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महिलाओं को बराबरी देने में फिर पिछड़ा जर्मनी
02-Jun-2021 1:28 PM
महिलाओं को बराबरी देने में फिर पिछड़ा जर्मनी

महिलाओं को मैनेजमेंट में जगह देने के मामले में जर्मनी में उतनी प्रगति नहीं हो रही है, जितनी उम्मीद की जा रही थी. बैंकिंग उद्योग में हुआ एक अध्ययन बताता है कि पिछले साल इसमें मामूली वृद्धि हो पाई.

 (dw.com)

जर्मनी में बैंकों के मैनेजमेंट में सिर्फ 34.8 प्रतिशत महिलाएं हैं. रोजगार के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एजीवी बांकेन के मुताबिक यह संख्या पिछले साल से बस थोड़ी सी ज्यादा है क्योंकि 2019 में 34.3 प्रतिशत महिलाएं बैंकों के मैनेजमेंट में थीं. यह आंकड़ा जर्मनी के विभिन्न उद्योगों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की एक बानगी के तौर पर देखा जा रहा है. खासकर वित्त उद्योगों में तो इसे चिंता का सबब मानकर कुछ कदम उठाने की बात भी हो रही है.

हालांकि 1990 की स्थिति के मुकाबले तो हालात बहुत बेहतर हैं जबकि मैनेजमेंट में महिलाओं की संख्या 10 फीसदी से भी कम हुआ करती थी. लेकिन जर्मन उद्योग ब्रेक्जिट के बाद लंदन से मुकाबला कर रहे हैं तो हालात सुधारने की जरूरत महसूस की जा रही है. इसलिए कुछ संस्थाओं जैसे डॉयचे बैंक और कॉमर्स बैंक ने 35 प्रतिशत को अपना लक्ष्य बनाया है.

बदलाव की कोशिश

डॉयचे बैंक का कहना है कि वह हालात पर लगातार नजर रखेगा और तरक्की का हिसाब रखा जाएगा. जर्मनी की सबसे प्रमुख बैंकरों में शामिल कैरोला फोन श्मोटो जब अप्रैल में एचएसबीसी के प्रमुख पद से रिटायर हुईं तो उनकी जगह एक पुरुष ने ली. एचएसबीसी ने कहा कि वह सीनियर मैनेजमेंट में महिलाओं की संख्या बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है लेकिन फैसलों में अंतर नजर आ ही जाता है. जर्मन सांसद कान्सल कित्सेलटेपे कहती हैं कि वित्त क्षेत्र में पुरुषों का अधिपत्य है और इसे बदलना ही चाहिए.

बॉस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप और म्यूनिख तकनीकी विश्वविद्यालय के एक साझा अध्ययन के मुताबिक महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में जर्मनी कई यूरोपीय देशों जैसे ब्रिटेन और फ्रांस से पीछे है. ब्रिटेन में 2034 तक महिलाओं के पुरुषों की बराबरी हासिल कर लेने की उम्मीद है लेकिन जर्मनी में यह स्थिति आने में 2053 तक का वक्त लगेगा. बॉस्टन कन्सल्टिंग की महाप्रबंधक और रिपोर्ट की लेखिका निकोल फोग्ट कहती हैं, "हम आबादी में आधी हैं तो संख्या बराबर क्यों न हो? 35 प्रतिशत क्यों हो?"

सरकार भी चिंतित

जर्मनी में सरकार भी इस जरूरत को समझती दिखती है. इसलिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. मसलन, जून में संसद में एक कानून बनाने पर बात हो सकती है जिसमें सूचीबद्ध 70 बड़ी कंपनियों में, जहां बोर्ड में तीन या उससे ज्यादा सदस्यों का होना जरूरी है, उनमें कम से कम महिला का होना अनिवार्य किया जा सकता है. हालांकि आलोचक इससे बहुत संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि जिन कंपनियों के बोर्ड में दस लोग होंगे, वहां भी सिर्फ एक महिला का होना काफी होगा.

फ्री डेमोक्रैट सांसद बेटिन स्टार्क-वात्सिंगर कहती हैं, "कानूनों के बावजूद हाल के दशकों में सच ज्यादा नहीं बदल पाया है." दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में शामिल यूबीएस की यूरोप में अध्यक्ष क्रिस्टीन नोवाकोविच कहती हैं कि मुश्किलें सिर्फ कानून को लेकर नहीं हैं. वह कहती हैं, "दुर्भाग्य से, अब भी अक्सर ऐसा होता है कि महिलाएं परिवार और करियर में सामंजस्य नहीं बिठा पातीं."

महिलाओं को वेतन में गैरबराबरी भी यूरोप में जिन देशों में सबसे ज्यादा है, जर्मनी उनमें से एक है. जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट कहती है कि 2020 में यूनिक्रेडिट की जर्मनी में सीनियर एग्जिक्यूटिव को पुरुषों से 76 प्रतिशत कम वेतन मिला और यह बाकी दुनिया की शाखाओं से कम है. हालांकि बैंक का कहना है कि इस साल उसने यह अंतर काफी कम कर दिया है.

एक अन्य सांसद लीजा पॉज चाहती हैं कि बोर्ड में महिलाओं की उपस्थिति को लेकर सख्त कानून बनाया जाए. वह कहती हैं, "बैंकिंग क्षेत्र बड़े बदलावों से गुजर रहा है. इसमें ताजा हवा की जरूरत है और मैनेजमेंट में ज्यादा महिलाओं की भी."

वीके/एए (रॉयटर्स)

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