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बिलावल भुट्टो ज़रदारी वॉशिंगटन गए थे लेकिन नहीं मिले विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन
27-Dec-2022 1:32 PM
बिलावल भुट्टो ज़रदारी वॉशिंगटन गए थे लेकिन नहीं मिले विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन

वॉशिंगटन, 27 दिसंबर । बिलावल भुट्टो ज़रदारी इस साल अप्रैल महीने में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बनने के बाद से तीन बार अमेरिका जा चुके हैं.

बिलावल अभी 14 दिसंबर से 21 दिसंबर तक अमेरिका में रहकर आए हैं. इस एक हफ़्ते के दौरे में बिलावल ने न्यूयॉर्क में जी-77 प्लस चाइना की अध्यक्षता की थी और संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस से भी मुलाक़ात की थी.

इसी दौरे में बिलावल ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विवादित टिप्पणी करते हुए उन्हें 'गुजरात का कसाई' कहा था. पीएम मोदी पर यह टिप्पणी कर बिलावल पाकिस्तानी मीडिया में ख़ूब सुर्खियां हासिल कर चुके थे. लेकिन दौरे का जिस तरह से अंत हुआ, उसमें बिलावल पर ही कई सवाल उठ रहे हैं.

न्यूयॉर्क से बिलावल वॉशिंगटन डीसी पहुँचे थे. पाकिस्तान विदेशी मंत्री को उम्मीद रही होगी कि उनकी मुलाक़ात अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से होगी.

एंटनी ब्लिंकन भी 20 दिसंबर को वॉशिंगटन में ही थे. लेकिन ब्लिंकन ने मुलाक़ात के बदले फ़ोन पर बात की. बिलावल को अमेरिका की उप-विदेश मंत्री वेंडी आर शर्मन से मुलाक़ात कर संतोष करना पड़ा.

लेकिन सबसे दिलचस्प यह रहा कि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से जो बयान जारी किया गया, उसमें यह नहीं बताया गया कि बिलावल की ब्लिंकन से आमने-सामने की मुलाक़ात हुई थी या फ़ोन पर बात हुई थी.

21 दिसंबर को पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने जो प्रेस रिलीज़ जारी किया है, उसमें लिखा गया है कि 20 दिसंबर को बिलावल भुट्टो की एंटनी ब्लिंकन से बहुत अच्छी बातचीत हुई है.

पाकिस्तान में क्या कहा जा रहा है

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने बताया है कि दोनों विदेश मंत्रियों के बीच द्विपक्षीय संबंधों, क्षेत्रीय मुद्दों और अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा स्थिति पर बात हुई.

लेकिन कहीं यह नहीं बताया गया है कि बिलावल की ब्लिंकन से फ़ोन पर बात हुई थी. पाकिस्तान में अब इसे लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या देश के विदेश मंत्री की इतनी भी हैसियत नहीं है कि वॉशिंगटन जाने के बाद भी उसे अमेरिकी विदेश मंत्री मिलने का वक़्त दें.

भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने बिलावल भुट्टो की समझ पर सवाल उठाया है.

अब्दुल बासित का कहना है, ''मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मुलाक़ात नहीं होनी थी तो बिलावल न्यूयॉर्क से वॉशिंगटन डीसी क्यों गए थे? हम ख़ुद को इतना क्यों गिरा देते हैं कि चाहे जिससे भी मुलाक़ात हो जाए कर लो. हमारा दूतावास वहाँ पर क्या कर रहा है?

यह मुलाक़ात कराने में हुसैन हक़्क़ानी साहब क्यों कामयाब नहीं हुए? यह भी नहीं था कि ब्लिंकन वॉशिंगटन में मौजूद नहीं थे. ब्लिंकन ने उसी दिन पनामा के विदेश मंत्री से मुलाक़ात की थी.''

अब्दुल बासित कहते हैं, ''हमारे विदेश मंत्री एक हफ़्ते से ज़्यादा वक़्त तक अमेरिका में मौजूद थे, लेकिन ब्लिंकन मिलने का वक़्त नहीं निकाल सके. एक तो पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने जो बयान जारी किया है, वह कन्फ्यूज़ करने वाला है.

