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विधानसभा ने मोतीलाल वोरा को दी श्रद्धांजलि
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 22 दिसंबर। कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री दिवंगत मोतीलाल वोरा को मंगलवार को विधानसभा में श्रद्धांजलि दी गई। सत्ता और विपक्ष के कई सदस्यों ने उनसे जुड़े अपने संस्मरण सुनाए। श्री वोरा को किसी ने राजनीति का विश्वविद्यालय बताया, तो उन्हें अजातशत्रु भी कहा गया। तकरीबन सभी वक्ताओं ने श्री वोरा को मेहनती, ईमानदार और विनम्र राजनेता के रूप में याद किया।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने उद्बोधन में श्री वोरा को याद करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि सुबह से लेकर देर रात तक काम करना श्री वोरा की आदत थी। इस दौरान कभी मिलना होता था, तो उसी समय वे पूरी आत्मीयता से मिलते थे। थकान उनके शब्दकोश में नहीं था। उनमें लगन, परिश्रम और निष्ठा अद्वितीय था। उनका राजनीतिक परिवार बहुत बड़ा था। उनके जाने से देश और प्रदेश को क्षति पहुंची है।
जोगी पार्टी के नेता धर्मजीत सिंह ने कहा कि श्री वोरा के जाने से हम सब व्यथित हैं। वे न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश के लाल थे। वे बेहद मिलनसार, ईमानदार थे। वे अजातशत्रु थे। छत्तीसगढ़ के लिए हमेशा सोचते थे। वे जिस कुर्सी पर भी बैठे हमेशा ईमानदारी और निष्पक्षता से ही काम करते थे।
उन्होंने याद किया कि एक बार श्री वोरा के मुख्यमंत्रित्व काल में पांडातराई गोलीकांड हुआ था। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना से श्री वोरा काफी दुखी थे। श्री वोरा ने बाद में वहां पहुंचकर सभी प्रमुख लोगों को बुलाया, विकास को लेकर चर्चा की। उन्होंने गोबरा डायर्वसन का काम स्वीकृत किया। श्री सिंह ने कहा कि श्री वोरा दुर्घटना को विकास से जोडक़र नॉर्मल करने की कोशिश की थी।
धर्मजीत सिंह ने कहा कि श्री वोरा राजनीति के विश्वविद्यालय थे। नई पीढ़ी के लोगों को उनसे सिखना चाहिए। वे हमेशा याद आते रहेंगे। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा कि उनका पूरा जीवन पाठशाला था, और उनसे बहुत कुछ सिखने को मिला। श्री साहू ने उनसे जुड़े कुछ संस्मरण सुनाए, और बताया कि राजनीति के शुरूआत में उनके पास काम से जाना होता था। एक बार उन्होंने वोराजी से चिट्ठी लिखवाई, फोन भी कराया, लेकिन काम नहीं हुआ। आखिरकार एक बार बोल दिया कि आपको काम नहीं करना है, तो बोल दिया करें। उस समय तो उन्होंने कुछ नहीं कहा।
बाद में एक दिन उन्होंने समझाईश दी कि दुख के समय मिलकर काटना चाहिए, और सुख के समय को मिल बांटकर काटना चाहिए। जब श्री वोरा मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने अपने से जुड़े सभी लोगों को कुछ न कुछ पद दिया। इसी तरह एक बार लोकसभा टिकट उनकी तय हो गई थी, प्रचार भी शुरू हो गया था। बाद में उनकी जगह चंदूलाल चंद्राकरजी को टिकट मिल गई। कुछ लोग दिल्ली जाकर राजीव गांधीजी से मिले। बाद में उन्होंने मुझसे कहा कि मैं जाकर राजीवजी से अनुरोध करता तो टिकट मिल जाती। मगर यह नेता की बेज्जती होती। यहां उनके नेता के प्रति आस्था को दिखाता है।
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि राजनीति के क्षेत्र में वे मोती की तरह चमकते रहे। वे गंभीर राजनीतिज्ञ थे। उनके खिलाफ चुनाव लडऩे का मौका मिला। इस दौरान उन्हें जाना कि उनका व्यक्तित्व कितना बड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान एक बार मेरी गाड़ी खराब हो गई। वे वहांं से गुजर रहे थे, तो उन्होंने कार्यकर्ताओं से गाड़ी ठीक कराने कहा। मैं मजाक से उनसे कहा लोकसभा के लिए भी इसी तरह धक्का दे देते। पूर्व मुख्यमंत्री ने याद करते हुए कहा कि जन्मदिन के मौके पर हमेशा उनकी बधाई का इंतजार रहता था। वे हम सब के अभिभावक थे।
संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि वे बेहद विनम्र व्यक्ति थे। बड़े से बड़ा व्यक्ति उनके पास जाता था, तो उनसे भी उसी तरह आत्मीयता से पेश आते थे, जिस तरह स्वेच्छानुदान के लिए मिलने आए लोगों से पेश आते थे। श्री चौबे ने बताया कि उनके उच्च शिक्षा मंत्री रहते जो भी महाविद्यालय के लिए मांग करता था, सभी विधायकों के प्रस्ताव को मंजूरी दे दिया था।
बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि वोराजी के निधन से जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति नहीं हो सकती। वे धीर गंभीर थे, तो उनमें दृढ़ता भी थी। हमारी इस पीढ़ी ने उनसे बहुत कुछ सीखा। सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि वोरा जी की सादगी और सरलता एक मिसाल है। धनेन्द्र साहू ने कहा कि वोराजी ने लम्बे समय तक राजनीति की। यह मेरा सौभाग्य रहा कि उनका स्नेह और विश्वास मुझे हासिल हुआ। हमने एक महान व्यक्तित्व को खोया है।
पुन्नू लाल मोहले ने कहा कि वे सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के लोगों की सहायता करते थे। अजय चंद्राकर ने कहा कि वोराजी ने जमीन से उठकर सर्वोच्च नेताओं के साथ काम किया। वे आदर्श मूल्यों को जीवंत करने वाले अजातशत्रु थे। नारायण चंदेल ने कहा कि उनसे सहजता और सरलता जैसे गुणों को सीखने की आवश्यकता है। शिवरतन शर्मा ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के गौरव थे। अमितेश शुक्ला ने कहा कि उनका निधन एक युग का अंत है। वे सिद्धांतों से समझौता नहीं करते थे।
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, प्रेमसाय सिंह सहित अन्य नेताओं ने उनके योगदान को याद किया।