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दुबई इतने कम सालों में चकाचौंध और गगनचुंबी इमारतों का शहर कैसे बन गया
11-Dec-2021 9:19 AM
दुबई इतने कम सालों में चकाचौंध और गगनचुंबी इमारतों का शहर कैसे बन गया

-आरिफ़ शमीम

इस साल जब अगस्त के पहले हफ़्ते में, अमेरिकी राज्य जॉर्जिया के एक छोटे से शहर की रहने वाली निकोल स्मिथ लुडविक ने दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज ख़लीफा की चोटी पर जा कर कहा, कि "हाय मॉम, आई एम एट टॉप ऑफ़ दि वर्ल्ड' (हाय माँ मैं दुनिया की चोटी पर हूँ) तो वह सिर्फ़ बुर्ज ख़लीफा की ऊंचाई के बारे में बात नहीं कर रही थी, यह ऊंचाई दुबई की भी थी जो बहुत ही कम समय में विकास करता हुआ 'बुर्ज ख़लीफा' बन गया है और इसमें और मंज़िलें बढ़ती जा रही हैं.

स्काइडाइवर और एक्स्ट्रीम स्पोर्ट्स की खिलाड़ी निकोल स्मिथ ब्रिटेन की तरफ़ से संयुक्त अरब अमीरात को यात्रा प्रतिबंध की रेड लिस्ट से बाहर निकाले जाने पर राष्ट्रीय एयरलाइन एमिरेट्स के लिए एक विज्ञापन में काम कर रही थीं.

समुद्र में समाने की तैयारी कर रहा एक ख़ूबसूरत देश
लेकिन इससे पहले किसी और देश ने इतने कम सालों में इतना ज़्यादा विकास भी नहीं किया है. जहां 30 साल पहले तक सिर्फ़ धूल उड़ती नज़र आती थी, वहां अब दुनिया की सबसे अच्छी सड़कें और अत्याधुनिक मेट्रो दौड़ती नज़र आती है. जहां कभी दूर-दूर कोई एक, दो मंज़िला मकान दिखाई देता था, वहां अब शानदार गगनचुंबी इमारतें खड़ी हैं और दुनिया भर के पर्यटक और कारोबारी लोग, जिनकी प्राथमिकता लंदन, पेरिस और न्यूयॉर्क होते थे, अब दुबई का रुख़ करते हैं.

संयुक्त अरब अमीरात और दुबई
संयुक्त अरब अमीरात वास्तव में सात राज्यों दुबई, अबू धाबी, शारजाह, उम्मुल क्वैन, रास-अल-ख़ैमा, अजमान और अल फ़ुजैरा का एक संघ है जिसकी राजधानी अबू धाबी है. हालांकि, जब भी संयुक्त अरब अमीरात की बात होती है तो सबसे पहले दिमाग़ में दुबई का ही नाम आता है. इसलिए संयुक्त अरब अमीरात की बात असल में दुबई की बात है. हालांकि अबू धाबी, शारजाह, रास-अल-ख़ैमा और दूसरे राज्यों का भी एक अपना स्थान है, लेकिन दुबई बस दुबई है.

इन राज्यों को 1 दिसंबर, 1971 को ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिली थी और अगले ही दिन, यानी 2 दिसंबर को छह राज्यों ने एक संघीय गठबंधन बना लिया था. सातवां राज्य, रास-अल-ख़ैमा, 10 फ़रवरी, 1972 को गठबंधन में उस समय शामिल हुआ जब ईरानी नौसेना ने होर्मुज जल मार्ग के कुछ जगहों पर अपना दावा करते हुए कब्ज़ा कर लिया. रास-अल-ख़ैमा और शारजाह भी इन क्षेत्रों पर अपना दावा करते थे. इस तरह इन दोनों राज्यों के गठबंधन में शामिल होने के साथ-साथ, ईरान के साथ क्षेत्रीय विवाद भी उसके हिस्से में आया जो आज भी जारी है.

