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नयी दिल्ली, 4 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि पत्रकारों के खिलाफ केवल इसलिए आपराधिक मामला नहीं दर्ज किया जाना चाहिए क्योंकि उनके लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है।
न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत पत्रकारों के अधिकार संरक्षित हैं।
पीठ पत्रकार अभिषेक उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में ‘‘सामान्य प्रशासन में जाति विशेष की सक्रियता’’ संबंधी एक कथित रिपोर्ट को लेकर अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया है।
पीठ ने कहा, ‘‘केवल इसलिए कि किसी पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना माना जाता है, पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं दर्ज किया जाना चाहिए।’’
इस याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगते हुए पीठ ने कहा, ‘‘इस बीच, संबंधित रिपोर्ट के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाना चाहिए।’’
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता एक पत्रकार हैं और उन्होंने राज्य में जिम्मेदार पदों पर तैनात अधिकारियों पर ‘‘जातिवादी झुकाव’’ वाली एक रिपोर्ट प्रकाशित की।
पीठ ने कहा कि इस रिपोर्ट के बाद उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के वकील ने प्राथमिकी की सामग्री को पढ़ते हुए कहा कि उक्त प्राथमिकी से कोई अपराध नहीं बनता है। फिर भी याचिकाकर्ता को निशाना बनाया जा रहा है और चूंकि रिपोर्ट ‘एक्स’ पर पोस्ट की गई थी, इसलिए इसके परिणामस्वरूप कई अन्य प्राथमिकी दर्ज हो सकती हैं।’’
मामले में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किया जाना राज्य के कानून लागू करने वाले तंत्र का ‘‘दुरुपयोग’’ करके उसकी आवाज दबाने का स्पष्ट प्रयास है और आगे किसी भी तरह के उत्पीड़न को रोकने के लिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।
पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका में दावा किया गया है कि जब उन्होंने ‘यादव राज बनाम ठाकुर राज’ शीर्षक से खबर की तो लखनऊ के हजरतगंज थाने में 20 सितंबर को उनके नाम प्राथमिकी दर्ज की गई।
याचिका में कहा गया है कि प्राथमिकी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराओं 353 (2) (सार्वजनिक शरारत के लिए बयान), 197 (1) (सी) (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक आरोप या कथन प्रकाशित करना), 356 (2) (मानहानि के लिए सजा) और 302 (जानबूझकर किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले शब्द बोलना) और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के प्रावधानों के तहत दर्ज की गई।
अधिवक्ता अनूप प्रकाश अवस्थी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि इस रिपोर्ट से, यहां तक कि इसके प्रथमदृष्टया मूल्यांकन से भी, किसी अपराध के होने का खुलासा नहीं होता है।
याचिका में कहा गया, ‘‘याचिकाकर्ता ने इसलिए अदालत का रुख किया है क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस के आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल द्वारा कानूनी कार्रवाई की धमकी दी गई और याचिकाकर्ता को यह जानकारी नहीं है कि उत्तर प्रदेश या कहीं और इस मुद्दे पर उसके खिलाफ कितनी अन्य प्राथमिकी दर्ज हैं।’’(भाषा)