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इमेज स्रोत,SONY PICTURE
-मधु पाल
एक ओर 1983 क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत की जीत पर बनी रणवीर सिंह की फ़िल्म '83' है तो दूसरी ओर साउथ के सुपरस्टार अल्लू अर्जुन की फ़िल्म 'पुष्पा'.
लेकिन इन दोनों फ़िल्मों को पीछे छोड़ बॉक्स ऑफ़िस पर सफलता के झंडे गाड़ रही है मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की फ़िल्म 'स्पाइडरमैन: नो वे होम'.
हालांकि, हॉलीवुड फ़िल्मों के प्रति भारत में क्रेज़ नया नहीं है, ख़ासतौर पर मार्वल की फ़िल्मों के लिए और 'स्पाइडर मैन: नो वे होम' ने इस बात को एक बार फिर साबित कर दिया है.
16 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने से पहले ही ये फ़िल्म चर्चा में आ गयी थी. बड़ी संख्या में लोगों ने इसके लिए एडवांस टिकट बुक करा लिए थे. नतीजा ये रहा कि पहले ही दिन फ़िल्म ने शानदार ओपनिंग की.
फ़िल्म ने पहले दिन 35 करोड़ रुपये की कमाई की. इसके साथ ही फ़िल्म ने सूर्यवंशी का रिकॉर्ड (26.5 करोड़ रुपये) तोड़ते हुए इस साल की सबसे बड़ी ओपनिंग का रिकॉर्ड भी बनाया.
फ़िल्म के खाते में एक और रिकॉर्ड भी जुड़ गया है.
'स्पाइडर मैन: नो वे होम' भारत में अब तक रिलीज़ हुई हॉलीवुड फ़िल्मों में पहले दिन की कमाई के लिहाज़ से तीसरी सबसे सफल फ़िल्म बन गयी है. पहले नंबर पर साल 2019 में आयी मार्वल की ही एवेंजर्स एंडगेम है. इस फ़िल्म ने पहले दिन 53.10 करोड़ की कमाई की थी.
फ़िल्म रिलीज़ के 12 दिन बाद भी इस फ़िल्म को लेकर लोगों में उत्साह बना हुआ है और इसी का नतीजा है कि फ़िल्म का कलेक्शन 200 करोड़ रुपये को पार कर गया है.
इस हॉलीवुड फ़िल्म की कामयाबी इसलिए और ख़ास हो जाती है क्योंकि इसकी टक्कर में बॉलीवुड और साउथ की दो बड़ी फ़िल्में हैं.
जाने माने मूवी ट्रेड एनालिस्ट गिरीश वानखेड़े स्पाइडरमैन की सफलता का श्रेय उसके डिजिटल प्रमोशन को देते हैं.
वह कहते हैं, "स्पाइडरमैन का कलेक्शन सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि एमसीयू (मार्वल सिनेमैटिक यूनीवर्स) ने अपने कैरेक्टर पर पूरी दुनिया भर में इतना ज़्यादा ख़र्च किया है. मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स फ़िल्म बनाने से लेकर उसकी मार्केटिंग पूरी दुनिया में करने के कारण ही इतनी बड़ी फ्रेंचाइज़ी बन पाई है, ये अपने-आप में पूरी एक दुनिया है."
वह आगे कहते हैं, "अगर हम अपने देश की बात करें तो हमारे देश में अब तक सबसे ज़्यादा कलेक्शन करने वाली हॉलीवुड की जो टॉप तीन फ़िल्में हैं उनमें पहले नंबर पर है 'एवेंजर्स- एंड गेम,' उसके बाद है 'अवेंजर्स - इन्फ़िनिटी वॉर' और अब तीसरे नंबर पर 'स्पाइडर मैन: नो वे होम', वो भी कोविड के दौरान जब महाराष्ट्र में 50% ही सीटें दी गई हैं."
वानखेड़े के मुताबिक़, "स्पाइडरमैन फ़िल्म के कलेक्शन का कारण सिर्फ़ एक है और वो है प्रमोशन. डिजिटल प्रमोशन की कोई सीमा नहीं है. बड़ों से लेकर बच्चों तक को पता है कि यह नई फ़िल्म कब आ रही है. उनके कैरेक्टर्स की मार्केटिंग इतनी ज़बरदस्त थी कि चीन में भी बच्चों को उनके मर्चेंडाइज़ को इस्तेमाल करते हुए उनके फ़ोटो वाली टी-शर्ट पहन कर घूमते हुए देखा गया."
हॉलीवुड फ़िल्में अब केवल शहरों तक ही सीमित नहीं हैं, गांवों तक पहुंच चुकी हैं.