इन राज्यों के नेताओं ने 1820 से 1890 तक ब्रिटेन के साथ विभिन्न संधियों पर हस्ताक्षर किए थे, ताकि ब्रिटेन उन्हें सुरक्षित व्यापार करने की सुविधाएं मुहैया करता रहे. उस समय उपमहाद्वीप पर अंग्रेज़ों का शासन था, इसलिए इन राज्यों की मुद्रा भी भारतीय रुपया ही थी और अमीरात के लोग इसी मुद्रा के ज़रिए लेन-देन करते थे. 1959 में, इसका नाम बदलकर खाड़ी रुपया कर दिया गया, शुरू में इसकी क़ीमत भारतीय रुपये के बराबर ही थी. बाद में, स्वतंत्रता के बाद, इन राज्यों ने अपनी मुद्रा की शुरुआत की.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में डॉयरेक्टर ऑफ़ गल्फ़ स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर एके पाशा के अनुसार, लगभग सौ साल पहले क्षेत्र के व्यापारी चाहे वो भारत के हों, फ़ारस या इराक़ के हों, सब धीरे-धीरे यहां आकर जमा हुए और ये व्यापार का गढ़ बन गया.

'जब ब्रिटेन ने यहां तेल की खोज की तो अबू धाबी के शासक शेख़ ज़ायद-बिन-सुल्तान-अल-नाहयान और दुबई के शासक शेख़ राशिद-बिन-सईद-अल-मकतूम और संयुक्त अरब अमीरात के अन्य नेताओं को कमाई होने लगी. शेख़ ज़ायद बाद में संयुक्त अरब अमीरात के पहले राष्ट्रपति और शेख़ राशिद पहले उपराष्ट्रपति बने.'

संयुक्त अरब अमीरात और मोती उद्योग
प्रोफ़ेसर पाशा का कहना है कि दुबई के लोग मोतियों का व्यापार करते थे और उन्हें बेचने के लिए आसपास के इलाक़ों में जाते थे. "इसी तरह, अन्य व्यापारी भी यहां आकर अपना माल बेचते थे. यह क्षेत्र एक व्यापारिक नेटवर्क बन गया था और कुवैत या बसरा के व्यापारी, भारत के गुजरात, केरल या ज़ंज़ीबार जाते हुए दुबई में ज़रूर रुकते थे.

मोती के व्यापार से अमीराती लोगों को बहुत फ़ायदा हुआ, लेकिन जब जापानियों ने कृत्रिम मोती बनाने का तरीक़ा खोजा, तो अमीराती मोतियों की मांग धीरे-धीरे कम होने लगी और उद्योग कम होते-होते लगभग ख़त्म हो गया.

तेल की खोज के बाद बहुत से अमीराती लोगों ने मोतियों का कारोबार छोड़ दिया और तेल के सेक्टर में व्यापार करना शुरू कर दिया, और जब 1971 में उन्हें ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिली तो तेल का उत्पादन अचानक बढ़ गया जिससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी सहारा मिला और दुबई व्यापार का केंद्र बन गया.

देखा जाए तो पाकिस्तानी फ़िल्म लेखक रियाज़ बटालवी को इस बात का क्रेडिट दिया जाना चाहिए कि उन्हें साल 1979 में अंदाज़ा हो गया था कि आने वाले समय में दुबई दुनिया की एक ऐसी जगह बनाने वाला है जिसकी ओर दुनिया खिंची चली आएगी. दुबई की आज़ादी के आठ साल बाद ही उन्होंने सुपरहिट फ़िल्म 'दुबई चलो' बनाई जिसे आज भी पाकिस्तान की सबसे सफल फ़िल्मों में से एक माना जाता है.

फ़िल्म की कहानी जो भी हो, 'दुबई चलो' ने पाकिस्तान और भारत के लोगों को ऐसा रास्ता दिखाया कि आज भी संयुक्त अरब अमीरात में सबसे ज़्यादा भारतीय और पाकिस्तानी ही रहते हैं.

साल 2021 में किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात की नब्बे लाख 99 हज़ार की कुल आबादी में से लगभग 28 लाख भारतीय और लगभग 13 लाख पाकिस्तानी हैं, जो कुल आबादी का लगभग 40 प्रतिशत है.

जिस देश में 1979-80 तक धूल उड़ती थी, जहां केवल एक या दो मंज़िला घर होते थे, जिन्हें स्थानीय तौर पर ग्राउंड प्लस वन और ग्राउंड प्लस टू अपार्टमेंट कहा जाता था, अब वहां दुनिया के लगभग 200 देशों के लोग रहते हैं. आख़िर इसका कारण क्या है?

दुबई में किसी से भी पूछें तो यही जवाब मिलता है कि यह दुबई और अबू धाबी के शासकों की दूरदर्शिता का नतीजा है. उन्होंने आज़ादी के तुरंत बाद ही ये तय कर लिया था कि देश को कहां ले जाना है.

