सरगुजा

शिवरात्रि के लिए नये रूप-रंग में सज- धज कर तैयार है शिवपुर तुर्रा
10-Mar-2021 7:59 PM
 शिवरात्रि के लिए नये रूप-रंग में सज- धज कर तैयार है शिवपुर तुर्रा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

अम्बिकापुर, 10 मार्च। इस वर्ष शिवरात्रि मेले में शिवपुर तुर्रा नये रूप रंग में सज-धज कर तैयार है। जलेश्वरनाथ अद्र्धनारीश्वर शिव मंदिर को जनसयोग से अब विशाल रूप में बनाया गया है। इस मंदिर की सुंदरता एवं कारीगरी भक्तों एवं पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर रही है।

मंदिर समिति के अध्यक्ष कंचन सोनी ने बताया कि यहां करोड़ो की लागत से शिव मंदिर, प्रवेश द्वार, स्नानघर, बाउंड्री, सौंदर्यीकरण, सुलभ सौचालय और धर्मशाला का निर्माण कराया गया है। ग्राम पंचायत शिवपुर के सरपंच देवसरण सिंह ने बताया कि नया ग्राम पंचायत बनने के बाद पहला मेला है। मेले की सम्पूर्ण व्यवस्था मंदिर समिति करती है। फिर भी हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि किसी भी श्रद्धालु भक्त एवं पर्यटक को कोई परेशानी न हो। यहां प्रति वर्ष शिवरात्रि पर विशाल मेला भरता है। इस मेले में छत्तीसगढ़ सहित आस-पास के पड़ोसी राज्यों से लाखों की संख्या में भक्त एवं पर्यटक आते हैं। इस रमणीय स्थल को पर्यटन के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि छत्तीसगढ़ की ख्याति देश -विदेश तक चर्चित हो सके।

राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में प्रस्तुति दे चुके राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी सदस्य जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर ने बताया कि सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिला अंतर्गत प्रतापपुर से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में पहाड़ों की पीठ पर ग्राम पंचयत शिवपुर में शिवपुर तुर्रा नामक स्थल प्रसिद्ध है। यहीं शिवमंदिर के अंदर जलकुण्ड में अद्र्धनारीश्वर शिवलिंग विराजमान हैं। इस शिवलिंग में शिव एवं पार्वती दोने के रूप चिन्ह स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इसलिए इस दुर्लभ शिवलिंग को जलेश्वरनाथ अद्र्धनारीश्वर शिवलिंग कहते हैं। इस तरह का अद्र्धनारीश्वर शिवलिंग जो जलकुण्ड में विराजमान हो, पुरी दुनियां में कहीं देखने सुनने को नहीं मिलता है। इसलिए इसे विश्व का इकलौता शिवलिंग माना जा सकता है। स्थानीय लोग इसे तुरेश्वर महादेव के नाम से भी पुकारते हैं। शिवलिंग के बगल से विशाल चट्टानों के मध्य खोह से अविरल जलधारा निकलती हुई कुण्ड के शिवलिंग की परिक्रमा करती हुई नीचे एक बड़ी टंकी में गिरती है। इस जल को चार धारा पुरुषों के लिए एवं दो धारा महिलाओं के लिए स्नान घर में प्रवाहित किया गया है। अन्तत: इन पांचों धाराओं का पानी एक तालाब में एकत्रित होता है, जिससे शिवपुर एवं बैकोना गाँव के कुछ खेतों की सिंचाई होती है।

 मौसम के अनुकूल रहता है जल

यहां का जल शुद्ध, मधुर एवं मौसम के अनुकूल गर्मी में सुबह ठण्डा एवं ठण्ड में कुनकुना गर्म पानी प्राकृतिक वरदान से मिलता है। श्रद्धालु भक्त इसे ईश्वरीय कृपा मानते हैं। यहां का जल गंगा जल तुल्य है, जल को बोतल में रखने पर कभी कीड़े नहीं पड़ते।

शुद्धता एवं मधुर स्वाद हमेशा बनी रहती है। इसलिए इसे शिवगंगा एवं पाताल गंगा झरना भी कहा जाता है। लोगों की मान्यता है कि यहां के जल सेवन मात्र से शारीरिक बीमारियां दूर होती है। ज्योतिर्लिंग तुल्य शिवलिंग वाले इस धार्मिक स्थल को सरगुजा का बाबा धाम माना जाता है। पुराणों में देवशंकर के निवास स्थल पर बरगद, बेल, आम, पीपल एवं पाकड़ वृक्षों के होने का उल्लेखित है। यहां भी शिव मंदिर परिसर में सभी वृक्ष लगे हुए हैं।

