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तालिबान की नई सरकार पाकिस्तान की जीत और भारत के लिए झटका क्यों?
08-Sep-2021 1:30 PM
तालिबान की नई सरकार पाकिस्तान की जीत और भारत के लिए झटका क्यों?

 

तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में जिस अंतरिम सरकार की घोषणा की है, उसे लेकर कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की छाप प्रमुखता से दिख रही है.

कट्टरपंथी और रहबरी-शूरा काउंसिल के प्रमुख मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद अफ़ग़ानिस्तान के नए प्रधानमंत्री होंगे.

ये वही मुल्ला अखुंद हैं जिन्होंने 2001 में बामियान में बुद्ध की मूर्तियाँ तुड़वाई थीं. मुल्ला हसन से पहले कयास लगाया जा रहा था कि क़तर स्थित दोहा में तालिबान के राजनीतिक दफ़्तर के प्रमुख अब्दुल ग़नी बरादर को अफ़ग़ानिस्तान की कमान मिल सकती है.

इससे पहले तालिबान के नेतृत्व में सरकार बनाने पर सहमति नहीं बन पा रही थी. तभी पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख जनरल फ़ैज़ हामिद काबुल पहुँचे थे और उनके पहुँचने के तीन दिन बाद तालिबान ने नई सरकार के शीर्ष नेतृत्व की घोषणा कर दी.

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की घोषणा पर भारत के जाने-माने सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने ट्वीट कर कहा है, ''संयुक्त राष्ट्र ने जिसे आतंकवादियों की सूची में शामिल किया है, जिसने बुद्ध की मूर्ति तुड़वाई, वो अफ़ग़ानिस्तान का प्रधानमंत्री होगा. जिस सिराजुद्दीन हक़्क़ानी को गृह मंत्री बनाया गया है, वो कुख्यात हक़्क़ानी नेटवर्क का है और हम कह रहे हैं कि तालिबान अब पहले वाला नहीं है.''

भारत के लिए झटका क्यों?
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि तालिबान की नई सरकार में पाकिस्तान की सेना का असर साफ़ दिख रहा है. इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, ''अफ़ग़ानिस्तान की नई सरकार में आतंकवादी संगठन हक़्क़ानी नेटवर्क और कंधार केंद्रित तालिबान समूह का नई कैबिनेट में दबदबा है जबकि दोहा स्थित जिस तालिबान ग्रुप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्ता शुरू की थी और नई दिल्ली से भी संपर्क साधा था, उसे किनारे कर दिया गया है. तालिबान की नई कैबिनेट में 33 में से 20 कंधार केंद्रित तालिबान समूह और हक़्क़ानी नेटवर्क के लोग हैं.''

भारत के लिए सबसे चिंता की बात है सिराजुद्दीन हक़्क़ानी का अफ़ग़ानिस्तान का नया गृह मंत्री बनना. पाकिस्तान अख़बार 'इंटरनेशनल द न्यूज़' के पत्रकार ज़ियाउर रहमान ने तालिबान की नई सरकार पर ट्वीट कर कहा है, ''तालिबान की अंतरिम सरकार में कम से कम छह ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने पाकिस्तान के जामिया हक़्क़ानिया सेमीनरी (अकोरा खट्टक) से पढ़ाई की है.''

सिराजुद्दीन हक़्क़ानी को आईएसआई का पंसदीदा बताया जा रहा है. सिराजुद्दीन, हक़्क़ानी नेटवर्क के प्रमुख हैं और काबुल में 2008 में भारतीय दूतावास पर हमले के लिए इन्हें ही ज़िम्मेदार माना जाता है. 2009 से 10 के बीच हक़्क़ानी नेटवर्क ने भारतीयों और भारत के हितों को निशाने पर लिया था. हक़्क़ानी का अफ़ग़ानिस्तान की सरकार में आना भारत के लिए बुरी ख़बर के तौर पर देखा जा रहा है.

पाकिस्तान की जीत क्यों?
गृह मंत्री के तौर पर हक़्क़ानी के पास न केवल अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी होगी बल्कि वही 34 प्रांतों में गवर्नरों की नियुक्तियां भी करेंगे. कहा जा रहा है कि इसका मतलब ये हुआ कि प्रांतों के गर्वनरों की नियुक्तियों में भी आईएसआई की भूमिका होगी. ऐसे में भारत के लिए यह रणनीतिक झटके के तौर पर देखा जा रहा है.