इससे ऐसा लगता है कि आमने-सामने की मुलाक़ात हुई है. अमेरिका के जूनियर अधिकारियों से बिलावल की मुलाक़ात हुई. हमने ख़ुद को कितना नीचे गिरा दिया है. क्या हमें अब भी यह सोचने की ज़रूरत नहीं है कि ख़ुद का स्वाभिमान थोड़ा बचाएं.''

भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर के दौरे से तुलना

''ठीक है कि हमारे हालात अच्छे नहीं हैं, लेकिन हमारे हालात तो कभी अच्छे नहीं रहे, तो क्या हम यही काम करते रहेंगे? अगर मुलाक़ात नहीं होनी थी तो न्यूयॉर्क से ही वापस आ जाते. बिलावल कहते हैं कि अपने ख़र्चे पर विदेश जाते हैं, लेकिन इसका मतलब तो यह नहीं कि विदेश मंत्री के ओहदे का सम्मान नहीं होना चाहिए.''

अब्दुल बासित ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की मिसाल देते हुए कहा है कि वह भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता करने न्यूयॉर्क गए थे, लेकिन न्यूयॉर्क से सीधे दिल्ली आ गए न कि वॉशिंगटन डीसी गए.

बासित ने अपने वीडियो ब्लॉग में कहा है, ''जयशंकर तो वॉशिंगटन डीसी नहीं गए, लेकिन बिलावल को जाने की क्या ज़रूरत थी. बिलावल पहले भी वॉशिंगटन जा ही चुके हैं. इस मामले में वॉशिंगटन स्थित हमारा दूतावास और हुसैन हक़्क़ानी साहब भी नाकाम रहे हैं.

क्या उन्हें बिलावल को सलाह नहीं देनी चाहिए थी कि अभी वॉशिंगटन नहीं आएं. न अमेरिका के एनएसए से मुलाक़ात हुई और न ही पेंटागन में किसी अहम शख़्सियत से. बिलावल को सही सलाह देने की ज़रूरत है.''

अब्दुल बासित कहते हैं, ''पिछले 10-15 दिनों में जो कुछ भी हुआ है, उससे मुझे डर लग रहा है. जैसे बिलावल ने अमेरिका में कह दिया है कि बाइडन प्रशासन वित्तीय और तकनीकी मदद देने को तैयार है ताकि अफ़ग़ानिस्तान में टीटीपी के ठिकानों पर हमला करना पड़े तो कोई दिक़्क़त ना हो. यह कोई परिपक्व बयान नहीं है. हमारे लिए अफ़ग़ानिस्तान बहुत संवेदनशील मामला है.''

'बिलावल पीएम की कुर्सी के तिकड़म में लगे हैं'

''हम एक बार फिर से वहाँ गृहयुद्ध बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. तालिबान की हुकूमत के ख़िलाफ़ हम अमेरिका में बैठकर कोई बयान कैसे दे सकते हैं? तालिबान को यह इम्प्रेशन नहीं जाना चाहिए कि उसके ख़िलाफ़ पाकिस्तान ने अमेरिका से हाथ मिला लिया है. यह कहीं से भी सही नीति नहीं है.

अमेरिका हमें फिर से इस्तेमाल करेगा और छोड़ कर चला जाएगा. अमेरिका तो पाकिस्तान में अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर एडवाइज़री जारी कर रहा है. हमारे विदेश मंत्री का अमेरिका में एक हफ़्ते तक रहना क्या बताता है? इसका ठीक संदेश नहीं जाता है.''

वॉशिंगटन जाने के बावजूद ब्लिंकन के बिलावल से नहीं मिलने को लेकर पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर क़मर चीमा ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ डेलावेयर के प्रोफ़ेसर डॉक्टर मुक़्तदर ख़ान से बात की है.

इस बातचीत में मुक़्तदर ख़ान ने कहा है, ''मुझे लगता है कि बिलावल ने वॉशिंगटन डीसी में अपार्टमेंट रेंट पर ले लिया है. पिछले डेढ़-दो महीने से यहीं नज़र आ रहे हैं. उनकी माँ बेनज़ीर को लेकर मेरे मन में बहुत आदर है, लेकिन बिलावल को लेकर बिल्कुल नहीं है.