वनवास काल में भगवान श्रीराम ने की थी इस शिवलिंग स्थापना

 किवदंती है कि भगवान श्रीराम ने वनवास काल के समय इस शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी। मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब शिवपुर में शिवलिंग स्थापित किये, उस वक्त माता सीता और लक्ष्मण भी साथ आये थे। शिव मंदिर के पश्चिम दिशा में कुछ दूरी पर नाले के समीप सीता पांव नामक स्थान भी है। यहीं पर माता सीता के पैर के निशान पानी पीने के दौरान एक पत्थर पड़े थे। इसी चरण चिन्ह के एड़ी वाले हिस्से से निरंतर जल बहता रहता है। स्थानीय लोग इसे गोसांई ढोढ़ी के नाम से जानते हैं।

बताया जाता है कि राजा के स्वप्न के आधर पर जलेश्वरनाथ शिवलिंग के उत्खनन के दौरान दो दुर्लभ शिवलिंग एवं एक नंदी की मूर्ति मुख्य शिवलिंग से चिपकी हुई मिली। इन्हें भी मंदिर परिसर में दुग्धेश्वर शिवलिंग एवं नर्मदेश्वर शिवलिंग एवं नंदिश्वर मूर्ति के नाम से स्थपित किया गया है। शिवलिंग के उपर कभी-कभी सर्प, केकड़े, बिच्छु एवं अन्य जलीय कीड़ों के साथ एक बड़ा काला नाग सर्प फन फैलाये भक्तों को दिखाई देता है, जो श्रद्धालुओं को कभी हानि नहीं पहुँचाते है। ये सभी भोले शंकर के गण माने जाते हैं। इस मंदिर परिसर में विशाल धुरंधर नाथ शिवलिंग, राधा कृष्ण पंचमुखी मंदिर, नंदीष्वर की मूर्ति, हनुमान जी की प्रतिमा एवं राहु-केतु की मूर्ति स्थपित है।

देऊर बाड़ी बैकोना का बढ़ता शिवलिंग

शिवपुर मंदिर से लगभग एक किमी की दूरी पर दक्षिण दिशा में बैकोना गाँव में नाले के समीप एक प्राचीन स्थल देऊर बाड़ी है। यहीं पर बढ़ता हुआ एक शिवलिंग है। बताया जाता है कि इसको एक-दो बार काट कर अन्यत्र मंदिरों में स्थापित किया गया है। एक बार बैल मार कर तोड़ दिया था, फिर यह शिवलिंग वर्तमान समय में 26 इंच ऊँचा है। यहां के प्राचीन अवशेषों से स्पष्ट होता है कि देऊर बाड़ी नामक जगह पर प्राचीन काल में कोई विशाल देऊर मंदिर या शिवालय रहा होगा। प्राकृतिक कारणों से देऊर मंदिर ध्वस्त हो गया होगा तथा शिवलिंग बढक़र उपर निकल आया जो देऊर बाड़ी शिवलिंग के नाम से बैकोना में स्थित है। छत्तीसगढ़ में अनेक स्थानो पर देऊर नाम से प्राचीन मंदिर एवं टीलों के अवशेष देखने को मिलते हैं।

प्रतापपुर के पारदेश्वर शिव मंदिर में स्थापित है पारद शिवलिंग

प्रतापपुर के बनखेता मुहल्ले में बांकी नदी के समीप छत्तीसगढ़ का इकलौता शिवलिंगाकार पारदेश्वर शिव मंदिर है। इस मंदिर में 151 किलो पारा धातु से निर्मित पारद- शिवलिंग की स्थापना 21 अक्टूबर 1996 को की गयी है। पारदेश्वर शिवमंदिर में स्थापित सभी मूर्तियां पारा धातु से ही निर्मित हैं। इनमें नंदी की मूर्ति 85 किलो गणेश की मूर्ति 11 किलो, कार्तिकेय की मूर्ति 11 किलो , शिव की मूर्ति 21 किलो, पार्वती की मूर्ति 21 किलो एवं गुरुदेव निखलेश्वरानंद की मूर्ति 21 किलो से निर्मित है। शिव निर्णय रत्नाकर में उल्लेख है कि पारद निर्मित शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो संसार में हुआ है, और न हो सकता है। रसरत्नसमुच्यय में पारद निर्मित शिवलिंग के संबंध में बताया गया है कि पारद शिवलिंग की पूजा से तीनों लोकों में स्थित शिवलिंग की पूजा का फल प्राप्त होता है।

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