सिराजुद्दीन हक़्क़ानी का नाम वैश्विक आतंकवादियों की सूची में है. अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने सिराजुद्दीन के लिए 50 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा था. जनवरी 2008 में काबुल में एक होटल में हमले के मामले में भी हक़्क़ानी वॉन्टेड थे.

इस हमले में छह लोगों की मौत हुई थी और इसमें एक अमेरिकी नागरिक भी शामिल था. एफ़बीआई ने ये भी कहा था कि हक़्क़ानी कथित रूप से 2008 में अफ़ग़ानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करज़ई की हत्या की साज़िश में शामिल थे.

मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद अफ़ग़ानिस्तान के नए प्रधानमंत्री हैं और इनका नाम संयुक्त राष्ट्र के आतंकवादियों की सूची में है. ये कंधार से हैं और तालिबान का भी जन्म यहीं हुआ था. मुल्ला मोहम्मद तालिबान के संस्थापकों में से एक हैं.

इन्होंने रहबरी शूरा के प्रमुख के तौर पर 20 सालों तक काम किया है और इन्हें तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला हिब्तुल्लाह अखुंदज़ादा का क़रीबी माना जाता है. 1996 से 2001 के बीच तालिबान की सरकार में मुल्ला मोहम्मद हसन विदेश मंत्री थे.

मुल्ला बरादर पर भरोसा नहीं
मुल्ला हसन के बाद मुल्ला बरादर सरकार के मुखिया होंगे. इसके अलावा अब्दुल सलाम हनफ़ी, जो कि उज़्बेक हैं, उन्हें दूसरा उप-प्रधानमंत्री बनाया गया है. मुल्ला बरादर तालिबान के सह संस्थापक हैं. इन्हें फ़रवरी 2010 में कराची में पाकिस्तानी इंटेलीजेंस ने हामिद करज़ई से खुले संवाद के बाद गिरफ़्तार किया था.

इन्हें 2018 में अमेरिकी प्रशासन के कहने पर रिहा किया गया था. मुल्ला बरादर ही 2019 से दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का नेतृत्व कर रहे थे और अंतरराष्ट्रीय वार्ता भी इन्हीं के नेतृत्व में चल रही थी. मार्च 2020 में बरादर ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फ़ोन पर बात की थी. इसे डोनाल्ड ट्रंप ने भी हाल ही में स्वीकार किया है.

कहा जा रहा था कि मुल्ला बरादर के पास ही अफ़ग़ानिस्तान की नई सरकार की कमान होगी, लेकिन ये भी कहा जा रहा था कि पाकिस्तान उन पर भरोसा नहीं करता है इसलिए मुश्किल है.

तालिबान की नई सरकार में 33 कैबिनेट सदस्यों में केवल तीन ग़ैर-पश्तून हैं. ये भी कहा जा रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ईरान की तर्ज़ पर सरकार गठन करने जा रहा है. इसमें मुल्ला हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा सर्वोच्च नेता होंगे. कैबिनेट में नियुक्तियों के बाद जारी बयान में अख़ुंदज़ादा ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान इस्लामिक और शरिया क़ानून से चलेगा.

नहीं बदला तालिबान?
संडे टाइम्स की अंतरराष्ट्रीय संवादताता क्रिस्टियाना लैंब ने तालिबान की नई सरकार पर ट्वीट कर कहा है, ''तालिबान की सरकार में 33 मुल्ला हैं और चार ऐसे लोग हैं जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है. कोई महिला नहीं और न ही दूसरे राजनीतिक धड़े से कोई है. मुल्ला उमर के बेटे को रक्षा मंत्री बना दिया गया है. ये कहते हैं कि बदल गए हैं, क्या यही बदलाव है?''

रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन ने ट्वीट कर कहा है, ''यह देखना दिलचस्प होगा कि एफ़बीआई आतंकवाद के मसले पर कैसे मोस्ट वॉन्डेट सिराजुद्दीन हक़्क़ानी से सूचनाओं का आदान-प्रदान करेगी.''

सुशांत के इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने लिखा है, ''बिल्कुल सही बात है. एफ़बीआई ने जिसके लिए 50 लाख डॉलर का इनाम रखा था, उसके साथ आतंकवाद रोकने पर कैसे काम करेगी. अमेरिका और ब्रिटेन के मुँह पर यह एक और तमाचा है. ये नियुक्तियां आईएसआई ने कराई हैं. ये बात बिल्कुल बकवास थी कि तालिबान बदल गया है.'' (bbc.com)

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