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हमारा मानना है कि राज्य के सभी वंचित वर्ग को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया जाये, एससी के आरक्षण में कटौती न हो, एसटी को पूरा आरक्षण मिले, ओबीसी को पूरा मिले रमन सरकार ने यही सावधानी नहीं बरता था।

मंत्री अनिला भेड़िया ने कहा कि आरक्षण को बढ़ाने के लिये तत्कालीन सरकार ने तत्कालीन गृहमंत्री ननकी राम कंवर की अध्यक्षता में 2010 में मंत्रिमंडलीय समिति का भी गठन किया था। रमन सरकार ने उसकी अनुशंसा को भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जिसका परिणाम है कि अदालत ने 58 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को रद्द कर दिया।

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