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31 अगस्त के बाद अफगानिस्तान में छूटे लोगों का क्या होगा?
25-Aug-2021 12:43 PM
31 अगस्त के बाद अफगानिस्तान में छूटे लोगों का क्या होगा?

31 अगस्त के बाद कोई अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में नहीं रहेगा. तो फिर, उन लोगों का क्या होगा जिन्हें निकाला नहीं जा सका? ऐसे लोगों की संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा है.

   (dw.com)

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कह दिया है कि अफगानिस्तान से निकलने के लिए तय की गई 31 अगस्त की तारीख में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. इसका अर्थ है कि अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिका के करीब 6,000 सैनिकों उससे पहले देश छोड़ देंगे.

जब बाइडेन ने यह तारीख घोषित की थी तब वहां 2,500 अमेरिकी सैनिक थे. लेकिन तालिबान के काबुल पर कब्जा कर लेने के बाद और सैनिक भेजने पड़े ताकि वहां मौजूद नागरिकों को निकाला जा सके.

अब क्या होगा?
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि सैनिकों की निकासी शुक्रवार तक शुरू हो जानी चाहिए, तभी 31 अगस्त तक पूरी हो पाएगी क्योंकि इसमें कई दिन लगेंगे. इन सैनिकों में वे भी शामिल हैं जो काबुल एयरपोर्ट का जिम्मा संभाले हुए हैं.

इन सैनिकों को चले जाने के बाद अफगानिस्तान से नागरिकों के निकलने की गति धीमी होने की आशंका है. इस हफ्ते वहां से लगभग 20 हजार लोगों को रोजाना निकाला जा रहा है. लेकिन काबुल एयरपोर्ट के तालिबान के नियंत्रण में आ जाने के बाद लोग कैसे निकल पाएंगे, इस बारे में लोगों को आशंकाएं हैं.

31 अगस्त से पहले कितने लोग निकल सकते हैं?
अमेरिकी राष्ट्रपति ने मंगलवार को बताया कि 14 अगस्त के बाद से 70 हजार से ज्यादा लोगों को अफगानिस्तान से निकाला जा चुका है. इनमें अमेरिकी नागरिक, नाटो सैनिक और खतरे में माने जाने वाले वे अफगान नागरिक शामिल हैं.

बाइडेन का कहना है कि अमेरिका अपने हर उस नागरिक को वापस लाएगा जो आना चाहता है. साथ ही जितनी संख्या में हो सके, उन अफगानों को भी लाया जाएगा, जिनकी जान खतरे में हो सकती है.

पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने बताया कि अमेरिका मानता है कि 31 अगस्त से पहले सभी इच्छुक अमेरीकियों को निकाला जा सकता है. अब तक 4,000 अमेरिकी नागरिकों को अफगानिस्तान से निकाला जा चुका है. लेकिन अभी और कितने लोग वहां बाकी हैं, इसकी जानकारी नहीं है क्योंकि सभी ने दूतावास में नामांकन नहीं कराया था.

अमेरिका ने लगभग 500 उन अफगान सैनिकों को भी बचाकर लाने की प्रतिबद्धता जताई है, जो काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा में मदद कर रहे हैं. फिलहाल लोगों को निकालने के काम में अमेरिका और अन्य देशों के दर्जनों सैन्य और असैनिक विमान लगे हुए हैं. और यह गति 31 अगस्त तक जारी रहती है, तो भी इतनी जल्दी उन सभी लोगों को अफगानिस्तान से निकालना संभव नहीं है, जिनके ऊपर तालिबान द्वारा प्रताड़ना का खतरा मंडरा रहा है.

जो छूट गए, उनका क्या होगा?
शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन ऑफ वॉरटाइम अलाइज का अनुमान है कि ढाई लाख ऐसे लोग हैं जिन्हें अफगानिस्तान से निकाले जाने की जरूरत है. इनमें अनुवादक, दुभाषिए, ड्राइवर और अन्य ऐसे कर्मचारी हैं जिन्होंने नाटो सेनाओं के साथ काम किया था. लेकिन जुलाई से अब तक सिर्फ 62 हजार लोगों को निकाला जा चुका है.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक जो 31 अगस्त के बाद भी अफगानिस्तान में रह जाएंगे, उनकी मदद की जाएगी और तालिबान पर दबाव बनाया जाएगा कि वे सुरक्षित अफगानिस्तान छोड़ सकें.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने सोमवार को कहा, "सैन्य अभियान के खत्म होने के साथ हमारी उन अफगान लोगों के साथ प्रतिबद्धता खत्म नहीं होगी, जो खतरे में हैं. हम, और पूरी दुनिया तालिबान से यह सुनिश्चित कराएगी कि जो लोग अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं, उन्हें ऐसा करने का मौका मिले.”

अमेरिका के हाथ में क्या है?
बाइडेन सरकार के सामने इस वक्त सबसे बड़ा सवाल ये है कि तालिबान जो सरकार कायम करता है, उसे मान्यता दी जाए या नहीं. इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. एक अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय मदद पाने का भी हक होगा.

2020 में ट्रंप सरकार ने तालिबान के साथ जो समझौता किया था उसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि तालिबान को अमेरिका एक देश नहीं मानता. लेकिन अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि अमेरिका इस इस्लामिक उग्रवादी संगठन के साथ आतंकवाद जैसे कुछ मुद्दों पर बात करने का उत्सुक है.

सोमवार को अमेरिकी जासूसी एजेंसी सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स ने तालिबान नेता अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की. अमेरिकी नेताओं का मानना है कि तालिबान इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों का विरोधी है और अमेरिकी सैन्य कमांडर लोगों को निकाले जाने के दौरान लगातार संगठन के संपर्क में रहे हैं.

मानवीय संकट
अमेरिका, उसके सहयोगी देश और संयुक्त राष्ट्र को यह फैसला करना होगा कि तैयार हो रहे एक बड़े मानवीय संकट से कैसे निपटा जाएगा. यूएन का कहना है कि अफगानिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी, यानी लगभग 1.8 करोड़ लोगों को मदद की दरकार है. देश के आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और मुल्क चार साल में दूसरे गंभीर सूखे की चपेट में है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि उसके पास एक हफ्ते का ही राशन बचा है क्योंकि काबुल एयरपोर्ट के जरिए सप्लाई बंद हो गई है. कोरोना वायरस के मामले बढ़ने की भी आशंका जताई जा रही है.

तालिबान ने भरोसा दिलाया है कि यूएन अपने मानवीय अभियान जारी रख सकता है लेकिन संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि उसे सभी नागरिकों तक पहुंचने की आजादी हो और महिला अधिकारों पर कोई आंच ना आए.

वीके/एए (रॉयटर्स)

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