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पाकिस्तान में महंगाई को कितना क़ाबू कर पाएँगे शहबाज़ शरीफ़?
12-Apr-2022 8:31 AM
पाकिस्तान में महंगाई को कितना क़ाबू कर पाएँगे शहबाज़ शरीफ़?

-तनवीर मलिक

पाकिस्तान में इमरान खान की सत्ता से विदाई के बाद आने वाली शहबाज़ शरीफ़ नई सरकार को आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा. नए पीएम को गठबंधन सरकार चलाने के साथ ही जिन बड़ी आर्थिक चुनौतियों से जूझना होगा, उनमें सबसे ऊपर महंगाई है.

इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) पार्टी की सरकार को बढ़ती महंगाई को लेकर अपने सियासी विरोधियों के तीखे तेवरों का सामना करना पड़ा है. पाकिस्तान में इस वक्त कई ज़रूरी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं.

दुनिया में जिन देशों में खाने-पीने की चीजों की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हुई हैं उनमें पाकिस्तान भी शुमार है. पाकिस्तान को अपनी ऊर्जा और खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है.

पाकिस्तान में नई सरकार के आने के बाद महंगाई घटने की उम्मीद जताई जा रही है लेकिन अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि यह कम नहीं होने जा रही है. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने पहले ही कह दिया है कि चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति बनी रहेगी.

पीएमएल (एन) की आर्थिक टीम की प्रमुख सदस्य और पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. आयशा घोष पाशा के मुताबिक महंगाई बढ़ने की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वजहें हैं.

उनके मुताबिक नई सरकार इन दोनों पहलुओं को ध्यान में रख कर आर्थिक रणनीति तैयार करेगी.

पीटीआई के दौर में कैसी रही महंगाई की मार?
पाकिस्तान के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक जिस दौर में पीएमएल( एन) के दौर में 2017-18 के दौरान वित्त वर्ष में महंगाई दर 5.2 फीसदी थी. लेकिन पीटीआई सरकार के पहले वित्त वर्ष यानी 2018-19 के पहले ही नौ महीनों में महंगाई दर बढ़ कर सात फीसदी पर पहुंच गई.

सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-2020 में महंगाई की दर आगे बढ़कर 10.74 हो गई. हालांकि, अगले वित्त वर्ष ( 2020-21) के दौरान इसमें थोड़ी गिरावट देखी गई और ये दर गिर कर नौ फीसदी पर पहुंच गई.

लेकिन वित्त वर्ष 2021-22 के पहले नौ महीनों में महंगाई दर बढ़ कर 12.7 फीसदी पर पहुंच गई.

सेंट्रल बैंक ऑफ पाकिस्तान ने ब्याज़ दरों में वृद्धि करते हुए चालू वित्त वर्ष के अंत तक देश में मुद्रास्फीति के अपने पुराने अनुमानों को संशोधित कर दिया है. उसने महंगाई दर 11 फीसदी से अधिक रहने का अनुमान लगाया है.

पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री और अर्थशास्त्री डॉक्टर हफ़ीज़ पाशा का कहना है कि देश की मौजूदा महंगाई दर 13 फीसदी है.

पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के एक अर्थशास्त्री और रिसर्च फेलो शाहिद महमूद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, '' आधिकारिक आंकड़े आम तौर पर वास्तविक महंगाई दर थोड़ा कम होते हैं. ''

उन्होंने दावा किया कि उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश में महंगाई दर अब करीब 15 फीसदी पर पहुंच गई है.

ऊंची महंगाई दर की क्या वजह है?
देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों के अनुसार, देश में ऊंची महंगाई दर की वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और और दूसरे उत्पादों की ऊंची कीमतें हैं. पाकिस्तान को स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए उनके आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. वहीं डॉलर के मुकाबले रुपये के विनिमय दर में तेज़ गिरावट से भी देश में महंगाई बढ़ रही है.

डॉक्टर हफीज पाशा ने कहा कि इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल, गैस और वस्तुओं की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं और उनमें कोई बड़ी कमी नहीं है. डॉ. पाशा ने कहा कि यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष ने तेल और गैस की कीमतों को बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया है.

आरिफ हबीब लिमिटेड की इकोनॉमिक एनालिस्ट सना तौफीक ने कहा कि ग्लोबल मार्केट में कमोडिटी की कीमतों में 'सुपर बूम साइकल' आया हुआ है, जिसकी वजह से कीमतें काफी ज्यादा हैं.

उनके मुताबिक, पाकिस्तान में मौजूदा समय में महंगाई 'आयातित महंगाई' है यानी आयातित सामान की वजह से महंगाई बढ़ी है. पाकिस्तान का कमज़ोर रुपया भी स्थानीय उपभोक्ताओं के लिए इसे और महंगा बनाता है.

अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि वैश्विक रुझानों की वजह से पाकिस्तान में जो महंगाई दर है, उस पर सत्ता में आने वाली नई सरकार की वजह से तुरंत कमी की उम्मीद बेमानी होगी.

पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने भी हाल ही में एक बयान में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और कमोडिटी की कीमतों में तत्काल कमी की कोई संभावना नहीं है.

