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'पीड़ितों का पुन: उत्पीड़न': यौन अपराध पीड़ितों को मुआवजे में खामियां
08-Jan-2023 1:06 PM
'पीड़ितों का पुन: उत्पीड़न': यौन अपराध पीड़ितों को मुआवजे में खामियां

सुमित सक्सेना

नई दिल्ली, 8 जनवरी | एक एनजीओ ने दावा किया है कि पिछले दो दशकों में भारत में बलात्कार से संबंधित अपराध दर में 70.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसने यौन हिंसा के पीड़ितों के मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का आह्वान किया है। संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 357 ए के तहत पीड़ित मुआवजा स्कीम और एनएएलएसए की महिला पीड़ितों/यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों से बचे लोगों के लिए मुआवजा स्कीम 2018 गारंटीकृत है।

याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले में कहा गया है कि सभी राज्यों को मुआवजे की राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) की योजना का पालन करना होगा। यह दावा करते हुए कि कई राज्यों ने 2018 की एनएएलएसए स्कीम के अनुसार अपनी पीड़ित मुआवजा योजनाओं में संशोधन नहीं किया है, यह कहा कि विभिन्न राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों के अप्रभावी कामकाज, यौन हमले के पीड़ितों की परिभाषा में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत अपराधों को शामिल नहीं करना, केवल पीड़ितों और उनके आश्रितों (अभिभावकों को छोड़ कर) को आवेदन दाखिल करने में सक्षम बनाना, एक साथ पीड़ितों के पुन: उत्पीड़न का परिणाम है।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जेबी परीदवाला ने याचिका पर विचार करने के बाद केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली के राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों को नोटिस जारी किया।

एनजीओ सोशल एक्शन फोरम फॉर मानव अधिकार की अधिवक्ता ज्योतिका कालरा ने बताया कि राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो की वार्षिक रिपोर्ट के अध्ययन के अनुसार दो दशकों में भारत में बलात्कार से संबंधित अपराध दर 70.7 प्रतिशत बढ़ी है। 2001 में यह प्रति 1 लाख महिलाओं और लड़कियों पर 11.6 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 19.8 प्रतिशत हो गया।

याचिका में तर्क दिया गया है कि 2018 की नालसा योजना और 357ए सीआरपीसी के बारे में जागरूकता और पुलिस प्रशिक्षण के अभाव में पुलिस प्राथमिकी में अपराध की महत्वपूर्ण धाराओं को नहीं जोड़ती है, जिससे पीड़ित मुआवजे के लिए अपात्र हो जाते हैं।

याचिका में कहा गया है याचिकाकर्ता ने वीसीएस के बारे में जागरूकता की कमी पाई है। विभिन्न एसएलएसए में विभिन्न वीसीएस और जटिल प्रक्रियाएं पीड़ितों की पीड़ा को बढ़ा रही हैं। उदाहरण के लिए बिहार और दिल्ली में फॉर्म क भरने की आवश्यकता है, जो गरीब और अशिक्षितों के लिए न्याय तक पहुंचने में बाधा है। मध्य प्रदेश और यूपी में पीड़ित की ओर से एक आवेदन पर्याप्त है।

याचिका में कहा गया है कि मुआवजे के लिए आवेदन केवल पीड़िता या उसके आश्रितों द्वारा सीआरपीसी की धारा 357 ए (4) के तहत और 2018 की नालसा योजना के नियम 5 के तहत पीड़िता या उसके आश्रितों या संबंधित क्षेत्र के एसएचओ द्वारा दायर किया जा सकता है।

याचिका में कहा गया है, वास्तव में अधिकांश पीड़ित नाबालिग हैं और स्वयं आश्रित हैं, इसलिए प्रावधान ही मुआवजे के वितरण में एक रुकावट बन जाता है, क्योंकि नाबालिग पीड़िता के अभिभावक उसकी ओर से आवेदन दायर नहीं कर सकते हैं।

इसने कहा, मुआवजा वीएसवी तक नहीं पहुंचने के कारणों में से एक मानक निगरानी प्रणाली की कमी है, जिसमें सेवा प्रदाताओं से डेटा/रिकॉर्डस को मिलाने की विधि शामिल है (जैसे शिकायतें, अंतरिम राहत दिए गए मामलों की संख्या, पुलिस रिकॉर्ड, स्वास्थ्य रिकॉर्ड और अन्य) ) पीड़ितों/उत्तरजीवियों की सुरक्षा से समझौता किया जा रहा है।

एनजीओ ने कहा कि अलग-अलग राज्य अलग-अलग तरीकों से अपनी राज्य विशिष्ट योजना को लागू कर रहे हैं, जबकि कुछ मुआवजा प्रदान करने से पहले मुकदमे के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। इसने आगे कहा कि पीड़िता के लिए हर दिन महत्वपूर्ण है, उन्हें रोजमर्रा की जरूरतों के लिए, इलाज के लिए और पुलिस के साथ मामले को आगे बढ़ाने के लिए भी पैसे की जरूरत है।

याचिकाकर्ता ने नालसा योजना, 2018 के नियम 9 के अनुसार, 60 दिनों से पहले जांच पूरी करने के लिए एक दिशा निर्देश की मांग की। (आईएएनएस)

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