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चीन को रोकना अब अमेरिका के लिए भी मुश्किल क्यों? जानिए
12-Dec-2021 9:37 AM
चीन को रोकना अब अमेरिका के लिए भी मुश्किल क्यों? जानिए

-फ़ैसल इस्लाम

एक तरफ़, दुनिया 9/11 हमलों की प्रतिक्रिया में उलझी थी. दूसरी ओर, इसके ठीक तीन महीने बाद 11 दिसंबर को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) एक ऐसी घटना के केंद्र में था, जिसका असर 21वीं सदी में पूरी दुनिया पर होने वाला था.

इसके बावजूद, बहुत कम को पता है कि ऐसा कुछ हुआ था. तारीख़ पता होने की बात तो दूर की है.

डब्ल्यूटीओ में चीन के शामिल हो जाने से अमेरिका, यूरोप और एशिया के अधिकतर देशों के खेल को ही बदल दिया. यही नहीं, तेल और मेटल जैसे बहुमूल्य संसाधनों वाले हर देश के लिए चीज़ें बदल गईं.

इस घटना का आर्थिक और भूराजनैतिक महत्व तो बहुत ज़्यादा था, लेकिन आम लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया. दुनिया ने जो वैश्विक वित्तीय मंदी देखी, उसकी जड़ में भी इसी से हुआ असंतुलन था. उत्पादन से जुड़ी नौकरियों को चीन भेजने को लेकर जी-7 देशों में पैदा हुए घरेलू असंतोष से राजनीतिक चोट भी हुई.

नाकाम हुईं अमेरिकी उम्मीदें
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जैसे नेताओं ने वादा किया था कि 'लोकतंत्र के सबसे ठोस मूल्यों में से एक आर्थिक आज़ादी' को चीन भेजने से दुनिया का ये सबसे अधिक आबादी वाला देश राजनीतिक आज़ादी के रास्ते पर भी चलेगा.

क्लिंटन ने कहा था, "जब लोगों के पास सिर्फ़ सपने देखने की ही नहीं बल्कि सपनों को पूरा करने की भी आज़ादी होगी, तब वो चाहेंगे कि उनकी बात भी सुनी जाए."

लेकिन ये नीति नाकाम रही. चीन ने अपनी मौजूदा स्थिति की तरफ़ तेज़ी से बढ़ना शुरू कर दिया. चीन इस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना तय है.

चीन को डबल्यूटीओ में शामिल करने के फ़ैसले में भूमिका निभाने वाली अमेरिकी का ट्रेड प्रतिनिधि चार्लीन बारशेफ्स्की ने हाल ही में वॉशिंगटन इंटरनेशनल ट्रेड एसोसिएशन के पैनल में कहा था कि चीन के आर्थिक मॉडल ने कुछ हद तक इस पश्चिमी विचार को धता बताया है कि 'आप राजनीतिक नियंत्रण में एक अभिनव समाज नहीं बना सकते.'

उन्होंने कहा, "कहने का मतलब ये नहीं है कि चीन की नवाचार क्षमता उसके आर्थिक मॉडल से मज़बूत हुई है. कहने का मतलब ये है कि पश्चिमी देशों ने जिस सिस्टम को असंगत माना था वो दरअसल, असंगत सिस्टम नहीं था."

साल 2000 से पहले चीन की पहचान प्लास्टिक के अलग-अलग सामान और सस्ते सामान के प्रमुख उत्पादनकर्ता की थी. ये चीज़ें ज़रूरी तो थीं लेकिन ना ही इनसे दुनिया बदल रही थी और ना ही आप इनसे दुनिया को हरा सकते थे.

दुनिया के कारोबार की सूची में चीन के ऊपर चढ़ने से एक बड़ा वैश्विक बदलाव आया है. काम करने को इच्छुक चीन की आबादी और सुपर हाई टेक फैक्ट्रियों और चीन की सरकार और पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच ख़ास रिश्तों ने ऐसा शक्तिशाली गठजोड़ बनाया की दुनिया की शक्ल ही बदल गई.

चीन धीरे-धीरे दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों की सप्लाई चेन का हिस्सा बनता गया. चीन के पास सस्ते मज़दूरों की सेना थी जो पश्चिम के उच्च जीवनस्तर के लिए ज़रूरी हर सामान का उत्पादन कर रही थी. अर्थशास्त्री इसे सप्लाई शॉक कहते हैं और इसका असर बेशक चौंकाने वाला है. इसका असर आज भी दुनिया भर में दिखाई दे रहा है.

