अंतरराष्ट्रीय
-सैबल गुप्ता
कोलकाता, 15 दिसंबर | जब 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के आत्मसमर्पण के बाद एक स्वतंत्र बांग्लादेश का उदय हुआ, तब एक इतिहास रचा गया, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अगले दिन एक 29 वर्षीय निहत्थे भारतीय सेना अधिकारी ने बांग्लादेश के तत्कालीन भावी प्रधानमंत्री - शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना सहित उनके परिवार को बचाया था।
वीरचक्र से सम्मानित कर्नल अशोक कुमार तारा (सेवानिवृत्त), जो उस समय 29 वर्ष के थे, को शेख मुजीब के परिवार को बचाने का काम सौंपा गया था। उन्होंने धानमंडी स्थित मुजीब के घर को पाकिस्तानी सेना के चंगुल से छुड़ाया था। शेख मुजीब स्वयं तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान की एक जेल में थे। उन्हें उस वर्ष की शुरुआत में पाकिस्तानी सेना के 'ऑपरेशन सर्चलाइट' के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था।
कर्नल तारा ने एक साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, "उन्हें (परिवार को) ढाका के धनमंडी नामक स्थान पर नजरबंद रखा गया था। मैं केवल दो सैनिकों के साथ वहां गया था और मेरे पास कोई हथियार नहीं था।"
घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा, "मैंने सोचा, अगर मैं हथियारों और अन्य सैनिकों के साथ वहां गया, तो पाकिस्तानी सेना डर सकती है और लोगों पर फायरिंग शुरू कर सकती है। इससे परिवार को नुकसान हो सकता है। 12 लोग थे। मैंने रिस्क लिया और 17 दिसंबर को सुबह 9 बजे वहां बिना हथियार के गया।"
"मैंने अपनी हिम्मत और बुद्धि से पाकिस्तानियों का सामना करने का फैसला किया। मैंने अपना हथियार अपने 2 जवानों के पास छोड़ दिया और उन्हें पीछे रहने के लिए कहा। मैं, बिना हथियार के अकेला ही उस घर की ओर बढ़ा। मैंने घर के पास पहुंचकर पूछा कि क्या अंदर कोई है भी? उन्होंने (वहां तैनात पाकिसतानी सैनिकों ने) पंजाबी में जवाब दिया और पंजाबी होने के नाते, मैं समझ गया। उन्होंने मुझे कहा- रुको, वरना गोली मार देंगे।"
उन्होंने याद किया, "मैंने उनसे कहा कि मैं एक सेना अधिकारी हूं और आपको बताने आया हूं कि पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया है। उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया और जवाब में उन्होंने मुझे अभद्र भाषा में गाली दी, लेकिन मैं चुप रहा, क्योंकि मुझे पता था कि मेरा काम क्या है, मेरा लक्ष्य क्या है। संयोग से, एक भारतीय हेलीकॉप्टर उस घर के ऊपर से उड़ा। मैंने तुरंत उन्हें हेलीकॉप्टर को देखने के लिए कहा और पूछा, क्या आपने कभी अपने ऊपर एक भारतीय हेलीकॉप्टर देखा है? वे प्रभावित हुए, लेकिन कहा कि वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों से आत्मसमर्पण के बारे में पूछेंगे।"
उन्होंने कहा, "उस समय, मैं गेट पर था, राइफल की संगीन मेरे शरीर के दाहिने हिस्से को छू रही थी। मैंने उन्हें बताया कि कोई संचार नहीं है, क्योंकि टेलीफोन लाइनें कट गई हैं। मैंने उनसे कहा कि यदि तुम लोग देरी करते हो, तो मुक्ति वाहिनी आएगी और भारतीय सेना आएगी और तुम्हें मार डालेगी। तुम्हारा परिवार, जो पाकिस्तान में इंतजार कर रहा है, तुमसे नहीं मिल पाएगा और तुम्हारे शरीर का क्या होगा, कल्पना नहीं कर सकते।"
"यह बात 25 मिनट तक चलती रही। उन्होंने घर पर गोलियां भी चलाईं। मैं हिल गया और उनसे कहा कि इससे मुझ पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि इससे तुम लोगों को मुझसे ज्यादा नुकसान होगा। तुम सब 12 लोग हो, सभी मारे जाओगे और कभी अपने घर नहीं पहुंचोगे। अगर आत्मसमर्पण करते हो, तो मैं एक भारतीय सेना अधिकारी के रूप में वादा करता हूं कि तुम सबको मुख्यालय ले जाऊंगा, ताकि आप पाकिस्तान में अपने घर पहुंच सकें। किसी तरह, वे सहमत हुए और आत्मसमर्पण कर दिया।"
"फिर मैंने घर का दरवाजा खोला, और जो पहली महिला बाहर आई, वह शेख मुजीबुर रहमान की पत्नी थीं। उन्होंने मुझे गले लगाया और कहा 'तुम मेरे बेटे हो और भगवान ने तुम्हें हमें बचाने के लिए भेजा है।' उनके पीछे शेख हसीना अपने 3 साल के बेटे रसूल और अपनी बहन के साथ खड़ी थीं।"
कर्नल अशोक कुमार तारा को अक्टूबर, 2012 में शेख हसीना ने पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए बांग्लादेश आमंत्रित किया था। यह पुरस्कार 'मुक्ति युद्ध के मित्र' का सम्मान था।(आईएएनएस)