दुबई में विज़न शेख़ राशिद का था जिसे शेख़ मोहम्मद ने पूरा किया और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है. अगर शेख़ ज़ायद ने संयुक्त अरब अमीरात के राज्यों को एकजुट करने और उन्हें तेल संपदा के माध्यम से समृद्ध बनाने में भूमिका निभाई, तो दूसरी ओर शेख़ राशिद ने तेल से आगे के भविष्य के बारे में सोचा. उनकी इस सोच को उनके वंशजों ने और आगे बढ़ाया और दुबई को एक तेल निर्भर राज्य से दुनिया का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना दिया.

शैलेश दास भारत के कलकत्ता शहर के रहने वाले एक फ़ाइनेंसर और व्यवसायी हैं जो अब दुबई में रहते हैं. उनका फ़ील्ड शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं है. उनका कहना है कि संयुक्त अरब अमीरात के बारे में सबसे मज़बूत चीज़ इसके नेताओं का विज़न है. "अन्य देशों में भी बड़े नेता होते हैं, वे सोचते हैं, लेकिन यहां सोचने के साथ-साथ काम भी किया जाता है."

उनका मानना है कि दुबई की नई पीढ़ी को जिस तरह से तैयार किया जा रहा है, वह अगले 50 वर्षों में देश को और ऊंचाइयों पर ले जाएगी.

वे कहते हैं, "ऐसा कोई संकेत नहीं है जिससे ये पता चले कि यह संभव नहीं है. "यहां लोग सुरक्षित हैं, व्यवसाय सुरक्षित हैं और यहां की सिक्योरिटी की गिनती दुनिया की सबसे अच्छी सिक्योरिटी में होती है."

वे इसकी तुलना अमेरिका से करते हैं. अमेरिका ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टैलेंट को बुलाया और उन्हें अपने देश में बसाया. संयुक्त अरब अमीरात का भी यही हाल है. वे अच्छे लोगों को बुलाते हैं और उनसे काम करवाते हैं जो देश के विकास के लिए बहुत ज़रूरी है.

डॉक्टर पाशा भी दास की इस बात से सहमत हैं. उनका कहना है कि दुबई के विकास के पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ शेख़ राशिद-अल-मकतूम का विज़न है, "क्योंकि दुबई के पास तेल बहुत कम है और उन्होंने सोचा कि अगर वे व्यापार में आमूल-चूल परिवर्तन लाएंगे, दूसरे देशों के व्यापारियों को सुविधाएं देंगे, तो वे निश्चित रूप से अपने फ़ायदे के लिए यहां ज़रूर आएंगे. दूसरी बात यह है कि वे हर नई चीज़ का अनुभव करना चाहते थे और देखना चाहते थे कि इससे उन्हें कितना फ़ायदा होगा."

दुबई और कोविड संकट
दुनिया को हिला देने वाली वैश्विक महामारी कोविड-19 से निपटने का ही उदाहरण ले लें कि दुबई इससे कैसे निपटा. जब इस महामारी के कारण पूरी दुनिया एक-दूसरे के लिए अपने दरवाज़े बंद कर रही थी, दुबई उन देशों में से एक था जिसने पहला मौक़ा मिलते ही मेहमानों का स्वागत किया. जब दुनिया कोई भी बड़ा आयोजन करने से कतरा रही है, तो दुबई में एक्सपो 2020 पूरे ज़ोरों पर चल रहा था.

दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह दुबई भी इस वैश्विक महामारी से प्रभावित हुआ. देश में संक्रमण को रोकने के लिए यहां भी लॉकडाउन लगाना पड़ा, मॉल सुनसान हो गए और कुछ समय के लिए दुनिया के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक पर जहाज़ों की गर्जना की जगह सिर्फ़ हवा की सांय-सांय सुनाई दी. यहां तक कि अमीरात एयरलाइंस ने उड़ान बंद होने के कारण अपने बहुत से कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया.

साल 2020 में दुबई की अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत कम हो गई, लेकिन इसने वापस छलांग लगाई और अब सभी क्षेत्रों में सुधार हो रहा है. इस समय, संयुक्त अरब अमीरात की लगभग 90 प्रतिशत आबादी कोरोना वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन लगवा चुकी है और दुबई, जहां देश की लगभग 50 प्रतिशत आबादी रहती है, इसमें सबसे आगे है.

