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सेकंड हैंड चीज तोहफे में देना बुरा तो नहीं लगेगा!
18-Dec-2021 2:44 PM
सेकंड हैंड चीज तोहफे में देना बुरा तो नहीं लगेगा!

अच्छी खबर! आपको क्रिसमस तोहफे में वही किताब है, जिसका आपको बेसब्री से इंतजार था. लेकिन क्या आप तब भी खुश होंगे, जब इसे पुराने सामानों की दुकान से खरीदा गया हो.

   डॉयचे वैले पर जीनेटे स्विएंक की रिपोर्ट-

क्रिसमस के त्यौहार पर एक अच्छी खबर! क्रिसमस पेड़ के नीचे बतौर तोहफा एक किताब आपका इंतजार कर रही है. लेकिन आपकी खुशी फीकी तो नहीं पड़ेगी ना अगर आपको पता चले कि वो तोहफा कबाड़ी बाजार से है?

कोलोन में दिसम्बर की दुपहरी, आसमान में बदली छाई है और पानी भी बरस रहा है. आम सड़कों के उलट शहर के फ्रीजनप्लात्स पर ऑक्सफैम के किफायती स्टोर की खिड़कियों के पास खूब चहल-पहल है. हर बुधवार की दोपहर इन खिड़कियों में रखे सामान की अदला-बदली होती है या उन्हें फिर से सजाकर रखा जाता है. इस सप्ताह का डिसप्ले क्रिसमस के नाम है इसलिए सुनहरे मनकों जैसी सजावटी चीजों, कटोरों, शैम्पेन की बोतल और मिलते-जुलते कांच से खिड़कियां सज चुकी हैं.

वॉलन्टियर यहां जो कुछ भी बेचते हैं वो दान में आया हुआ है. और कमोबेश हर चीज सेकंड हैंड यानी पुरानी और इस्तेमाल की हुई है. सारा मुनाफा ऑक्सफैम को जाता है, जो उसके मुताबिक विकास लक्ष्यों को पूरा करने में खर्च होता है.

10 साल से फ्रीजनप्लात्स स्टोर में काम कर रहीं स्टेफी म्युलर कहती हैं, "क्रिसमस के दौरान सजावटी सामान के अलावा सबसे ज्यादा बिकने वाली चीजों में किताबें और छोटी छोटी प्यारी सी चीजें जैसे कप या खिलौने भी  होते हैं.” स्टेफी के पास क्रिसमस के सीजन के लिए कपड़ों के अलावा दूसरे कई सामान की मांग बढ़ती ही जा रही है.

उनकी बात की तस्दीक करते हैं, पश्चिमी और दक्षिणी जर्मनी की ऑक्सफैम दुकानों के क्षेत्रीय प्रबंधक माथियास शॉल. वो कहते हैं, "कई वर्षों से हम लोग देखते आ रहे हैं कि देश भर में फैली, सेकंड हैंड सामान की हमारी 55 दुकानों में साल का अंत आते आते चीजों की मांग बढ़ जाती है. क्रिसमस आते आते, सालाना औसत की अंदाजन 10 प्रतिशत ऊपर की सेल हो जाती है.

क्या इसका मतलब ये है कि ज्यादा लोग आज पुराने, इस्तेमाल किए हुए- यानी टिकाऊ- उपहारों से खुश हैं?

सेकंड हैंड चीजों की सामाजिक स्वीकार्यता
कम से कम ये तो दिखता ही है कि सेकंड हैंड, मुख्यधारा में आ रहा है. आचार संबंधी उपभोग पर जर्मनी की ई-कॉमर्स कंपनी ऑटो ग्रुप के 2020 के अध्ययन में 73 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि वे सेकंड हैंड फैशन सामग्री या पुराना फर्नीचर खरीदने या बेचने के इच्छुक रहे हैं.

इस स्टडी के अगुआ और रुझानों के बारे में शोध करने वाले पीटर विप्परमान के मुताबिक उपभोक्ता के व्यवहार या खरीदारी के पैटर्न में ये बदलाव अपेक्षाकृत युवा पीढ़ियों में ज्यादा देखा जा रहा है जो अपनी जरूरत भर की और काम के लायक चीज के इस्तेमाल को ही तवज्जो देते हैं. नयी चीजें खरीदने में और उसके लिए ज्यादा खर्च करने में उनकी दिलचस्पी कम रहती है.

