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राजपथ-जनपथ : एक आदेश से मचा बवाल
06-Oct-2024 2:17 PM
राजपथ-जनपथ : एक आदेश से मचा बवाल

एक आदेश से मचा बवाल

राज्य प्रशासन को अचानक एक और आईएएस सचिव मिल गए। ये सीधी भर्ती के नहीं, राप्रसे से प्रमोशन से बने हैं। राप्रसे के  ये अफसर, आईएएस प्रमोट तो होंगे लेकिन अभी कुछ वर्ष शेष हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि चार वर्ष से अटकी डीपीसी, इनके प्रमोशन के लिए, इतनी गोपनीय कब हो गई। बैठक में कौन कौन रहे । केंद्र ने कब मंजूरी दी, जैसे कई प्रश्न पूरे महानदी भवन में तैर रहे हैं। ये हैं  राप्रसे के अफसर अन्वेष घृतलहरे। उनके सचिव बनने का खुलासा, दो दिन पहले 3 अक्टूबर को उनके ही द्वारा जारी एक आदेश में हुआ। इस आदेश में 2002 बैच के आईएएस रोहित यादव को सचिव ऊर्जा, और अध्यक्ष सीएसईबी नियुक्त किया गया है। आदेश के अधोहस्ताक्षरकर्ता वाले स्थान पर साहब का नाम, पदनाम और  हस्ताक्षर सब कुछ है। और यह उपयुक्त सक्षम अधिकारी की अनुमति से नॉर्थ ब्लाक, राजभवन, महालेखाकार तक  वायरल हो गया। तब तक किसी ने भी नहीं देखा। जीएडी के दो सचिवों मुकेश कुमार बंसल को और पी अंबलगन हैं।

इसका खुलासा आदेश जारी होने के दो दिन बाद शनिवार को पूरे महकमे में चर्चा में आया। मालूम हुआ कि आदेश के बाद ऊपर से नीचे तक बवाल मचाा। और नि: संदेह आदेश में करेक्शन होना ही था। सो दूसरे दिन इस आशय का शुद्धि पत्र पत्र जारी किया गया। तब ज्ञात हुआ, यह कंप्यूटर में फाइल कॉपी कट पेस्ट का मामला है। इन  साहब ने मुकेश बंसल का नाम हटाकर अपना लिखा और पदनाम का ही रखा। वैसे  मंत्रालय संघ आरोप लगा ही रहा है कि कुछ राप्रसे अफसर सचिवालयीन कार्यप्रणाली (सेक्रेटेरिएट बिजनेस रूल) का पालन नहीं कर रहे।

बहरहाल उसके बाद से जीएडी आईएएस सेक्शन परेशान है, इतनी बड़ी चूक की गाज किस पर गिरेगी। कहीं चार वर्ष से बैठे इन  साहब को  ही नई पोस्टिंग न मिल जाए। जो होगा,अगले एक दो दिन में पता चल जाएगा। इस एक आदेश से यह भी स्पष्ट हो गया कि यह सरसरी नजर की चूक है या कमाल है  ।

छात्रसंघ से आजादी ही भली

 छात्र संघ को राजनीति की  सीढ़ी का पहला पायदान कहा गया है। सही भी है, कुछेक को छोड़ दें तो आज के सारे दिग्गज नेता इसी पायदान से चढ़े हैं। लेकिन पिछले आठ वर्षों से प्रदेश में ये चुनाव लगभग बंद से हैं। नए नेता धरना प्रदर्शन घेराव से ही निकल रहे हैं।  और सरकार, इन चुनावों को युवाओं में अपनी छवि,और  पकड़ से जोडक़र देखने लगी है। इसमें भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी के मुकाबले कांग्रेस के एनएसयूआई के फॉलोअर्स कहीं अधिक हैं। और यही कारण है कि रमन को 3.0 के अंतिम वर्षों के बाद से चुनाव नहीं मनोनयन होने लगे। दरअसल कुलपतियों ने अपना यह अधिकार भी सरकार पर छोड़ दिया है। और उसके बाद यूपीए सरकार ने लिंगदोह (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) कमेटी बनाकर चुनाव के बजाए मनोनयन की सिफारिश को लागू कर दिया । तब से कुलपति निश्चिंत हो गए हैं। और अब मोदी 2.0 की एनईपी यही कहती है।

