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यूक्रेन हो ना हो, ये दो देश शामिल हो सकते हैं नाटो में
12-Apr-2022 12:21 PM
यूक्रेन हो ना हो, ये दो देश शामिल हो सकते हैं नाटो में

नाटो चीफ स्टोल्नटेनबर्ग कह चुके हैं कि अगर ये दोनों देश ब्लॉक में शामिल होना चाहें, तो प्रक्रिया जल्द पूरी हो जाएगी. जून 2022 में नाटो का मैड्रिड सम्मेलन होना है. अनुमान है कि उसके पहले स्वीडन और फिनलैंड फैसला ले लेंगे.

    डॉयचे वैले पर स्वाति मिश्रा की रिपोर्ट-

"रूस वैसा पड़ोसी नहीं है, जैसा हमने सोचा था. उसके साथ हमारे रिश्ते इस तरह बदले हैं कि अब इसके बेहतर होने या पहले जैसे होने की उम्मीद नहीं है."

ये पंक्तियां फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन ने 2 अप्रैल को कहीं. पीएम मरीन 'सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ फिनलैंड' की सदस्य हैं. पार्टी काउंसिल में बोलते हुए मरीन रूस के साथ रिश्तों में आए बदलाव और फिनलैंड की सुरक्षा चिंताओं पर अपनी राय रख रही थीं. उनकी टिप्पणियों का संदर्भ यूक्रेन युद्ध से जुड़ा था. इसी क्रम में मरीन ने नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) से जुड़ा एक अहम एलान भी किया. उन्होंने कहा कि नाटो में शामिल होने के मुद्दे पर फिनलैंड इसी साल मई तक फैसला ले लेगा.
फिनलैंड और स्वीडन: करीबी रिश्ते, कई समानताएं

फिनलैंड के पश्चिम में 'गल्फ ऑफ बॉथनिया' के पार स्वीडन बसा है. नाटो सदस्यता और इस पर फिनलैंड के रुख में स्वीडन की गहरी दिलचस्पी है. ये दोनों नॉर्डिक पड़ोसी 1 जनवरी, 1995 को साथ ही ईयू में शामिल हुए थे. दोनों देशों के बीच बहुत करीबी और पुराने रिश्ते हैं. फिनलैंड करीब 700 साल तक स्वीडन का हिस्सा था. उस दौर में बाल्टिक सागर पर अधिकार को लेकर स्वीडन और रूस के बीच पुराना झगड़ा था. स्वीडन समुद्र और उसके व्यापारिक मार्ग पर नियंत्रण करना चाहता था. वहीं रूस चाहता था कि वह पश्चिम की ओर अपना विस्तार बढ़ाए.

इसी क्रम में 1808-1809 में स्वीडन और रूस के बीच 'फिनिश युद्ध' हुआ. सितंबर 1809 में फिनलैंड के शहर फ्रेयद्रिकसामन में हुए शांति समझौते से युद्ध खत्म हुआ. इस समझौते में स्वीडन का करीब एक तिहाई इलाका उसके हाथ से निकल गया, जिसमें फिनलैंड भी शामिल था. फिनलैंड को रूसी साम्राज्य का स्वायत्त हिस्सा बना दिया गया. इस बंटवारे को स्वीडन के इतिहास के सबसे तकलीफदेह अध्यायों में गिना जाता है. 1917 में फिनलैंड, रूस से आजाद हुआ. इसके बाद से फिनलैंड और स्वीडन के बीच बहुत करीबी ताल्लुकात हैं.

नाटो सदस्यता पर दोनों का रुख एक-दूसरे के लिए मायने रखता है

इसे आप स्वीडन की दूसरी प्रमुख विपक्षी पार्टी 'दी स्वीडन डेमोक्रैट्स' के नेता यिमी ओकेसॉन के बयान से भी समझ सकते हैं. 9 अप्रैल को एक स्वीडिश अखबार के साथ बातचीत में ओकेसॉन ने कहा, "अगर फिनलैंड नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन देता है, तो हमारी पार्टी भी स्वीडन के नाटो सदस्यता लेने का समर्थन करेगी." ओकेसॉन ने यह भी कहा कि अगर फिनलैंड नाटो के लिए अप्लाई करता है, तो वह अपनी पार्टी काउंसिल से भी नाटो सदस्यता का समर्थन करने का आग्रह करेंगे. 'दी स्वीडन डेमोक्रैट्स' पार्टी अब तक अपने देश के नाटो में शामिल होने का विरोध करती आई थी. अगर वह अपना रुख बदलती है, तो स्वीडन के नाटो में शामिल होने के मुद्दे को संसद में बहुमत मिल जाएगा.