विश्व की अर्थव्यवस्था में चीन के शामिल होने ने कई बड़ी आर्थिक उपलब्धियां हासिल की हैं, इनमें बड़ी आबादी को ग़रीबी से निकालना है. चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने से पहले देश की पचास करोड़ आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे थे. आज की बात की जाए तो ये शून्य है क्योंकि इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था 12 गुणा बढ़ चुकी है. चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 16 गुणा बढ़कर 2.3 ट्रिलियन डॉलर पहुँच गया है.

साल 2000 में चीन उत्पादों के आयात में दुनिया में सातवें नंबर पर था लेकिन जल्द ही यह नंबर एक पर पहुंच गया. चीन में अभी आर्थिक प्रगति की दर 8 प्रतिशत सालाना है लेकिन एक समय यह 14 प्रतिशत तक पहुंच गई थी जबकि पिछले साल यह 15 प्रतिशत पर स्थिर हो गई थी.

कंटेनर जहाज़ वैश्विक व्यापार की रीढ़ होते हैं. डब्ल्यूटीओ में शामिल होने में चीन आने-जाने वाले कंटेनरों की संख्या 4 करोड़ से बढ़कर आठ करोड़ पहुंच गई थी. जबकि साल 2011 में चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने के एक दशक बाद चीन से आने जाने वाले कंटेनरों की संख्या तीन गुणा बढ़कर 12 करोड़ 90 लाख को पार कर गई थी.

पिछले साल ये संख्या 24.5 करोड़ थी. चीन पहुँचने वाले आधे कंटेनर जहाँ ख़ाली थे, वहीं चीन से निकलने वाले सभी कंटेनर सामान से भरे थे.

बुनियादी ढांचे में भी आया बदलाव
चीन का हाइवे नेटवर्क भी तेज़ी से बढ़ा है. 1997 में चीन में 4700 किलोमीटर लंबे हाईवे थे जो 2020 में बढ़कर 161000 किलोमीटर लंबे हो गए हैं. चीन के पास अब दुनिया का सबसे लंबा हाईवे नेटवर्क है. चीन में दो लाख से अधिक आबादी वाले 99 प्रतिशत शहर अब हाइवे से जुड़े हैं.

इस उन्नत इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ चीन को उत्पादन बढ़ाने के लिए मेटल, ईंधन, और खनिजों की भी ज़रूरत है. चीन की तेज़ी से बढ़ती ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रिकल एप्लायंस इंडस्ट्री के लिए स्टील ज़रूरी है. साल 2005 में चीन पहली बार स्टील का निर्यातक बना और अब चीन दुनिया का सबसे बड़ा स्टील निर्यातक है.

1990 के दशक में चीन सालान दस करोड़ टन स्टील का उत्पादन करता था. डब्ल्यूटीओ का सदस्य बनने के बाद चीन साल 2012 में 70 करोड़ टन स्टील उत्पादन तक पहुंच गया था और साल 2020 में चीन ने सौ करोड़ टन का आँकड़ा पार कर लिया.

चीन इस समय दुनियाभर में स्टील उत्पादन का 57 फ़ीसदी उत्पादन करता है और जितनी स्टील पूरी दुनिया साल 2001 में उत्पादित करती थी उतनी अब अकेले चीन कर रहा है. सेरेमिक टाइल और उद्योग में काम आने वाले कई अन्य उत्पादों के मामले में भी चीन ने ऐसा ही किया है.

इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ों, खिलौनों और फर्नीचर के मामले में भी चीन दुनिया में सप्लाई का सबसे प्रमुख स्रोत है और चीन ने दुनिया भर के उत्पादकों को दाम कम करने पर मजबूर किया है.

चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने के बाद अर्थशास्त्रियों ने उत्पादनों की क़ीमतों में हैरान करने वाली गिरावट दर्ज की थी.

साल 2000 से 2005 के बीच चीन का कपड़ों का निर्यात दोगुना हो गया और इस दौरान वैश्विक कारोबार में चीन का हिस्सा पाँचवें से होकर तीसरा हो गया.

साल 2005 के बाद कपड़ा क्षेत्र में उत्पादन कोटा हटा दिया गया और चीन की हिस्सेदारी और भी ज़्यादा बढ़ गई. हालांकि चीन में उत्पादन महंगा होने से बांग्लादेश और वियतनाम जैसे विकासशील देशों में उत्पादन बढ़ने लगा और चीन की हिस्सेदारी पिछले साल 32 फ़ीसदी पर पहुंच गई.

