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चिंताएं दो तरह की, हल एक
पिछले दिनों बिलासपुर में भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश की मौजूदगी में बैठक हुई। जब कार्यकर्ताओं से सुझाव मांगा जा रहा था, तब एक ने सुझाव दिया कि कांग्रेस से जो लोग आए हैं, उन्हें भी काम करने का मौका दिया जाए। बात सबको जंच गई। बैठक खत्म होने के बाद कुछ नेताओं की चिंता बाहर आई कि इतने सारे लोग पार्टी में आ जाएंगे तो करेंगे क्या? और क्या जिम्मेदारी देंगे। ठीक इसी समय भाजपा में शामिल हुए कांग्रेसियों के बीच इस बात की चर्चा होती रही कि भाजपा में आ तो गए हैं। ठीक-ठाक कुछ पद नहीं मिला तो करेंगे क्या? दोनों चर्चाओं का सार ऐसा निकला कि क्या करना है, सरकार है, कुछ न कुछ ठेका-वेका मिलता रहेगा। काम के रहेंगे तो बने रहेंगे, नहीं तो फिर लौट जाएंगे। हम लोगों को भी लगेगा तो गुंजाइश तलाशेंगे।
एक ने एक लाख का दावा किया बाकी...
कल मतदान के बाद मतदाताओं, प्रत्याशियों, समर्थकों को नतीजे के लिए इंतजार करना होगा। 4 जून को गिनती होनी है। तब तक इन 28 दिनों में नेताओं के पास फुल टाइम है। उससे पहले वे एक एक बूथ पर पड़े वोटों का आकलन करेंगे। पोलिंग एजेंट के मतदान शीट से मोटा मोटी हार जीत और अंतर निकाल लिया जाएगा। रायपुर की बात करें तो दावा 8 लाख से ऊपर का है। यहां पश्चिम के नेता को छोड़ शेष सात ने अपने क्षेत्र से लीड का कोई दावा नहीं किया है। क्या ये सभी पांच महीने में ही अपनी स्थिति समझ चुके हैं। सही भी है, सभी अब तक अपनी जीत का ही जश्न मना रहे, स्वागत सत्कार ही करवा रहे हैं। जन समस्या सुलझाने आचार संहिता की मजबूरी जो तैयार है। तो कुछ शराब, और रेत से तेल निकालने में बिजी हो गए हैं। देखना यह है कि इनके इलाकों से वोटों का अंतर कितना निकलता है।
इसको नहीं मिलना चाहिए
पिछले सप्ताह हमने बताया था कि 4 जून को रायपुर दक्षिण विधानसभा खाली होने वाली है। इसे देखते हुए शहर भाजपा के करीब चार दर्जन (45) नेता पूरी तरह से सक्रिय हैं। सभी ने भैया के लिए जी तोड़ मेहनत की। अब किसकी लॉटरी लगती है यह तो दिसंबर में? उप चुनाव के समय ही पता चलेगा। तब ये सभी अपनी अपनी दावेदारी को लेकर एक दूसरे को पटखनी देने हर दांव चलने लगे हैं। कुछ ने तो एक दूसरे का समर्थन करने रिंग बना लिया है। इन सबका एक ही लक्ष्य है कि डबल एस को रोकना है। कहने लगे हैं कि किसी को भी मिल जाए, इसे न मिले। ये अलग बात है कि डबल एस खुद की टिकट पक्की मानकर चल रहे हैं।
कांग्रेस का मापदंड दोहरा?