अपनी पार्टी के बदले नजरिये की वजह बताते हुए ओकेसॉन ने कहा, "हमारे रुख में आए बदलाव की वजह यह है कि फिनलैंड अब स्पष्ट तौर पर नाटो सदस्यता की ओर बढ़ रहा है. कई संकेत हैं, जो बताते हैं कि यह जल्द ही होने वाला है. एक तो फिनलैंड का रुख और दूसरी यह बात कि यूक्रेन, जो कि नाटो सदस्य नहीं है, जिस तरह अभी बिल्कुल अकेला है, इन दो चीजों ने नाटो के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया है."
सुरक्षा की भावना

नाटो के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है- कलेक्टिव डिफेंस. यानी एक या एक से ज्यादा सदस्यों पर हुआ हमला, सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा. नाटो के सेक्रेटरी जनरल स्टोल्टेनबर्ग के शब्दों में- ऑल फॉर वन, वन फॉर ऑल. यही "एक के लिए सब, सबके लिए हर एक" की सुरक्षा गारंटी है, जो बदले घटनाक्रम में यूरोपीय देशों के लिए नाटो सदस्यता को आर्कषक बनाती है. यूक्रेन की स्थितियां एक हाइपोथिसिस बना रही हैं. अगर कल को युद्ध हुआ, उस स्थिति में कोई देश अकेला नहीं रहना चाहता.

स्वीडन और फिनलैंड के नाटो की तरफ बढ़ रहे कदमों की ऐतिहासिक अहमियत भी है. दोनों देश अपनी रक्षा और विदेश नीति में 'तटस्थता' का पालन करते आए हैं. फिनलैंड की करीब 1,300 किलोमीटर लंबी सीमा रूस से सटी है. 1917 में रूस से आजाद होने के बाद करीब दो दशक तक चीजें ठीक रहीं. फिर नवंबर 1939 में सोवियत संघ ने फिनलैंड पर हमला कर दिया.

1940 में फिनलैंड को मजबूरन सोवियत के साथ संधि करनी पड़ी. युद्ध खत्म होने के बाद 1948 में उसे फिर से सोवियत संघ के साथ "ट्रीटी ऑफ फ्रेंडशिप, कोऑपरेशन ऐंड म्युचुअल असिस्टेंस" करनी पड़ी. इसके तहत फिनलैंड ने वादा किया कि वह तटस्थता के सिद्धांत पर अमल करेगा, बशर्ते कि उस पर हमला ना हो. इस संधि के चलते फिनलैंड ना तो नाटो में शामिल हुआ और ना ही वह सोवियत संघ के नेतृत्व वाले 'वॉरसॉ पैक्ट' का हिस्सा बना. सोवियत संघ के साथ हुई संधि 1992 में रद्द हो गई. इसी साल रूस और फिनलैंड के बीच एक नई संधि हुई, जिसमें दोस्ताना रिश्ते बनाए रखने की बात थी.

तटस्थता स्वीडन के भी इतिहास का हिस्सा रही है

1814 के बाद से स्वीडन ने किसी युद्ध में हिस्सा नहीं लिया. वह कभी किसी सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं हुआ. दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद भी स्वीडन ने तटस्थता बनाए रखने के लिए "नॉर्डिक डिफेंस अलायंस" बनाने की कोशिश की. मगर डेनमार्क और नॉर्वे इसके लिए राजी नहीं हुए. उन्होंने 1949 में नाटो की सदस्यता ले ली. वहीं स्वीडन ने शांति की स्थिति में गुटनिरपेक्षता और युद्धकाल में तटस्थता को अपनी आधिकारिक नीति बनाया. कई जानकार कहते हैं कि स्वीडन का यह फैसला उसके हित में था. अगर उस समय वह नाटो में गया होता, तो शायद सोवियत संघ फिनलैंड पर कब्जा कर लेता. ऐसा होने पर सोवियत बिल्कुल स्वीडन के पड़ोस में आ जाता.

