ताजा खबर

बिलकिस बानो गैंगरेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई का फ़ैसला निरस्त किया
08-Jan-2024 11:45 AM
बिलकिस बानो गैंगरेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई का फ़ैसला निरस्त किया

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ रेप और उनके परिवार वालों की हत्या के 11 दोषियों की सज़ा में छूट देकर रिहाई करने के फ़ैसले को रद्द कर दिया है.

गुजरात सरकार ने 2022 में इन दोषियों की सज़ा में छूट देते हुए रिहा कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार के पास सज़ा में छूट देने और कोई फ़ैसला लेने का अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को ज़्यादा उपयुक्त कहा.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्जल भुयन ने कहा कि मई 2022 में गुजरात सरकार ने दोषियों की सज़ा में छूट देकर तथ्यों की उपेक्षा की थी. सभी दोषियों को दो हफ़्ते के भीतर जेल प्रशासन के पास हाज़िर होने के लिए कहा गया है.

गुजरात में 2002 में हुए दंगों में बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्ल भुयन के पीठ ने पिछले साल 12 अक्तूबर को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.

याचिकाओं में बिलकिस बानो सहित कई हत्याओं और गैंगरेप के दोष में आजीवन कारावास की सज़ा पाए 11 दोषियों को सज़ा में छूट देने के गुजरात सरकार के फ़ैसले को चुनौती दी गई थी.

गुजरात सरकार ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. इसके बाद से देशभर में व्यापक विवाद छिड़ गया था.

गुजरात सरकार की माफ़ी नीति के तहत 15 अगस्त 2022 को जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़वाडिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को गोधरा उप कारागर से रिहा कर दिया गया था.

मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 2008 में 11 दोषियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी. बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस सज़ा पर मुहर लगाई थी.

इस मामले के सभी दोषी 15 साल से अधिक की सज़ा काट चुके थे. इस आधार पर इनमें से एक राधेश्याम शाह ने सज़ा में रियायत की गुहार लगाई थी.

दोषियों की रिहाई के बाद गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने बताया था कि जेल में "14 साल पूरे होने" और दूसरे कारकों जैसे "उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह" के आधार पर सज़ा में छूट के आवेदन पर विचार किया गया.

दरअसल, उम्र क़ैद की सज़ा पाए क़ैदी को कम से कम 14 साल जेल में बिताने ही होते हैं. चौदह साल के बाद उसकी फ़ाइल को एक बार फिर रिव्यू में डाला जाता है. उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह के आधार पर उनकी सज़ा घटाई जा सकती है.

अगर सरकार को ऐसा लगता है कि क़ैदी ने अपने अपराध के मुताबिक़ सज़ा पा ली है, तो उसे रिहा भी किया जा सकता है. कई बार क़ैदी को गंभीर रूप से बीमार होने के आधार पर भी छोड़ दिया जाता है. लेकिन ये ज़रूरी नहीं है.

कई बार सज़ा को उम्र भर के लिए बरक़रार रखा जाता है. लेकिन इस प्रावधान के तहत हल्के जुर्म के आरोप में बंद क़ैदियों को छोड़ा जाता है. संगीन मामलों में ऐसा नहीं होता है.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को माफ़ी के मामले पर विचार करने को कहा था. इसके बाद पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायात्रा के नेतृत्व में एक कमिटी बनाई गई थी.

मायात्रा ने ही बताया था कि क़ैदियों को माफ़ी देने की मांग पर विचार करने के लिए बनी कमिटी ने सर्वसम्मति से उन्हें रिहा करने का फ़ैसला किया. राज्य सरकार को सिफ़ारिश भेजी गई थी और फिर दोषियों की रिहाई के आदेश मिले.

गुजरात सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना हुई थी. कुछ राजनीतिक दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने इस फ़ैसले पर सवाल उठाए.

27 फ़रवरी 2002 को 'कारसेवकों' से भरी साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में गोधरा के पास आग लगा दी गई थी. इसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी.

इसके गुजरात में दंगे भड़क उठे थे. दंगाइयों के हमले से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा और 15 दूसरे लोगों के साथ गांव से भाग गई थीं. उस वक्त वह पांच महीने की गर्भवती थीं.

बकरीद के दिन दंगाइयों ने दाहोद और आसपास के इलाकों में कई घरों को जला डाला था.

