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जर्मनी के इतिहास में पहली बार एक खास पद बनाकर उसे महिलाओं और पुरुषों के अलावा अन्य प्रकार की यौन वरीयता और लैंगिक पहचान वालों के लिए काम करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. ग्रीन पार्टी के सांसद स्वेन लेमन बने पहले कमिश्नर.
डॉयचे वैले पर ऋतिका पाण्डेय की रिपोर्ट-
नए साल की शुरुआत जर्मन सरकार ने एक खास पद बना कर की है. इस नए पद पर जिम्मेदारी होगी कि वह समाज में गे, लेस्बियन, बाईसेक्शुअल, ट्रांस, क्वीयर और अन्य लोगों के लिए अनुकूल माहौल बनाए. 'नेशनल एक्शन प्लान फॉर सेक्शुअल एंड जेंडर डाइवर्सिटी' के पहले प्रमुख का पद संभालते हुए ग्रीन पार्टी के नेता स्वेन लेमन ने कहा कि "हर किसी को सुरक्षा और बराबरी के अधिकार के साथ आजादी से जीने लायक होना चाहिए." जर्मनी की संघीय सरकार के इसके लिए कमिश्नर का एक नया पद बनाया है. कमिश्नर सरकार के बाकी मंत्रालयों के साथ LGBTQ समुदाय पर असर डालने वाली सभी नीतियों पर मिल कर काम करेगा.
जर्मनी की नई सरकार में ग्रीन पार्टी के अलावा सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी और कारोबार-समर्थक एफडीपी की गठबंधन सरकार है. गठबंधन के संयुक्त समझौते में ही तीनों दलों ने "जर्मनी को भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में अगुआ बनाने," पर सहमति बना ली थी. लेमन ने अपनी नियुक्ति के बाद कहा कि वह जर्मन संविधान (बेसिक लॉ) के अनुसार "ट्रांस, इंटर या नॉन बाइनरी लोगों के मूल अधिकारों का पूरी तरह से लागू" करने के लिए काम करेंगे. इसके अलावा, उन्होंने लोगों के मन से क्वीयरफोबिया निकालने के लिए रणनीति बनानेकी भी बात कही.
42 साल के नेता सन 2017 से ग्रीन पार्टी की ओर से जर्मन संसद बुंडेसटाग के सदस्य रहे हैं. सन 2018 से 2021 तक वह ग्रीन पार्टी के ही एक संसदीय समूह के प्रवक्ता थे, जिसका काम क्वीयर और सामाजिक नीतियों पर केंद्रित था. इन समूहों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई सरकारी और गैर सरकारी समूहों के साथ काम करने का अनुभव है. 2021 के संघीय चुनाव में वह कोलोन शहर की संसदीय सीट पर सीधे चुने गए थे. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के इस शहर में जर्मनी का काफी बड़ा गे समुदाय रहता है.
इनके मुद्दों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने जर्मनी में उठाए गए इस कदम का स्वागत किया है. सन 2018 में जर्मनी विश्व के उन गिने चुने देशों में शामिल हो गया था जहां तीसरे लिंग को आधिकारिक मान्यता मिली. नई सरकार के एजेंडा में आगे चलकर और भी बड़े बदलावों की बात है. जैसे कि जर्मनी में अब भी गे इंसान के रक्तदान करने पर रोक है और ट्रांस लोगों के खुद अपना जेंडर चुनने में भी कुछ कानूनी अड़चनें हैं.
सरकार चाहती हैं कि जब कोई इंसान अपना लिंग बदलने की प्रक्रिया से गुजरे तो उसका पूरा मेडिकल खर्च भी बीमा कंपनियां उठाएं. पहले के कानूनों के कारण जबरन बधिया के शिकार हुए इंटरसेक्स लोगों को मुआवजा दिलाना भी एक मुद्दा है. 2011 में हुए कानूनी सुधारों के ऐसे लोगों का बधियाकरण कर उन्हें एक लिंग की पहचान दी जाती थी. ऐसे पीड़ितों को मुआवजा देने का रास्ता यूरोप के कुछ अन्य देश जैसे स्वीडन और नीदरलैंड पहले ही दिखा चुके हैं. जर्मन सेना में ऐसे कुछ मामलों में मुआवजा भरा गया था.
एक विशेष कमिश्नर को एलजीबीटीक्यू लोगों के लिए नियुक्त कर जर्मनी ने विश्व के तमाम देशों के सामने मिसाल पेश है. हालांकि 1990 के दशक से ही ऐसा करने की मांग उठती रही है लेकिन इतने सालों बाद जाकर वह पूरी हो पाई. नई जर्मन सरकार के लक्ष्यों में केवल लैंगिक और यौन आधार पर ही नहीं बल्कि किसी भी तरह के भेदभाव की कोई जगह बाकी ना रखना शामिल है. (dw.com)