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नौकरशाहों की पेंशन बंद करने के नियमों में संशोधन, केंद्र की मंशा पर क्यों उठे सवाल
13-Aug-2023 6:23 PM
नौकरशाहों की पेंशन बंद करने के नियमों में संशोधन, केंद्र की मंशा पर क्यों उठे सवाल

उमंग पोद्दार
नई दिल्ली, 13 अगस्त।
भारत सरकार ने रिटायर्ड नौकरशाहों की पेंशन रोकने या रद्द करने के सारे अधिकार अपने पास ले लिए हैं.

जुलाई के पहले सप्ताह में केंद्र सरकार ने ऑल इंडिया सर्विसेज़ (डेथ-कम-रिटायरमेंट बेनेफ़िट्स) रूल्स 1958 में संशोधन किया है.

नए संशोधन के अनुसार, अगर रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस और आईएफ़एस अधिकारी किसी “गंभीर अपराध” में सज़ा पाते हैं या “कदाचार के गंभीर मामले” में दोषी पाए जाते हैं तो उनकी पेंशन को केंद्र सरकार रोक या रद्द कर सकती है.

ये तीन सरकारी सेवाएं ऐसी हैं जिनकी देश में सबसे अधिक मांग है और इसकी प्रतिष्ठा है. ये कहा जा सकता है कि सैलरी सुरक्षा और पेंशन उसकी प्रमुख वजह है.

आईएएस, आईपीएस और आईएफ़एस अधिकारियों की पोस्टिंग अलग-अलग राज्यों में होती है जहां वे अपना अच्छा ख़ासा समय सेवा में व्यतीत करते हैं. उन्हें उनके राज्य के काडर से पहचाना जाता है.

पहले का नियम था कि अगर केंद्र सरकार किसी व्यक्ति पर कार्रवाई शुरू करना चाहती है तो उसे उस राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती थी (रिटायर्ड अफ़सर जहां का काडर होता था), इसके बाद ही केंद्र सरकार अफ़सर की पेंशन को रोकने का फ़ैसला ले सकती थी.

हालांकि, संशोधन के बाद, केंद्र सरकार बिना राज्य सरकार की मंज़ूरी के ही अफ़सर के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकती है.

नियमों में इस संशोधन को लेकर उन कई रिटायर्ड नौकरशाहों ने सरकार की आलोचना की है, जो अक्सर सरकार की कार्रवाईयों और नीतियों पर सवाल उठाते रहे हैं.

25 जुलाई को नागरिक अधिकार संस्था कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप से जुड़े 94 पूर्व नौकरशाहों ने एक सार्वजनिक बयान पर हस्ताक्षर कर सरकार से इस संशोधन को वापस लेने की मांग की.

उन्हें डर है कि ये नया संशोधन अस्पष्ट है और इसका इस्तेमाल रिटायर्ड सिविल सेवा के अफ़सरों की पेंशन पर तलवार लटका कर उनके “सार्वजनिक रूप से बोलने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के लिए किया जा सकता है.”

नए नियम में क्या कहा गया है?
नए नियम कहते हैं कि अगर किसी रिटायर्ड अफ़सर को कोर्ट ने एक गंभीर अपराध में सज़ा सुनाई है तो उस पर उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी.

इसके अनुसार, अगर एक अफ़सर को कोई सज़ा नहीं हुई है लेकिन केंद्र सरकार "मानती" है कि "प्रथम दृष्टया अफ़सर गंभीर कदाचार के दोषी हैं" तो सरकार उन्हें नोटिस देने बाद उनकी पेंशन को बंद कर सकती है.

अफ़सर को नोटिस का जवाब देने का अधिकार होगा.

इन मामलों में सरकार का निर्णय अंतिम माना जाएगा.

किन अपराधों पर हो सकती है कार्रवाई?
नए नियमों में विस्तार से नहीं बताया गया है कि किस तरह के अपराध पेंशन बंद करने की वजह बन सकते हैं.

इसमें जिन “गंभीर अपराधों” का ज़िक्र किया गया है उनमें संवेदनशील सरकारी सूचनाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाले ऑफ़िशियल सीक्रेट एक्ट,1923 के तहत आने वाले अपराध भी शामिल हैं. लेकिन इसमें अन्य अपराधों को भी शामिल किया जा सकता है.

गंभीर कदाचार में उन सूचनाओं को उजागर करना शामिल है जो भारत के सार्वजनिक हित या सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं.

क़ानून संशोधन में खुफ़िया या सुरक्षा से संबंधित विभागों- मसलन इंटेलिजेंस ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और अन्य- में काम करने वाले रिटायर्ड नौकरशाहों पर अतिरिक्त ज़िम्मेदारी डालता है.

इनसे जुड़े अधिकारी अपने विभाग से संबंधित ऐसी कोई भी सामग्री प्रकाशित नहीं कर सकते या कोई संवेदनशील सूचना ज़ाहिर नहीं सर सकते, जो भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा करे. ऐसा करना “गंभीर कदाचार” माना जाएगा. इसके लिए उन्हें अपने विभाग के मुखिया से अनुमति लेनी होगी.

