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बिटकॉइन: क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के धंधे में अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश कैसे बना कज़ाख़स्तान
04-Feb-2022 9:36 AM
बिटकॉइन: क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के धंधे में अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश कैसे बना कज़ाख़स्तान

मोल्दिर शुभायेवा कज़ाख़स्तान में क्रिप्टो माइनिंग के कारोबार में उतरने वाली नई पीढ़ी की बिज़नेसवूमन हैं

पिछले साल जब चीन ने अचानक ही क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग पर पाबंदी का एलान कर दिया था तो पड़ोसी देश कज़ाख़स्तान में ये इंडस्ट्री तेज़ी से फलने-फूलने लगी.

आज की तारीख़ में मध्य एशिया का ये देश क्रिप्टो माइनिंग के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है लेकिन बेहसाब बिजली खपत करने वाले इस इंडस्ट्री के डेटा सेंटर्स कज़ाख़स्तान में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स पर दबाव बढ़ा रहे हैं. प्रदूषण बढ़ रहा है और कार्बन उत्सर्जन भी.

मोल्दिर शुभायेवा कज़ाख़स्तान में क्रिप्टो माइनिंग के कारोबार में उतरने वाली नई पीढ़ी की बिज़नेसवूमन हैं. वो जैसे ही इंजीनियरों और दूसरे कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की भीड़ से निकलकर अपनी नई बिटकॉइन माइन की धूल भरी साइट पर पहुंचती हैं, अलग ही लगती हैं.

उनके कपड़ों से उनकी स्मार्टनेस झलकती है. 35 साल की मोल्दिर पीले रंग की लेंस वाले चश्मे से बाहर का नज़ारा देख रही हैं. सामने वेल्डिंग का काम चल रहा है और इमारत की नींव रखने के लिए ट्रक से बजरी गिराई जा रही है.

कज़ाख़स्तान के अलमाती शहर में बन रही अपनी नई बिटकॉइन माइन के निर्माण के हर पहलू पर उन्होंने बारीक़ नज़र रखी हुई है.

मर्दों के रसूख वाले इस कारोबार में मोल्दिर शुभायेवा एक बड़ा नाम है. उन्होंने कड़ी मेहनत से अपने बिज़नेस को देश की सबसे बड़ी क्रिप्टो माइनिंग कंपनियों में पहुंचाया है.

वो कहती हैं, "मैंने अपनी ज़िंदगी के बीते चार साल सिर्फ़ काम और काम में लगा दिए. कई बार तो मैं दफ़्तर में ही सो जाती थी."

बिटकॉइन के कारोबार में मोल्दिर की दिलचस्पी की शुरुआत कोई पांच बरस पहले हुई. उन्होंने अपने भाई के साथ घर में बिटकॉइन माइनिंग का काम शुरू किया फिर बात बड़े आकार के माइंस तक पहुंची और उन्होंने इसे अपने दूसरे क्लाइंट्स को किराये पर भी दिया.

मोल्दिर बताती हैं, "कज़ाख़स्तान में मेरे बिज़नेस और इस इंडस्ट्री में गज़ब की तरक्की हुई है, ख़ासकर पिछले एक साल में. मेरी सुबह की शुरुआत एक बिटकॉइन की क़ीमत चेक करने के साथ शुरू होती है कि ये कितना बढ़ा है. जब इसकी क़ीमत 50,000 डॉलर हो गई थी तो ये सचमुच बहुत उत्साहजनक था. इसमें लगातार गर्मी बनी हुई है."

बिटकॉइन की कीमत नाटकीय रूप से ऊपर-नीचे जाती-आती रहती है. मार्च, 2020 में एक बिटकॉइन 5000 डॉलर में मिल रहा था जबकि साल भर के भीतर ही इसकी क़ीमत 65,000 डॉलर तक पहुंच गई थी.

उसके बाद से इसकी क़ीमत में तेज़ी से गिरावट देखी गई. एक वक़्त तो ये गिरकर 35,000 डॉलर तक पहुंच गया था.

