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नौकरी के लिए आसमान से जमीन पर उतरे पायलट, चलाने लगे ट्रेन
31-May-2021 1:15 PM
नौकरी के लिए आसमान से जमीन पर उतरे पायलट, चलाने लगे ट्रेन

कोविड-19 महामारी ने हजारों विमानों को बेकार बना दिया है. इनके साथ ही बेकार हुए हैं इन्हें चलाने वाले, यानी पायलट. अब बहुत से पायलट अपना करियर बदल कर ट्रेन ड्राइवर बन रहे हैं.

   डॉयचे वैले पर आंद्रियास स्पाएथ की रिपोर्ट 

दुनिया भर में विमानन उद्योग संकट में है. कोरोना वायरस महामारी ने इस उद्योग की चूलें हिला दी हैं. हजारों विमान महीनों सेउड़ने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि सीमाएं बंद हैं, आना-जाना बंद है और यात्राओं पर प्रतिबंध हैं. इस महीने में ही अब तक अकेले यूरोप में एक तिहाई विमान उड़ नहीं पाए हैं. जर्मनी की सबसे बड़ी एयरलाइंस लुफ्थांसा ने 4 मई को बताया था कि 2019 में उसने रोजाना 81 प्रतिशत कम उड़ानें भरीं.

306 में सेअधिकतर उड़ाने सामान वाहक विमानों की थीं. इन हालात ने विमानन उद्योग में काम करने वाले लोगों पर भी कहर बरपाया है. विमान उड़ नहीं रहे हैं तो क्रू मेंबर्स और पायलटों की जरूरत किसी को नहीं है. लिहाजा हजारों नौकरियां खतरें में पड़ गई हैं. यूरोपीयन पायलट यूनियन ईपीए का अनुमान है कि यूरोप के 65 हजार कॉकपिट स्टाफ में से 18 हजार की नौकरियां स्थायी रूप से जा सकती हैं. सिर्फ लुफ्थांसा को अगले साल 1,200 कॉकपिट स्टाफ को हटाना पड़ सकता है.

इस साल की शुरुआत में ब्रिटेन की फ्लाइटग्लोबल ने दुनिया भर के 2,600 पायलटों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक 43 फीसदी ही वो काम कर रहे थे जिसके लिए उन्होंने ट्रेनिंग ली थी. 30 प्रतिशत पायलट बेरोजगार थे जबकि 10 प्रतिशत उड़ान से इतर कोई काम कर रहे थे. सर्वे में शामिल 82 प्रतिशत पायलटों ने कहा कि अगर उन्हें नई नौकरी मिलती है तो वे कम तनख्वाह पर भी काम कर लेंगे.

हजारों नौकरियां खतरे में
विमानन उद्योग का संकट तो जल्दी खत्म होता नजर नहीं आ रहा है लेकिन विमान चालकों ने एक ऐसा रास्ता खोज लिया है जहां उनके कौशल का सही इस्तेमाल हो सकता है. इसके लिए उन्हें आसमान से जमीन पर उतरना होगा. जर्मनी,ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड की रेलवे कंपनियों को बड़ी संख्या में पेशेवर ड्राइवरों की जरूरत है. इसके अलावा हॉन्ग कॉन्ग की ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी और ऑस्ट्रेलिया के चार्टर बस ऑपरेटरों को भी कुशल ड्राइवरों की तलाश है.

महामारी शुरू होने से पहले भी जर्मनी की रेल चालक कंपनी डॉयचे बान ड्राइवरों की कमी से जूझ रही थी. स्विट्जरलैंड कंपनी एसबीबी ने तोयूरोप के अन्य देशों में भर्ती अभियान शुरू किया था लेकिन कोई बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली. अब जबकि पेशेवर पायलट नौकरी की तलाश में हैं तो ट्रेन कंपनियों के भागों छींका टूट पड़ा है.

पायलट पहले ही इस तरह के काम के लिए तैयार होते हैं. डॉयचेबान ने समाचार एजेंसी डीपीए को बताया है कि उन्हें पिछले दिनों में पूर्व पायलटों और अन्य क्रू मेंबर्स की 1,500 जॉब ऐप्लिकेशन मिली हैं. इनमें से 280 को तो नौकरी भी मिल गई है. नौकरी पाने वालों में 55 पायलटहैं और 107 पूर्व केबिन क्रू सदस्य हैं. मसलन, डेनिस सीडल जो एलजीवी के लिए दस साल तक पायलट के तौर पर काम कर चुके हैं. एरलाइनर्स नामक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि पायलट बनना उनके बचपन का सपना था.

ट्रेनों ने बदली जिंदगी
लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण 2019 में एलजीवी बंदहो गई और उनका सपना भी बिखर गया. ट्रेन ड्राइवर बनना उनका दूसरा विकल्प था, जोउन्होंने अपना लिया और यह नौकरी उनके लिए ज्यादा मुश्किल भी नहीं है. सीडल फिलहाल डॉयचे बान के लिए ट्रेन ड्राइवर बननेकी ट्रेनिंग कर रहे हैं. इसमें 10 से 12 महीने तक लगते हैं. ट्रेनिंग में मुख्यतया ट्रेनइंजन की कार्यविधि की जानकारी दी जाती है.

सीडन ने एयरलाइनर को बताया, "काम तो लगभग एक जैसे ही हैं. ट्रेन ड्राइवर का काम भी उतना ही जिम्मेदारी भरा होता है जितना किसी पायलट का.” फर्कबस इतन है कि ट्रेन का ड्राइवर अपने केबिन में अकेला होता है और उसके यात्रियों कीसंख्या प्लेन के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है. 27 साल के फेलिशियन बॉमन ने भी अपना करियर बदला है. हैम्बर्ग के बॉमन ने ऑस्ट्रियन एयरलाइन्स के साथ पायलट की ट्रेनिंग पूरी की ही थी कि महामारी आ गई और उनके पायलट बनने के सपने के पर कतर दिए गए.

तब उन्होंने विएना की ट्राम ऑपरेटर कंपनी वीनर लीनियन के लिए ट्राम चालक बनने का फैसला किया. कंपनी के एक यूट्यूब वीडियो में वह कहते हैं, "दोनों ही पेशों में काम है लोगों को सुरक्षित एक जगह से दूसरी जगह ले जाना.”एक स्थानीय अखबार को उन्होंने बताया कि दोनों नौकरियों की सैलरी में भी बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. (dw.com)
 

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