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नमित मल्होत्रा कौन हैं जिन्होंने हॉलीवुड फ़िल्म के लिए ऑस्कर जीता
07-Apr-2022 8:39 AM
नमित मल्होत्रा कौन हैं जिन्होंने हॉलीवुड फ़िल्म के लिए ऑस्कर जीता

-एंड्रयू क्लेरेंस

ड्यून देखने के कुछ मिनटों बाद ही पता चल जाता है कि इस फ़िल्म को विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए ऑस्कर क्यों दिया गया है.

फ़्रेंक हार्बर्ट के 1965 के उपन्यास पर आधारित डेनिस विलनोव की यह साई-फ़ाई फ़िल्म रेगिस्तान की वैभवता को जीवंत कर देती है. समीक्षक इसे एक 'विशाल प्रदर्शनी' बता रहे हैं जिसमें अपनी गिरफ़्त में लेने वाले सार्थक डिज़ाइन और बनावट शामिल हैं.

लेकिन बहुत कम ही लोग नमित मल्होत्रा के बारे में जानते हैं. 46 साल के नमित उस कंपनी के सीईओ हैं जिसने ड्यून के शानदार विज़ुअल इफ़ेक्ट्स को डिज़ाइन किया है. उन्होंने अपना सफ़र भारत में बॉलीवुड से शुरू किया था.

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यह फ़िल्म एक मरुस्थल ग्रह अराकिस पर प्यार और युद्ध के इर्द-गिर्द घूमती है. इसको लंदन स्थित विज़ुअल इफ़ेक्ट्स और एनिमेशन कंपनी DNEG ने डिज़ाइन किया है. इस कंपनी के ग्राफ़िक डिज़ाइनर्स और इंजीनियर्स ने फ़िल्म के 1,700 में से तक़रीबन 1,200 वीएफ़एक्स शॉट्स बनाए हैं.

फ़िल्म के वीएफ़एक्स सुपरवाइसर्स ने बीबीसी क्लिक से कहा कि हर तत्व 'विलनोव की कल्पना को मज़बूती देने के लिए' डिज़ाइन किया गया था.

बॉलीवुड से है मज़बूत रिश्ता
लंदन में अपने कार्यालय से मल्होत्रा ने फ़ोन पर बताया, "आप वास्तव में प्रोडक्शन डिज़ाइन, म्यूज़िक, सिनेमाटोग्राफ़ी को महसूस करते हैं जो बाकी अन्य हिस्सों के साथ मिलकर एक संसार बनाता है."

1995 में उन्होंने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई के एक गैराज से अपना लंबा सफ़र शुरू किया था. अब वो उस वैश्विक कंपनी के प्रमुख हैं जिसने अब तक सात ऑस्कर जीते हैं.

वो जानते थे कि वो हमेश सिनेमा के संसार के साथ जुड़े रहेंगे क्योंकि उनके दादा बॉलीवुड में सिनेमाटोग्राफ़र थे जिन्होंने भारत की पहली रंगीन फ़िल्म झांसी की रानी (1953) में काम किया था. उनके पिता बॉलीवुड के एक बड़े प्रोड्यूसर रहे हैं जिन्होंने शहंशाह (1988) फ़िल्म का निर्माण किया था. इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका अमिताभ बच्चन ने निभाई थी.

जब नमित मल्होत्रा 18 साल के हुए तो उन्होंने अपने पिता को बताया कि वो निर्देशक बनना चाहते हैं लेकिन उनके पिता ने उन्हें फ़िल्म निर्माण की अलग-अलग कलाओं को सीखने के लिए कहा जिनमें तकनीकी पक्ष पर उन्होंने ज़ोर दिया.

उनके पिता ने उनसे कहा कि वो फ़िल्म कभी भी डायरेक्ट कर सकते हैं लेकिन तकनीक गेमचेंजर होने वाली है.

बॉलीवुड के निर्देशकों को नई तकनीक दी
मल्होत्रा ने फिर एक कंपनी की शुरुआत की जो फ़िल्म निर्माताओं को एडिटिंग सेवा देती थी. एक साल बाद 1995 में उन्होंने प्राइम फ़ोकस की स्थापना की जो फ़िल्म निर्माण के बाद भी सहायता करती थी.

मल्होत्रा कहते हैं, "हमने जब स्थापना की हम तबसे लगातार नए परिवर्तन ला रहे थे. हमने जो कुछ भी किया वो भारत में अपने आप में पहली बार था."

2004 में वो विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए एक रोबोटिक क्रेन लेकर आए थे जो कि भारत में पहली बार हुआ था.

वो याद करते हुए कहते हैं, "वो बहुत जटिल उपकरण था. एक शूट के लिए उसे स्थापित करने में चार घंटे समय लगता. अभिनेता और निर्देशक कहते कि 'यह क्या चीज़ है?"