लेकिन मोल्दिर और कज़ाख़स्तान में मौजूद उनके जैसे दूसरे कारोबारियों के लिए क्रिप्टो माइनिंग अभी भी मुनाफे का चोखा धंधा बना हुआ है.

कज़ाख़स्तान में डिजिटल गोल्ड का कारोबार
ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि आख़िर क्रिप्टो माइनिंग क्या चीज़ है, ये कैसे होता है. दरअसल, क्रिप्टो माइनिंग वो प्रक्रिया है जिससे कई तरह के क्रिप्टोकरेंसियों का कारोबार चलता है, चाहे वो बिटकॉइन हो या इथेरियम हो या फिर लाइटकॉइन.

ये एक तरह की डिजिटल मुद्रा है और किसी भी सरकार या किसी बैंक का इस पर कोई अख़्तियार नहीं है.

इसके बदले बहुत बड़े कम्प्यूटर नेटवर्क के सहारे हरेक भुगतान और ट्रांसफर को वेरिफ़ाई किया जाता है. इसके लेन-देन (ट्रांजैक्शंस) का हिसाब-किताब इतना जटिल होता है कि इसके लिए शक्तिशाली कम्प्यूटर नेटवर्क की ज़रूरत होती है.

प्रोत्साहन के रूप में ये सिस्टम उन लोगों को इनाम देता है जो इस प्रक्रिया में बिटकॉइन से अपना योगदान देते हैं.

मोल्दिर और उनके जैसे अन्य कारोबारियों के बूते कज़ाख़स्तान अमेरिका के बाद बिटकॉइन माइनिंग के कारोबार में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है.

क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के वैश्विक नेटवर्क में आज कज़ाख़स्तान की हिस्सेदारी 18 फ़ीसदी के क़रीब है और इसी बूते ये धंधा फल-फूल रहा है.

कज़ाख़स्तान में क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग की शुरुआत साल 2019 में हुई थी. इसकी दो प्रमुख वजहें बताई जाती हैं. पहली ये कि सस्ती बिजली की आपूर्ति और दूसरा दोस्ताना सरकारी नीतियां.

लेकिन साल 2021 में अचानक जब चीन ने अपने यहां क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग पर पाबंदी लगा दी तो कज़ाख़स्तान में ये कारोबार बिजली की रफ़्तार से परवान चढ़ने लगा.

कज़ाख़स्तान में पहले से मौजूद क्रिप्टो माइनिंग सेंटर इस बढ़ी हुई डिमांड को पूरा कर पाने की स्थिति में नहीं थे, इसलिए नए खिलाड़ियों के लिए बाज़ार में मौका पैदा हो गया.

कज़ाख़स्तान की बड़ी क्रिप्टो माइंस
कज़ाख़स्तान में जब आप अलमाती शहर से एकिबास्तुज़ शहर की ओर बढ़ते हैं तो 1300 किलोमीटर के इस सफ़र में आपको देश के क्रिप्टो माइनिंग इंडस्ट्री के पैमाने का अंदाज़ा हो जाता है.

इसी सफ़र में आप हाल तक दुनिया की सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी माइंस कही जा रही जगह से रूबरू होते हैं जिसे इनेगिक्स नाम की एक कंपनी ने बनाया है.

सबसे पहली बात जो आप नोटिस करेंगे, वो यहां का शोर होगा. यहां हज़ारों की संख्या में कम्प्यूटर्स देखे जा सकते हैं और ये आवाज़ दरअसल, उनमें लगे फुल स्पीड में चल रहे छोटे पंखों से आ रही है.

और इतना ही नहीं ये कम्प्यूटर्स जिन हॉल्स में रखे हैं, उन्हें ठंडा करने के लिए बड़े आकार के पंखों की भी आवाज़ें यहां साफ़ सुनाई देती हैं.

इस क्रिप्टो माइन के मालिक 34 वर्षीय येर्बोल्सिन हैं. वो चेहरे पर मुस्कुराहट लिए कहते हैं, "मशीनों से आ रही ये आवाज़ मुझे उत्साहित करती है क्योंकि ये पैसे, डिजिटल मनी की खनक है."