तटस्थ रहते हुए भी फिनलैंड और स्वीडन के पश्चिमी देशों के साथ मजबूत रिश्ते बने रहे. दोनों ने 1995 में ईयू की सदस्यता ली. लेकिन इसके बाद भी दोनों देशों में बहुसंख्यक राय नाटो सदस्यता के खिलाफ थी. यह स्थिति बीते साल से बदलने लगी. यूक्रेन पर रूस के हमलावर रुख और बाल्टिक सागर में संदिग्ध गतिविधियों के कारण दोनों देशों में आम राय पर असर पड़ा. यूक्रेन पर रूस के हमले के शुरुआती दिनों में स्थानीय मीडिया द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में पता चला कि स्वीडन में 51 फीसदी लोग और फिनलैंड में 53 प्रतिशत जनता नाटो सदस्यता के समर्थन में है.

जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, नाटो सदस्यता के पक्ष में माहौल और जोर पकड़ने लगा. 30 मार्च को हुए हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक, फिनलैंड के 61 फीसदी लोग नाटो सदस्यता के पक्ष में हैं. 23 फीसदी अभी अपना मन नहीं बना सके हैं और केवल 16 प्रतिशत लोग ही इसके खिलाफ हैं. इसके अलावा फिनलैंड और यूक्रेन, दोनों ने विदेशी युद्धों में तटस्थ रहने की अपनी नीति से अलग जाकर यूक्रेन के लिए सहायता भी भेजी है. 1939 में सोवियत संघ के खिलाफ फिनलैंड की मदद के बाद यह पहली बार है, जब स्वीडन ने किसी देश को सैन्य सहायता मुहैया कराई हो.
फिनलैंड में नागरिकों ने दो बड़े अभियान शुरू किए

एक नागरिक अभियान में नाटो सदस्यता पर जनमत संग्रह करवाने की मांग की गई. दूसरे में राष्ट्रपति से अपील की गई कि वे नाटो सदस्यता पर संसद में प्रस्ताव लाएं. इन दोनों नागरिक मुहिमों को वहां बहुत समर्थन मिला है. मार्च 2022 में दिए एक इंटव्यू में फिनलैंड के विदेश मंत्री पेक्का हैविस्टो ने कहा, "पहली बार फिनलैंड में बहुसंख्यक आबादी नाटो सदस्यता के पक्ष में है." 8 अप्रैल को एक रूसी विमान ने कथित तौर पर फिनलैंड के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया. फिनलैंड के विदेश और रक्षा मंत्रालय से जुड़ी कुछ वेबसाइटों पर भी हाल में साइबर हमले हुए. इन्हें लेकर भी रूस पर आरोप लग रहे हैं. ऐसी घटनाएं भी नाटो के पक्ष में माहौल बना रही हैं.

फिनलैंड की सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार के दो प्रमुख दल- सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ फिनलैंड और सेंटर पार्टी पहले नाटो पर बंटे हुए थे. लेकिन अब उनके बीच भी सहमति बनती दिख रही है. फिनलैंड और स्वीडन में एक आशंका यह है कि अगर वे सदस्यता के लिए अप्लाई करते हैं, तो अप्लाई करने से लेकर नाटो सदस्यों द्वारा इसे मंजूर किए जाने की अवधि के बीच वे जोखिम की स्थिति में आ सकते हैं. इस संबंध में नाटो प्रमुख स्टोल्नटेनबर्ग ने दो अहम संकेत दिए हैं. पहला यह कि दोनों देशों के आवेदन दिए जाने के बाद सदस्यता की प्रक्रिया पूरी करने में बहुत समय नहीं लगेगा. उन्होंने दूसरा संकेत यह दिया है कि अप्लाई करने से लेकर दोनों देशों के आधिकारिक तौर पर नाटो में शामिल होने तक अंतरिम सुरक्षा गारंटी की व्यवस्था की जा सकती है.

