अंतरराष्ट्रीय
अंधेरी रात में तरह तरह की रोशनी से जगमगाते शहरों की तस्वीरें देखने में बहुत अच्छी लगती हैं. लेकिन चौबीसों घंटे रोशन रहने वाले इन शहरों की पर्यावरण को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है.
17 जनवरी 1994 को अमेरिका के लॉस एंजेलेस में जब भूकंप आया तो वहां बिजली भी गुल हो गई. घबराहट में लोगों ने पुलिस को फोन किया. कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि धरती के कांपने से ज्यादा वो आसमान के दृश्य को देख कर डर गए थे. काले आसमान में कुछ चमक रहा था, टिमटिमा रहा था. दरअसल ये लोग, आसमान में तारों को देख कर डर गए थे. बिजली चले जाने से इतना अंधेरा हो गया था कि आकाशगंगा को साफ देखा जा सकता था. लॉस एंजेलेस में रहने वाले अधिकतर लोगों ने यह नजारा पहली बार देखा था.
दिन और रात का फर्क खत्म
19वीं सदी में जब बिजली की खोज हुई तो यह एक बहुत बड़ी क्रांति थी. आज इस खोज के सौ साल बीत जाने के बाद बिजली के बिना जीने की कल्पना करना भी मुश्किल है. लेकिन अब दुनिया की 80 फीसदी आबादी प्रकाश प्रदूषण से जूझ रही है. सिंगापुर में तो आसमान इतना रोशन रहता है कि लोगों की आंखों को अंधेरे की आदत ही नहीं रही है.
जर्मन वैज्ञानिक क्रिस्टोफर किबा का कहना है कि कृत्रिम रोशनी ने बायोस्फेयर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. उनका कहना है कि प्रकृति हमें संकेत देती है, "बताती है कि यह दिन है और यह रात है लेकिन जिन इलाकों में प्रकाश प्रदूषण बहुत ज्यादा है, वहां यह संकेत बहुत ही कम हो गया है." वैज्ञानिकों का दावा है कि हमारी पृथ्वी हर साल दो फीसदी ज्यादा रोशन हो रही है.
शहरों में रहने वाले लोगों पर प्रकाश प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर हो रहा है. मुंबई के नीलेश देसाई कहते हैं, "बहुत ही बुरा हाल है. आपको पूरे मुंबई के ऊपर नारंगी रंग की रोशनी की चादर दिखती है." दिनेश बताते हैं कि रात को 12 बजे तक बत्ती का जलना मुंबई में आम है लेकिन कई बार तो सुबह के तीन बजे तक भी बत्तियां जलती रहती थी, "मुझे बहुत परेशानी होती थी. मेरे बैडरूम में इतनी तेज रोशनी आती थी और मुझे बहुत दिक्कत होती थी, मैं सो ही नहीं पाता था."
क्या रोशनी हमें बीमार कर रही है?
2018 में नीलेश ने इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया. नीलेश ने लोगों को इकठ्ठा किया और अपने अधिकार के लिए प्रदर्शन करने शुरू किए. अब उनकी मांगें मान ली गई हैं. उनके घर के पास मौजूद एक स्टेडियम को रात के समय फ्लड लाइट बंद करने का आदेश दिया गया है. लेकिन भारत में प्रकाश प्रदूषण से जुड़े बहुत कानून नहीं हैं. ऐसे में पर्यावरण मंत्रालय से इसे बदलने की मांग भी की जा रही है.
रिसर्च दिखाती है कि ज्यादा वक्त तक प्रकाश का सामना करने से इंसानों की आंखें खराब हो सकती हैं. नींद ना आना, मोटापा और यहां तक कि डिप्रेशन भी इसका नतीजा हो सकता है. अमेरिका में शिफ्ट में काम करने वालों पर हुए शोध में ब्रेस्ट कैंसर के अधिक मामले भी पाए गए. दरअसल, रोशनी के कारण शरीर में मेलाटॉनिन नाम का हार्मोन सक्रिय हो जाता है. बहुत अधिक मात्रा में इस हार्मोन के होने से तरह तरह की बीमारियां हो सकती हैं.
रोशनी का यह बुरा असर ना केवल इंसानों, बल्कि जानवरों, पक्षियों, कीड़ों और पौधों पर भी होता है. एक शोध बताता है कि जर्मनी में सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही रात में निकलने वाले 100 अरब कीड़ों की जान कृत्रिम रोशनी के कारण चली जाती है. इसी तरह जो पौधे स्ट्रीट लाइट के आसपास मौजूद होते हैं, उन पर फल और फूल कम लग पाते हैं.
कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार
चूंकि बिजली अब भी अधिकतर कोयले से बनाई जाती है इसलिए रात को बिजली का अधिक इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ावा देता है. उत्तर प्रदेश स्थित रानी लक्ष्मी बाई सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के पवन कुमार कहते हैं, "रात को बिजली इस्तेमाल करने के कारण दुनिया भर में हर साल एक करोड़ टन से भी ज्यादा सीओ2 उत्सर्जन होता है." उनका कहना है कि अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो कार्बन उत्सर्जन को भी रोका जा सकेगा और पैसे की भी बचत की जा सकेगी.
रिपोर्ट: टिम शाउएनबेर्ग/आईबी