गिरीश के मुताबिक़, "भारत में इस फ़िल्म को मिली लोकप्रियता की एक वजह इसे भारतीय भाषाओं- हिंदी, तमिल और तेलुगू में रिलीज़ किया जाना भी है."
वह कहते हैं, "भारत में क्षेत्रीय भाषा में फ़िल्में डब करने की शुरुआत 2016 में 'द जंगल बुक' से हुई थी. उस फ़िल्म का भारत में कलेक्शन 183 करोड़ रुपये का था और तब वह अधिक कलेक्शन करने वाली हॉलीवुड की फ़िल्म थी. उस फ़िल्म ने यह बता दिया था कि अगर हॉलीवुड की फ़िल्में भारतीय भाषाओं में डब करके रिलीज़ की जाएं तो उनका कलेक्शन भी अधिक होगा."
"शहरों में तो यह फ़िल्म अच्छी चली ही बल्कि गांवों में भी मां-बाप अपने बच्चों को यह फ़िल्म दिखा रहे थे. स्पाइडरमैन के साथ भी वही बात है. इसे हिंदी, तमिल और तेलुगू में रिलीज़ करने के पीछे यही मक़सद है कि यह फ़िल्म गांव-गांव तक पहुंचे."
सुपर हीरो फ़िल्मों की मार्केटिंग
इन सुपर हीरो फ़िल्मों की मार्केटिंग कैसे की जाती है?
इस पर गिरीश कहते हैं, "सुपर हीरो की लार्जर दैन लाइफ़ फ़िल्म बनाना, उसमें लोगों का इंटरेस्ट बरक़रार रखना और भारतीय भाषाओं में उसको बड़े पैमाने पर डिस्ट्रीब्यूट करना, उसके लिए अलग-अलग जगहों पर प्रीमियर्स करना और अपने दर्शकों से पहले रिव्यूज़ हासिल करना मतलब वह अपने प्रोडक्ट के प्रति कितने आश्वस्त हैं, यह दिखाई देता है."
"एमसीयू की सफलता का कारण ही यही है कि वह अपने कैरेक्टर को बहुत उभारते हैं, जिस तरीक़े से उसको बढ़ाते हैं, उसकी मार्केटिंग करते हैं और फिर फ़िल्म लेकर आते हैं. इस कारण उनकी मार्केटिंग स्ट्रॉन्ग होती है, उनका कांटेक्ट स्ट्रॉन्ग होता है और उसमें वह सारे हुक पॉइंट्स होते हैं जो बच्चों में जोश भर दे और उनको आकर्षित कर सके. ये बहुत सारे कारण हैं कि यह फ़िल्म हिंदी में ही नहीं बल्कि भारत की अन्य भाषाओं में भी और दुनिया भर में जहाँ भी फ़िल्में बन रही है सबको चुनौती दे रही है."
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गिरीश कहते हैं, "हॉलीवुड के काम करने का तरीक़ा बहुत अलग है. उनकी सोच हमसे बहुत आगे है. हमारे देश में यह रेग्यूलर प्रैक्टिस है कि फ़िल्म के रिलीज़ होने के 30 दिन पहले से फ़िल्म का प्रमोशन शुरू होता है. पहले फ़िल्म के फ़र्स्ट लुक को दिखाते हैं, फिर ट्रेलर दिखाते हैं, फिर गाने लॉन्च करते हैं और बहुत सारी चीज़ें होती हैं. इस विंडो को शॉर्ट करके 25 दिन का भी प्रमोशन करते हैं."
"वहीं हॉलीवुड की फ़िल्मों का प्रमोशन भी उनकी फ़िल्मों के हिसाब से ही बड़ा होता है. वो लोग फ़िल्म के कैरेक्टर्स के बारे में बात करेंगे, उनकी मर्चेंडाइज़ पर बात करेंगे और इन प्रोमोशंस की तारीख 6 महीने या सालभर पहले से अनाउंस की जाती है. अनाउंसमेंट के साथ-साथ पूरी दुनिया में उनकी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी तय की जाती है."
गिरीश कहते हैं, "वे लोग टेलीविज़न पर बहुत सारे इंटरव्यू करते हैं, साथ ही साथ सारी दुनिया में मर्चेंडाइज़ को डिस्ट्रीब्यूट करते हैं, फ़्लैश मॉक्स करते हैं और इसके अलावा गेम शोज़ जैसी कई फ़िज़िकल एक्टिविटीज़ भी करते हैं ताकि लोगों की उनमें दिलचस्पी बरकरार रहे."
