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हॉकी वर्ल्ड कप: 47 साल बाद ट्रॉफ़ी जीतने में भारत का ‘ट्रंप कार्ड’ बनेंगे श्रीजेश?
13-Jan-2023 1:13 PM
हॉकी वर्ल्ड कप: 47 साल बाद ट्रॉफ़ी जीतने में भारत का ‘ट्रंप कार्ड’ बनेंगे श्रीजेश?

-शिवाकुमार उलगनाथन

नई दिल्ली, 13 जनवरी । भारत ने हॉकी का आख़िरी वर्ल्ड कप 1975 में जीता था. उसके बाद 47 साल बीत गए हैं. तब से भारत के करोड़ों खेल प्रेमियों को हॉकी के सबसे बड़े ख़िताबी मुकाबले में जीत का इंतज़ार है.

उस सपने का काउंटडाउन 13 जनवरी को स्पेन के साथ मुकाबले से शुरू हो रहा है. उससे पहले ही तमाम खेल प्रेमी और समीक्षकों के बीच ये बहस ज़ोर पकड़ चुकी है कि क्या भारत 47 साल पहले वाला वो करिश्मा दोहरा पाएगा?

हॉकी और पूरे खेल के लिहाज़ से 47 साल का अरसा बहुत होता है. इस दौरान हॉकी में टर्फ़ से लेकर टैक्टिक्स तक बहुत कुछ बदल चुका है. लेकिन सच जस का तस है कि 47 साल पहले ख़िताबी जीत के बाद भारत कभी टॉप-3 में भी नहीं रहा.

श्रीजेश का अनुभव

पी. आर. श्रीजेश भारत की हॉकी टीम में गोलकीपर हैं और सबसे अनुभवी खिलाड़ी भी. श्रीजेश का ये चौथा वर्ल्ड कप है और उनके लिए ये वर्ल्ड कप जीतने का आख़िरी मौका भी. लिहाज़ा करोड़ों चाहने वालों की ख़्वाहिश की तरह श्रीजेश की पूरी कोशिश होगी कि इस बार वर्ल्ड कप भारत ही जीते.

भारत ने हॉकी में आख़िरी बड़ी जीत 2021 में हासिल की थी, जब टीम टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने में कामयाब हुई थी. ओलंपिक में ये जीत भारतीय टीम को 41 साल बाद मिली थी.

टोक्यो से पहले 1980 के मॉस्को ओलंपिक में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीता था. इसके अलावा एशियन गेम्स में 32 साल के इंतज़ार के बाद 1998 में जीत दर्ज की थी. इस लिहाज़ से देखें तो भारतीय टीम के लिए हॉकी के विश्व कप का इंतज़ार बहुत लंबा (47 साल) हो चुका है.

अगर चार दशकों में पुरुषों की हॉकी टीम का सफ़र देखें, तो ये ज़्यादा उत्साहजनक रहा है. एशियन गेम्स, एशिया कप और चैम्पियंस ट्रॉफ़ी में कुछ मौकों पर जीत की वजह से टीम का गौरव ज़रूर बना रहा. लेकिन ओलंपिक गोल्ड मेडल या विश्व कप में टॉप थ्री पोज़ीशन हासिल करना 47 साल से एक सपना ही है.

वो सपना इस विश्व कप में साकार हो सकता है, ऐसी उम्मीद अगर ज़िंदा है, तो इसके पीछे टोक्यो ओलंपिक्स में मिला कांस्य पदक है. 2021 के उस पदक ने टीम के साथ करोड़ों चाहने वालों की उम्मीदों की लौ अब तक जलाए रखी है.

इस विश्वकप में कितनी उम्मीद

ऐसा नहीं कि 47 साल के अरसे में भारत ने अपनी तरफ़ से कोशिशें नहीं कीं. भारत ने अलग-अलग कॉम्बिनेशन के खिलाड़ियों को मौका दिया, देशी-विदेशी कोच आज़माए, भारतीय स्टेडियमों में खेल के बदलते तौर-तरीकों और मैदानों को देखते हुए बुनियादी सुविधाएं बेहतर कीं. इन सबका लक्ष्य एक था- विश्वकप में जीत. लेकिन वो लक्ष्य हर बार अधूरा ही रहा.

भारत की मौजूदा टीम विश्व कप या टॉप-3 में जगह बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कितनी फ़िट है?

इस सवाल पर भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान वासुदेवन भास्करन बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "भारतीय टीम के पास इस बार बहुत अच्छा मौका है विश्व कप के टॉप-3 में अपनी जगह बनाने का.

भारतीय खिलाड़ियों ने, ख़ासतौर पर श्रीजेश ने टोक्यो ओलंपिक में जिस तरह का शानदार खेल दिखाया, उससे साबित होता है कि टीम पिछले दो साल से अच्छे फ़ॉर्म में है. कोच के तौर पर ग्राहम रीड भी बेहतरीन काम कर रहे हैं. मेरे ख़्याल से पिछले दो दशक में विश्व कप खेलने वाली ये सबसे बेहतरीन भारतीय टीम है."

