राष्ट्रीय

भीषण गर्मी, कड़ाके की ठंड और भारी बरसात, आखिर क्यों हो रहे हैं मौसम में बड़े बदलाव?
15-Jan-2023 12:02 PM
भीषण गर्मी, कड़ाके की ठंड और भारी बरसात, आखिर क्यों हो रहे हैं मौसम में बड़े बदलाव?

 नई दिल्ली, 15 जनवरी | पिछले कुछ सालों में भारत समेत दुनियाभर में मौसम के अलग रूप देखे जा रहे हैं। कभी भयंकर गर्मी, तो कभी मूसलाधार बारिश और अब एक बार फिर कड़ाके की ठंड मौसम के बदलते स्वरूप को दिखा रही है। आखिर क्यों मौसम में आ रहे है बड़े बदलाव और क्या है इसके पीछे के कारण। उत्तर भारत इन दिनों भीषण ठंड की चपेट में है। रात में कोहरा तो दिन में सर्द हवाओं से लोग परेशान हैं। वहीं एक मौसम विशेषज्ञ ने आने वाले दिनों के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी है।


मौसम विशेषज्ञ नवदीप दहिया ने कहा है कि 14 से 19 जनवरी तक उत्तर भारत भीषण शीतलहर की चपेट में होगा। खास तौर पर 16 से 18 जनवरी के बीच ठंड अपने चरम पर होगी और मैदानी इलाकों का पारा माइनस 4 डिग्री सेल्सियस से लेकर दो डिग्री तक गिर सकता है।

वहीं दूसरी तरफ बीते साल 2022 के मौसम को देखें तो पता चलेगा कि इस एक साल में भी कई बदलाव हुए हैं। साल के पहले महीने से लेकर दिसंबर तक मौसम का रूख पूरी तरह अलग रहा। मानसून और गर्मी के आगमन में भी बदलाव देखा गया। वहीं बीते साल मौसम में ठंड के दिनों में भी बदलाव देखा गया। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। इसी के चलते मौसम हर वक्त करवट बदल रहा है।

जलवायु एक लंबे समय में या कुछ सालों में किसी स्थान का औसत मौसम है और जलवायु परिवर्तन उन्हीं परिस्थितियों में हुए बदलाव के कारण होता है। वर्तमान जलवायु परिवर्तन का असर ग्लोबल वामिर्ंग और मौसम के पैटर्न दोनों पर पड़ रहा है। दरअसल जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वामिर्ंग और मानसून में अस्थिरता को बढ़ा रही है, जिसके चलते गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ रही है और बारिश की अवधि कम हो रही है।

मौसम विशेषज्ञ नवदीप दहिया ने आईएएनएस को बताया कि मौसम में बदलाव को अगर बड़े पैमाने पर देखें तो इसके पीछे 'ला नीना' एक कारण है। जिसकी वजह से प्रशांत महासागर की सतह का तापमान काफी ठंडा हो जाता है। नवदीप ने कहा कि ला नीना ने 2019 से अपना प्रभाव दिखाना शुरू किया है। इसकी वजह से ही हमारे यहां ठंड ज्यादा हो रही है।

साल 2023 में भी इसका यही पैटर्न काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि पहले मौसम स्थिर होता था। एक तय समय और मात्रा तक ठंड, गर्मी और बरसात होती थी। मगर पिछले 50 सालों से जलवायु परिवर्तन के कारण ट्रेंड बदल रहा है। पिछले एक दशक में अल नीनो और ला नीना दोनों में ही गर्मी भी काफी हुई है।

अल नीनो और ला नीना शब्द का संदर्भ प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से है, जिसका दुनिया भर में मौसम पर प्रभाव पड़ता है। अल नीनो की वजह से तापमान गर्म होता है और ला नीना के कारण ठंडा। दोनों आमतौर पर 9-12 महीने तक रहते हैं, लेकिन असाधारण मामलों में कई वर्षों तक रह सकते हैं। इन दोनों का असर भारत में भी देखने को मिलता है।

अल नीनो: इसके कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है। ये तापमान सामान्य से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है। अल नीनो जलवायु प्रणाली का एक हिस्सा है। यह मौसम पर बहुत गहरा असर डालता है। इसके आने से दुनियाभर के मौसम पर प्रभाव दिखता है और बारिश, ठंड, गर्मी सबमें अंतर दिखाई देता है।

ला नीना: इसमें समुद्री सतह का तापमान काफी कम हो जाता है। इसका सीधा असर दुनियाभर के तापमान पर होता है और तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है। ला नीना से आमतौर पर उत्तर-पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण-पूर्व में मौसम गर्म होता है। भारत में इस दौरान भयंकर ठंड पड़ती है और बारिश भी ठीक-ठाक होती है।

पिछले कुछ सालों में घरेलू कामों, कारखानों और परिचालन के लिए मानव तेल, गैस और कोयले का इस्तेमाल बढ़ा है। जिसका जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पर्यावरण वैज्ञानिक चंदर वीर सिंह ने आईएएनएस को बताया कि जब हम जीवाश्म ईंधन जलाते हैं, तो उनसे निकलने वाले ग्रीन हाउस गैस में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड होता है।

वातावरण में इन गैसों की बढ़ती मौजूदगी के कारण धरती का तापमान बढ़ने लगता है।

जानकारी के मुताबिक 19वीं सदी की तुलना में धरती का तापमान लगभग 1.2 सेल्सियस अधिक बढ़ चुका है और वातावरण में सीओ-2 की मात्रा में भी 40-50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की वजह से तकरीबन हर मौसम में असामान्य व्यवहार नजर आता है। मानव जनित गतिविधियों की वजह से होने वाले जलवायु परिवर्तन का असर गर्मियों में भीषण गर्मी और सर्दियों में कड़ाके की ठंड के तौर पर सामने आ रहा है।

पिछले कुछ सालों में मानसून प्रणालियों में भी बदलाव देखा गया है। गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कई हिस्सों में पिछले साल यानी 2022 में ज्यादा बारिश दर्ज की गई थी।

इसके बिल्कुल उलट पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में बारिश ही नहीं हुई। पिछले साल के अगस्त महीने में बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक दो मानसून चक्र बने जिससे पूरा मध्य भारत प्रभावित हुआ। (आईएएनएस)|

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news