बिलावल को लेकर मेरी समझ यही बनी है कि वह अपना काम नहीं कर रहे हैं बल्कि प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए तिकड़म में लगे हुए हैं. इसमें दिक़्क़त ये होती है कि आपको जो ज़िम्मेदारी दी गई है, उसे पीछे छोड़ देते हैं.''

मुक़्तदर ख़ान ने कहा, ''मिसाल के तौर पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयंशकर प्रधानमंत्री बनने की चाहत नहीं रखते हैं, इसलिए वह अपना काम बेहतरीन तरीक़े से कर रहे हैं. बिलावल के साथ एक दिक़्क़त तो यह है. दूसरी दिक़्क़त है कि उनके पास कोई अनुभव नहीं है.

तीसरी दिक़्क़त यह है कि वह लोकप्रिय होने के लिए इमरान ख़ान से होड़ कर रहे हैं. इसीलिए वह नरेंद्र मोदी के बारे में इस तरह से बोल रहे हैं. यह बयान पाकिस्तान के हित में नहीं है. मुझे लगता है कि यह उनके हित में भी नहीं है. इस तरह की बात वह भले दूसरों से करवा सकते हैं.''

बिलावल के साथ ब्लिंकन का बर्ताव

मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, ''जब आप किसी के पीछे पड़ जाते हैं तो अगला कहता है कि तुम मुझे कॉल मत करना, मैं ख़ुद कर लूंगा. उसका मतलब यह होता है कि दूर हो जाओ. मुझे लगता है कि ब्लिंकन ने भी बिलावल के साथ यही किया है.

आप कितनी बार मिलेंगे और एक ही बात करेंगे. संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के बाद जो बैठक ब्लिंकन और बिलावल की हुई थी, उससे अलग कोई और नई बात नहीं है. यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि अमेरिका से पाकिस्तान को 9.7 करोड़ डॉलर मिल रहा है.''

मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, ''बिलावल ने कहा कि लादेन मारा गया, लेकिन इस बयान के बाद ही पाकिस्तान में कई धमाके हुए हैं. टीटीपी का ख़तरा बढ़ गया है. पाकिस्तान में आने वाले वक़्त में कई घातक हमले हो सकते हैं. तालिबान को पाकिस्तान हल्के में ले रहा है.

तालिबान ने जब अफ़ग़ानिस्तान को पिछले साल अपने नियंत्रण में लिया तो पाकिस्तान के बुद्धिजीवी भी ख़ुश हो रहे थे. पाकिस्तान के पब्लिक डिस्कोर्स से भी बहुत निराशा होती है. आतंकवाद को समर्थन मिलता रहेगा और उसे ख़त्म नहीं किया जाएगा तो पाकिस्तान ख़ुद को पटरी पर नहीं ला सकता है. पाकिस्तानियों को आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति छोड़नी होगी.''

मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, ''मुझे यह डर है कि टीटीपी के आतंकवाद की आड़ में पीएम शहबाज़ शरीफ़ चुनाव में देरी करने का ज़रिया खोज रहे हैं. वह कह सकते हैं कि अभी हालात ठीक नहीं हैं इसलिए चुनाव टाल देना चाहिए.

टीटीपी को लेकर पाकिस्तान में सख़्ती नहीं हुई तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सवाल उठेगा. लोग पूछेंगे कि फ़ंड कहाँ से आ रहा है. पाकिस्तान पर फिर एफ़एटीएफ़ लग सकता है.''

पाकिस्तान के कई विश्लेषकों का यह कहना है कि बिलावल भुट्टो विदेश मंत्री रहते हुए जो कुछ भी कर रहे हैं, उससे नवाज़ शरीफ़ और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ख़ुश नहीं होंगे.

नवाज़ शरीफ़ और शहबाज़ शरीफ़ ने नरेंद्र मोदी पर बिलावल की टिप्पणी पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन उन्होंने उसका समर्थन भी नहीं किया है. बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और शहबाज़ शरीफ़ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के बीच प्रतिद्वंद्विता रही है. ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि बिलावल शरीफ़ परिवार से ज़्यादा लोकप्रिय होने के चक्कर में ये सब कर रहे हैं. (bbc.com/hindi)

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