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बजरंग पूनिया: स्कूल से भागकर कुश्ती सीखने से ओलंपिक मेडल हासिल करने तक का सफ़र
07-Aug-2021 5:36 PM
बजरंग पूनिया: स्कूल से भागकर कुश्ती सीखने से ओलंपिक मेडल हासिल करने तक का सफ़र

@himantabiswa

-प्रदीप कुमार

बजरंग पूनिया टोक्यो ओलंपिक में 65 किलोवर्ग फ़्री स्टाइल कुश्ती के सेमीफ़ाइनल में भले हार गए हों लेकिन उम्मीद के मुताबिक ही वे ओलंपिक में मेडल हासिल करने में कामयाब रहे.

कांस्य पदक के लिए हुए मुक़ाबले में उन्होंने कज़ाख़स्तान के दौलेत नियाज़बेकोव को कोई मौका नहीं दिया और 8-0 से हराकर उन्होंने पदक जीत लिया.

सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले में बजरंग पूनिया भले रंग में नहीं दिखे थे लेकिन अंतिम मुक़ाबले में उन्होंने शुरुआत से ही बढ़त बनाए रखी.

सेमीफ़ाइनल में वे अज़रबैजान के हाजी अलीयेव से हार गए. बताया जा रहा है कि इस मुक़ाबले से पहले उनके घुटने में चोट लगी थी लेकिन अंतिम मुक़ाबले में उन्होंने भरपाई कर ली.

क्वार्टर फ़ाइनल मैच से ठीक पहले एक रोमांचक मुक़ाबले में आख़िरी सेकेंड में पॉइंट हासिल करते हुए पुनिया ने किर्गिस्तान के अरनाज़र अकमातालिव को हरा कर क्वार्टर फ़ाइनल में अपनी जगह पक्की की थी.

कामयाबी की सीढ़ी
बजरंग पूनिया बीते सात आठ सालों से भारत के वैसे पहलवान रहे हैं, जिन्होंने इंटरनेशनल स्तर पर लगातार और निरंतरता के साथ कामयाबी हासिल की है.

यही वजह है कि टोक्यो में उन्हें भारत के लिए सबसे उपयुक्त दावेदार माना जा रहा था. रवि दहिया के मेडल जीतने के बाद उनके ऊपर कामयाबी का दबाव भी बढ़ा होगा, लेकिन वे दबावों में निखरने वाले पहलवान रहे हैं, लेकिन सेमीफ़ाइनल में अपने से दमदार पहलवान के सामने वे पिछड़ने के बाद वापसी नहीं कर सके.

लेकिन बचपन में देखे सपने और अपने मेंटॉर योगेश्वर दत्त की तरह चैंपियन बनने का सपना उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में मेडल हासिल करके पूरा कर दिखाया है. उम्मीद यही है कि पेरिस ओलंपिक में वे अपने पदक का रंग बदलने की कोशिश ज़रूर करेंगे.

अखाड़े में कैसे पहुंचे?
एपिक चैनल के एक कार्यक्रम उम्मीद इंडिया में वीरेंद्र सहवाग बजरंग पूनिया से पूछते हैं कि कुश्ती के प्रति दिलचस्पी कैसी जगी तब बजरंग बताते हैं, "हरियाणा के गांवों के हर घर में आपको लंगोट मिल जाएगी. तो केवल लंगोट में जाना होता है और अखाड़े में जीतने पर कुछ न कुछ मिलता ही है. तो ऐसे शुरुआत हुई लेकिन सच कहूं तो स्कूल से बचने के लिए मैं अखाड़ों में जाने लगा था."

हरियाणा के झज्जर ज़िले के कुडन गांव में मिट्टी के अखाड़ों में पूनिया ने सात साल की उम्र में जाना शुरू कर दिया था. उनके पिता भी पहलवानी करते थे लिहाजा घर वालों ने रोक टोक नहीं की.

लेकिन गांवों के मिट्टी के अखाड़ों में जहां मिट्टी के कारण पहलवानों को काफ़ी मदद मिलती है और मैट की कुश्ती एकदम अलग होती है. मिट्टी के आखाड़ों में बेहतरीन करने वाले पहलवानों को भी मैट पर कुश्ती के गुर सीखने होते हैं. लिहाजा 12 साल की उम्र में वे पहलवान सतपाल से कुश्ती के गुर सीखने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे.

कुश्ती खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता तब बढ़ गई जब उनकी मुलाक़ात योगेश्वर दत्त से हुई. इस मुलाक़ात के बारे में योगेश्वर दत्त ने एपिक चैनल के कार्यक्रम उम्मीद इंडिया में बताया, "2008 में कुडन गांव का मेरा एक दोस्त उसे लेकर आया था मिलवाने. तब से उसमें लगे रहने वाला भाव था. वह हमलोगों से 12-13 साल छोटा था लेकिन मेहनत उतनी ही कर रहा था."

बजरंग पूनिया ने योगेश्वर दत्त को अपना मॉडल, गाइड और दोस्त सब बना लिया था. 2012 के लंदन ओलंपिक में योगेश्वर दत्त की कामयाबी ने उनमें भी यह भाव भरा कि वे ओलंपिक मेडल हासिल कर सकते हैं.

