महासमुन्द
सांसद उम्मीदवार ताम्रध्वज समेत सैकड़ों ने तस्वीर साझा की
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,2 मई। मजदूर दिवस पर जिले के सैकड़ों लोगों ने बासी खाकर मजदूरों का सम्मान किया। छत्तीसगढ़ में बासी खाने की परंपरा हालांकि सदियों पुरानी है। लेकिन प्रदेश के भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में इसे राजनीतिक रूप मिला था। भले ही बासी को श्रमिकों के सम्मान के नाम खाया गया। बासी की परंपरा छत्तीसगढ़ में काफी समृद्ध परंपरा है। यहां केवल श्रमिकों के साथ ही नहीं बल्कि मालगुजारों तक के घरों में खाने की परंपरा रही है। हर साल गर्मी के दिनों में छत्तसीगढ़ के घर-घर में दोपहर को लोग बासी खाते हैं। छत्तीसगढिय़ों से अलग परिवेश में रहने वाले नहीं जानते कि बासी के भी तीन प्रकार के होते हैं। पहला बासी वह है जिसे चावल के भात बनने के थोड़ी देर बाद गर्म अवस्था में ही पानी अथवा पसिया (मांड़) में भिगाकर स्वाद अनुसार नमक डालकर खाते हैं। इसे कुछ लोग पखाल भी कहते हैं। रात में पके हुए भात को पसिया में भिगाकर रखकर दूसरे दिन भी बासी खाते हैं। जब ताजा भात को माड़ में भीगे तीसरे दिन हो जाता है तो उसे तियासी कहते हैं।
छत्तीसगढ़ के गांवों में बासी के प्रकार के साथ ही भाजी भी बनती है। चेंच भाजी, चौलाई भाजी के साथ ज्यादातर लोग बासी खाते हैं। पताल की चटनी, अचार, आम, इमली, करौंदा की चटनी के साथ बासी खाने की परंपरा है। वैसे गांवों में गरमी के दिनों में पेट को ठंडा रखने के लिए इसे रामबाण माना जाता है। इसमें प्याज और दही मिलाकर खाने से इससे पेट के कई रोगों से मुक्ति मिलती है। बासी को बटकी में खाने की परंपरा है। थाली आदि में इसे कोई नहीं खाता। इसे लेकर एक ददरिया भी छत्तीसगढ़ में काफी प्रचलित है..बटकी मं बासी अउ चुुटकी मं नून, मैं गावथंव ददरिया तैं कान देके सुन रे चना के दार। यह चलन अब भी है कि गांव का हर मजदूर खासकर गर्मी के दिनों में दोपहर को बासी ही खाता है। इसीलिए पूर्ववर्ती सरकार ने मजदूर दिवस को बासी खाने की परंपरा की शुरुआत की थी।
कल जिले के लोगों ने बासी के साथ तरह-तरह की सब्जियों के साथ चित्र खिंचवाकर हमारे अखबार को भेजा है उसमें कांग्रेस के सांसद उम्मीदवार ताम्रध्वज साहू, नगरपालिका अध्यक्ष राशि महिलांग से लेकर कांग्रेस के पदाधिकारी बासी खाते दिख रहे हैं। इसके अलावा बहुत से ऐसे लोग हैं जो किसी पार्टी विशेष से नहीं हैं लेकिन उन्होंने बासी खाते तस्वीर भेजा है। भाजपा के बहुत से लोगों ने भी इसे मजदूरों का सम्मान कहते हुए बासी वाली तस्वीर भेजा है। सैकड़ों तस्वीरें ऐसी हैं जो मजदूरों के सम्मान के नाम पहुंची हैं लेकिन उनकी बासी में बटकी के आसपास राजशाही सब्जियों का भंडार है। खैर जो भी हो लेकिन जिले भर में बासी खाने की परंपरा का बखूबी निर्वाह किया गया है। क्योंकि यह साल में एक दिन नहीं बल्कि बदस्तूर जारी रहने वाली परंपरा है।