अंतरराष्ट्रीय

क्या पर्यावरण के अनुकूल हो सकती है क्रिप्टोकरेंसी?
28-Feb-2022 1:41 PM
क्या पर्यावरण के अनुकूल हो सकती है क्रिप्टोकरेंसी?

कोस्टा रिका के एक हाइड्रोपावर प्लांट को ग्रीन क्रिप्टो-माइनिंग ऑपरेशन में बदल दिया गया है, लेकिन सवाल यह है कि बहुत ज्यादा ऊर्जा की जरूरत वाली बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी कभी भी जलवायु लक्ष्यों के अनुकूल हो सकती है?

  डॉयचे वैले पर सेबास्टियन रोड्रिग्वेज की रिपोर्ट-

2020 के अंत में, 30 वर्षों के संचालन के बाद एडुआर्डो कोपर को कोस्टा रिका के सेंट्रल वैली में अपने हाइड्रोपावर प्लांट पोअस आई के टरबाइनों को बंद करना पडा. देश की सरकारी बिजली कंपनी ‘कोस्टा रिका इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिसिटी' ने कोपर के हाइड्रोपावर प्लांट से पैदा होने वाली बिजली को बेचने से मना कर दिया, क्योंकि देश में अक्षय ऊर्जा का उत्पादन पहले से काफी ज्यादा हो गया है.

कोपर ने कहा, "इस मामले में हम कुछ नहीं कर सके. यह एक चिंताजनक स्थिति थी. हम कम से कम अपने कर्मचारियों को काम पर बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे.” तभी उन्हें बिटकॉइन के बारे में पता चला. बिटकॉइन एनर्जी कंजम्पशन इंडेक्स के अनुसार, क्रिप्टोकरेंसी ऊर्जा की बहुत बड़ी उपभोक्ता है.

बिटकॉइन माइनिंग के लिए अपने संयंत्र का इस्तेमाल करके, कोपर ने अपनी ग्रीन-एनर्जी को सीधे मुद्रा में बदलने की कोशिश की. तीन महीने तक संयंत्र बंद रहने के बाद, अप्रैल 2021 में पोअस आई का टरबाइन फिर से घूमने लगा. इसका इस्तेमाल क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के लिए किया जाने लगा.

कोपर ऐसे अकेले उदाहरण नहीं हैं. पूरे अमेरिका में, क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग करने वाले ‘ग्रीन बिटकॉइन' का लाभ ले रहे हैं. बड़ी अमेरिकी क्रिप्टो माइनिंग कंपनियां, जैसे कि बिटफार्म्स और नेप्च्यून डिजिटल एसेट्स अब अपनी करेंसी को ‘ग्रीन' बताकर मार्केटिंग कर रही हैं. इस बीच, ब्राजील के सांसद अक्षय ऊर्जा से होने वाली क्रिप्टो माइनिंग पर टैक्स में छूट देने के लिए बहस कर रहे हैं.

कीमती ऊर्जा की बर्बादी?
बिटकॉइन ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करती है, जिसमें काफी ज्यादा ऊर्जा की खपत होती है. बिटकॉइन माइनिंग का मतलब पजल को सॉल्व करके नई बिटकॉइन बनाना है. इसे ‘प्रूफ ऑफ वर्क' भी कहा जाता है. इसमें काफी ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है.

ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को लेकर, 200 से अधिक कंपनियों और लोगों ने पिछले साल क्रिप्टो क्लाइमेट अकॉर्ड लॉन्च किया था. इसका मुख्य लक्ष्य यह था कि बिटकॉइन की माइनिंग के लिए, 2030 तक पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए.

हालांकि, क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के लिए ग्रीन-एनर्जी के इस्तेमाल को हर कोई फायदेमंद समाधान के रूप में नहीं देखता है. अर्थशास्त्री और बिटकॉइन विशेषज्ञ एलेक्स डी व्रीस ने कहा कि ग्रीन एनर्जी का इस्तेमाल ‘रैंडम कंप्यूटेशन' की जगह उन क्षेत्रों में करना चाहिए जिनसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था बेहतर हो सके. साथ ही, रोजगार और दूसरे आर्थिक लाभ मिल सके.