उस समय तक भारतीय लोग हॉलीवुड की लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स ट्राइलॉजी जैसी फ़िल्में देख चुके थे जिनमें ऐसी डिजिटल तकनीक इस्तेमाल हुई थी जिसने रंगों और किरदारों को अलग ही रूप दिया था.

वो कहते हैं, "हम उसको दोहरा सकने में समर्थ थे."

प्राइम फ़ोकस का विकास शुरू हुआ लेकिन मल्होत्रा कहते हैं कि उन्होंने पाया कि भारतीय फ़िल्म निर्माता बदलावों को स्वीकार करने में काफ़ी धीमे हैं.

वो कहते हैं, "फ़िल्म व्यवसाय में बदलाव बहुत मुश्किल होता है. वो उसी में आरामदेह महसूस करते हैं जिसमें उन्होंने फ़िल्म बनाई है. हर किसी को एक नई तकनीक पर साथ ले आना काफ़ी संघर्षपूर्ण था."

विदेश का किया रुख़
इसी दौरान उन्होंने विदेश में भी पांव पसारने का सोचना शुरू किया.

"मुझको इस चीज़ ने विश्वास दिलाया कि हम भारत में इसे एक-चौथाई क़ीमत पर कर सकते हैं तो हम इसका लाभ क्यों न उठाएं और इसे पश्चिम में लेकर जाएं?"

प्राइम फ़ोकस कंपनी जो कि भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में साल 2006 में लिस्टेड हो चुकी थी वो छोटी-छोटी पोस्ट-प्रोडक्शन कंपनियों को ख़रीदकर अमेरिका और ब्रिटेन में दाख़िल हुई.

2010 में वो पहली कंपनी थी जिसने पूरी हॉलीवुड फ़िल्म क्लैश ऑफ़ द टाइटंस को 2डी से 3डी में बदला.

चार साल बाद इसने लंदन स्थित डबल नेगेटिव कंपनी को ख़रीद लिया जो कि पहले से ही क्रिस्टोफ़र नोलन की इंसेप्शन फ़िल्म के विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए ऑस्कर जीत चुकी थी. उसके बाद कंपनी ने छह और ऑस्कर विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए जीते.

मल्होत्रा अभी भी भारतीय फ़िल्म उद्योग में दिलचस्पी रखते हैं और वो बॉलीवुड सुपरहीरो फ़िल्म ब्रह्मास्त्र के निर्माताओं में से एक हैं.

भारतीय फ़िल्में क्यों विज़ुअल इफ़ेक्ट्स में पिछड़ीं
वो कहते हैं, "हर कोई चमत्कार पसंद करता है. हर कोई स्पाइडरमैन पसंद करता है, अवतार पसंद करता है."

वो कहते हैं कि भारतीय फ़िल्मों में अब विजुअल इफ़ेक्ट्स पर ख़र्चा किया जा रहा है. वो बाहुबली और आरआरआर फ़िल्मों का हवाला देते हैं.

उनका कहना है, "वीएफ़एक्स पर ख़र्च करना अब बढ़ रहा है. ये फ़िल्में मील का पत्थर हैं क्योंकि हमने आज तक ऐसी पीरियड फ़िल्म नहीं देखी जिसमें ऐसे विज़ुअल इफ़ेक्ट्स हों जो हमें चौंका कर रख दें."

भारत में एक सदी पहले फ़िल्में बनना शुरू हो गई थीं लेकिन आज तक यहां अवतार और इंटरस्टेलर जैसी फ़िल्में नहीं बन पाईं?

इस सवाल पर मल्होत्रा कहते हैं, "हमारे फ़िल्म निर्माताओं के सिनेमा को लेकर अलग संदर्भ बिंदु हैं."

वो कहते हैं कि उदाहरण के तौर पर देखें तो स्टेनली क्युबरिक की साई-फ़ाई फ़िल्म 2001: ए स्पेस ओडिसी को नोलन फ़िल्म निर्माण में मील का पत्थर मानते हैं.

मल्होत्रा कहते हैं, "जब नोलन इंटरस्टेलर बनाना चाहते हैं तो वो सोचते हैं कि वो कैसे फ़िल्म निर्माण और कहानी कहने की कला की सीमाओं को उस तरह से तोड़ सकें जैसे 1968 में उस फ़िल्म (2001: ए स्पेस ओडिसी) ने किया था."

दूसरी ओर भारतीय निर्देशकों के पास देश की एक समृद्ध फ़िल्म इतिहास की प्रेरणा है.

"अगर निर्देशक और अभिनेता राज कपूर 50 और 60 के दशक की एक तरह की फ़िल्मों के लिए प्रसिद्ध रहेंगे तो इस सिनेमा से स्टार वॉर्स या स्पेस ओडिसी जैसी फ़िल्मों की जगह वैसी ही फ़िल्में आएंगी." (bbc.com)

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