तीन मार्च, 2002 को बिलकिस का परिवार छप्परवाड़ गांव पहुंचा और खेतों मे छिप गया. इस मामले में दायर चार्ज़शीट के मुताबिक़ 12 लोगों समेत 20-30 लोगों ने लाठियों और जंजीरों से बिलकिस और उसके परिवार के लोगों पर हमला किया.

बिलकिस और चार महिलाओं को पहले मारा गया और फिर उनके साथ रेप किया गया. इनमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं. इस हमले में रंधिकपुर के 17 मुसलमानों में से सात मारे गए. ये सभी बिलकिस के परिवार के सदस्य थे. इनमें बिलकिस की भी बेटी भी शामिल थीं.

बिलकिस को गोधरा रिलीफ़ कैंप पहुंचाया गया. वहां से मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया.

थाने में शिकायत दर्ज होने के बाद जांच शुरू हुई, लेकिन पुलिस ने सबूतों के अभाव में केस ख़ारिज कर दिया. इसके बाद बिलकिस मानवाधिकार आयोग पहुंचीं और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.

सुप्रीम कोर्ट ने क्लोज़र रिपोर्ट को ख़ारिज कर सीबीआई को मामले की नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया. सीबीआई ने चार्ज़शीट में 18 लोगों को दोषी पाया था. इनमें पांच पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी शामिल थे जिन पर अभियुक्त की मदद करने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था.

सीबीआई ने कहा कि मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम ठीक ढंग से नहीं किया गया ताकि अभियुक्तों को बचाया जा सके. सीबीआई ने केस हाथ में लेने के बाद शवों को क़ब्रों से निकालने का आदेश दिया. सीबीआई ने कहा कि पोस्टमॉर्टम के बाद शवों के सिर अलग कर दिए गए थे ताकि उनकी पहचान न हो सके.

इसके बाद बिलकिस बानो को जान से मारने की धमकी मिलने लगी. धमकियों की वजह से उन्हें दो साल में बीस बार घर बदलना पड़ा.

बिलकिस ने न्याय के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. धमकियां मिलने और इंसाफ़ न मिलने की आशंका को देखते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपना केस गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में शिफ़्ट करने की अपील की. मामला मुंबई कोर्ट भेज दिया गया.

सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी क़रार दिया. इन लोगों पर गर्भवती महिला के रेप, हत्या और गैरक़ानूनी तौर पर एक जगह इकट्ठा होने का आरोप लगाया गया था.

सात लोगों को सबूत के अभाव में छोड़ दिया गया. एक अभियुक्त की मुक़दमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई. 2008 में फ़ैसला देते हुए सीबीआई की अदालत ने कहा कि जसवंत नाई, गोविंद नाई और नरेश कुमार मोढ़डिया ने बिलकिस का रेप किया जबकि शैलेश भट्ट ने सलेहा का सिर ज़मीन से टकराकर मार डाला. दूसरे अभियुक्तों को रेप और हत्या का दोषी करार दिया गया था.

सीबीआई की अदालत का फ़ैसला इस बात को ध्यान में रख कर दिया गया था कि बिलकिस ने सुनवाई के दौरान सभी अभियुक्तों को पहचान लिया था.

उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकतर उनकी जान-पहचान के लोग थे. अदालत ने अभियोजन पक्ष की अपील मंज़ूर करते हुए कहा था कि बिलकिस का गैंगरेप किया गया फिर उन्हें बुरी तरह मार-पीट कर अहमदाबाद से 270 किलोमीटर दूर बसे गांव रंधिकपुर में मरने के लिए छोड़ दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में बिलकिस बानो को दो हफ्ते में 50 लाख रुपये मुआवज़ा, घर और नौकरी देने का आदेश दिया था. इसके पहले की सुनवाई में भी कोर्ट ने इसका आदेश दिया था. लेकिन बिलकिस ने कहा था कि उसे कुछ नहीं मिला.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के वकील की उस दलील को ख़ारिज कर दिया था जिसमें मुआवज़े को बहुत अधिक बताया गया था. वकील ने कहा था कि दस लाख रुपये का मुआवज़ा देना काफ़ी होगा. इससे पहले गुजरात सरकार ने बिलकिस को सिर्फ़ पांच लाख रुपये का मुआवज़ा दिया था. (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news