वरिष्ठ खेल पत्रकार राजेश राय बताते हैं, "मुझे पहली बार बजरंग सोनीपत में ही मिले थे, योगेश्वर दत्त के साथ. उन योगेश्वर का बड़ा असर रहा है."

इस असर का प्रभाव ऐसा रहा कि 2014 में बजरंग पूनिया ने योगेश्वर अकेडमी जॉइन कर ली और वहां से पीछे मुड़कर नहीं देखा. बीते सात सालों में जितने टूर्नामेंट में उन्होंने कामयाबी हासिल की है, उसकी दूसरी मिसाल मिलनी मुश्किल है.

2017 और 2019 की एशियाई चैंपियनशिप, 2018 के एशियन गेम्स और 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में पूनिया ने गोल्ड मेडल जीता है.

इसी साल हुई एशियाई चैंपियनशिप में वे गोल्ड मेडल नहीं जीत सके और सिल्वर मेडल से उन्हें संतोष करना पड़ा. ओलंपिक से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर की विभिन्न टूर्नामेंटों में छह गोल्ड, सात सिल्वर और चार ब्रौंज़ मेडल पुनिया जीत चुके थे. इन सब कामयाबी में योगेश्वर दत्त का गाइडेंस उनके काम आ रहा था.

वरिष्ठ खेल पत्रकार राजेश राय बताते हैं, "एक बेहतरीन खिलाड़ी का गाइडेंस क्या कर सकता है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है. 2018 साल के राजीव गांधी खेल रत्न के बजरंग भी दावेदार थे. लेकिन उन्हें नहीं मिला."

वे बताते हैं कि, "वे उस वक्त बेंगलुरू में ट्रेनिंग ले रहे थे, दुखी थे. फ़ोन करके उन्होंने कहा कि कनॉट प्लेस में एक प्रेस कांफ्रेंस करूंगा. उस प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि पुरस्कार नहीं मिलने को वे अदालत में चुनौती देंगे."

2019 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार
राजेश राय के मुताबिक शायद यह सब इतनी जल्दबाज़ी में हुआ कि योगेश्वर दत्त को बाद में पता चला, उन्होंने बजरंग को समझाया कि 'तू बस अपने खेल पर ध्यान दे, तू खेलता रहेगा तो तुझे खेल रत्न मिलेगा ही आज नहीं तो कल, अदालत का चक्कर छोड़, उससे कोई फ़ायदा नहीं होगा.'

इस सलाह का ऐसा असर हुआ कि बजरंग को 2019 का राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार भी मिला और कुश्ती की दुनिया में उनका नाम भी चमकता रहा.

इस दौरान अपने प्रदर्शन को लेकर उनका एक बयान सुर्ख़ियां बटोरता रहा है, वे मज़ाकिया लहजे में कहते हैं, "ये ढाई किलो का हाथ जब किसी पर पड़ता है तो गोल्ड मेडल आ ही जाता है."

योगेश्वर दत्त का असर
ये सुनने के बाद पहला भाव यही उमड़ता है कि बजरंग पूनिया पर सिनेमा का असर होगा. लेकिन आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि बजरंग पूनिया बीते एक दशक में कभी सिनेमा हॉल नहीं गए और इस दौरान सात साल के लंबे समय तक उन्होंने मोबाइल फ़ोन भी नहीं रखा.

समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है, "2010 से जब मैंने इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेलना शुरू किया तो योगी (योगेश्वर दत्त) भाई ने मुझसे कहा कि इन सब चीज़ों से ध्यान भटकता है. आज मेरे पास मोबाइल फ़ोन है लेकिन योगी भाई के सामने मैं इस्तेमाल नहीं करता. अगर वे दस घंटे तक मेरे साथ हैं तो समझिए 10 घंटे तक मेरा फ़ोन बंद ही है."

योगेश्वर दत्त की सलाहों का ही असर है कि विभिन्न टूर्नामेंटों में हिस्सा लेने के लिए दुनिया के 30 देशों में जा चुके बजरंग पूनिया ने किसी भी देश के टूरिस्ट स्पॉट को नहीं देखा. उनके टीम के दूसरे खिलाड़ी कहीं बाहर घूमने फिरने भी जाते हैं तो इस दल में बजरंग नहीं दिखाई देते, क्योंकि उनका पूरा ध्यान केवल और केवल कुश्ती और अभ्यास पर टिका है.

हालांकि बजरंग पूनिया समय समय पर ट्वीट करते रहे थे, लेकिन टोक्यो ओलंपिक की तैयारी का असर है कि 2018 के बाद उन्होंने कोई ट्वीट भी नहीं किया है. उनके ट्वीट से भी उनके ग्राउंडेड व्यक्तित्व का पता चलता है.

अपने एक ट्वीट में उन्होंने लिखा है, "बुरा वक़्त सबसे बड़ा जादूगर है. एक ही पल में सारे चाहने वालों के चेहरे से पर्दा हटा देता है."