दुबई में हिल्शा ग्रुप के अध्यक्ष लाल भाटिया का कहना है कि दुबई के विकास का अंदाज़ा इमरजेन्सी आधार पर कोविड संकट से निपटने से ही लगाया जा सकता है.

लाल भाटिया भारत के कोलकाता शहर के रहने वाले हैं और वो पिछले साल ही दुबई शिफ़्ट हुए हैं. कोविड के दौरान जब संयुक्त अरब अमीरात पहली बार खुला तो उन्होंने पहली फ़्लाइट पकड़ी और यहां पहुंच गए. वह पहले भी कई बार दुबई जा चुके हैं, लेकिन इस बार उनके वहां जाने की वजह कुछ और थी.

वे कहते हैं कि, "मैं यहां आता-जाता रहता था, लेकिन अब मैंने यहां अपना स्थायी घर बना लिया है और इसका सबसे बड़ा कारण दुबई का कोविड संकट से निपटना है."

"जिस तरह से इन्होंने कोविड संकट से डील किया है, वह प्रभावशाली है. बाकी दुनिया की तरह इन्होंने इसे एक वित्तीय या आर्थिक संकट की तरह नहीं बल्कि स्वास्थ्य संकट की तरह डील किया है. इन्होंने ऐसे तरीक़े अपनाये कि पहले इससे स्वास्थ्य संकट की तरह डील किया जाये."

भाटिया का कहना है कि ''जब दुनिया के सभी वित्तीय केंद्र बंद या संकट में थे, तब दुबई ही एकमात्र ऐसी जगह था जो व्यापार के लिए खुला हुआ था. संयुक्त अरब अमीरात ने 50 साल में जो किया है, उसने मेरे जैसे लोगों को यहां खींचा है. ऐसा लगता है जैसे दुबई कोविड से निपटने के लिए तैयार था. यह उस नेतृत्व और विज़न का कमाल है कि मेरे जैसे लोग यहां आते हैं और कहते हैं कि मैं इसे अपना नया घर बना रहा हूं. यहां नेताओं ने सिर्फ़ वही नहीं किया जो उन्होंने सोचा था बल्कि वह किया जिसकी लोगों को ज़रूरत थी.''

भाटिया का कहना है कि दुबई की लीडरशिप ने पहले इस संकट को बहुत ही प्रोफ़ेशनल तरीक़े से समझा और फिर उससे डील किया. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि दुबई व्यापार के लिए खुला रहे, बल्कि उन्होंने दो क़दम आगे जाकर एक ऐसे वीज़ा सिस्टम की शुरुआत की जिससे दुनिया भर के लोग दुबई आ कर यहां से अपने घरों में बैठे अपने-अपने ऑफ़िस और कारोबार के लिए काम कर सकते थे.

भाटिया को हिल्शा ग्रुप के लिए यहीं एक व्यावसायिक अवसर भी मिला. दुबई पहुंचते ही उन्होंने वर्क फ़्रॉम दुबई प्रोग्राम पर काम करना शुरू कर दिया. "यहां हम ऑफ़र करते हैं कि दुबई एक ऐसी जगह है जहां से लोग वर्क फ़्रॉम होम कर सकते हैं. लोग यहां आयें, रहें, घर से काम करें. सरकार ने ऐसा किया है कि अगर आप महीने में 5 हज़ार डॉलर से ज़्यादा कमाते हैं तो आपको एक साल का वीज़ा मिल सकता है और आप दुबई से काम कर सकते हैं. सरकार ने सोचा कि कोविड के कारण, ज़्यादातर लोग घर से काम कर रहे होंगे, तो क्यों न उन्हें ख़ूबसूरत धूप वाले दुबई की पेशकश की जाए, जहां हाई स्पीड इंटरनेट और डेटा और सिस्टम की पूरी सिक्योरिटी हो.''

विजिट दुबई की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इस वीज़ा की कुल लागत 611 अमेरिकी डॉलर है जिसमें आवेदन शुल्क, वीज़ा प्रोसेसिंग की लागत, मेडिकल और संयुक्त अरब अमीरात आईडी शुल्क शामिल है.