गिरीश कहते हैं, "हमारे देश में फ्रेंचाइज़ी का रिकॉल तभी दिखाई देता है जब फ़िल्म रिलीज़ होने वाली हो जबकि इनके लिए ब्रांड रिकॉल हमेशा होता है, यह हमेशा ही उस थीम को लेकर चलते हैं. जैसे किसी कॉमिक्स की पूरी स्लेट दुनिया के सामने है उसी तरह हॉलीवुड की फ़िल्मों की भी स्लेट होती है, ये स्लेट को अनाउंस करते हैं और उसी वक़्त से उसकी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी भी अनाउंस करते हैं. इनकी वार्षिक स्लेट होती है जो ये अनाउंस करते हैं. आपको इंटरनेट पर एमसीयू की पूरी स्लेट मिल जाएगी."
"83 एक स्ट्रॉन्ग फ़िल्म है और पुष्पा भी. लेकिन स्पाइडरमैन का एक्साइटमेंट इससे अधिक दिखता है."
हॉलीवुड और हिंदी फ़िल्मों की तुलना करते हुए सुपरसिनेमा ट्रेड एनालिस्ट अमूल वी मोहन कहते हैं, "जैसे दिवाली पर सूर्यवंशी रिलीज़ हुई थी, उसमें भी यही था. मैं अक्षय कुमार की फ़िल्म देखने जा रहा हूँ जिसमें रणबीर सिंह का भी कैमियो (छोटा रोल) है, उसमें अजय देवगन का भी कैमियो (छोटा रोल) है, तो इसी को आप उनका पैसा वसूल कह सकते हैं."
"इन सुपर हीरो फ़िल्मों का टेंपलेट भी वही है जहां कई सुपर हीरो एक साथ आते हैं. किसी को हल्क पसंद है, किसी को आयरन-मैन, कोई कैप्टन अमेरिका का फ़ैन है तो कोई थॉर को चाहने वाला. इन सब की अलग-अलग फ़िल्में तो आती ही रहती हैं पर जब ये एक साथ एक ही फ़िल्म में होते हैं तब पब्लिक में क्रेज़ बढ़ जाता है."
"एक बहुत बड़ी और सफल मार्केटिंग स्ट्रैटेजी है जो आजकल बहुत सारे फ़िल्ममेकर अपना रहे हैं. इसी तरह से स्पाइडरमैन फ़िल्म में भी यही है, इसके स्पेशल इफेक्ट्स काफी अच्छे हैं और फ़िल्म भी काफी अच्छी है. युवा दर्शक इस तरह की फ़िल्मों से तुरंत ही जुड़ जाते हैं."
आइनॉक्स लेज़र लिमिटेड के चीफ़ प्रोग्रामिंग ऑफ़िसर राजिंदर सिंह ज्याला कहते हैं, "भारत में मार्वल की फ़िल्मों के बहुतेरे फैंस हैं. उन्हें हमेशा से मार्वल की फ़िल्मों का इंतज़ार रहा है. जब इस का पहला टीज़र आया था तभी से हमें यकीन हो चला था कि यह फ़िल्म हमें बहुत अच्छी ओपनिंग देने वाली है. "
वह कहते हैं, "हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमने फ़िल्म के पहले दिन ही 2 लाख से अधिक टिकट बुक कर लिए थे और अब दो हफ़्ते बाद भी टिकट बुक होने का सिलसिला चल ही रहा है. फ़िल्म की रिलीज़ थिएटरों में 90% स्क्रीनिंग के साथ हुई थी. सभी थिएटर्स में सिर्फ़ स्पाइडरमैन ही लगी हुई थी और जब दूसरे हफ़्ते में फ़िल्म 83 आई तो उसके लिए हमने दोनों फ़िल्मों के लिए बराबर स्क्रीनिंग की जगह दी."
सिनेमाघरों में जाकर फ़िल्म देखने वालों के लिए स्पाइडर मैन की सफलता एक ख़ुशख़बरी है.
इस पर राजिंदर कहते हैं, "दो साल के इंतज़ार के बाद जब सूर्यवंशी थिएटर में आई और उसे देखने के लिए दर्शक थिएटर आए तो हमारा विश्वास फिर से बढ़ गया कि अगर फ़िल्म अच्छी है, उसका कंटेंट अच्छा है तो दर्शक ज़रूर आएंगे. बड़े परदे पर फ़िल्म देखने का अलग ही आकर्षण है. स्पाइडरमैन की सफलता ने हमारा विश्वास दोगुना कर दिया है." (bbc.com)