अंतरराष्ट्रीय
शाहिदा रज़ाइमेज स्रोत,SYED AMIN
-मोहम्मद काज़िम
"शारीरिक तौर पर विकलांग बेटा शाहिदा रज़ा की सबसे बड़ी मजबूरी थी. यह उनका अरमान था कि उनका बेटा अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और दूसरे बच्चों की तरह खेले कूदे."
यह कहना था बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा की सादिया रज़ा का. सादिया की बहन फ़ुटबॉल और हॉकी की मशहूर खिलाड़ी शाहिदा रज़ा थीं. कुछ दिन पहले इटली में नाव हादसे में उनकी मौत हो गई थी.
बीबीसी से बात करते हुए सादिया रज़ा ने कहा कि शाहिदा बेहद हसमुख थीं, वह सबको हंसाती थीं लेकिन अपने विकलांग बेटे के लिए रोती थीं. उनकी इच्छा थी कि बस उसका इलाज हो जाए.
सादिया कहती हैं, "अब हमारी सबसे दरख़्वास्त है कि उनकी लाश को वापस लाने में हमारी मदद की जाए."
शाहिदा रज़ा के साथ खेलने वाली बलूचिस्तान फ़ुटबॉल टीम की खिलाड़ी अक़्सा ने कहा, "आपने दुनिया में बहुत कम ऐसे खिलाड़ी देखे होंगे जो एक साथ दो खेलों में नाम कमाए, लेकिन शाहिदा ने यह करके दिखाया."
शाहिदा रज़ा का ब्लेज़र
इटली में नाव के हादसे में जीवन गंवाने वाली शाहिदा रज़ा का संबंध क्वेटा के इलाक़े मरी आबाद से था. शाहिदा हज़ारा समुदाय से संबंध रखती थीं.
उनकी दोस्त और नज़दीकी रिश्तेदार समिया मुश्ताक़ कहती हैं कि उनका एक तीन साल का बेटा है लेकिन दुर्भाग्य से वह विकलांग है और वह हादसे के वक़्त उनके साथ नहीं था.
उन्होंने बताया कि शाहिदा ने 2003 से खेलकूद में हिस्सा लेना शुरू किया और इससे जुनून की हद तक प्यार की वजह से अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था.
अक़्सा ने बताया कि वह और शाहिदा दोनों पाकिस्तान आर्मी की ओर से फ़ुटबॉल खेलती थीं. उनकी गिनती बलूचिस्तान से फ़ुटबॉल की सबसे सीनियर खिलाड़ियों में होती थी.
बलूचिस्तान हॉकी एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी सैयद अमीन ने बताया कि शाहिदा रज़ा ने स्कूल के ज़माने से हॉकी खेलना शुरू किया. जब वह कॉलेज में थीं तो उन्होंने बलूचिस्तान से हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया.
सैयद अमीन बताते हैं कि चूंकि वह मेहनत करने वाली खिलाड़ी थीं, इसलिए उन्होंने फ़ुटबॉल के मैदान में भी नाम पैदा कर दिया.
उन्होंने हॉकी और फ़ुटबॉल दोनों मैदानों में न सिर्फ़ देश में बलूचिस्तान का प्रतिनिधित्व किया बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना जौहर दिखाया.
शाहिदा के साथ खेलने वाली एक और खिलाड़ी सोग़रा रजब ने बताया कि शाहिदा औपचारिक तौर पर हज़ारा यूनाइटेड फ़ुटबॉल एकेडमी की खिलाड़ी थीं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वह फ़ुटबॉल पाकिस्तान आर्मी के लिए खेलती थीं.
समिया मुश्ताक़ का कहना था कि शाहिदा उन लोगों में से थीं जिनको सही अर्थों में 'सेल्फ़ मेड' इंसान कहा जा सकता है.
"शाहिदा अक्सर यह कहा करती थीं कि मैं जो भी करूंगी अपने बल-बूते पर करूंगी और उन्होंने ऐसा करके दिखाया, उन्होंने न सिर्फ़ अपना नाम रोशन किया बल्कि बलूचिस्तान और देश का नाम भी रोशन किया.
उन्होंने बताया कि शाहिदा ने ईरान, भारत, भूटान और बांग्लादेश समेत कुछ और देशों में बलूचिस्तान और देश का प्रतिनिधित्व किया.
उन्होंने कहा कि शाहिदा परिवार की साहसी महिला थीं और उनसे हमें बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उनकी असामयिक मौत ने पूरे परिवार को उजाड़ कर रख दिया.
उन्होंने बताया कि शाहिदा रज़ा का तीन साल का बेटा है जिसे पैरों पर खड़ा देखना उनका सबसे बड़ा मक़सद और मिशन था.
उनका कहना था, "जब बच्चा 40 दिन का था तो उसे बुख़ार आया और बुख़ार के दौरान एक झटके के साथ वह बेहोश हो गया. वह इलाज के लिए बच्चे को कराची ले गईं."
"इलाज के बाद बच्चा होश में तो आ गया लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि इस की विकलांगता का इलाज पाकिस्तान में नहीं हो सकता बल्कि इसे विदेश ले जाना होगा."
समिया मुश्ताक़ ने बताया कि डॉक्टरों के अनुसार बच्चे का दिमाग 50 प्रतिशत तक कमज़ोर है और उसकी वजह से उसके लिए चलना फिरना मुश्किल है.