भाटिया का कहना है कि ''दुबई ने कोविड से निपटने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का बेहतरीन इस्तेमाल किया है. कोविड के दौरान दुबई में जारी की गई ऐप के मुताबिक़, आपको बाहर जा कर घर का सामान लेने के लिए भी इजाज़त लेनी होती थी और अधिकारियों को बताना पड़ता था. कुछ दोस्त एक विला में बैठे थे और उन्होंने कहा कि चलो हम अलग-अलग दिशाओं में जा कर सामान ख़रीद कर लाते हैं. कुछ देर बाद ही उन्हें पुलिस का फ़ोन आया कि तुम लोग एक ही जगह से हो, फिर अलग-अलग दिशाओं में जाकर सामान क्यों ख़रीद रहे हो. यह है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जो कोविड के दौरान काम आई.''

दुबई में मास्क न पहनने पर 3,000 दिरहम का ज़ुर्माना
दुबई के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अख़बार ख़लीज टाइम्स के बिज़नेस एडिटर मुज़फ़्फ़र रिज़वी का भी मानना है कि दुबई का भविष्य बहुत उज्ज्वल है क्योंकि यह महामारी पर क़ाबू पाने की सफल रणनीति के बाद दुनिया में बेहतर जीवनशैली के लिए एक सुरक्षित स्थान के रूप में उभरा है.

दुबई में जारी ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ कोविड-19 के बाद पिछले साल की तुलना में दुबई की आबादी में 0.05 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. मुज़फ़्फ़र रिज़वी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि "कनाडा, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के बहुत से लोग महामारी के बाद दुबई शिफ़्ट हो गए हैं क्योंकि लॉकडाउन, सीमित आवाजाही और कोविड वैक्सीनेशन के लंबे इंतज़ार की वजह से वो अपने ही देश में असुरक्षित महसूस कर रहे थे. हमने यह भी देखा कि जब भारत में कोविड-19 वायरस के बड़े पैमाने पर फैलने से स्वास्थ्य ढांचा बुरी तरह प्रभावित हुआ, तो बड़ी संख्या में भारतीयों ने भी दुबई का रुख़ किया."

दुबई में सार्वजनिक स्थानों पर फ़ेस मास्क न पहनने पर 3 हज़ार दिरहम का ज़ुर्माना है.

लाल भाटिया का कहना है कि दुबई में स्थानीय लोगों से अधिक अप्रवासी रहते हैं और सभी नियमों को मान रहे हैं, वैक्सीन लगवा चुके हैं. "यह सब कुछ रातोंरात नहीं हुआ. यह पिछले 50 वर्षों से जो चल रहा है उसका हिस्सा है."

रिज़वान अहमद एक पाकिस्तानी व्यवसायी हैं जो लगभग 40 वर्षों से दुबई आ-जा रहे हैं. वह भी इस बात से सहमत हैं कि दुबई के क़ानून पिछले दो वर्षों में जिन्हें कोविड इयर्स कहा जाता है विदेशी आप्रवासियों के लिए काफ़ी नरम हो गए हैं और सरकार की रणनीति भी इस प्रक्रिया का हिस्सा है.

कच्चे घरों के बाद गगनचुंबी इमारतों का दौर
मशहूर है कि कुछ साल पहले एक ऐसा समय भी आया था जब पूरी दुनिया की सबसे ज़्यादा क्रेनें दुबई में मौजूद थीं. यह दौर दुबई के 'तेज़ गति' से होने वाले कंस्ट्रक्शन का दौर था. उस दौरान दुबई को अबू धाबी से जोड़ने वाले मुख्य शेख़ ज़ायद राजमार्ग को आधुनिक स्तर पर बनाया गया था, दुबई मरीना, बुर्ज ख़लीफा, जुमेरा लेक टावर्स, जुमेराह हाइट्स, पाम जुमेराह जैसी प्रमुख परियोजनाओं को शुरू किया गया था और दुबई एयरपोर्ट की एक साधारण-सी इमारत को दुनिया का सबसे व्यस्त एयरपोर्ट बनाया गया.

यहां ये दिलचस्प बात भी बताना ज़रूरी है कि पाम जुमेरा जो एक कृत्रिम द्वीप है, उसके निर्माण के लिए किसी कंक्रीट या लोहे का उपयोग नहीं किया गया था, बल्कि समुद्र तल से 120 मिलियन क्यूबिक मीटर रेत निकाल कर उससे द्वीप का निर्माण किया गया है.