मोल्दिर की तरह ही येर्बोल्सिन ने भी कुछ साल पहले छोटे स्तर पर क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग का काम शुरू किया था.

येर्बोल्सिन ने अपनी कंपनी एक गराज से शुरू की थी. तब उनके पास कुछ ही कम्प्यूटर्स हुआ करते थे. आज उनके क्रिप्टोकरेंसी माइंस में आठ बड़े हैंगर्स हैं जिनमें 300 मिलियन डॉलर की मशीनें लगी हैं और ये दिन के 24 घंटे काम करती रहती हैं.

इन मशीनों को चलाए रखने के लिए 150 लोगों की टीम है. दर्जनों इंजीनियर्स हैं और इन सभी लोगों को एक रेगिस्तान में बने इस माइनिंग सेंटर में 15 दिनों तक लगातार रहना होता है.

अलमाज़ मगज़ की उम्र साल है. वे 12 घंटे की शिफ़्ट में काम करते हैं. उनका काम मशीनों पर से धूल हटाना होता है. ब्रेक में भी उन्हें चैन नहीं मिलता है. वो मानते हैं कि शुरुआत में उन्हें नहीं मालूम था कि ये मशीनें क्या काम करती हैं.

वो कहते हैं, "यहां आने से पहले मैं बिटकॉइन के बारे में नहीं जानता था. मैंने कभी इसके बारे में नहीं सुना था."

अलमाज़ और उनकी तरह ही यहां काम करने वाले बाक़ी स्टाफ़ पर येर्बोल्सिन यहां लगे सीसीटीवी कैमरों के विशाल नेटवर्क के जरिए अलमाती से ही नज़र रखते हैं.

येर्बोल्सिन कहते हैं, "हमें गर्व है कि क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया में कज़ाख़स्तान अब इतना महत्वपूर्ण हो गया है. हम देशभक्त लोग हैं और हम देश का सम्मान और बढ़ाना चाहते हैं."

पर्यावरण के नुक़सान का मुद्दा
लेकिन ऐसा नहीं है कि कज़ाख़स्तान की इस कामयाबी से मुल्क में हर कोई खुश ही है. पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोग अक़सर ही इन क्रिप्टोकरेंसी माइंस में खपत हो रही बेहिसाब बिजली को लेकर आलोचना करते रहते हैं.

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी बिटकॉइन इलेक्ट्रिसिटी कंज़म्पशन इंडेक्स चलाता है. इसके मुताबिक़ बिटकॉइन की माइनिंग में यूक्रेन या नॉर्वे की कुल बिजली खपत से ज़्यादा बिजली खर्च होती है.

ये मालूम नहीं है कि इसमें कितनी बिजली ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से मिलती है लेकिन डाना येरमोलिनोक जैसी पर्यावरणदियों का कहना है कि कज़ाख़स्तान जैसे देशों में केवल दो फ़ीसदी बिजली ही ग़ैरपरंपरागत स्रोतों से हासिल होती है.

वो बताती हैं, "यहां मुख्य रूप से कोयला ही ऊर्जा का स्रोत है. ख़ासकर गर्मी पैदा करने और बिजली बनाने के काम में."

डाना कज़ाख़स्तान के कारागंडा शहर में रहती हैं. यहां देश का सबसे बड़ा कोयला भंडार है. वो पर्यावरण के नुक़सान की क़ीमत पर क्रिप्टो माइनिंग के नाम पर देश में आ रही समृद्धि को लेकर चिंता जताती हैं.

वो कहती हैं, "हर दिन जब मैं अपने घर के बाहर निकलती हूं तो मैं प्रदूषण देख सकती हूं. सर्दियों में हालत ये होती है कि मुझे अपने पड़ोसी का घर तक नहीं दिखाई देता है. मुझे समझ में नहीं आता कि मैं इस हवा में क्यों सांस ले रही हूं?" (bbc.com)

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