कांग्रेस की नेशनल मीडिया कोऑर्डिनेटर राधिका खेड़ा ने जब एक मई को पहला ट्वीट किया तो संकेत यही था कि प्रदेश कांग्रेस भवन में बैठे ‘दुशील’ और कथित रूप से उनका अपमान कर रहे हैं और उनको संरक्षण ‘कका’ से मिल रहा है। उनकी बात से यह पता चल रहा था कि राजीव भवन के किसी पदाधिकारी या पदाधिकारियों से उनकी खटपट हुई है। मगर, इस्तीफा देने की घोषणा करते हुए उन्होंने इस अपमान की जो वजह बताई है वह बिल्कुल अलग है। उन्होंने साफ किया है कि उन्हें सिर्फ पुरुषवादी मानसिकता के कारण नहीं, बल्कि रामलला का दर्शन करने अयोध्या जाने की वजह से अपमानित किया जा रहा था।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने जांच रिपोर्ट एआईसीसी को भेजी थी। हो सकता है कि खेड़ा से दुर्व्यहार करने वाले पदाधिकारी से एआईसीसी इस्तीफा मांग लेती, या फिर पार्टी से ही बाहर का रास्ता दिखा देती। मगर बैज की रिपोर्ट दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में खुल भी नहीं पाई होगी कि राधिका खेड़ा का इस्तीफा आ गया। रामलला के दर्शन के लिए जाने की वजह से अपमानित करने की उनकी बात यदि सच है तो यह मानना पड़ेगा कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने यह बयान दिखावे के लिए दिया कि जिसे दर्शन के लिए अयोध्या जाना है, जाएं उन्हें हम नहीं रोकेंगे। हमारी ओर से कोई मनाही नहीं है।
यह भी सवाल उठता है कि अयोध्या में राम मंदिर का दर्शन करने के लिए गए लोगों में से पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, दीपेंद्र हुड्डा और विक्रमादित्य सिंह जैसे नेताओं को लोकसभा टिकट कैसे मिल गई? वैसे अब तक कांग्रेस के तीन राष्ट्रीय प्रवक्ता पहले ही राम मंदिर उद्घाटन में कांग्रेस के शामिल नहीं होने को सनातन का अपमान बताकर पार्टी छोड़ चुके हैं। इनमें आचार्य प्रमोद कृष्णम्, रोहन गुप्ता और गौरव वल्लभ शामिल हैं। कांग्रेस के पक्ष को वर्षों तक इन्होंने बड़ी गहराई से प्रेस के सामने रखा, अब राधिका खेड़ा भी इनमें शामिल हो गईं। भाजपा ने इनकी क्षमता, प्रतिभा का उपयोग करना अभी शुरू नहीं किया है। वैसे एक और मुखर प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत्र तो मंदिर होकर भी आ चुकी हैं। वे रोजाना सोशल मीडिया और प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस का पक्ष रख रही हैं, उन पर कोई आंच नहीं आई है।
प्रचार अभियान किसका तेज रहा?
सात मई को 7 सीटों में मतदान हो जाने के बाद छत्तीसगढ़ के सभी 11 सीटों में मतपेटियां करीब एक माह के लिए बंद हो जाएंगी। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही इस दौरान धुआंधार प्रचार किया लेकिन भाजपा के स्टार प्रचारक हर दिन कहीं न कहीं सभा लेते दिखे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक रात भी रुके। अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, जेपी नड्डा ने भाजपा की ओर से लगातार सभाएं लीं लेकिन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सभाओं ने रिकॉर्ड तोड़ा। वे सभी 11 लोकसभा सीटों के कार्यकर्ता सम्मेलनों में शामिल हुए। छोटी बड़ी सभाओं को मिलाकर 45 दिन में 106 सभाएं लीं। यानि एक दिन का औसत दो सभाओं से अधिक रहा। इसके मुकाबले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजनांदगांव में मतदान होने के बाद ही दूसरे क्षेत्रों में कुछ ही दिन के लिए बाहर निकल पाए। टीएस सिंहदेव तो चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में सरगुजा में मौजूद ही नहीं थे। आने के बाद भी वे प्रदेश के दूसरे स्थानों पर नहीं निकले। हालांकि राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खडग़े, प्रियंका गांधी और कन्हैया कुमार ने कई जनसभाएं लीं। कांग्रेस के राज्यसभा सदस्यों का छत्तीसगढ़ आना औपचारिक रहा। राजीव शुक्ला पत्रकार वार्ता लेकर दिल्ली वापस लौट गए। पत्रकार वार्ताओं के मामले में भी भाजपा आगे रही। वह न केवल प्रदेश मुख्यालय में बल्कि संभाग और जिला मुख्यालयों में लगातार प्रेस कांफ्रेंस कर प्रचार की धार चमकाने में लगी रही। नतीजा चाहे जो आए लेकिन भाजपा तीनों चरणों में प्रचार में कांग्रेस से आगे दिखती रही। ([email protected])