प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि कुल मिलाकर देखा जाये तो पिछले 20 या 30 वर्षों में किसी देश को इस तरह से बदल देना एक ज़बरदस्त उपलब्धि है. "दुबई एक वित्तीय केंद्र बन गया है, एक रीजनल पावर हॉउस बन गया है, बंदरगाहों को आधुनिक स्तर पर बनाया गया और बुर्ज ख़लीफा जैसी 828 मीटर ऊंची गगनचुंबी इमारतों का निर्माण किया गया है.

तेल में भी ये दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बन गया है, पर्यटन स्थल भी है, मेडिकल हब भी बन गया है, अच्छे-अच्छे अस्पताल हैं. इसके अलावा, मिस्र, इराक़ और सीरिया जैसे अरब देशों के कमज़ोर होने से इस क्षेत्र में संयुक्त अरब अमीरात का राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ा है.

मुज़फ़्फ़र रिज़वी कहते हैं कि दुबई ने पिछले 18 वर्षों में एक बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया है जो इसे अपने प्रतिद्वंद्वियों और पड़ोसी राज्यों से आगे रखता है. इसने 2005 और 2006 में बुर्ज ख़लीफा, दुबई मॉल और दुबई मेट्रो जैसे मेगा डिवेलपमेंट्स की घोषणा की और 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बावजूद इन मेगा प्रोजेक्ट्स को समय पर पूरा किया. "दुबई मेट्रो एक बड़ी सफलता है.

कुछ साल पहले तक, यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि लोग निजी एसयूवी, लग्ज़री कारों और जीपों पर मेट्रो को प्राथमिकता देंगे क्योंकि दुबई में पेट्रोल पानी से सस्ता था. आज लोग समय बचाने और ट्रैफ़िक जाम से बचने के लिए दुबई मेट्रो का इस्तेमाल करते हैं.

कोविड और ऑनलाइन प्रॉपर्टी पोर्टल्स
जब साल 2007 और 2009 के बीच वैश्विक आर्थिक संकट आया, तो बाकी दुनिया की तरह संयुक्त अरब अमीरात भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ और इसकी आधुनिक विकास योजनाएं रुक गईं. लेकिन फिर दुबई जल्द ही अपने पैरों पर खड़ा हो गया और 2012 के बाद प्रॉपर्टी मार्केट में सुधार होने लगा.

यह वह समय था जब एक ईरानी नागरिक अता श्वाबरी ने दुबई में ऑनलाइन प्रॉपर्टी पोर्टल 'ज़ूम प्रॉपर्टी' लॉन्च किया, जो अब तेज़ी से फल-फूल रहा है. उनका कहना है कि भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के निवेशक तो हमेशा से दुबई की प्रॉपर्टी में निवेश करते थे, लेकिन इस बार नए खिलाड़ी मैदान में आ गए हैं जिनमें इसरायली निवेशक भी शामिल हैं.

ज़ूम प्रॉपर्टी के मार्केटिंग डायरेक्टर फ़ैसल क़ुरैशी का कहना है कि ''शुरू में कोविड-19 की वजह से प्रॉपर्टी मार्केट में गिरावट आई थी, लेकिन क्योंकि हम एक ऑनलाइन पोर्टल हैं, इसलिए हम ज़्यादा प्रभावित नहीं हुए. ऑनलाइन पोर्टल के प्रति जागरूकता भी कोविड के दौरान ही बढ़ी है. प्रॉपर्टी पोर्टल लॉन्च करने का मक़सद भी यही था कि विदेशी निवेशकों के लिए आसानी हो और वो मार्केट का पोटेंशियल देख कर निवेश करें.''

कोविड-19 संकट के दौरान, जब दुनिया भर में ज़्यादातर लोग घर से काम कर रहे थे, तो दुबई की कंपनियों ने ऑनलाइन विशेषज्ञों की मदद से रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा कराना शुरू कर दिया. इससे सभी ऑनलाइन पोर्टल्स को फ़ायदा हुआ और निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी.

फ़ैसल का कहना है कि इसके अलावा एक्सपो 2020 की वजह से भी ऑनलाइन प्रॉपर्टी में निवेश में उछाल आया है. "संयुक्त अरब अमीरात की नीतियां बहुत ज़बरदस्त हैं, यात्रा, दस्तावेज़, प्रक्रियाएं, सब कुछ. कोविड के बाद हमारे पोर्टल पर विदेशी आते हैं. वे साइटों और परियोजनाओं को 3D नक़्शों पर देखते हैं, ठीक वैसे ही जैसे आप ख़ुद जाकर साइट देखते हैं."