अपने एक दूसरे ट्वीट में उन्होंने दार्शनिक अंदाज़ में आत्मविश्वास और अहंकार का अंतर बताया है. उन्होंने ट्वीट किया है, "मैं श्रेष्ठ हूं, ये आत्मविश्वास है... लेकिन.. सिर्फ़ 'मैं ही श्रेष्ठ हूं' ये अहंकार है."

बजरंग पूनिया को टोक्यो ओलंपिक में इसलिए भी पदक का दावेदार माना जा रहा है तो इसकी एक वजह उनके पर्सनल कोच शाको बेंटिनीडीस हैं जो पिछले कुछ सालों से लगातार पूनिया की तकनीक को सुधारने में लगे हुए हैं.

जार्जियाई कोच बेंटिनीडीस खुद तीन बार के ओलंपियन हैं और ओलंपिक खेलों की अधिकृत वेबसाइट ओलंपिक्स डॉट कॉम में पुनिया और बेनडिटीस के परिचय से संबंधी एक आलेख के मुताबिक कोच का पूनिया से बाप-बेटे जैसा रिश्ता बन चुका है.

बेंटिनीडीस ने पूनिया के शारीरिक फ़िटनेस के साथ साथ उनके मनोवैज्ञानिक फ़िटनेस पर काफ़ी काम किया है. पिछले साल पूनिया घुटने की चोट से भी प्रभावित रहे थे. लेकिन टोक्यो में वे शानदार वापसी करने में कामायब रहे.

उनकी ट्रेनिंग में एक पहलू बड़ा ही दिलचस्प है जिस फ़ोन से बजरंग पूनिया दूर रहने में भलाई समझते थे, उसी फ़ोन ने बीते एक साल में उनकी काफ़ी मदद की है, दरअसल कोविड के चलते पिछले साल जब बेनडिटीस जार्जिया में फंस गए तो भी उन्होंने वीडियो कॉल्स और फ़ोन कॉल्स के ज़रिए पूनिया को कोचिंग दी है.

वैसे तो बजरंग अपने 'स्टैमिना' के लिए जाने जाते हैं, इस दमखम के चलते वे छह मिनटों में आक्रामक तौर तरीकों से सामने वाले को चित्त करते रहे हैं.

लेकिन उनकी गेम का एक पक्ष काफी कमज़ोर रहा है, वो है उनका लेग-डिफेंस. इसके चलते विपक्षी पहलवान उनकी टांगों पर अटैक करके अंक बना लेते हैं. इसकी झलक सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले में भी दिखी. लेकिन ब्रौंज मेडल मुक़ाबले में वे पूरी तरह से चौकस नज़र आए.

पूर्व यूरोपियन चैंपियन रहे शाको के मुताबिक जब उन्होंने पूनिया की ताक़त और कमज़ोरियों का अध्ययन किया तो उनकी लेग डिफ़ेंस में कमी पायी और इस पर ध्यान देने के लिए टोक्यो ओलंपिक से ठीक पहले उन्होंने रूस में पूनिया की ट्रेनिंग की व्यवस्था की.

पीटीआई के खेल पत्रकार अमनप्रीत सिंह के मुताबिक, "करियर की शुरुआत में मिट्टी के दंगलों में शिरकत करना, ज़्यादा झुककर न खेलने की आदत की वजह से यह कमज़ोरी है उनमें. लेकिन जॉर्जिया के शाको ने बजरंग की लेग डिफेंस की कमियों को दूर करने में काफी मदद की है."

"शाको ने बजरंग के लिए विश्व के बेहतरीन ट्रेनिंग पार्टनर ढूँढे और उन्हें यूरोप और अमेरिका में अलग-अलग जगह ट्रेनिंग के लिए लेकर गए. भारत में बजरंग के लिए विश्व-स्तरीय ट्रेनिंग पार्टनर ढूँढना संभव नहीं था इसलिए बजरंग की तैयारियों में शाको का ये महत्वपूर्ण योगदान है."


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ओलंपिक: बजरंग पूनिया ने कुश्ती में भारत को दिलाया कांस्य पदक

टोक्यो ओलंपिक में भारत के बजरंग पूनिया ने 65 किलोग्राम वर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती में भारत को कांस्य पदक दिलाया है. उन्होंने कजाख़्स्तान के खिलाड़ी को हरा दिया.

बजरंग पूनिया ने कज़ाख़स्तान के दौलेत नियाज़बेकोव को 8-0 के भारी अंतर से मात दी.

इस जीत के साथ ही भारत ने 2012 में लंदन ओलंपिक खेलों के बराबर पदक जीत लिए हैं. लंदन ओलंपिक में भारत को कुल छह पदक मिले थे और टोक्यो ओलंपिक में भी भारत को अब तक छह पदक मिल चुके हैं.

सेमीफ़ाइनल में बजरंग पूनिया अज़रबैजान के हाजी अलीयेव से हार गए थे. पहले हाफ में ही अज़रबैजान के हाजी अलीयेव बजरंग पूनिया पर भारी पड़े थे. जहाँ हाजी ने 11 अंक बनाए वहीं बजरंग केवल पाँच अंक ही बना सके थे और फ़ाइनल में पहुँचने से चूक गए थे. (bbc.com)

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