टीम में श्रीजेश जैसे खिलाड़ी के होने को लेकर भास्करन कहते हैं, "श्रीजेश ने पिछले कई मौकों पर साबित किया है वो बड़े मैचों में भारत के लिए निर्णायक हो सकते हैं. वो एक बड़े खिलाड़ी हैं.

हो सकता है ये उनका आख़िरी विश्वकप हो. उनके पास अनुभव है, इसलिए विश्व कप जीतने के लिए वो पूरी कोशिश करेंगे. विश्व कप जीतने का जो सपना 47 साल पुराना हो चुका है, हो सकता है वो इस बार साकार हो."

उतार चढ़ाव से भरा श्रीजेश का सफ़र

श्रीजेश भारतीय हॉकी टीम में 2006 से खेल रहे हैं. 2004 में वो जूनियर इंटरनेशनल हॉकी टीम के लिए चुने गए थे. हालांकि इस दौरान उनकी शुरुआत अच्छी नहीं रही थी. टीम मे होते हुए भी वो कई मैचों में मैदान के बाहर ही दिखते थे.

लेकिन 2011 के एशियन चैम्पियनशिप में पाकिस्तान के साथ फ़ाइनल मुकाबले ने श्रीजेश की तक़दीर बदल दी. इसके बाद 2013 और 2014 के एशियन गेम्स में भारत की जीत में जिस तरह से उन्होंने अहम भूमिका निभाई, टीम में उनकी जगह नियमित हो गई. बाद में कुछ मैचों में उन्होंने टीम की कप्तानी भी की.

2018 के एशियन गेम्स में श्रीजेश का करियर एक बार फिर से लड़खड़ाने लगा. टीम के लगातार ख़राब परफ़ॉर्मेंस की वजह से श्रीजेश के हाथ से कप्तानी चली गई. इसमें सबसे बुरा दौर श्रीजेश ने टोक्यो ओलंपिक्स के दौरान देखा, जब कुछ खेल समीक्षकों के साथ दूसरे लोगों ने टीम में उन्हें रखे जाने को लेकर ट्रोल किया.

एक सोशल मीडिया पोस्ट में यहां तक लिखा गया कि 'श्रीजेश तुम रिटायर कब हो रहे हो?' टूर्नामेंट के दौरान इस तरह का पोस्ट जब वायरल हो जाए, तो ये किसी भी खिलाड़ी के मनोबल पर विपरीत असर डालेगा.

लेकिन श्रीजेश ने ऐसी आलोचनाओं का जवाब अपने शानदार खेल से दिया. पूरे ओलंपिक में जिस तरह से उन्होंने बतौर गोलकीपर भारत के लिए गोल बचाए, वो अपने आप में मिसाल है. इसी की बदौलत ओलंपिक में कोई भी मेडल जीतने का सपना 41 साल बाद पूरा हो सका.

अब श्रीजेश के पास बिल्कुल अलग लक्ष्य है. कोई भी बड़ा खिलाड़ी चाहेगा कि अपने आख़िरी विश्व कप में अपने देश के लिए ख़िताब जीतने का सपना 47 साल बाद पूरा करे.

सचिन तेंदुलकर, इमरान ख़ान और लियोनेल मेसी जैसे तमाम खिलाड़ियों का वर्ल्ड कप जीतने का सपना इनके आख़िरी टूर्नामेंट में ही पूरा हुआ. हालांकि इस क़तार में ब्रायन लारा, धनराज पिल्लई, वेन रूनी, राहुल द्रविड़ और क्रिस्टियानो रोनाल्डो जैसे खिलाड़ी भी हैं जो विश्वकप का ख़्वाब पूरा नहीं कर पाए. लेकिन भारतीय हॉकी के दीवाने चाहेंगे कि श्रीजेश की जगह आख़िरी टूर्नामेंट में विश्वकप जीतने वाले खिलाड़ियों की सूची में ज़रूर शामिल हो.

श्रीजेश की गोलकीपिंग की बदौलत भारतीय टीम जिस तरह से टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने में कामयाब हुई, उसे भारतीय हॉकी का पुनर्जन्म क़रार दिया गया. टीम के बारे में ये राय कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल हासिल करने के साथ और भी मज़बूत हुई.

अगर इस वर्ल्ड कप में भारतीय टीम 47 साल पुराना सपना पूरा कर देती है तो हॉकी को लेकर पूरे देश के युवाओं में एक नया जुनून देखने को मिलेगा. इस दिशा में श्रीजेश का योगदान बड़ा हो सकता है. जितने गोल वो बचाएंगे, भारतीय हॉकी का सुनहरा इतिहास उतने ही सुंदर अक्षरों में लिखा जाएगा. (bbc.com/hindi)

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