राष्ट्रीय

पश्चिम बंगाल: टीएमसी नेताओं का बीजेपी में शामिल होना बनेगा फूट की वजह या जीत का कारण
20-Dec-2020 9:50 AM
पश्चिम बंगाल: टीएमसी नेताओं का बीजेपी में शामिल होना बनेगा फूट की वजह या जीत का कारण

पश्चिम बंगाल की राजनीति से जुड़े हर शख़्स के लिए बीता सप्ताह काफ़ी उथल-पुथल और बदलावों वाला रहा.

चाहे वो राजनेता हों, पार्टी कार्यकर्ता हों, पश्चिम बंगाल की राजनीति को कवर करने वाले पत्रकार हों या फिर टीवी की बहस में बैठने वाले नियमित पैनेलिस्ट ही क्यों ना हों.

पश्चिम बंगाल की राजनीति से जुड़े इन सभी लोगों के लिए गुज़रा सप्ताह बेहद बदलाव भरा और व्यस्त रहा.

अगर टीवी न्यूज़ पर ग़ौर किया हो तो आपको बीते कुछ दिनों में पॉलिटिकल ब्रेकिंग कुछ ज़्यादा दिखाई दी होंगी.

और राजनीतिक बदलाव कई जगह होते देखे गए. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक, आसनसोल, बैरकपुर, बांकुरा, हल्दिया, मेदिनीपुर, पुरुलिया, मालदह में बड़े राजनीतिक बदलाव देखने को मिले.

कांथी कस्बा बनाम कालीघाट

पश्चिम बंगाल की राजनीति में मचे बवाल का सबसे अधिक असर या यूं कहें कि इस समय का सबसे बड़ा आकर्षण रहा - कांथी कस्बा.

तटवर्ती इलाके में स्थित कांथी कस्बे को ब्रितानी काल के दौरान कोंटाई नाम से जाना जाता था.

इसकी वजह ये है कि कांथी अब 'क' से ही शुरू होने वाले दूसरे स्थान को चुनौती दे रहा है- कालीघाट को.

कालीघाट वो इलाका है जहाँ राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रहती हैं. कांथी में शुभेंदु अधिकारी का घर है.

शुभेंदु अधिकारी साल 2007-2008 में प्रस्तावित पेट्रो केमिकल हब के ख़िलाफ़ चले नंदीग्राम के किसानों के आंदोलन का चेहरा थे.

शुभेंदु बीजेपी में शामिल हुए

नंदीग्राम आंदोलन ने साल 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के मार्ग को प्रशस्त किया था.

इसके अलावा पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के बाद वह टीएमसी के दूसरे सबसे लोकप्रिय नेता थे.

भले ही वे पुरबा मेदिनीपुर ज़िले में नंदीग्राम से विधायक हैं लेकिन आस-पास के कई ज़िलों में भी उनका समर्थन आधार काफी है.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बड़ा बदलाव तब आया जब बीते हफ़्ते शुभेंदु अधिकारी ने मंत्री पद और सभी सरकारी ओहदों से इस्तीफ़ा दे दिया और शनिवार को बीजेपी में शामिल हो गए. केंद्रीय मंत्री अमित शाह की मेदिनीपुर में शनिवार को हुई एक रैली में टीएमसी के पूर्व नेता शुभेंदु अधिकारी आधिकारिक तौर पर बीजेपी में शामिल हो गए.

आसनसोल नगर निगम के प्रमुख जितेंद्र तिवारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ

दल बदल या बदलाव

ऐसा माना जा रहा है कि अधिकारी के कई समर्थक भी आने वाले दिनों में उन्हीं की राह पर चलते हुए बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.

टीएमसी, सीपीआई, सीपीआईएम और कांग्रेस के कई सांसद, विधायक, पूर्व सांसद-विधायक और मंत्रियों को बीजेपी में शामिल होने की बात भी सामने आ रही है.

एक ओर जहां मीडिया के लिए यह बदलाव बड़ी ख़बर है. वहीं, राज्य में सरकारी अमला यह आकलन करने में व्यस्त है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले वो कौन होंगे जो बीजेपी में शामिल हो जाएंगे. लेकिन आशंका सिर्फ़ एकतरफ़ा नहीं हैं.

आशंका इस बात को लेकर भी हैं कि क्या टीएमसी से बीजेपी में शामिल हुए बाग़ी नेताओं को बीजेपी पार्टी के कार्यकर्ता और स्थानीय नेता स्वीकार करेंगे या नहीं.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अरुंधति मुखर्जी के मुताबिक़, "आसनसोल नगर निगम के प्रमुख जितेंद्र तिवारी का उदाहरण देखिए. तिवारी ने टीएमसी और निगम के पद से इस्तीफ़ा दिया. वे बीजेपी में आने के लिए पूरी तरह तैयार थे लेकिन केंद्रीय मंत्री और आसनसोल से सांसद बाबुल सुप्रियो समेत अन्य वरिष्ठ बीजेपी नेताओं ने खुले तौर पर तिवारी का विरोध किया था. अभी जब कल तक बीजेपी तिवारी का विरोध करती रही है कि वे उन्हें अब पार्टी में कैसे स्वीकार कर सकती है?"

