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चकमा शरणार्थियों की कथित नस्लीय जनगणना पर विवाद
12-Apr-2022 12:22 PM
चकमा शरणार्थियों की कथित नस्लीय जनगणना पर विवाद

50-60 साल पहले विस्थापित हुए परिवार क्या आज भी शरणार्थी ही कहे जाएंगे? अरुणाचल सरकार और वहां के हाजोंग व चकमा समुदाय को इसी सवाल का जवाब चाहिए.

    डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट

पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में दशकों पुराने हाजोंग और चकमा शरणार्थियों की कथित नस्लीय जनगणना और  पुनर्वास पर विवाद लगातार तेज हो रहा है. एक ओर जहां राज्य सरकार और तमाम स्थानीय संगठन उनको राज्य से अन्यत्र बसाए जाने के पक्ष में हैं वहीं दूसरी ओर, इन शरणार्थियों के संगठनों ने राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली पेमा खांडू सरकार पर शरणार्थियों की नस्लीय जनगणना का आरोप लगाया है. इसके विरोध में इन संगठनों ने हाल में दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन सौंपा. हालांकि राज्य सरकार ने इस आरोप को निराधार बताया है.

चकमा विकास संगठन (सीडीएफआई) ने मानवाधिकार आयोग से चकमा और हाजोंग जनजाति के करीबी 65,000 लोगों की 11 दिसंबर, 2021 को शुरू हुई जनगणना में हो रहे जातीय भेदभाव को रोकने और अपने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए फौरन हस्तक्षेप करने की मांग की है. शरणार्थियों का आरोप है कि कथित जनगणना के जरिए उनको राज्य से निकालने का प्रयास किया जा रहा है. इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने चकमा और हाजोंग शरणार्थियों के मानवाधिकारों को लेकर चिंता जताई है. आयोग ने गृह मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश सरकार से कहा है कि किसी भी सूरत में इन शरणार्थियों के मानवाधिकारों की रक्षा होनी चाहिए.

चकमा संगठन ने हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को भेजे गए एक पत्र में भी इस जनजाति के शरणार्थियों की नस्लीय प्रोफाइलिंग का आरोप लगाया था.

कहां से आए चकमा शरणार्थी
चकमा बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग हैं जबकि हाजोंग हिन्दू हैं. यह लोग 1964 से 1966 के बीच तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत में आकर अरुणाचल प्रदेश में बस गए थे. इन दोनों समुदायों के लोग असम समेत कई पूर्वोत्तर राज्यों में फैले हैं. 1962 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में कप्ताई बांध को शुरू करने के बाद इन अल्पसंख्यक समुदायों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ. उसके बाद यह लोग खुली सीमाओं के रास्ते भारत पहुंचे थे.

मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि अरुणाचल प्रदेश में चकमा और हाजोंग शरणार्थी नहीं रह सकते. उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश जनजातीय राज्य है और यहां बाहरी लोगों को बसने की अनुमति नहीं मिल सकती. मुख्यमंत्री का कहना है कि शुरुआत में राज्य में चकमा और हाजोंग लोग शरणार्थी के रूप में आए थे. लेकिन बाद में उनकी संख्या कई गुना बढ़ गई. सरकार ने बीते साल विधानसभा में कहा था कि 2015-16 में कराए गए एक विशेष सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में चकमा और हाजोंग लोगों की संख्या 65,857 थी. हालांकि गैर सरकारी अनुमान के मुताबिक यह तादाद दो लाख से ज्यादा बताई जाती है.

राज्य सरकार का पक्ष
मुख्यमंत्री कहते हैं, "लोगों को बसाने के लिए हमारे पास सटीक आंकड़े होने चाहिए. इसी वजह से जनगणना की जा रही है ताकि यह पता चल सके कि वैध और अवैध शरणार्थियों की कितनी तादाद  है. इसके बाद हम उनको तमाम सुविधाओं समेत दूसरे राज्यों में बसाने के लिए केंद्र से बातचीत शुरू कर सकेंगे.” खांडू के मुताबिक, अब तक केंद्र या राज्य किसी सरकार ने कभी इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास नहीं किया. अब प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह व राज्य सरकार इसका एक स्थायी समाधान निकालने का प्रयास कर रही है.

अखिल अरुणाचल प्रदेश छात्र संघ (आप्सू) के महासचिव तबोम दाई का कहना है कि चकमा और हाजोंग की जनगणना मूल निवासियों की सुरक्षा के लिए एक नियमित प्रशासनिक कवायद है. संगठन ने नस्लीय आधार पर जनगणना के आरोपों को निराधार करार दिया है.

चकमा और हाजोंग समुदाय का आरोप
लेकिन शरणार्थी अपने दावे पर अडिग हैं. दिल्ली में प्रदर्शन करने वाले अरुणाचल प्रदेश चकमा छात्र संघ के अध्यक्ष रूप सिंह चकमा कहते हैं, "अरुणाचल सरकार अवैध तरीके से नस्लीय आधार पर जनगणना कर रही है जो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देशों का खुला उल्लंघन है.” उनका दावा है कि वर्ष 1964 से 1969 के दौरान भारत आने वाले इन दोनों समुदाय के लोग 1972 के इंदिरा-मुजीब समझौते और 1955 के नागरिकता अधिनियम के मुताबिक भारतीय नागरिक हैं. इसी तरह भारत में पैदा होने वाले चकमा और हाजोंग जनजाति के लोग जन्म से भारत के नागरिक हैं.

चकमा शरणार्थियों को 50 साल बाद मिलेगी नागरिकता
कमेटी फॉर सिटीजनशिप राइट्स ऑफ द चकमाज एंड हाजोंग्स के महासचिव संतोष चकमा कहते हैं, "अरुणाचल सरकार ने इस विवाद को जारी रखने के लिए ही नस्लीय जनगणना शुरू की है. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो ऐसी जनगणना की अनुमति दे. इस विशेष जनगणना के जरिए सरकार सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने का प्रयास कर रही है.”

चकमा नेता सुभाष चकमा कहते हैं, "केंद्र सरकार को इस मामले में फौरन हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि विभाजन का दंश झेल चुके लोगों के वंशजों को निशाना बनने से रोका जा सके.” अमित शाह को सौंपे ज्ञापन में इन नेताओं ने मौजूदा जनगणना को फौरन रोकने और इसे खारिज करने की मांग की है. (dw.com)
 

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