'चीन को शामिल करना उनकी भूल नहीं थी'
चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने के ज़िम्मेदार रहे मंत्री लोगं योंग्टू ने बीते दो दशकों पर रोशनी डालते हुए स्वीकार किया कि, "मैं ये नहीं मानता कि चीन को डब्ल्यूटीओ में शामिल करना एक ऐतिहासिक भूल थी (अमेरिका और पश्चिमी देशों की), हालांकि मैं ये मानता हूँ की इसके फ़ायदे ऊंचे-नीचे हैं. पूरी तस्वीर ये है कि जब चीन का अपना विकास हो रहा था तब दुनिया को भी एक बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट मिल रहा था."

लोंग योंग्टू ने कहा, "जब दौलत का बँटवारा बराबर नहीं होता है तब सरकारों को घरेलू नीतियों के ज़रिए उस बंटवारे को सही करना चाहिए. लेकिन ऐसा करना आसान नहीं है."

उन्होंने कहा, "हो सकता है कि दूसरे पर आरोप लगाना आसान हो लेकिन मैं ये नहीं मानता कि दूसरों पर आरोप लगाने से समस्या का समाधान हो जाता है. चीन की अनुपस्थिति में अमेरिका का उत्पदान उद्योग मेक्सिको पहुँच जाएगा."

फिर उन्होंने चीन के एक ग्लास उत्पादक का उदाहरण दिया, जिसने अमेरिका में फ़ैक्ट्री खोलने के लिए संघर्ष किया. उन्होंन कहा, "उसके लिए वहां प्रतिद्वंदी कर्मचारी खोजना बहुत मुश्किल हो गया. उसने मुझे बताया कि अमेरिका के कामगारों का पेट तो मेरे पेट से भी बड़ा है."

अब घूमकर बात फिर वहीं आ गई है. डब्ल्यूटीओ के भीतर चीन ने अहम कामयाबी हासिल की है. अभी बाइडन प्रशासन पूर्ववर्ती प्रशासन की रुकावटों वाली नीतियों को बदलने की जल्दबाज़ी में नहीं है.

चीन को पश्चिमी की वर्कशाप के रूप में देखा गया था लेकिन चीन ने डब्ल्यूटीओ की अपनी सदस्यता का इस्तेमाल इससे कहीं अधिक हासिल करने के लिए कर लिया है.

उदाहरण के तौर पर चीन ने ऐसे गठजोड़ बनाए हैं जो उसे नेट ज़ीरो जलवायु परिवर्तन उत्पादन करने के लिए ज़रूरी रेयर अर्थ मटीरियल (ऐसे प्राकृतिक संसाधन जो आसानी से उपलब्ध नहीं है) मुहैया कराएंगे.

चीन ने दुनिया भर में अपनी इंडस्ट्री को फैलाया है और उसके पीछे चीन की सरकार खड़ी है. अमेरिका कूटनीतिक और आर्थिक रूप से चीन को रोकने की कोशिशें कर रहा है और इसके लिए वो एशिया और यूरोप में गठबंधन बना रहा है.

जैसा की अमेरिका की पूर्व कारोबार प्रतिनिधी बारशेफ्स्की कहती हैं, "चीन कुछ समय से इस बहुत अलग रास्ते पर चल रहा है. इसका मतलब क्या है? राष्ट्र केंद्रित आर्थिक मॉडल का मज़बूत होना

इसमें तय उद्योगों को भारी सब्सिडी दी जाती है. चीन एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है और इस नए दौर का नेता बन रहा है, जिसे वो चौथी ओद्योगिक क्रांति कहता है. यहाँ संभालने के लिए बहुत कुछ है. डब्ल्यूटीओ इतना नहीं संभाल सकता है."

अब 20 साल बाद एक ऐसे निर्णय ने दुनिया को बदल दिया है, जिस पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया था. चीन के लिए ये एक बड़ी कामयाबी साबित हुआ है. पश्चिमी देशों की भूराजनैतिक रणनीति फेल हो गई है.

यदि आर्थिक दृष्टिकोण से कहा जाए तो इस निर्णय से पश्चिमी देश चीन जैसे बनते जा रहे हैं. (bbc.com)

 

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