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ईरान और पाकिस्तान में तालिबान को लेकर क्यों बढ़ रहा है टकराव
15-Sep-2021 1:19 PM
ईरान और पाकिस्तान में तालिबान को लेकर क्यों बढ़ रहा है टकराव

अफ़ग़ानिस्तान की कमान तालिबान के हाथ में आने के बाद से ईरान भी आशंकित है. ईरान न केवल तालिबान से आशंकित है बल्कि अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी चिंतित है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने गल्फ़ अरब के एक सीनियर अधिकारी के हवाले से कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान को लेकर अगर टकराव शुरू होता है तो चीन-पाकिस्तान एक तरफ़ होंगे और भारत, रूस, ईरान एक तरफ़. ईरान के विदेश मंत्री की भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से भी अफ़ग़ानिस्तान को लेकर बात हुई है.

तेहरान टाइम्स के अनुसार 12 सितंबर को ईरान के एक सांसद ने कहा था कि पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई प्रमुख फ़ैज़ हामिद पंजशीर घाटी में तालिबान की हिंसक कार्रवाई में शामिल थे.

ईरानी सांसद ने ये भी कहा था कि तालिबान की कैबिनेट के गठन में भी आईएसआई प्रमुख की भूमिका थी. उन्होंने कहा था कि ईरान पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी भूमिका सुनिश्चित करने की अनुमति नहीं देगा.

ऐसी टिप्पणी केवल ईरान की तरफ़ से ही नहीं बल्कि तालिबान की ओर से भी आ रही है. मंगलवार को तालिबान के प्रवक्ता सैयद ज़र्कुराल्लाह हाशमी ने टोलो न्यूज़ टीवी पर एक बहस के दौरान ईरान पर निशाना साधते हुए कहा था, ''पिछले 40 सालों में ईरान में कोई सुन्नी मंत्री नहीं बना. हमने ये कभी नहीं कहा कि शिया को कोई पद नहीं देंगे. हमारी कैबिनेट में कोई शिया मंत्री नहीं है, इसका मतलब ये नहीं है कि शियाओं को कोई पद नहीं मिलेगा.''

हाशमी की इस टिप्पणी का वीडियो क्लिप साउथ एशिया मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने ट्वीट किया है.

पाकिस्तान का विरोध
भारत के जाने-माने सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका पर अमेरिकी चुप्पी को लेकर सवाल खड़ा किया और ईरान से सहानुभूति जताई है. ब्रह्मा चेलानी ने ट्वीट कर कहा है, ''अमेरिका के लिए ईरान वैसा देश है जो राज्य प्रायोजित आतंकवाद को बढ़ावा देता है लेकिन सऊदी अरब दुनिया भर में जिहादियों को सबसे ज़्यादा फ़ंड मुहैया कराता है और पाकिस्तान आतंकवादियों की शरणस्थली है, वे उनके पार्टनर हैं. यह दिलचस्प है कि पंजशीर में तालिबान की बर्बरता पर ईरान बोल रहा है और अमेरिका ख़ामोश है.''

भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने तालिबान को लेकर ईरान के रुख़ को पाकिस्तान के लिए निराशाजनक कहा है. अपने एक वीडियो ब्लॉग में अब्दुल बासित ने कहा है, ''ईरान ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया है कि पंजशीर प्रांत पर कब्ज़े में पाकिस्तानी एयर फ़ोर्स शामिल था. ईरान की सरकार ने तेहरान में पाकिस्तानी दूतावास के बाहर विरोध-प्रदर्शन की भी अनुमति दी. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि पाकिस्तान तालिबान का समर्थन कर रहा है.''

ईरान क्यों कर रहा ऐसा?
अब्दुल बासित ने ईरान से निराशा जताते हुए कहा है, ''ईरान को इस मामले में कुछ भी बहुत सतर्कता से बोलना चाहिए. पाकिस्तान ईरान से संबंधों को लेकर काफ़ी संवेदनशील रहा है. हमें 18 अप्रैल, 2015 की तारीख़ याद है. पाकिस्तानी संसद ने यमन संघर्ष में सऊदी और ईरान के बीच किसी का भी पक्ष नहीं लेने का प्रस्ताव पास किया था. ईरान को याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान ने सऊदी अरब और उसके बीच हमेशा संतुलन बनाकर रखने की कोशिश की है. हमने दोनों देशों के बीच सेतु बनाने की कोशिश की है. लेकिन 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान पाकिस्तान के मामले में उदार नहीं रहा है.''

अब्दुल बासित ने ईरान पर आरोप लगाते हुए कहा, ''ईरान न केवल पाकिस्तान में सामुदायिक फ़साद को बढ़ावा देता रहा है बल्कि इस मामले में पश्चिम एशिया और मध्य-पूर्व में भी उसने ऐसा ही किया. कश्मीर के मामले में भी ईरान का रुख़ भारत के पक्ष में ही रहा है. हालांकि ईरान के सर्वोच्च नेता ने कश्मीरियों के पक्ष में एक बयान जारी किया था. लेकिन तेहरान इन इक्के-दुक्के बयान से आगे नहीं गया.''

बासित ने कहा, ''हमारी सरकार को इस मामले पर तेहरान से बात करनी चाहिए. अगर ईरान को पाकिस्तान से कोई दिक़्क़त है तो उसे हमारी सरकार से निजी तौर पर बात करनी चाहिए. पाकिस्तान ईरान से अच्छा रिश्ता चाहता है, लेकिन यह एकतरफ़ा नहीं हो सकता. पाकिस्तान अपने दम पर ऐसा नहीं कर सकता. तालिबान के आने से ईरान की चिंता बढ़नी लाजिमी है. लेकिन चिंता की बात है कि ईरान भारत के साथ ज़्यादा सहज दिखता है.''

