राष्ट्रीय
लखनऊ : 24 घंटे इंतजार कराने के बाद हृदय रोगी को बेड
आपके सामने तीन कहानियां हैं। इनके अनुभवों से साफ है कि सरकार वह केंद्र की हो या राज्य की, सिर्फ ताली-थाली पिटवाने में ही व्यस्त हैं।क्वारंटाइन सेंटरों का जो हाल है और कोविड संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के लिए 24-24 घंटे का इंतजार करना पड़ रहा है.
सुशांतो कुमार सेन 62 साल के हैं। वह हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से रिटायर हुए हैं। कोरोना के फैलने के बाद से उन्होंने बाजार जाना छोड़ दिया है। वह कहते हैं: “ मैं सप्ताह में एक बार जाकर राशन-हरी सब्जी वगैरह ले आता हूं और उसके अलावा घर में ही रहता हूं। जानता हूं, स्थिति बुरी है। कुछ नहीं पता कि बाजार में आप जिससे बात कर रहे हैं, वह संक्रमित है या नहीं। इससे अच्छा तो घर में रहो।”
जुलाई के पहले सप्ताह में उनका टेस्ट पॉजिटिव आया। सेन कहते हैं, “पहले तो मैं निश्चिंत था कि यह भी और वायरल संक्रमण की तरह है और जल्द ही अच्छा हो जाऊंगा। लेकिन चरमराती सरकारी व्यवस्था के बारे में जब खबरें आने लगीं तो मैं घबरा गया। मैंने सुना कि अस्पतालों में रोगियों की भरमार है, बेड की मारामारी है। यहां तक कि कोविड वार्ड में काम करने वाले अस्पताल के कर्मचारियों को भी संक्रमित होने के बाद बेड के लिए 24-24 घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। सैकड़ों कॉल करने और 24-48 घंटे के बाद एंबुलेंस आ रही हैं। स्थिति भयावह है।”
इंदिरा नगर इलाके में अपने घर में बैठे सेन उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “मैंने सोचा था कि चूंकि मैं सीनियर सिटिजन हूं और हृदय रोगी भी, तो मेरे साथ ऐसा नहीं होगा। वैसे भी डॉक्टर भी कहते रहे थे कि चूंकि मुझे पहले से गंभीर बीमारी है तो मेरी खास देखभाल करनी होगी।” लेकिन उनका सारा भ्रम जाता रहा। वह कहते हैं: “19 जुलाई को मेरा रिजल्ट पॉजिटिव आया और मैंने तत्काल चीफ मेडिकल ऑफिसर के कार्यालय को जानकारी दे दी। उधर से जवाब मिला- एंबुलेंस आपको लेने आ रही है। तीन घंटे... छह घंटे.. 12 घंटे बीत गए। कई बार सीएमओ ऑफिस फोन किया। हर बार पूरी कहानी बताई लेकिन वही जवाब मिलता- एंबुलेंस आपको लेने आ रही है। उस रात सो नहीं सका, एंबुलेंस का इंतजार करता रहा।” आखिरकार 20 घंटे के बाद एंबुलेंस आई। दरवाजा खुला हुआ था और सेन को उसमें बैठ जाने को कहा गया, “एंबुलेंस की ओर जाते हुए मैंने मुड़कर देखा तो पड़ोसी अजीब नजरों से देख रहे थे। नजरें बचाता हुआ एंबुलेंस में जा बैठा। ग्लानि से भरा हुआ था क्योंकि पता था कि अब मोहल्ले को कंटेनमेंट जोन बना दिया जाएगाऔर लोग कहेंगे कि यह सब सेन के कारण हुआ।”
सबसे पहले सेन को राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। ड्राइवर के साथ वाले व्यक्ति (संभवतः वार्ड ब्याय ) ने कहा- अंकल, यहीं बैठो, अभी आया। वह करीब 15 मिनट बाद आया और जानकारी दी- इंचार्ज ने इंतजार करने को कहा है। सेन एंबुलेंस में बैठे रहे। एक घंटा बीत गया। अब सेन की तबियत कुछ बिगड़ती लगी। उन्होंने पूछा- कब तक इंतजार करना है? जवाब मिला- उन्होंने कहा है कि वे बताएंगे, लेकिन एंबुलेंस से नीचे नहीं उतरें। सेन कहते हैं, “ मैं चुप बैठ गया। मेरा तापमान बढ़ता महसूस हो रहा था और बोलने का मन नहीं हो रहा था। करीब चार घंटे के इंतजार के बाद कहा गया कि अस्पताल में कोई बेड नहीं है और हमें महानगर के किसी अस्पताल में जाना चाहिए। प्रशासन को कोविड संक्रमण के बारे में जानकारी दिए 24 घंटे से ज्यादा समय हो रहा था और अब तक मुझे किसी अस्तपताल में भर्ती तक नहीं कराया जा सका था।”
उसके बाद सेन को महानगर के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया जहां उन्हें कोविड वार्ड की डॉर्मेट्री में भर्ती कराया गया।