इसके अलावा कई अन्य मामले भी हैं जब बीजेपी कार्यकर्ताओं ने टीएमसी नेताओं के बीजेपी में शामिल होने का विरोध किया है.

क्या इससे बीजेपी में फूट पैदा होगी?

क्या इससे पुरानी बीजेपी और नई बीजेपी के बीच संघर्ष होगा?

बीजेपी नेता और आरएसएस की बंगाली में छपने वा पत्रिका स्वास्तिका के संपादक रंतिदेब सेनगुप्ता कहते हैं, "पार्टी नेतृत्व ने निश्चित तौर पर इस बारे में सोचा है और एक स्पष्ट संदेश दिया कि नए लोगों के लिए रास्ता बनाने का मतलब पुराने लोगों को दरकिनार करना नहीं."

सेनगुप्ता के अनुसार, "विभिन्न दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के हमारे साथ जुड़ने की उम्मीद है. ख़ासतौर पर टीएमसी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के शामिल होने की. यह एक भ्रामक प्रचार है कि जब नए कार्यकर्ता और नेता पार्टी में शामिल होते हैं तो पुरानों को दरकिनार कर दिया जाता है. ऐसा कुछ भी नहीं होने जा रहा है. केंद्रीय नेतृत्व ने हर किसी को यह स्पष्ट किया है."

मुखर्जी भी इस संबंध में केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका को अहम बताती हैं.

वो कहती हैं, "बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और यह तय करेगा कि चीजों को किस तरह आगे ले जाना है. उन्होंने निश्चित तौर पर तिवारी के संबंध में उठे विरोध के स्वर को सुना होगा कि उन्हें पार्टी में आने से रोक दिया गया है. बीजेपी किसी क़ीमत पर नहीं चाहेगी कि चुनावों से पहले पार्टी में गुटबाज़ी शुरू हो जाए. हमने कोलकाता में विजयादशमी के बाद एक सभा के दौरान विभिन्न बीजेपी गुटों के नेताओं को हाथ मिलाते हुए देखा है."

मुकुल रॉय का उदाहरण

जिन नेताओं के टीएमसी छोड़ने की बात सामने आ रही है उनके संबंध में अक्सर कहा जाता रहा है कि वे देशद्रोही हैं और सत्ता के लालची हैं.

टीएमसी का आरोप है कि टीएमसी के कार्यकाल में सत्ता का आनंद लेने के बाद वे बीजेपी से टिकट पाने के लिए चुनावों के ठीक पहले पार्टी में शामिल हो रहे हैं.

रंतिदेब सेनगुप्ता कहते हैं, "उनमें से कुछ को तो निश्चित तौर पर चुनावी टिकट मिलेगा लेकिन हर किसी को तो नहीं. जो कोई भी हमारे साथ जुड़ना चाहता है, उसे पहले हमारी विचारधारा को स्वीकार करना होगा. वे हमारे एजेंडे के साथ हैं इसलिए आ रहे हैं. नेतृत्व को अच्छे से पता है कि कौन किस पद के लिए उपयुक्त है और वे उसी आधार पर फ़ैसले लेंगे."

राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय का उदाहरण देते हैं. बीजेपी में शामिल होने से पहले मुकुल रॉय टीएमसी में दूसरे सबसे प्रभावशाली नेता थे.

अरुंधति मुखर्जी कहती हैं, "जब मुकुल रॉय टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे, तभी यह स्पष्ट कर दिया गया था कि वे राज्य में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे. अब अगर शुभेंदु अधिकारी के समर्थक ये सपना देख रहे हैं कि बीजेपी के जीतने पर वो सीएम बनेंगे तो यह तो बिल्कुल भी नहीं होने वाला है. इस बात का फ़ैसला सिर्फ़ आरएसएस ही करेगी कि सीएम पद पर कौन होगा."

बंगाल की राजनीति

अरुंधति मुखर्जी का कहना है, "अगले कुछ महीनों में कोलकाता निगम के चुनाव होने हैं और मेयर कौन होगा यह फ़ैसला तक आरएसएस करेगी. वो जो भी होगा या होगी वो पुरानी बीजेपी पार्टी से ही होगा या होगी. कोई ऐसा तो बिल्कुल नहीं बनेगा जिसने अभी अभी पार्टी ज्वॉइन की हो."

मुखर्जी आगे कहती हैं कि यह ज़रूर है कि टीएमसी के कुछ नेताओं को टिकट ज़रूर मिलेगा लेकिन सभी को तो नहीं.

हाल के सालों में बीजेपी में अब तक का यह सबसे बड़ा दल-बदल है.

क्या यह बदलाव आने वाले चुनावों में बीजेपी को सत्तारूढ़ टीएमसी पर बड़ी बढ़त दिला पाएगा?

बंगाल की राजनीति में आज यह सबसे बड़ा सवाल है. (bbc)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news