बासित ने कहा, ''चाबाहार पर ईरान भारत के साथ है. हम ईरान को मुस्लिम देश के तौर पर देखते हैं. हम सुन्नी बहुल देश हैं, लेकिन हम पाकिस्तानी राष्ट्रीय हित को लेकर एकजुट हैं. ईरान को भविष्य में इसे लेकर सतर्क रहना चाहिए.''

पाकिस्तान का बढ़ता विरोध
अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका को न केवल ईरान संदिग्ध नज़र से देख रहा है बल्कि काबुल में भी लोग पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए सड़कों पर उतरे थे. इन प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ तालिबान ने हवाई फ़ायरिंग की थी.

अफ़ग़ानिस्तान की आबादी में हज़ारा समुदाय का हिस्सा 10 से 20 फ़ीसदी माना जाता है. इनकी आबादी पारंपरिक रूप से मध्य अफ़ग़ानिस्तान के हज़ारात इलाक़े में है. अफ़ग़ानिस्तान कुल आबादी 3.8 करोड़ में हज़ारा अहम अल्पसंख्यक हैं.

पाकिस्तान में भी हज़ारा समुदाय के लोग हैं और पश्चिम के देशों में भी हज़ारा प्रवासी हैं. हज़ारा भी मुसलमान ही हैं और ज़्यादातर शिया हैं. दुनिया भर में सुन्नी मुसलमानों की आबादी सबसे ज़्यादा है. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान हज़ारा समुदाय को निशाने पर लेता रहा है.

तालिबान हज़ारा समुदाय के ख़िलाफ़ न केवल अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय रहा है बल्कि पाकिस्तान में भी रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में हज़ारा हमेशा से भेदभाव के शिकार होते रहे हैं और तालिबान के एक बार फिर से सत्ता में आने पर ईरान की चिंता शिया मुसलमानों और सुन्नी कट्टरपंथ को लेकर बढ़ गई है.

तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में जिस अंतरिम सरकार की घोषणा की है, उसमें कोई भी शिया नहीं है. तालिबान की इस सरकार की इसलिए भी आलोचना हो रही है.

पाकिस्तान पर शक़
इसी महीने छह सितंबर को अपनी साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद ख़ातिबज़ादेह ने तालिबान के सत्ता में आने पर चेतावनी दी थी. पंजशीर घाटी में तालिबान विरोधी नेताओं की मौत को सईद ख़ातिबज़ादेह ने शहादत कहा था. ईरानी विदेश मंत्रालय का यह बयान उसी दिन आया था जब तालिबान ने पंजशीर को भी अपने कब्ज़े में लेने की घोषणा की थी.

अफ़ग़ान और ईरानी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर पंजशीर में कथित तौर पर पाकिस्तान को तालिबान का साथ देने के मामले में आड़े हाथों लेते रहे. ये भी कहा गया कि तालिबान विरोधी मसूद के नेतृत्व वाले बल के प्रवक्ता फ़हीम दाश्ती पाकिस्तानी ड्रोन हमले में मारे गए थे.

पंजशीर में पाकिस्तान के शामिल होने पर पूछे गए सवाल के जवाब में सईद ख़ातिबज़ादेह ने कहा था, ''पंजशीर से जो ख़बरें आ रही हैं, काफ़ी चिंताजनक हैं. पिछली रात का हमला काफ़ी निंदनीय था. अफ़ग़ान नेताओं की शहादत ख़ेदजनक है. ईरान पंजशीर में विदेशी हस्तक्षेप की रिपोर्ट की समीक्षा कर रहा है. अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास बताता है कि वहाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विदेशी हस्तक्षेप से कुछ हासिल नहीं होता है. अफ़ग़ानिस्तान के लोग किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेंगे.''

तेहरान टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि तालिबान को लेकर ईरान का बदल रुख़ बताता है कि वो अफ़ग़ानिस्तान में ऐसी सत्ता नहीं चाहता है, जो पड़ोसी देशों की चिंताओं को पारदर्शी तरीक़े से हल करने को तैयार नहीं है.

तेहरान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''तालिबान के शासन में अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को लेकर बाक़ी देशों की तरह ईरान भी चिंतित है. पहली चिंता यही है कि कुछ देश तालिबान को ईरान के ख़िलाफ़ काम करवाने की कोशिश कर सकते हैं. यूएई, बहरीन, सऊदी अरब और तुर्की पहले से ही तालिबान के संपर्क में हैं. काबुल में एयपोर्ट को लेकर यूएई और कुछ देश पहले से ही काम कर रहे हैं.''

ईरान के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद अहमदीनेजाद ने भी तालिबान को आड़े हाथों लिया है. अहमदीनेजाद ने हाल ही में कहा था, ''एक समूह, जिसे पड़ोसियों ने बनाया और ट्रेनिंग दी. उसने एक देश पर कब्ज़ा कर लिया और ख़ुद को सरकार कहना शुरू कर दिया. दुनिया मूकदर्शक बनी रही या समर्थन करती रही लेकिन एक अराजकता जैसी स्थिति दुनिया के सामने पैदा हुई है.''

वॉशिगंटन स्थिति थिंक टैंक इंटरनेशनल सिक्यॉरिटी प्रोग्राम के सीनियर फ़ेलो मुहम्मद अतहर जावेद ने तुर्की के सरकारी प्रसारक टीआरटी से कहा है, ''हमें अभी इंतज़ार करना चाहिए. अगर ईरान सीधे तौर तालिबान के ख़िलाफ़ जाता है तो इससे उसे ही समस्या होगी क्योंकि पश्चिम चाहता है कि अफ़ग़ानिस्तान में ईरान विरोधी सरकार हो ताकि उस पर दबाव बढ़ाया जा सके.'' (bbc.com)

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