और इस बार भी सरकार के आगे के कार्यक्रम और कार्यों को देखते हुए इस वर्ष भी ये चुनाव होते नहीं दिख रहे। इसके पीछे सरकारी कारण भी है।अभी अभी तो प्रवेश खत्म हुआ है। फिर एनईपी के तहत कैरिकुलम लागू करना है, इसका पहला वर्ष भी है । कुलपति, प्राचार्यों पर नैक ग्रेडेशन का दबाव आदि आदि। वैसे एनएसयूआई ने मतदान प्रणाली से चुनाव कराने दबाव बनाना शुरू कर दिया है ,उसके कई जिलों से ग्यापन उच्च शिक्षा सचिव को मिलने लगे हैं। लेकिन एबीवीपी मौन है। वह जानती है मनोनयन में ही अपना भला हैं। सरकार में फिलहाल पृथक शिक्षा मंत्री नहीं है इसलिए सचिव भी चुप हैं। सरकार अभी ऑपरेशन माओवाद, धान खरीदी, निकाय चुनाव के कार्यक्रम लेकर बैठी है। इसलिए यह तय माना जा रहा है कि चुनाव नहीं मनोनयन होंगे।

याद आता है कि मतदान से पिछले चुनाव रमन सरकार के दूसरे कार्यकाल में हुए थे जब प्रेम प्रकाश पांडे को निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी। जिसमें एनएसयूआई ने एबीवीपी को पटखनी दी थी ।

मुकदमा जीतने के बावजूद निराश

सरकार के लिए आसान है मुकदमे लडऩा। उनकी वकालत करने ने महंगे से महंगा वकील खड़ा किया जा सकता है, क्योंकि फीस सरकारी खजाने से भरी जाती है। मगर, बेरोजगारों के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत तक हक की लड़ाई लडऩा मुश्किल होता है। मगर, यदि अदालत उनके पक्ष में फैसला दे भी दे सरकार चाहे उस पर अमल करने में हीला-हवाला कर सकती है। छत्तीसगढ़ में इसके दो उदाहरण हमारे सामने हैं। कांग्रेस शासनकाल में शिक्षक भर्ती के नियम को बदल दिया गया था। इसके अंतर्गत बीएड डिग्रीधारकों को भी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने का पात्र माना गया था। इसे डीएड और डीएलएड डिग्रीधारकों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस आधार पर, कि प्रायमरी स्कूल में पाठ्यक्रम और अध्यापन के विशिष्ट तरीकों का प्रशिक्षण बीएड में नहीं मिलता। इसके लिए डीएड और डीएलएड धारक ही पात्र हैं। उनके तर्कों को मानते हुए हाईकोर्ट ने करीब 6 माह पहले उनके पक्ष में फैसला दिया। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। वहां पर भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया। इस तरह से जिन बीएड धारकों को चुन लिया गया है, उनकी जगह पर डीएड-डीएलएड डिग्रीधारकों को अवसर मिलना चाहिए। मगर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है। शिक्षा संचालनालय से बात की जाती है तो बताया जाता है कि सरकार के पास आदेश की प्रति भेज दी गई है, निर्णय वहीं से होना है। शायद सरकार के समक्ष बीएड धारकों को नौकरी से निकालने को लेकर असमंजस हो। मगर, मिडिल और हाईस्कूलों में शिक्षक के हजारों पद खाली हैं। इनमें वेकेंसी निकालने की गारंटी भी चुनाव के समय दी गई थी। हाईकोर्ट में भी हाल की सुनवाई के दौरान सरकार को स्वीकार करना पड़ा कि स्कूलों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। यही हाल पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर की भर्ती का है। इंटरव्यू का रिजल्ट जारी नहीं हो रहा है। इसमें भी हाईकोर्ट का अभ्यर्थियों के पक्ष में आदेश है। अदालती लड़ाई 6 साल लंबी चली थी। दोनों ही मामलों में सरकारी नौकरी पाने के काफी करीब पहुंचने के बाद युवाओं को आगे का रास्ता कठिन दिखाई दे रहा है। ([email protected])

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