रूस का रुख
स्वीडन और फिनलैंड के इस घटनाक्रम पर रूस की भी नजर है. नाटो का विस्तार रूस के लिए संवेदनशील मुद्दा है. वह इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताता है.यूक्रेन पर हमले के लिए भी वह इसे बड़ी वजह बताता है. रूस की लंबी सीमा फिनलैंड से मिलती है. उसके लिए फिनलैंड एक बफर जोन है. वह कतई नहीं चाहता कि नाटो उसके इतने करीब आए. इसीलिए रूस, स्वीडन और फिनलैंड के भी नाटो में जाने का विरोध करता है. यूक्रेन पर हमला करने के अगले दिन ही रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा, "अगर फिनलैंड और स्वीडन नाटो में शामिल होते हैं, जो कि एक सैन्य संगठन है, तो इसके गंभीर सैन्य और राजनैतिक परिणाम होंगे और रशियन फेडरेशन को जवाबी कदम उठाने पड़ेंगे."

रूस ने केवल चेतावनी नहीं दी है. 16 मार्च, 2022 को फिनलैंड के रूसी दूतावास ने वहां रह रहे रूसियों से अपील की कि अगर फिनलैंड में रह रहे रूसी नागरिकों या रूसी भाषियों के साथ किसी तरह का भेदभाव या पक्षपात हो रहा है, उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, तो वे ईमेल भेजकर दूतावास को सूचित करें. रूस ने यूक्रेन हमले से पहले भी वहां रह रहे रूसी भाषियों को निशाना बनाए जाने की बात कही थी.

जून तक लिया जा सकता है फैसला
आने वाले दिन, खासतौर पर अप्रैल, मई और जून बहुत अहम होने वाले हैं. यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद फिनलैंड की सरकार 14 अप्रैल को एक रिपोर्ट लाने वाली है. इसमें फिनलैंड की सुरक्षा नीति के अपडेट्स होने की उम्मीद है. उसके बाद संसद में इस मुद्दे पर बहस शुरू होगी. फिर सरकार एक और रिपोर्ट लाएगी, जिसमें नाटो सदस्यता के लिए आधिकारिक तौर पर अनुशंसा किए जाने का अनुमान है.

फिनलैंड के रुख का दोहराव स्वीडन में भी होने की उम्मीद है. फिनलैंड की पीएम सना मरीन ने 9 अप्रैल को भी कहा है कि उनका मकसद है कि स्वीडन और फिनलैंड, दोनों एकसाथ एक जैसा फैसला लें. 29 जून, 2022 को नाटो का मैड्रिड सम्मेलन होना है. उम्मीद है कि उसके पहले ही स्वीडन और फिनलैंड अपना फैसला ले लेंगे.

फिलहाल नाटो के सदस्य देशों (नॉर्वे, पोलैंड, एस्टोनिया, लातिविया, लिथुआनिया) की रूस के साथ करीब 1,200 किलोमीटर लंबी सीमा है. अगर फिनलैंड भी नाटो में आ जाता है, तो यह बढ़कर दोगुनी हो जाएगी. 2014 में रूस ने जब पहली बार यूक्रेन पर हमला किया, तब भी स्वीडन और फिनलैंड की पॉलिसी पर असर दिखा था. दोनों देशों ने नाटो के साथ सहयोग बढ़ा दिया था. साझा सैन्य अभ्यास बढ़ा दिए थे. वे नाटो के सदस्य ना होते हुए भी उसका करीबी हिस्सा बन गए थे. अब ताजा यूक्रेन युद्ध के बाद जैसे हालात बन रहे हैं, उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि नाटो के जिस कथित विस्तारवाद के मुद्दे पर व्लादिमीर पुतिन ने यह जंग शुरू की, वही युद्ध अब यूरोप में नाटो की हवा बना रहा है. (dw.com)
 

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