दरअसल, हाल के समय में क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग में अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ा है, क्योंकि यह ऊर्जा का सबसे सस्ता स्रोत है. क्रिप्टोकरेंसी विश्लेषण फर्म कॉइनशेयर के एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि 2019 में पूरी दुनिया में बिटकॉइन की माइनिंग के लिए जितनी ऊर्जा की खपत की गई है उनमें से कम से कम 74 फीसदी ऊर्जा अक्षय स्रोत से आई है. इनमें इस्तेमाल की गई ज्यादातर ऊर्जा चीन के हाइड्रोपावर प्लांट की थी.

हालांकि, 2021 में चीनी सरकार ने काफी ज्यादा ऊर्जा खर्च होने की वजह से क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया. इस बीच, स्वीडन ने यूरोपीय संघ से क्रिप्टो की माइनिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. स्वीडन ने तर्क दिया है कि इसमें उस अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल होता है जिसकी मदद से कई क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज किया जा सकता है. ऐसे में क्रिप्टो के लिए अक्षय ऊर्जा के ज्यादा इस्तेमाल से जलवायु लक्ष्य खतरे में पड़ सकते हैं.

अपवाद है कोस्टा रिका
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में ऊर्जा के क्षेत्र में शोध करने वाले जोस डैनियल लारा कोस्टा रिका के रहने वाले हैं. वह मानते हैं कि देश में ऊर्जा का उत्पादन खपत से ज्यादा है. इस वजह से ग्रीन क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के पक्ष में तर्क दिए जा सकते हैं. आदर्श स्थिति यह है कि कोस्टा रिका को अपनी बची हुई ऊर्जा निर्यात करनी चाहिए, लेकिन फिलहाल यह संभव नहीं है. उदाहरण के लिए, पड़ोसी देश निकारागुआ में ऊर्जा की किल्लत है. यहां कोस्टा रिका अपनी ऊर्जा का निर्यात कर सकता है, लेकिन निकारागुआ के पास इसे आयात करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है.

बिटकॉइन माइनिंग की वजह से कोपर ने एक मेगावाट की क्षमता वाले अपने दो हाइड्रोपावर प्लांट को फिर से चालू कर दिया है. साथ ही, बिजली को किसी ऐसी चीज में बदलने की अनुमति दी है जिसे फिजिकल पावर ग्रिड की जरूरत के बिना निर्यात किया जा सकता है. उन्होंने कहा, "यहां हमें ऊर्जा को डिजिटल टोकन में बदलने का मौका मिला.”

उन्होंने सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के लिए कंटेनर जैसा स्टोरेज रूम स्थापित किया है. इसे इस तरह बनाया गया कि यहां ना तो नमी का असर होता है और ना ही गर्मी का. अब विदेशों में माइनिंग करने वाली कंपनियों को सीपीयू रखने के लिए इसे किराए पर दिया जा रहा है. साथ ही, वह खुद भी बिटकॉइन की माइनिंग कर रहे हैं. इसका फायदा यह हुआ कि उन्हें अपने 25 कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकालना पड़ा. अब वे आने वाले महीनों में तीसरे प्लांट को भी फिर से चालू करने की योजना बना रहे हैं.

पोअस आई क्रिप्टो माइनिंग सेंटर कोस्टा रिका में अपनी तरह का पहला माइनिंग सेंटर है, लेकिन कोपर चाहते हैं कि देश में ऊर्जा के क्षेत्र से जुड़े दूसरे कारोबारी भी इस कारोबार में शामिल हों. कई अन्य कंपनियों का भी दावा है कि क्रिप्टो माइनिंग से अक्षय ऊर्जा के उत्पादन से जुड़ी चुनौतियों को दूर करने में मदद मिल सकती है.

ग्रिड का संतुलन बनाए रखने के लिए क्रिप्टो माइनिंग
टेक्सास में, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की कंपनी लैंसियम अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल से चलने वाली बिटकॉइन माइनिंग सेंटर का निर्माण कर रही है. हालांकि, इसे पारंपरिक रूप से तैयार होने वाली बिजली की बचत बताने की जगह दूसरे तौर पर प्रचारित किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि यहां बिटकॉइन की माइनिंग के जरिए ग्रिड का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी.

