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KGF 2 : कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स का इतिहास क्या है, जहां 121 सालों में निकला 900 टन सोना
02-Apr-2022 11:17 AM
KGF 2 : कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स का इतिहास क्या है, जहां 121 सालों में निकला 900 टन सोना

 

-हर्षल आकुड़े

"कह देना उनको मैं आ रहा हूं अपनी केजीएफ़ लेने." केजीएफ़-2 में अभिनेता संजय दत्त का ये डायलॉग फ़िलहाल काफ़ी चर्चा में है.

दर्शकों के बीच प्रचलित इस फ़िल्म का ट्रेलर हाल ही में रिलीज़ किया गया था. ट्रेलर के रिलीज़ होते ही सोशल मीडिया पर तहलका मच गया. इसके वीडियो को दो दिन में ही 6.2 करोड़ लोग यूट्यूब पर देख चुके हैं.

यह फ़िल्म 14 अप्रैल को रिलीज़ होने वाली है. इसलिए सोशल मीडिया सहित हर जगह इस फ़िल्म की चर्चा ज़ोर शोर से हो रही है.

इस फ़िल्म में संजय दत्त, रवीना टंडन और प्रकाश राज सहित मुख्य किरदार निभा रहे कन्नड़ सुपरस्टार यश मुख जैसे बड़े अभिनेता भी शामिल हैं.

यह फ़िल्म पहले मूल रूप से कन्नड़ भाषा में ही बनी थी. इस फ़िल्म का पहला भाग 21 दिसंबर, 2018 को कन्नड़, तेलुगू और तमिल के साथ हिन्दी में भी रिलीज़ किया गया था. और तब इस फ़िल्म की पूरे देश में काफ़ी तारीफ़ हुई और तभी से दर्शक इसके दूसरे भाग का इंतज़ार कर रहे थे.

केजीएफ़ का इतिहास
केजीएफ़ यानी कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाक़े में स्थित है. दक्षिण कोलार ज़िले के मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर रोबर्ट्सनपेट एक तहसील है, जहां ये खदान मौजूद है.

बेंगलुरू के पूर्व में मौजूद बैंगलोर-चेन्नई एक्सप्रेसवे पर 100 किलोमीटर दूर केजीएफ़ टाउनशिप है. न्यूज़ वेबसाइट 'द क्विन्ट' ने अपनी एक रिपोर्ट में केजीएफ़ के शानदार इतिहास के बारे में लिखा है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, 1871 में न्यूज़ीलैंड से भारत आए ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्ज़गेराल्ड लेवेली ने बेंगलुरू में अपना घर बना लिया था. उस वक़्त वो अपना ज़्यादातर समय पढ़ने में ही गुज़ारते थे.

इस बीच, उन्होंने 1804 में एशियाटिक जर्नल में छपे चार पन्नों का एक लेख पढ़ा. उसमें कोलार में पाए जाने वाले सोने के बारे में बताया गया था. इस लेख के चलते कोलार में उनकी दिलचस्पी बढ़ गई.

इस विषय पर पढ़ते-पढ़ते लेवेली के हाथों ब्रिटिश सरकार के लेफ़्टिनेंट जॉन वॉरेन का एक लेख लगा. लेवेली को मिली जानकारी के अनुसार, 1799 की श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेज़ों ने टीपू सुल्तान को मारने के बाद कोलार और आस-पास के इलाक़े पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था.

उसके कुछ समय बाद, अंग्रेज़ों ने यह ज़मीन मैसूर राज्य को दे दी, पर कोलार की ज़मीन सर्वे के लिए उन्होंने अपने पास ही रख ली.

सोने की तलाश
चोल साम्राज्य में लोग ज़मीन को हाथ से खोदकर ही सोना निकालते थे. उसके बाद वॉरेन ने सोने के बारे में उन्हें जानकारी देने वालों को ईनाम देने की घोषणा कर दी.

उस घोषणा के कुछ दिन बाद, एक बैलगाड़ी में कुछ ग्रामीण वॉरेन के पास आए. उस बैलगाड़ी में कोलार इलाक़े की मिट्टी लगी हुई थी. गांववालों ने वॉरेन के सामने मिट्टी धोकर हटाई, तो उसमें सोने के अंश पाए गए.

वॉरेन ने इसकी फिर पड़ताल शुरू की. वॉरेन को पता चला कि कोलार के लोग जिस तरीक़े से हाथ से खोदकर सोना निकालते हैं, उससे 56 किलो मिट्टी से गुंजभर सोना निकाला जा सकता था.

वॉरेन ने कहा, "इन लोगों के ख़ास कौशल और तकनीक की मदद से और भी सोना निकाला जा सकता है."

वॉरेन की इस रिपोर्ट के बाद, 1804 से 1860 के बीच इस इलाक़े में काफ़ी रिसर्च और सर्वे हुए, लेकिन अंग्रेज़ी सरकार को उससे कुछ नहीं मिला. कोई फ़ायदा होने के बजाय इस शोध के चलते कइयों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. उसके बाद वहां होने वाली खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

बहरहाल, 1871 में वॉरेन की रिपोर्ट पढ़कर लेवेली के मन में कोलार को लेकर दिलचस्पी जगी.

लेवेली ने बैलगाड़ी में बैठकर बेंगलुरू से कोलार की 100 किलोमीटर की दूरी तय की. वहां पर क़रीब दो साल तक शोध करने के बाद 1873 में लेवेली ने मैसूर के महाराज से उस जगह पर खुदाई करने की इजाज़त मांगी.

