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रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदी, कैसे चुका पाएगा कर्ज़?
17-Mar-2022 8:33 AM
रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदी, कैसे चुका पाएगा कर्ज़?

-टिम बाउलर

यूक्रेन पर हमले के बाद और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की वजह से हो सकता है कि रूस उस हालत में पहुंच जाए जहां वो कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट कर जाए.

अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में जारी किए गए दो बॉन्ड्स के निवेशकों को रूस को बुधवार को 117 मिलियन डॉलर का ब्याज चुकाना है. ये बॉन्ड्स डॉलर के लिए जारी किए गए थे.

लेकिन रूस का 630 बिलियन डॉलर का विदेश मुद्रा भंडार इस समय फ्रीज कर दिया गया है.

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भी चेतावनी दी है कि रूस का अपने कर्ज़ों की अदायगी में 'डिफॉल्टर होना तय' है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि वो रूस की कर्ज चुकाने में नाकामी के असर को लेकर चिंतित ज़रूर हैं लेकिन वो ये नहीं मानते कि इससे कोई वैश्विक वित्तीय संकट खड़ा होने वाला है.

रूस कर्ज़ चुकाने में क्यों नाकाम हो सकता है?
रूस की सरकार और गज़प्रोम, ल्युकऑइल, स्बेरबैंक जैसी सरकारी कंपनियों पर विदेशी निवेशकों का 150 अरब डॉलर का कर्ज़ है.

इनमें से ज़्यादातर कर्ज़ों की देनदारी डॉलर या फिर यूरो में है. और चूंकि रूस के कारोबारी संस्थान प्रतिबंध की वजह से विदेश में मौजूद अपने डॉलर या यूरो वाले खातों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.

अगर रूस कर्ज़ों की वक़्त पर अदायगी में नाकाम रहता है तो साल 1998 के बाद पहली बार ऐसा होगा कि वो डिफॉल्ट करेगा.

विदेशी मुद्रा में लिए गए कर्ज़ को चुकाने के मामले में भी साल 1917 की क्रांति के बाद ये रूस पहली बार डिफॉल्टर होने जा रहा है. तब नई बॉल्शेविक सरकार ने पिछले बरस के कर्ज़ों को चुकाने से इनकार कर दिया था.

अगर रूस रूबल में भुगतान करता है तो क्या होगा?
रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अगर उसे डॉलर या यूरो में भुगतान करने से रोका गया तो वो अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को रूबल में भुगतान करना चाहेगा.

लेकिन दिक्कत ये है कि डॉलर में जारी किए गए जिन दो बॉन्ड्स के लिए बुधवार को भुगतान किया जाना है, उसमें किसी और मुद्रा में पैसा देने का कोई प्रावधान नहीं है.

लेकिन रूस के अन्य ऋण समझौतों में ये प्रावधान है कि अन्य मुद्रा में भुगतान किया जा सकता है. ऐसा हुआ तो कर्ज़ों के भुगतान में रूबल का सहारा लिया जा सकता है.

लेकिन ये इस बात पर निर्भर करेगा कि रूबल में भुगतान क्या डॉलर या यूरो के उसी वैल्यू के साथ किया जाएगा जिसकी निवेशकों को उम्मीद होगी.

रूस में निवेशकों ने हाल के दिनों में देखा है कि उनके निवेश के मूल्य में गिरावट दर्ज की गई है.

दिक्कत ये है कि रूस की वित्तीय स्थिति इतनी तेज़ी से बिगड़ी है कि कुछ लोगों को मौका ही नहीं मिला कि वे अपने निवेश को बेच सकें.

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडी का कहना है कि 21 प्वॉयंट के रेटिंग स्केल बताता है कि निवेश के लिहाज से कोई देश कितना सुरक्षित है. रूस इस पैमाने पर नीचे से दूसरे स्थान पर आ गया है और वो इससे भी नीचे जा सकता है.

मूडी के चीफ़ क्रेडिट ऑफ़िसर कोलिन एलिस ने बीबीसी से कहा, "हम ये संकेत दे रहे हैं कि हमें ना सिर्फ रूस के कर्ज ना चुकाने का अंदेशा है बल्कि हम निवेशकों को ये भी बता रहे हैं कि उन्हें कितना नुकसान हो सकता है. वो अपने निवेश का 35 से 65 प्रतिशत तक गंवा सकते हैं."

अधिकारिक तौर पर कर्ज ना चुकाने का एक नतीजा ये हो सकता है कि कर्ज़ देने वाले दावे पेश करना शुरू कर सकते हैं. ये क्रेडिट स्वैप किसी इंश्यूरेंस की तरह काम करते हैं. कर्ज़दाता इन्हें एडवांस में ख़रीदते हैं ताकि किसी कंपनी या देश के कर्ज़ चुकाने में नाकाम रहने पर वो नुक़सान की भरपाई कर सकें.

आख़िरी बार रूस 1998 में क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहा था. तब इससे वैश्विक वित्तीय बाज़ार हिल गए थे. कैपिटल इकोनॉमिक्स के प्रमुख अर्थशास्त्री विलियम जैकसन के मुताबिक अभी यदि रूस डिफॉल्ट करता है तो ये सांकेतिक रूप से तो अहम होगा लेकिन इसका कोई वास्तविक असर शायद ही हो.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि वो साल 2022 के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रगति के अपने 4.4 प्रतिशत रहने के पूर्वानुमान को युद्ध की वजह से घटा देगा. आईएमएफ़ की प्रमुख क्रिस्टेलीना जॉर्जीवा भी मानती हैं कि रूस के डिफॉल्ट होने का वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर व्यापक असर नहीं होगा.

हालांकि वो चेताती हैं कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से वहां अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट आ सकती है और साथ ही दुनियाभर में खाद्य पदार्थों और ऊर्जा के दाम बढ़ सकते हैं.

हालांकि यहां एक अज्ञात कारक ये है कि रूस की कंपनियों का क़र्ज़ डिफॉल्ट कितना बड़ा हो सकता है और इससे रूस में निवेश करने वालों पर क्या असर हो सकता है.

रूस इस समय जिन वित्तीय मुश्किलों और चुनौतियों का सामना कर रहा है, क़र्ज़ ना चुकाने से वो बढ़ेंगी ही.

यूक्रेन पर आक्रामण से पहले रूस को क़र्ज़ चुकाने के मामले में सबसे भरोसेमंद देशों में शामिल किया जाता था. रूस पर क़र्ज़ भी बहुत ज़्यादा नहीं था. लेकिन अब हालात नाटकीय ढंग से बदल गए हैं.

विदेशी कंपनियां बड़ी तादाद में रूस को छोड़ रही हैं, रूबल और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए रूस ने पहले से ही पैसे के बाहर जाने पर सख़्त नियम लागू कर दिए हैं. हालांकि प्रतिबंधों की वजह से इस साल रूस की अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है.

फ़रवरी में यूक्रेन पर आक्रामण से पहले यहां महंगई दर पहले से ही 9.15 प्रतिशत के उच्च स्तर पर भी. आशंका है कि इस साल इसमें और भी इज़ाफ़ा हो सकता है.

रूस की सेंट्रल बैंक ने क़र्ज़ पर ब्याज़ की दर को पहले ही 9.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया है. (bbc.com)

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