"अब जब यहां एक्सपो की वजह से टूरिस्ट और बिज़नेसमैन आये हैं तो हमारे रेंटल मार्केट में भी ज़बरदस्त उछाल आया है. जब किराया बढ़ा तो निवेशकों की दिलचस्पी भी बढ़ी और इसी तरह डेवलपर्स ने अपना प्रोडक्शन भी बढ़ा दिया है."

फ़ैसल क़ुरैशी का कहना है, "कोविड से पहले प्रॉपर्टी की क़ीमत 800 से 900 दिरहम प्रति वर्ग फ़ीट थी जो अब 900 से 1100 दिरहम के क़रीब हो गई है. पिछले क्वार्टर में विला की मांग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ी है. इसकी एक वजह तो ये है कि लोगों ने यात्रा ज़्यादा की है और दूसरा यह है कि सुरक्षा के कारण लोग अपार्टमेंट के बजाय विला में रहना पसंद कर रहे हैं और सरकार ने ऐसी नीतियां बना दी हैं कि लोग अपने परिवार के साथ आते हैं और विला में रहते हैं."

संयुक्त अरब अमीरात और एमिरेट्स एयरलाइंस
संयुक्त अरब अमीरात को दुनिया से जोड़ने में इसकी राष्ट्रीय एयरलाइन एमिरेट्स ने भी अहम भूमिका निभाई है. पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की स्थिति को देखते हुए, शायद बहुत से लोगों को विश्वास न हो कि एमिरेट्स एयरलाइन की स्थापना में पीआईए की बड़ी भूमिका है. कराची, पाकिस्तान का वो पहला शहर था, जहां एमेरिट्स की पहली उड़ान, ईके600, उतरी थी और पाकिस्तानी पायलटों और इंजीनियरों ने ही एमेरिट्स की तकनीकी मदद की थी.

रिज़वान अहमद 1979 से पाकिस्तान से दुबई की यात्रा कर रहे हैं. उनका कहना है कि एमिरेट्स की भी देश के विकास में अहम भूमिका है. "1985 में जब इसकी शुरुआत हुई तो जीवन बहुत आसान हो गया. यूरोप के लिए इसकी इतनी सर्विस है कि ज़्यादातर लोग इसका ही इस्तेमाल करते हैं. जब दिल चाहा चले गए और जब दिल चाहा आ गए."

एमिरेट्स दुनिया की बड़ी एयरलाइन है जिसकी उड़ानें मध्य पूर्व, अफ्रीक़ा, एशिया, दक्षिण प्रशांत, यूरोप, उत्तरी और दक्षिण अमेरिका के 50 शहरों में जाती हैं.

एमिरेट्स की वेबसाइट के अनुसार, कोविड-19 संकट के बावजूद, 2020 में इस एयरलाइन के ज़रिये एक करोड़ 58 लाख लोगों ने यात्रा की.

दुबई का हाइब्रिड सिस्टम
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि "मूल रूप से, संयुक्त अरब अमीरात का समाज हमेशा से ही एक रूढ़िवादी समाज रहा है. उनकी परंपराएं आज भी क़बायली हैं. लेकिन ये पर्यटकों की सुविधा के लिए बहुत-सी आधुनिक चीज़ें भी बर्दाश्त कर लेते हैं क्योंकि दुबई में ज़्यादा तेल नहीं है, यह पर्यटकों पर निर्भर करता है. वे यहां जिस भी लिबास में चाहें आ सकते हैं और होटलों के अंदर शराब भी पी सकते हैं."

हालांकि, हाल ही में, दुबई ने एक ऐसा क़दम उठाया है जो हर तरह से इस समाज के लिहाज़ से एक बहुत ही क्रांतिकारी क़दम है. दुबई में क़ानून के अनुसार, विदेशी पुरुष और महिलाएं भी शादी किये बिना एक दूसरे के साथ नहीं रह सकते थे और न ही बच्चा पैदा कर सकते थे. बल्कि, क़ानून तो यहां तक कहता है कि वे सार्वजनिक जगहों पर एक-दूसरे का हाथ भी नहीं पकड़ सकते. लेकिन हाल ही में एक क़ानून पारित किया गया जिसके तहत विदेशी अब 'एक साथ रह सकते हैं' और अब अगर कोई महिला बिना शादी किए गर्भवती हो जाती है, तो उसे देश छोड़ कर भागना या अवैध गर्भपात नहीं करवाना पड़ेगा.