नौकरशाहों का क्या कहना है?
कई रिटायर्ड नौकरशाहों ने इस संशोधन की टाइमिंग और बदलाव की ज़रूरत पर सवाल उठाए हैं.

रिटायर्ड आईएएस अफ़सर और एक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने पूछा है, “अभी क्यों? सिविल सेवा 75 सालों से है.”

उन्होंने कहा, “ये सरकार की आलोचना करने वाले सिविल सेवा अधिकारियों की ज़ुबान बंद करने वाला असर पैदा करेगा.”

आंध्र प्रदेश के पूर्व स्पेशल चीफ़ सेक्रेटरी और डेवलपमेंट कमिश्नर पीवी रमेश ने कहा “राज्य सरकारें रिटायर्ड अफ़सरों को बचा नहीं रही हैं. अगर ऐसा होता तब इस संशोधन को स्वीकार किया जाता.”

रिटायर्ड अफ़सर जूलियो रिबेरो ने कहा कि नए नियम ये संदेश हैं कि एक अफ़सर को “ज़ुबान बंद रखनी चाहिए और दब्बू बने रहना चाहिए.”

कॉन्स्टीट्यूशन कंडक्ट ग्रुप ने लिखा कि संशोधन को “जानबूझ कर अस्पष्ट” रखा गया और “इसीलिए केंद्र सरकार ने ऐसे किसी भी पेंशनधारी को परेशान करने और उस पर मुकदमा चलाने के लिए अपने पास असीमित अधिकार रख लिए हैं जो उसकी पसंद का नहीं है, ये चाहे लेख हो, इंटरव्यू हो, किसी प्रदर्शन मार्च या सेमिनार या किसी भी तरह की आलोचना में शामिल होने का मामला हो.”

पीवी रमेश के अनुसार, ये संशोधन मौजूदा बैच के अधिकारियों को भी “संदेश” देगा कि “सतर्क रहें क्योंकि आपको भी पेंशन से हाथ धोना पड़ सकता है.”

कई अफ़सरों ने कहा कि उन्होंने पुराने नियम के तहत रिटायर्ड नौकरशाहों की पेंशन रोकने की बात कभी नहीं सुनी थी.

रिबेरो कहते हैं, “लेकिन सरकार अगर इन संशोधनों को पेंशन रोकने के लिए इस्तेमाल करती है तो ये भी हो सकता है.”

नौकरशाहों के अधिकार कितने होंगे प्रभावित?
कुछ रिटायर्ड नौकरशाहों का कहना है कि ये संशोधन उनके बोलने के बुनियादी अधिकार को प्रभावित करते हैं.

कुछ अन्य का कहना है कि सरकारी मसले पर उन्हें, अपनी विशेषज्ञता के आधार पर विचार रखने की आज़ादी होनी चाहिए.

हर्ष मंदर ने कहा, “आपके पास ऐसे लोग हैं जो शीर्ष स्तर पर सरकार का हिस्सा रहे हैं और आप उनके कामकाज से परिचित हैं.”

पीवी रमेश का कहना है कि पूरे कार्यकाल के दौरान दी गई सेवा के एवज़ में पेंशन अफ़सर का अधिकार है और इसलिए इसे सरकार की मर्जी के आधार पर रोका नहीं जा सकता.

कई नौकरशाह ये भी कहते हैं कि ये संशोधन भारत के संघीय ढांचे को भी प्रभावित करता है.

कॉन्स्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने लिखा है कि सिविल सेवा में दोहरे नियंत्रण की परिकल्पना है क्योंकि अधिकारी किसी विशेष राज्य के काडर होते हैं लेकिन उन्हें विशेष नियुक्ति पर केंद्र सरकार के साथ काम करने के लिए भेजा जाता है.

साल 2021 में सरकार ने केंद्रीय सिविल सेवाओं के लिए पेंशन में इसी तरह के संशोधन पास किया था. केंद्रीय सिविल सेवाओं में आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा), कस्टम्स और सेंट्रल एक्साइज सेवाएं आती हैं.

इसमें कहा गया था कि इंटेलिजेंस या सुरक्षा से संबंधित विभागों में काम कर चुके अधिकारियों को अपने विभाग से संबंधित सामग्री या ऐसी संवेदनशील सूचनाएं जो भारत की सुरक्षा को नुक़सान पहुंचा सकती हैं, प्रकाशित करने से पहले विभाग से अनुमति लेनी होगी.

नियमों में इन बदलावों की भी ये कहते हुए आलोचना की गई थी कि ये रिटायर्ड नौकरशाहों की बोलने की आज़ादी को प्रभावित करते हैं.

कॉन्स्टीट्यूशन कंडक्ट ग्रुप के अनुसार, कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन की सरकार ने 2008 में ये संशोधन लाने की कोशिश की थी लेकिन नौकरशाहों की ओर से विरोध होने के बाद उसने ऐसा नहीं किया.  (bbc.com/hindi)

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