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खराब अर्थव्यवस्था की भेंट चढ़ते सुरक्षित यौन संबंध
01-Mar-2022 1:28 PM
खराब अर्थव्यवस्था की भेंट चढ़ते सुरक्षित यौन संबंध

खराब अर्थव्यवस्था के कारण लेबनान में लोगों के लिए सेफ सेक्स मुश्किल हो गया है. विशेषज्ञ कहते हैं कि हालात घातक और जानलेवा हो सकते हैं.

(dw.com) 

लेबनान में रहने वालीं 27 साल की लीना ने सालभर पहले गर्भनिरोधक गोलियां लेना बंद कर दिया क्योंकि वे बहुत महंगी हो गई थीं. आज वह पांच महीने की गर्भवती हैं और एक ऐसे बच्चे को जन्म देने की तैयारी कर रही हैं, जिसके लिए उन्होंने कोई योजना नहीं बनाई थी. इसलिए भविष्य को लेकर उनकी चिंताएं भी बढ़ गई हैं.

शादीशुदा लीना अपना असली नाम नहीं बताना चाहतीं. वह कहती हैं, "मेरे पास कोई करियर नहीं है. जीवन में स्थिरता भी नहीं है. मेरे पास कोई घर नहीं है जहां बच्चा सुरक्षित रहेगा.”

लेबनान आर्थिक संकट से गुजर रहा है. महंगाई बढ़ रही है और जरूरत की चीजें भी लोगों की पहुंच से बाहर हो रही हैं. इसका असर गर्भनिरोधकों, कंडोम और गर्भ जांच की कीमतों पर भी पड़ा है. कई युवाओं के लिए तो ये चीजें इतनी महंगी हो गई हैं कि वे इस्तेमाल ही बंद कर रहे हैं. लेकिन विशेषज्ञों को डर है कि ऐसा करने से अनचाहे गर्भ, यौन रोग और असुरक्षित गर्भपात बढ़ सकते हैं.

वायरस के कारण झेलनी पड़ सकती है कंडोम की कमी
देश के आर्थिक हालात ऐसे हैं कि लेबनान की 82 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जा चुकी है. वहां की मुद्रा लीरा की कीमत बहुत ज्यादा घटी है और हर चीज महंगी हो गई है. 2019 की शुरुआत में लीरा धड़ाम से गिरी थी. आज भारतीय मुद्रा में एक लीरा की कीमत पांच पैसे है.

2019 से पहले साल भर के लिए गर्भनिरोधक गोलियां 21,000 लीरा यानी करीब एक हजार रुपये में आ जाती थीं. आज इसके लिए लगभग दो लाख 10 हजार लीरा चाहिए, जो भारत के दस हजार रुपयों के बराबर होंगे. छह कंडोम का एक पैकेट तीन लाख लीरा में आता है, जो देश की औसत आबादी की आधे महीने की तन्ख्वाह है.

युवा सबसे ज्यादा प्रभावित
इस महंगाई ने सबसे ज्यादा प्रभावित युवाओं को किया है और उनके लिए कंडोम व गर्भनिरोधक बहुत महंगे हो चुके हैं. विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि इसके परिणाम घातक हो सकते हैं. बेरूत स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी में महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. फैजल अल काक कहते हैं, "अनचाहे गर्भ की संभावित वृद्धि के और ज्यादा आर्थिक नुकसान होंगे. मांओं के स्वास्थ्य में परेशानियां और यहां तक कि मृत्यु भी बढ़ेंगी. और बेशक, असुरक्षित गर्भपात भी बढ़ेंगे.”

लेबनान में गर्भपात पूरी तरह अवैध है. बलात्कार और किसी परिजन द्वारा अवैध यौन संबंधों के परिणामस्वरूप ठहरे गर्भ की स्थिति में भी अबॉर्शन की इजाजत नहीं है. यदि कोई गर्भपात करता या करवाता पकड़ा जाएगा तो उसे जेल और जुर्माना भुगतना होगा.

असुरक्षित गर्भपात बड़ा खतरा इसलिए भी है क्योंकि रूढ़िवादी समाज में शादी के बिना बच्चा पैदा करना अच्छा नहीं माना जाता. अल काक कहते हैं कि इसका नतीजा यह होता है कि महिलाओं को अनचाहे गर्भ गिराने के लिए अक्सर अवैध साधन अपनाने पड़ते हैं, जो असुरक्षित होते हैं. डॉ. अल काक के मुताबिक अनुमानतः 25 प्रतिशत गर्भपात महिला की मौत के रूप में खत्म होते हैं.

महंगी हुई जांच
संयुक्त राष्ट्र ने पिछले साल बताया था कि कोविड महामारी के कारण गर्भनिरोधक उपाय गरीब देशों की करीब सवा करोड़ महिलाओं की पहुंच से बाहर हो गए. इसका परिणाम 14 लाख अनचाहे गर्भ के रूप में सामने आया.

लेबनान में यह समस्या देश की आर्थिक हालत के कारण कई गुना ज्यादा गंभीर हो गई. डॉ. अल काक बताते हैं कि शरणार्थी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग तो खासतौर पर परेशानी झेल रहे हैं क्योंकि उनके लिए यौन स्वास्थ्य सेवाएं दूभर हो गई हैं.

कोरोना के कोहराम के बीच सेक्स
वह कहते हैं कि एचआईवी और अन्य गंभीर यौन रोगों के लिए जांच कराना चाहने वालों को भी मुश्किल हो रही है क्योंकि किसी निजी क्लिनिक में एसटीआई टेस्ट कराने पर दो लाख लीरा यानी लगभग दस हजार भारतीय रुपये तक का खर्च आ सकता है. यूं भी देश में एसटीआई जांच सेवाओं को लंबे समय से नजरअंदाज किया जाता रहा है.

फंडिंग की कमी
नेशनल एड्स प्रोग्राम के मुताबिक पिछले साल नवंबर तक देश में 2,885 एचआईवी मरीज थे जिनमें से 1,941 को ही इलाज उपलब्ध हो पाया था. रूढ़िवादिता, प्रताड़ना और समलैंगिक सेक्स पर लगे प्रतिबंध के कारण एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय की हालत तो और ज्यादा खराब है. डॉ. अल काक कहते हैं कि ऐसे लोग तो जांच कराने तक सामने नहीं आते.

ऐसे में स्थानीय स्तर पर सामाजिक संस्थाओं द्वारा उपलब्ध करवाए जा रहे एसटीआई टेस्ट ही कुछ लोगों की मदद कर पा रहे हैं. मुफ्त एसटीआई टेस्टिंग उपलब्ध कराने वाली एक गैर सरकारी संस्था एसआईडीसी द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक 2021 में जितने लोगों को यौन रोग हुआ, उनमें से 70 प्रतिशत ने असुरक्षित सेक्स किया था.

एसआईडीसी की अध्यक्ष नादिया बदरान कहती हैं कि मांग बढ़ने से परेशानी भी बढ़ रही है क्योंकि सामाजिक संस्थाओं के पास इतना धन नहीं है. बदरान कहती हैं, "फंडिंग के लिए वे लोग भूख से मरते लोगों को एसटीआई से मरने वाले लोगों के ऊपर तरजीह दे रहे हैं.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

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