विप्परमान के मुताबिक ये रुझान सिर्फ फैशन और पहनावे तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि रोजमर्रा के उपभोक्ता सामान और आवागमन को लेकर भी यही ट्रेंड है. वो कहते हैं, "नये का मतलब अब ब्रैंड-न्यू यानी बिल्कुल नये से नहीं रह गया है. आज ये ज्यादा जरूरी है कि जरूरत पड़ने पर आप गाड़ी चला लें, उसके लिए आपके पास अपनी कार होना जरूरी नहीं रह गया है.”

सेकंड हैंड यानी पुराने सामान की दुनिया अपनी बेरौनक सी कबाड़ी बाजार वाली छवि से भी निकल रही है. विशाल इंटरनेट प्लेटफॉर्मों पर, जहां लोग इस्तेमाल किया सामान खरीदते और बेचते हैं, वहां अब "सेकंड हैंड” के बजाय "प्रीलव्ड” यानी "पहले से पसंदीदा” जैसे शब्दावली अपनी जगह बना रही है.

ऐसा ही सेकंड हैंड फैशन का एक इंटरनेट प्लेटफॉर्म है- विंटेड, जो पहले क्लाइडरक्राइजल के नाम से जाना जाता था. ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और द नीदरलैंड्स में हाल के विंटेड सर्वे में 56 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वे क्रिसमस के लिए मिलेजुले सेकंडहैंड और नये तोहफे ले या दे सकते हैं. 14 फीसदी लोगों को कहना था कि इस साल उनका इरादा विशेष रूप से सेकंड हैंड तोहफे ही खरीदने का है.

फैशन गतिविधियों पर शोध करने वाले कोलोन स्थित एक जर्मन फैशन संस्थान में ट्रेंड विश्लेषक कार्ल टिल्लएस्सन के मुताबिक, ऐसे पीयर-टू-पीयर यानी सहभागी प्लेटफॉर्म, जहां यूजर एक दूसरे से सीधे खरीद और बेच सकते हैं, वे सेकंड हैंड बाजार के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन बन कर उभरे हैं.

वो कहते हैं, "सेकंड हैंड बाजार के सामने एक गंभीर चुनौती है, और वे ये कि हर पुरानी चीज का एक मुमकिन खरीदार भी होना चाहिए. लेकिन इंटरनेट ये संभव करता है और बहुत ही कम लागत में और साफ-सुथरे ढंग से, किसी फालतू तामझाम, परिवहन या भंडारण के बिना.”

‘पहले से पसंदीदा' सामान कितना टिकाऊ?
टिल्लएस्सन कहते हैं कि सेकंडहैंड प्लेटफॉर्मों पर बहुत से खरीदारों और विक्रेताओं के जेहन में पहले-पहल सस्टेनेबिलिटी यानी टिकाऊपन की बात नहीं रहती है. बोस्टन स्थित एक कंसल्टिंग ग्रुप ने छह देशों के 7,000 लोगों पर किए अपने सर्वे में पाया कि सिर्फ 36 फीसदी लोग ही खरीदारी के वक्त टिकाऊ वाले तर्क से जा रहे थे. उनकी ज्यादा तवज्जो अच्छी कीमत, प्रोडक्ट की बड़ी रेंज और मौजूदा रूझानों पर ही थी.

टिल्लएस्सन कहते हैं कि जनरेशन जेड कहलाने वाली, 20वीं सदी के आखिरी दशक और 21वीं सदी के पहले दशक के बीच पैदा हुई पीढ़ी के लिए सेकंडहैंड कपड़े एक तरह के फास्ट फैशन की तरह देखे जाते हैं. जो भी चीज वे और नहीं इस्तेमाल करना चाहते उसे फौरन बेच देते हैं. ये नये फास्ट फैशन की उस दुनिया से अलग रवैया है- जहां सस्ते नये कपड़े खरीदे जाते हैं, थोड़े से समय के लिए पहने जाते हैं और फिर फेंक दिए जाते हैं.

बर्लिन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी में आर्थिक शिक्षा और टिकाऊ उपभोग की विभागीय प्रमुख, वायोला मस्टर के मुताबिक सैद्धांतिक रूप से, लोगों का सेकंड हैंड सामान खरीदना, सस्टेनिबिलिटी के लिए एक सकारात्मक कदम है.

वो कहती हैं, "और उत्पाद खरीदने के साथ ही साथ ये नहीं चल सकता. ये एक विशुद्ध प्रतिक्षेपी प्रभाव है यानी वापस टकरा जाने वाली स्थिति हैः मैंने पैसा बचाया, क्योंकि मैंने एक सेकंड हैंड सामान सस्ते में खरीदा. इसलिए अब अपनी बचत को दूसरी किसी और चीज को खरीदने में खर्च करने लायक हूं- ऐसे रवैये से कुछ हासिल नहीं होता है.”