दुबई में रहने वाले विदेशियों के अनुसार, यह क़दम इसलिए उठाया गया क्योंकि बहुत से यूरोपीय, पार्टनर को साथ न रखने की वजह से देश में नहीं रहना चाहते थे और कोविड संकट के बाद सरकार इसे अफ़ोर्ड नहीं कर सकती थी. अब यूरोपीय देशों के लोगों को अस्पताल में सिर्फ़ अपना कार्ड दिखाना पड़ेगा कि हम बच्चे के माता-पिता हैं लेकिन अभी हमारी शादी नहीं हुई है.

नाम न छापने की शर्त पर एक निवासी ने कहा कि यह एक "बहुत बड़ा क़दम' है. वे हर तरह की रुकावट को दूर कर रहे हैं, चाहे उसकी जो भी क़ीमत हो, इस्लामी या ग़ैर-इस्लामिक. वो चाह रहे हैं कि लोग यहां आकर रहें."

दुबई की शहज़ादियां और मानवाधिकार
साल 2018 में दुबई के शासक शेख़ मोहम्मद-बिन-राशिद-अल-मकतूम की बेटी शहज़ादी लतीफ़ा-अल-मकतूम के कथित अपहरण और फिर जबरन हिरासत में रखने और इसके बाद साल 2019 में शेख़ मोहम्मद और उनकी पत्नी शहज़ादी हया के बीच तलाक़ के बाद, फ़ोन हैकिंग और मानवाधिकारों के हनन के मुक़दमे से दुबई के शासक की साख तो ख़राब हुई ही, साथ ही इस पर भी बात होने लगी कि ऐसे देश में आम नागरिकों और आप्रवासियों का क्या हाल होगा. शहज़ादी लतीफ़ा की कहानी की गूँज तो संयुक्त राष्ट्र तक पहुंची.

मानवाधिकार संगठन आरोप लगाते हैं कि बहुत से आप्रवासियों को जबरन अगवा, मुल्क बदर या अन्यायपूर्ण तरीक़े से हिरासत में रखा जाता है, निष्पक्ष सुनवाई के बिना सज़ा दी जाती है और प्रताड़ित किया जाता है.

अरब स्प्रिंग के दौरान भी, बहुत से लोगों को केवल इसलिए जबरन गिरफ़्तार किया गया और सज़ा दी गई क्योंकि वे क़ानून में सुधार की मांग कर रहे थे.

संयुक्त अरब अमीरात का विदेशी मज़दूर वर्ग भी इस तरह की कई कहानियां सुनता है, लेकिन वे मानवाधिकारों के इन उल्लंघन के बारे में बात करने से भी डरते हैं, और इसी डर को दूर करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात को सबसे ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है.

प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, "इस मुद्दे को लेकर मैंने कई बार आला अधिकारियों से बात की है. वो कहते हैं कि हम एक कल्याणकारी राज्य हैं और हम पैदा होने से लेकर क़ब्र तक हर नागरिक को सभी सुविधा मुहैया कराते हैं. हम जो कुछ भी करते हैं वो यहां रहने वालों के फ़ायदे के लिए करते हैं. यहां अमेरिका की तरह आज़ादी, लोकतंत्र और चुनाव नहीं चल सकते क्योंकि यहां मजलिस का सिस्टम है. हम अपने नागरिकों के साथ सीधे संपर्क में रहते हैं."

तो दुबई चुम्बक की तरह लोगों को आकर्षित करता है, लेकिन यह कह पाना मुश्किल है कि क्या इसके आकर्षण की वजह यहां की आसान टैक्स नीतियां, ड्यूटी फ्री ज़ोन्स, बिज़नेस फ्रेंडली वातावरण, कोविड के ख़िलाफ़ सफल रणनीतियां, सुंदर रेतीले बीच या इसकी मिनिस्ट्री फ़ॉर हैप्पीनेस ऐंड वेल बीइंग है.

हां यक़ीन कीजिए यहां ख़ुश रखने का भी एक मंत्रालय था जिसे कोविड संकट के दौरान मिनिस्ट्री ऑफ़ कम्युनिटी डिवेलपमेंट के तहत कर दिया गया है. (bbc.com)

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