महासमुन्द

7 साल से बगैर पंजीयन चल रहा जगदीशपुर का आश्रम छात्रावास, जांच में एक भी दस्तावेज नहीं मिला
21-Mar-2024 2:56 PM
7 साल से बगैर पंजीयन चल रहा जगदीशपुर का आश्रम छात्रावास, जांच में एक भी दस्तावेज नहीं मिला

 पहले यहां अनाथ आश्रम चल रहा था बाद में बदलकर छात्रावास हो गया 

 सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है, चौकीदारी भी विद्यार्थी ही करते हैं 

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,21 मार्च।
बसना के जगदीशपुर-नरसिंगपुर में बिना पंजीयन 7 साल से आश्रम-छात्रावास चल रहा है। यहां आए दिन बड़े अफसर, जनप्रतिनिधि और समाजसेवी संगठन हर तरह का सहयोग करते रहते हैं। यहां सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। चौकीदारी का काम भी बड़ी उम्र के विद्यार्थी करते हैं।

पहले यहां अनाथ आश्रम चल रहा था। बाद में जब इसके संचालक जगदीश कन्हेर को पता चला कि अनाथ आश्रम संचालन की अनुमति नहीं है, तो उन्होंने इसे छात्रावास का नाम दे दिया। बाद में इसे जगदीशपुर शिफ्ट कर दिया गया।  हाल ही में सप्ताह भर पहले कलेक्टर के निर्देश पर जब इस संस्था की जांच हुई तो बाल संरक्षण अधिकारी यहां जांच के लिए पहुंचे। अधिकारी को जांच में यहां न तो आश्रम और न ही छात्रावास से संबंधित कोई कागजात मिले। और तो और जांच के दौरान इस संबंध मेें उन्हें कोई नहीं रिकॉर्ड मिला।

अब से करीब 3 साल पहले यहां 50 से ज्यादा विद्यार्थी थे, अभी 22 हैं। बाकी कहां गए, इसका जवाब भी संस्था संचालक के पास नहीं है। आज से 3 साल पहले नरसिंगपुर में लक्ष्मण साहू नामक किसान ने छात्रावास के लिए अपनी एक एकड़ जमीन भी उक्त संस्था को दान कर दी थी। इसी में छात्रावास बनाकर चलाया जा रहा है।

इस मामले में आश्रम-छात्रावास संचालक जगदीश कन्हेर का कहना है कि जमीन आश्रम की नहीं हैं। हम लोग खरीदे हैं। अब यहां कोई अनाथ नहीं हैं। क्या अब छात्रावास में अनाथ बच्चे नहीं रहते जैसे सवाल पर उनका कहना है कि नरसिंगपुर में बालक छात्रावास चलाया जा रहा है। अब यहां कोई भी बच्चा अनाथ नहीं है। हॉस्टल में 22 बच्चे हैं। सभी के माता-पिता हैं। अनाथ आश्रम संचालन के बाद हमने यह जमीन खरीद ली है। 

मामले में डीसीपीओ जिला बाल संरक्षण अधिकारी क्षेमराज चौधरी कहते हैं कि कुछ दिन पहले कलेक्टर के निर्देश पर हुई जांच में संचालक के पास अनाथ आश्रम व छात्रावास से जुड़े कोई कागज नहीं मिले हैं। रिपोर्ट कलेक्टर व उच्च अधिकारियों को भेज दी गई है। आदेशानुसार कार्रवाई होगी। अनाथ आश्रम-हॉस्टल का पंजीयन है लेकिन अनाथ आश्रम चलाने की अनुमति नहीं है। पूर्व में महासमुंद के तत्कालीन कलेक्टर उमेश अग्रवाल ने मौखिक रूप से अनाथ आश्रम की जगह छात्रावास के नाम से इसे संचालित करने कहा था। तब से वैसा ही चल रहा है। वर्तमान में इसका रजिस्ट्रेशन तारीख समाप्त है। फिर भी यहां लाखों रुपए दान में आते हैं। बहुत से लोग यहां आकर अपना जन्मदिन भी मनाते हैं। 
 

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