लेवेली ने कोलार क्षेत्र में 20 साल तक खुदाई करने का लाइसेंस प्राप्त किया. उसके बाद 1875 में साइट पर काम करना शुरू किया.

पहले कुछ सालों तक लेवेली का ज़्यादातर समय पैसा जुटाने और लोगों को काम करने के लिए तैयार करने में गुज़रा. काफ़ी मुश्किलों के बाद केजीएफ़ से सोना निकालने का काम आख़िरकार शुरू हो गया.

केजीएफ़: बिजली वाला भारत का पहला शहर
केजीएफ़ की खानों में पहले रोशनी का इंतज़ाम मशालों और मिट्टी के तेल से जलने वाले लालटेन से होता था. लेकिन ये प्रयास नाकाफ़ी था. इसलिए वहां बिजली का उपयोग करने का निर्णय लिया गया.

इस तरह केजीएफ़ बिजली पाने वाला भारत का पहला शहर बन गया.

कोलार गोल्ड फ़ील्ड की बिजली की ज़रूरत पूरी करने के लिए वहां से 130 किलोमीटर दूर कावेरी बिजली केंद्र बनाया गया. जापान के बाद यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा प्लांट है. इसका निर्माण कर्नाटक के आज के मांड्या ज़िले के शिवनसमुद्र में किया गया.

केजीएफ़ भारत का सबसे पहला वो शहर था, जहां बिजली पूरी तरह से पहुंच गई. पानी से बिजली बनने के बाद वहां हर वक़्त बिजली मिलने लगी. सोने की खान के चलते बेंगलुरू और मैसूर के बजाय केजीएफ़ को प्राथमिकता मिलने लगी.

बिजली पहुंचने के बाद केजीएफ़ में सोने की खुदाई बढ़ा दी गई. वहां तेज़ी से खुदाई बढ़ाने के लिए प्रकाश का बंदोबस्त करके कई मशीनों को काम में लगाया गया.

इसका नतीजा यह हुआ कि 1902 आते-आते केजीएफ़ भारत का 95 फ़ीसदी सोना निकालने लगा. हाल यह हुआ कि 1905 में सोने की खुदाई के मामले में भारत दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गया.

केजीएफ़ बन गया छोटा इंग्लैंड
केजीएफ़ में सोना मिलने के बाद वहां की सूरत ही बदल गई. उस समय की ब्रिटिश सरकार के अधिकारी और इंजीनियर वहां अपने घर बनाने लगे.

लोगों को वहां का माहौल बहुत पसंद आने लगा, क्योंकि वो जगह ठंडी थी. वहां जिस तरह से ब्रिटिश अंदाज़ में घरों का निर्माण हुआ, उससे लगता था कि वो मानो इंग्लैंड ही है.

डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, इसी चलते केजीएफ़ को छोटा इंग्लैंड कहा जाता था.

केजीएफ़ की पानी की ज़रूरत पूरा करने के लिए ब्रिटेन की सरकार ने पास में ही एक तालाब का निर्माण किया. वहां से केजीएफ़ तक पानी के पाइपलाइन का इंतज़ाम किया गया. आगे चलकर, वही तालाब वहां के आकर्षण का मुख्य केंद्र बन गया.

ब्रिटिश अधिकारी और वहां के स्थानीय नागरिक वहां पर्यटन के लिए जाने लगे. दूसरी तरफ़, सोने की खान के चलते आस-पास के राज्यों से वहां मज़दूरों की संख्या बढ़ने लगी.

साल 1930 के बाद इस जगह 30,000 मज़दूर काम करते थे. उन मज़दूरों के परिवार आस-पास ही रहते थे.

केजीएफ़ का राष्ट्रीयकरण
देश को जब आज़ादी मिली, तो भारत सरकार ने इस जगह को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. उसके क़रीब एक दशक बाद 1956 में इस खान का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया.

1970 में भारत सरकार की भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने वहां काम करना शुरू किया. शुरुआती सफलता मिलने के बाद कंपनी का फ़ायदा दिनोंदिन कम होता गया. 1979 के बाद तो ऐसी स्थिति हो गई कि कंपनी के पास अपने मज़दूरों को देने के लिए पैसे नहीं बचे.

भारत के 90 फ़ीसदी सोने की खुदाई करने वाली केजीएफ़ का प्रदर्शन 80 के दशक के दौरान ख़राब होता चला गया.

उसी वक़्त, कई कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. साथ ही कंपनी का नुक़सान भी बढ़ता जा रहा था. एक समय ऐसा आया जब वहां से सोना निकालने में जितना पैसा लग रहा था, वो हासिल सोने की क़ीमत से भी ज़्यादा हो गई थी.

इस चलते 2001 में भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने वहां सोने की खुदाई बंद करने का निर्णय लिया. उसके बाद वो जगह एक खंडहर बन गई.

मोदी सरकार का काम फिर शुरू करने के संकेत
केजीएफ़ में खनन 121 सालों से भी अधिक समय तक चला. साल 2001 तक वहां खुदाई होती रही. एक रिपोर्ट के अनुसार, उन 121 सालों में वहां की खदान से 900 टन से भी अधिक सोना निकाला गया. खनन बंद होने के बाद के 15 सालों तक केजीएफ़ में सब कुछ ठप्प पड़ा रहा.

हालांकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में उस जगह फिर से काम शुरू करने का संकेत दिया. कहा जाता है कि केजीएफ़ की खानों में अभी भी काफ़ी सोना पड़ा है.

केंद्र सरकार ने 2016 में केजीएफ़ को फिर से ज़िंदा करने के लिए नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने का एलान किया. हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि घोषणा के आगे क्या होने जा रहा है.

 

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