सेकंड हैंड उपहार किसे पसंद आते हैं?
लेकिन क्या ये सही होगा कि, नये सामान के साथ ही एक पुराना स्कार्फ भी तोहफे में शामिल करने के बजाय सिर्फ उसी स्कार्फ को गिफ्ट कर दिया जाए जो किसी का पहले से पसंदीदा रहा है? टिल्लएस्सन कहते हैं कि ये वाकई निर्भर करता है उपहार पाने वाले की उम्र पर. नयी और युवा पीढ़ी के लोग सेकंड हैंड उपहार पसंद करते हैं, पुरानी पीढ़ी को ये पसंद नहीं कि कोई उन्हें पुरानी चीज बतौर उपहार दे जाए.

वो कहते हैं कि "इसका संबंध अद्वितीयता के विचार से है. कि वो चीज सिर्फ मेरे लिए ही बनी थी और इसके पहले इस्तेमाल पर मेरा ही हक है - ये विचार मेरे ख्याल से पुरानी पीढ़ियों के जेहन में गहरे धंसा रहता है.” ऐसी धारणा की तस्दीक करते हैं ट्रेंड रिसर्चर विप्परमान. वो कहते हैं, "उपभोग और स्वामित्व, सामाजिक प्रभाव या उपस्थिति का एक शक्तिशाली संकेत होते हैं, जबकि इस्तेमाल किया हुआ सामान सामाजिक कमजोरी का निशान माना जाता है.”

किसी को कुछ देने का मनोविज्ञान

मस्टर कहती हैं कि जब लोग कोई उपहार देते हैं, तो वे अपने बारे में भी एक बयान दे रहे होते हैं. वे कंजूस नहीं दिखना चाहते हैं. उनके मुताबिक, "ये बात विशेषकर तब लागू होती है जब कि उपहार देने वाले और लेने वाले करीबी नहीं है. ऐसे रिश्तों में इसीलिए हम अक्सर विशुद्ध नये उपहारों की ओर उन्मुख होते हैं.”

इस समस्या से निजात पाने का एक टिकाऊ तरीका ये हो सकता है कि लोगों को किसी सेकंडहैंड दुकान या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का गिफ्ट कार्ड भेंट कर दिया जाए.

आइखश्टैट-इन्गोलश्टाड्ट की कैथलिक यूनिवर्सिटी में व्यापार प्रबंधन के मानद् प्रोफेसर बर्न्ड स्ट्राउस, उपहार देने और कूटनीति, संचार और अलिखित नियमों के बीच जुड़ाव को भलीभांति समझते हैं. देने के मनोविज्ञान पर केंद्रित उनकी एक किताब भी हाल में प्रकाशित हुई है.  

उन्होंने डीडबल्यू को बताया, "वे उपहार बड़े ही बुरे लगते हैं जो दया दिखाने या कृपा करने की तरह देखे जाते हैं, जिनमें उपहार देने वाले ये संदेश दे रहे होते हैं कि लेने वाले में बदलाव लाने की उनकी आकांक्षा है.”  वह कहते हैं, "सेकंड-हैंड उपहार देते हुए आपको इस बात का विशेष रूप से ख्याल रखने की जरूरत है.”

लेकिन आमतौर पर, प्रयोगसिद्ध अध्ययनों से पता चलता है कि उपहार में सबसे महत्त्वपूर्ण बात है उसका  प्रतीकात्मक मूल्य. इससे फर्क नहीं पड़ता कि वो विशुद्ध रूप से नया है या कुछ पुराना.

स्ट्राउस कहते हैं, "इसका मतलब ये है कि उपहार में कितनी समानुभूति या सौहार्द मिला हुआ है, उसके लिए कितने जतन किए गए हैं या उस तोहफे में किसी किस्म का त्याग भी झलकता है या नहीं.”

मिसाल के लिए, किसी को पारिवारिक गहने भेंट करने में त्याग की भावना के साथ एक महान सांकेतिक मूल्य भी हो सकता है. लेकिन वो बात बिल्कुल अलग होती है जब कभी न पहने गए कफलिंक को रफादफा करने के लिए उसे किसी को गिफ्ट देकर अपना पिंड छुड़ा लिया जाए. स्ट्राउस कहते हैं, "ये निर्भर करता है कि जिसे उपहार मिल रहा है, उस व्यक्ति की रुचियों और स्वाद का ध्यान रखा गया है या नहीं.” (dw.com)
 

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