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पंजाब के किसान संगठनों ने शनिवार को कहा कि केंद्र ने कृषि कानूनों का सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए हल निकालने की जो बात कही है, वो इस मुद्दे को लंबा खींच कर आंदोलन को पटरी से उतारने के लिए सरकार की एक चाल है.
पंजाब के सबसे बड़े संगठनों में से एक भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) और किसान मज़दूर संघर्ष समिति जो अब भी अमृतसर में 'रेल रोको' आंदोलन चला रही है, इन्होंने कहा है कि किसानों के साथ 8 जनवरी की बैठक के दौरान केंद्र ने सुझाव दिया कि कृषि क़ानूनों से संबंधित फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ना अच्छा होगा और ये स्पष्ट रूप से संकेत हैं कि सरकार एक समाधान खोजने में देरी करना चाहती है.
बीकेयू (उगराहां) के राज्य सचिव शिंगारा सिंह मान ने द हिंदू को बताया, “सुप्रीम कोर्ट पर इस मुद्दे को छोड़ने का सुझाव बताता है कि सरकार चल रहे विवाद का हल खोजने में देरी करना चाहती है. उनका इरादा केवल इस मुद्दे को लंबा खींचना है और हमारी मांगों को पूरा नहीं करना है. सरकार लोगों के आंदोलन को दबाना चाहती है. हमने पहले ही सरकार के सुझाव को ख़ारिज कर दिया है.”
उन्होंने कहा, “सरकार की मंशा बहुत स्पष्ट है. वे अदालतों को शामिल करके किसान आंदोलन को तोड़ना चाहते हैं.”
वे कहते हैं कि बीकेयू-उग्राहन अन्य संगठनों के साथ सभी विवादित कृषि कानूनों को वापस लिए जाने और सभी राज्यों में सभी फ़सलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी ख़रीद को एक क़ानूनी अधिकार बनाने के लिए मज़बूती से खड़ा है.
किसान मज़दूर संघर्ष समिति की पंजाब इकाई के महासचिव सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि बैठक में भाग लेने वाली सभी यूनियनों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ने के सरकार के संकेत को ख़ारिज कर दिया था.
उन्होंने कहा, “सरकार मामले को लंबे समय के लिए अदालत में ले जाना चाहती है. वे इस मुद्दे को हल नहीं करना चाहते.”
पंधेर ने कहा कि किसान संगठन अपने आंदोलन को तेज करने के लिए बिल्कुल तैयार हैं और उन्होंने 26 जनवरी को नई दिल्ली में प्रस्तावित 'ट्रैक्टर परेड' को सफल बनाने के लिए देश भर के किसानों और खेतिहर मजदूरों से अपील की है.
भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के महासचिव हरिंदर सिंह ने कहा कि केंद्र ने कानून बनाए हैं और वो आसानी से उन्हें निरस्त भी कर सकता है.
उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट जाने की ज़रूरत नहीं है. सरकार को किसानों की मांग को सुनना चाहिए और कानूनों को तुरंत रद्द करना चाहिए.” (बीबीसी)