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एससी ने एनसीएमईआई अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से प्रतिक्रिया मांगी
28-Aug-2020 6:50 PM
एससी ने एनसीएमईआई अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से प्रतिक्रिया मांगी

नई दिल्ली, 28 अगस्त।  सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान (एनसीएमईआई) अधिनियम, 2004 को चुनौती देते हुए दायर जनहित याचिका मामले में केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया है। याचिका में शैक्षणिक संस्थानों को संचालित करने के उद्देश्य से जनसंख्या के आधार पर राज्यों द्वारा अल्पसंख्यक स्थिति का निर्धारण करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 29-30 के तहत इन राज्यों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को राज्य में बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अवैध रूप से छीना जा रहा है, क्योंकि केंद्र ने उन्हें एनसीएमईआई अधिनियम के तहत अल्पसंख्यक अधिसूचित नहीं किया है।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी निर्देश देने और यह घोषणा करने का आग्रह किया कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम 2004 की धारा 2 (एफ), मनमाना, तर्कहीन और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29 और 30 के खिलाफ है।

उपाध्याय ने न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, अजय रस्तोगी और अनिरुद्ध बोस की एक पीठ के समक्ष दलील दी कि 6 जनवरी, 2005 को अधिनियम जब एस 2 (एफ) के तहत शक्तियों का प्रयोग कर लागू हुआ, तब केंद्र ने मनमाने ढंग से राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक के रूप में 5 समुदायों को सूचित किया, जिसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी शामिल है, जो कि टीएमए पाई के शासन की भावना के खिलाफ है।

याचिका में कहा गया है, कार्रवाई की मांग आज तक जारी है, क्योंकि यहूदी धर्म, बाहिस्म और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर में वास्तविक तौर पर अल्पसंख्यक हैं, वे राज्य स्तर पर अपनी पहचान अल्पसंख्यक न होने के कारण अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और उसका लाभ नहीं उठा सकते हैं, इस प्रकार अनुच्छेद 29-30 के तहत उनके मूल अधिकार खतरे में है।

इस मामले पर संक्षिप्त सुनवाई के बाद पीठ ने छह सप्ताह में नोटिस का जवाब देने का आदेश जारी किया है।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि लक्षद्वीप (96.58 प्रतिशत) और कश्मीर (96 प्रतिशत) में मुसलमान बहुमत में हैं और लद्दाख (44 प्रतिशत), असम (34.20 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (27.5 प्रतिशत), केरल (26.60 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (19.30 प्रतिशत), बिहार(18 प्रतिशत) में उनकी काफी जनसंख्या है और वे अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का लाभ ले सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा, "नागालैंड (88.10 फीसदी), मिजोरम (87.16 फीसदी) और मेघालय (74.59 फीसदी) में ईसाई बहुसंख्यक हैं, और अरुणाचल, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी उनकी आबादी काफी है, वे भी स्थापना और प्रशासन भी कर सकते हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "लद्दाख में हिंदू मात्र 1 प्रतिशत, मिजोरम में 2.75 प्रतिशत, लक्षद्वीप में 2.77 प्रतिशत, कश्मीर में 4 प्रतिशत, नागालैंड में 8.74 प्रतिशत, मेघालय में 11.52 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 29 प्रतिशत, पंजाब में 38.49 प्रतिशत, मणिपुर में 41.29 प्रतिशत हैं, लेकिन केंद्र ने उन्हें अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है, जिससे वे अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना नहीं कर सकते।"

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रार्थना करते हुए कहा, "वैकल्पिक रूप से आदेश देने की घोषणा करें कि यहूदी, बाहिस्म और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में अल्पसंख्यक हैं, वे अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और उनका प्रशासन कर सकते हैं।"(IANS)

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