अक्षय ऊर्जा की वजह से कई तरह की समस्याएं भी होती हैं. उदाहरण के लिए, टेक्सस में मौसम में उतार-चढ़ाव की वजह से विंड फॉर्म से कभी ज्यादा ऊर्जा का उत्पादन होता है, तो कभी कम. ऐसे में ऊर्जा की ज्यादा आपूर्ति से ग्रिड पर असर पड़ता है, यहां तक कि कभी-कभी ब्लैकआउट भी हो सकता है. यही वजह है कि नवीकरणीय ऊर्जा के दबाव को संतुलित करने के लिए जीवाश्म ईंधन वाले बिजली स्टेशन का इस्तेमाल किया जाता है.

लैंसियम का कहना है कि हमारा मॉडल बिटकॉइन माइनिंग की जगह ग्रिड के संतुलन को बनाए रखने पर जोर देता है. वहीं, लारा कहते हैं कि लैंसियम जैसी परियोजनाएं वाकई में अक्षय ऊर्जा का विस्तार कर सकती हैं और जीवाश्म ईंधन की जरूरत को कम कर सकती हैं.
जीवाश्म ईंधन वाली अर्थव्यवस्थाओं की ओर पलायन

हालांकि, डी व्रीस का कहना है कि ग्रीन क्रिप्टोकरेंसी का ज्यादा असर कार्बन फुटप्रिंट पर नहीं पड़ रहा है. चीन में क्रिप्टो से जुड़ी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगने के बाद, माइनिंग करने वाले ज्यादातर लोग और कंपनियां जीवाश्म ईंधन से समृद्ध देश कजाखस्तान और अमेरिका जैसे देशों में चले गए.

अगस्त 2020 में, दुनिया भर में कुल बिटकॉइन के 5 फीसदी हिस्से की माइनिंग अमेरिका में हुई. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के आंकड़ों के अनुसार, एक साल बाद यह आंकड़ा बढ़कर 35 फीसदी तक पहुंच गया. टेक्सास खुद को क्रिप्टो कैपिटल के तौर पर विकसित कर रहा है. हालांकि, लैंसियम जैसी परियोजनाओं के बावजूद, राज्य की अधिकांश बिजली की आपूर्ति अभी भी कोयले और गैस से होती है.

ऊर्जा की कम लागत वाला क्रिप्टो मॉडल
कोपर जोर देकर कहते हैं कि पूरी दुनिया नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है. इसी के साथ ग्रीन-माइनिंग से बिटकॉइन के कार्बन फुटप्रिंट को खत्म करने में मदद मिल सकती है. उन्होंने कहा, "हम डर्टी बिटकॉइन को क्लीन बिटकॉइन से अलग करने का प्रयास कर रहे हैं. उपभोक्ताओं को इसे पहचानने में कुछ समय लग सकता है, लेकिन यह समय की जरूरत है.”

वहीं, डी व्रीस का मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी को अधिक ऊर्जा-कुशल बनाना एक बेहतर समाधान होगा. कार्डानो और बीनेंस जैसे ब्लॉकचेन प्लैटफॉर्म पहले से ही अलग मॉडल का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे ‘प्रूफ ऑफ स्टेक' कहा जाता है. इसकी मदद से, माइनिंग करने वाले नए पजल को हल करने की जगह लेनदेन के लिए अपने पुराने कॉइन का ही इस्तेमाल करते हैं. इससे नए बिटकॉइन के निर्माण में खपत होने वाली ऊर्जा की बचत होती है.

डी व्रीस कहते हैं, "अगर आप प्रूफ ऑफ स्टेक का इस्तेमाल करते हैं, तो आपको ज्यादा हार्डवेयर की जरूरत नहीं होती है. आपके पास सिर्फ इंटरनेट से कनेक्ट किया हुआ डिवाइस होना चाहिए.”

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी इथेरियम भी इस साल से प्रूफ ऑफ स्टेक पर स्विच करने की योजना बना रही है. डी व्रीस का कहना है कि यह एक नई तकनीक है, लेकिन अगर यह काम इथेरियम करती है, तो दूसरे क्रिप्टोकरेंसी भी इस रास्ते पर आगे बढ़ सकती है. (dw.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news