अर्थशास्त्री डॉ. फारुख सलीम ने कहा कि महंगाई के मूल कारणों को तुरंत दूर करना बहुत मुश्किल है. उन्होंने कहा कि नई सरकार के लिए दूध, चीनी, गेहूं, खाना पकाने के तेल और दालों के दाम कम करना मुश्किल होगा.

उन्होंने कहा कि देश में दालें, गेहूं और खाद्य तेल का आयात किया जा रहा है. मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए नई सरकार के लिए उन पर सब्सिडी देना मुश्किल होगा क्योंकि खजाने में पैसा नहीं है.

उन्होंने सवाल किया कि आम आदमी को राहत देने के लिए पैसा कहां से आएगा क्योंकि इस देश में चार अरब डॉलर की गैस ही चोरी होती है. बिजली क्षेत्र में 450 अरब तक का कर्ज़ है. ऐसा ही सामानों का कारोबार का संचालन भी है. अरबों का निवेश किया जाता है और वही गेहूं फिर चोरी हो जाता है. उनके मुताबिक आम आदमी को महंगाई से राहत मिलना मुश्किल है.

उन्होंने कहा कि नई सरकार को आईएमएफ के पास जाना होगा. लिहाजा मौजूदा सब्सिडी को समाप्त करना होगा. उस स्थिति में देश में चीजों की कीमतें और बढ़ जाएंगी.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को इस वित्त वर्ष के अंत तक 5 अरब रुपये का बाहरी भुगतान करना है. यह तभी संभव होगा जब उसे आईएमएफ से मदद मिलेगी. आईएमएफ से पैसा लेना है तो सब्सिडी खत्म करनी होगी.

डॉ. हफीज़ पाशा ने कहा कि अगले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति को कम करना बहुत मुश्किल है. तेल, गैस और दूसरी चीजों की की कीमतें बहुत अधिक हैं. सरकार सब्सिडी नहीं दे पाएगी. लिहाजा पाकिस्तान में महंगाई की ऊंची दरें बरकरार रहेंगीं.

उन्होंने कहा कि देश का बजट घाटा 3500 अरब रुपया आंका गया है लेकिन लग रहा है कि अब यह बढ़कर 4500 अरब रुपये हो जाएगा.

नवाज लीग की आर्थिक टीम की सदस्य और पंजाब की पूर्व वित्त मंत्री डॉ आयशा बख्श पाशा ने कहा, "हमारे पास अर्थशास्त्रियों की एक टीम है जो मुद्रास्फीति के स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय कारणों पर गौर करेगी."

उन्होंने कहा कि घरेलू नीति और प्रशासनिक मामलों पर भी ध्यान दिया जाएगा ताकि कीमतों को स्थिर किया जा सके.

आर्थिक पत्रकार शहबाज़ राणा ने कहा कि मुद्रास्फीति के अंतरराष्ट्रीय कारणों के साथ कुछ नीतिगत फैसले हैं जिन्हें पीटीआई सरकार ठीक से नहीं ले सकी और अब यह अगली सरकार पर निर्भर करेगा कि वह इन फैसलों को कैसे लेती है.

उन्होंने कहा कि नीतिगत फैसलों में सरकार किसी ऐसी चीज की मांग और आपूर्ति पर काम करती है जो पिछली सरकार ठीक से नहीं कर पाई थी. इसी तरह विनिमय दर और मूल्य प्रबंधन के क्षेत्र हैं, जिन पर नई सरकार को विशेष रूप से ध्यान देना होगा.

क्या तेल और बिजली की कीमत स्थिर रहेगी ?
पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान ने मार्च की शुरुआत में घोषणा की थी कि देश के पेट्रोल और बिजली की कीमतें अगले बजट तक स्थिर रहेंगी. इसके लिए सरकार को अपनी जेब से सब्सिडी का भुगतान करना होगा.

डॉ. फारुख सलीम ने कहा कि सरकार डीजल और पेट्रोल की कीमत को मौजूदा स्तर पर रखने के लिए हर दिन 3 अरब रुपये की सब्सिडी दे रही है. उन्होंने कहा कि अगर नई सरकार ने वैश्विक रूझान के अनुरूप कीमतों में वृद्धि की अनुमति दी तो इसका स्थानीय स्तर पर महंगाई दर पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि सरकार को बाहरी भुगतान करना होगा. इसके लिए उसे आईएमएफ के पास जाना होगा जो उसे सभी प्रकार की सब्सिडी समाप्त करने के लिए कहेगा.

डॉ. हफीज पाशा ने कहा कि आईएमएफ के साथ बातचीत करनी होगी क्योंकि बाहरी भुगतान एक बड़ा मुद्दा बन गया है. सरकार को आईएमएफ की शर्तों को पूरा करने के लिए डीजल और पेट्रोल की कीमत 25 रुपये तक बढ़ानी होगी.

इस संबंध में शाहिद महमूद ने कहा कि बजट घाटे के लिए हर साल साढ़े तीन से चार ट्रिलियन रुपये घरेलू स्रोतों से और चौदह से पंद्रह अरब डॉलर बाहरी स्रोतों से प्राप्त होते हैं. पेट्रोल और डीजल पर सब्सिडी भी इसी श्रेणी में आती है.

डॉ. आयशा ने कहा कि जब नई सरकार आएगी तो वह स्थानीय उपभोक्ताओं पर वैश्विक तेल कीमतों के प्रभाव को कम करने के मुद्दे पर गौर करेगी. (bbc.com)

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