उन्होंने कहा, "एक खिलाड़ी होने के नाते शाहिदा रज़ा चाहती थीं कि उनका बच्चा खेले कूदे लेकिन लकवा मारे जाने के कारण बच्चे के लिए चलना मुश्किल था जिससे वह परेशान रहती थीं और उनकी सारी कोशिश और ख़्वाहिश यही थी कि उनका बच्चा किसी तरह अपने पैरों पर खड़ा हो जाए."
समिया का कहना था कि उन्होंने अपने बच्चे के इलाज के लिए किसी से मदद नहीं मांगी बल्कि खिलाड़ी होने के नाते उनकी जो नौकरी थी, वह वहां से मिलने वाले पैसों को अपने बच्चे के इलाज पर खर्च करती रहीं.
उनका कहना था कि यह बात अफ़सोसजनक है कि सन 2022 में उनकी नौकरी चली गई तो बच्चे के लिए उनकी परेशानियां बहुत ज़्यादा बढ़ गईं और इससे अधिक दुख की बात यह है कि किसी ने उनका साथ नहीं दिया.
वह कहा करती थीं, "मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा एक जगह पर नहीं पड़ा रहे बल्कि वह दूसरे बच्चों की तरह ख़ुश हो और खेले कूदे."
समिया मुश्ताक़ के अनुसार बच्चे के इलाज के लिए कहीं से सहारा न मिलने के बाद उन्होंने विदेश जाने की कोशिश की लेकिन वह इस कोशिश में ज़िंदगी की बाज़ी हार गईं.
उनकी बहन सादिया रज़ा ने बताया कि शाहिदा के बाद वे तीन बहने हैं और उनका एक भाई है, जिसकी उम्र 13 साल है.
उनका कहना था कि शाहिदा उनसे चार साल बड़ी थीं और "वह हमारी बहन ही नहीं, बल्कि दोस्त थीं, और एक हिम्मतवाली इंसान होने के नाते वह हमेशा हमें ख़ुश रखने के लिए हंसाती थीं."
"लेकिन ख़ुद अपने बच्चे के लिए दुखी रहती थीं. उनके विदेश जाने का इसके अलावा कोई मक़सद नहीं था कि वह वहां जाकर कुछ पैसे कमाएं और किसी तरह अपने बच्चे को वहां बुलाकर उसका इलाज करवा सकें."
शाहिदा रज़ा
सादिया रज़ा ने बताया कि शाहिदा तुर्की क़ानूनी तौर पर गई थीं और उनकी वहां से उनके साथ बात भी हुई थी.
उनका कहना था कि वह बिल्कुल अकेले थीं और वह तुर्की से आगे किन लोगों के साथ गईं, इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है लेकिन नाव में सफ़र के दौरान उनकी कॉल आई थी.
"सफ़र के चौथे दिन वह बहुत ख़ुश थीं और यह कह रही थीं कि बस वह थोड़ी देर में पहुंचने वाली हैं. वह इस पर बार-बार अल्लाह का शुक्र अदा कर रही थीं लेकिन उस कॉल के बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया."
उनका कहना था कि शाहिदा की मौत की ख़बर उन्हें इंटरनेट के ज़रिए मिली और उनके अनुसार, "यह एक ऐसी ख़बर थी कि जो हमारे लिए क़यामत से कम नहीं थी."
अक़्सा और सोग़रा रजब की गिनती बलूचिस्तान की उन महिला फ़ुटबॉलरों में होती है जो के शाहिदा रज़ा के साथ कई साल तक साथ-साथ खेलती रहीं हैं.
क्वेटा में न होने की वजह से मैंने उनसे लाहौर में फ़ोन पर बात की तो वह शाहिदा की असामयिक मौत पर उदास थीं और उनका कहना था कि शाहिदा की, जिन्हें प्यार से चिंटू कहा जाता था, इस मौत ने सब खिलाड़ियों और दोस्तों को शोकाकुल करके रख दिया है.
एक सवाल पर अक़्सा का कहना था, "आपको मालूम है कि बलूचिस्तान में स्पोर्ट्स के लिए महिलाओं का घरों से निकलना कितना मुश्किल है."
"जब शाहिदा ने खेलों के मैदान में क़दम रखा तो शुरू के दिनों में उन्होंने अपना हुलिया लड़कों जैसा बनाया था जिसकी वजह से दोस्तों और साथी खिलाड़ियों ने उनको चिंटू के नाम से पुकारना शुरू किया. लेकिन शाहिदा जब सफलता की सीढ़ियां चढ़ने लगीं तो फिर उन्होंने वापस लड़कियों वाला हुलिया अपना लिया."
उनका कहना था, "वह इतनी मेहनत करती थीं कि एक साथ हॉकी और फ़ुटबॉल दोनों की बेहतरीन खिलाड़ी थीं. शायद दुनिया में इस तरह के उदाहरण कम मिलें."
अक़्सा ने कहा, "चिंटू ने जिस तरह देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान का नाम रोशन किया उस हिसाब से तो वह बलूचिस्तान की गौरव थीं."
सोग़रा रजब ने बताया कि शाहिदा से वह इतनी क़रीब थीं कि उनकी साथी खिलाड़ी नहीं बल्कि उनकी बाजी और आपी (दीदी) थीं.
उनका कहना था कि शाहिदा ने स्पोर्ट्स की दुनिया का मुश्किल सफ़र मरीयाबाद से शुरू किया और बहुत कम समय में न केवल देश बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवाया.
उन्होंने कहा कि शाहिदा कहा करती थीं कि उनके दौर में बलूचिस्तान में महिलाओं के लिए खेलों के लिए घरों से निकलना बहुत मुश्किल था लेकिन आप लोग तो भाग्यशाली हैं कि अब इतनी सख़्तियां नहीं हैं. (bbc.com/hindi)