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प्रशांत किशोर कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही चक्कर क्यों काट रहे हैं?
18-Apr-2022 10:13 PM
प्रशांत किशोर कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही चक्कर क्यों काट रहे हैं?

इमेज स्रोत,SANJAY DAS/BBC

-सरोज सिंह

प्रशांत किशोर और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की एक और बैठक शनिवार (16 अप्रैल) को हुई है.

बीते 10 महीने में ये दूसरा मौका है जब प्रशांत किशोर की कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से मुलाक़ात हुई है.

इससे पहले पिछले साल जुलाई में वो राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी से मिले थे. लेकिन उस समय ना तो कांग्रेस पार्टी ने और ना ही प्रशांत किशोर ने इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी किया था.

लेकिन इस बार की मुलाक़ात अलग है. कांग्रेस ने इस बार आधिकारिक बयान में इस बात को स्वीकार किया है कि 2024 में होने वाले चुनाव को लेकर प्रशांत किशोर ने एक प्रेजेंटेशन सोनिया गांधी और बाक़ी कांग्रेस नेताओं के सामने पेश की है.

समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने ये बात कही.

राहुल और कांग्रेस के ख़िलाफ़ जब बोले प्रशांत किशोर
पिछले साल जुलाई और इस साल अप्रैल में हुई दोनों मुलाक़ातों के बीच एक बयान उन्होंने बीते साल अक्टूबर में भी दिया था.

प्रशांत किशोर ने तब राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए कहा था, "नेता इस धोखे में न रहें कि लोग मोदी से नाराज़ हैं और वो मोदी को हरा देंगे. हो सकता है कि वो मोदी को हरा दें लेकिन बीजेपी कहीं नहीं जा रही है. पार्टी आने वाले कुछ दशकों तक राजनीति में बने रहने वाली है. राहुल गांधी के साथ शायद यही समस्या है कि उन्हें लगता है कि वक्त की बात है, लोग आपको सत्ता से निकाल फेंकेंगे. ऐसा नहीं होने वाला है."

उन्होंने आगे कहा, "जब तक आप मोदी को नहीं समझेंगे, उनकी ताकत को नहीं समझेंगे आप उन्हें हराने की रणनीति नहीं तैयार कर सकेंगे. मैं जो समस्या देख रहा हूं वो ये है कि लोग न तो उनकी ताकत समझ रहे हैं और न ही ये कि वो क्या बात है जो उन्हें पॉपुलर बना रही है. जब तक आप ये नहीं जानेंगे आप उन्हें हरा नहीं सकते."

वो यहीं नहीं रुके. उन्होंने बीजेपी के बारे में कहा, "बीजेपी भारतीय राजनीति का केंद्र बने रहने वाली है. वो जीते या हारे फ़र्क़ नहीं पड़ता, जैसा कांग्रेस के लिए 40 सालों तक था वैसे ही बीजेपी के लिए भी है, वो कहीं नहीं जा रही है. अगर आपने राष्ट्रीय स्तर पर 30 फीसदी वोट हासिल कर लिए हैं तो आप आसानी से नहीं जाएंगे."

प्रशांत किशोर और कांग्रेस के आला नेताओं के बीच की इस बैठक को उनके ऊपर लिखे बयान के मद्देनज़र भी देखने की ज़रूरत है.

इस बारे में बीबीसी ने कांग्रेस और प्रशांत किशोर की राजनीति को नज़दीक से देखने वाले तीन वरिष्ठ पत्रकारों से बात की.

हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार के पॉलिटिकल एडिटर विनोद शर्मा, कांग्रेस पर किताब लिखने वाले रशीद किदवई, प्रभात ख़बर के पूर्व संपादक रहे राजेन्द्र तिवारी से, जिन्होंने नीतीश कुमार के साथ उनके कार्यकाल को काफ़ी नज़दीक से देखा है.

तीनों वरिष्ठ पत्रकारों से बीबीसी ने दो सवाल पूछे. प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के साथ काम करने की एक कोशिश पिछले साल जुलाई में की, फिर बीच में कांग्रेस नेतृत्व के ख़िलाफ़ बयान भी दिए, अब शनिवार को दोबारा से कांग्रेस की बैठक में वो नज़र आए?

आख़िर प्रशांत किशोर कांग्रेस से चाहते क्या हैं ?
विनोद शर्मा : कांग्रेस भले ही आज पार्टी के तौर पर क्षीण हो गई हो, सीटों के लिहाज से कमज़ोर हो गई, लेकिन आज भी कांग्रेस 12 करोड़ वोट की पार्टी है. प्रशांत किशोर इस बात को जानते हैं और मानते हैं कि कांग्रेस एक बार दोबारा खड़ी हो सकती है. पहले उनकी जो बातचीत कांग्रेस नेतृत्व से हुई थी, उसमें प्रशांत किशोर की कुछ शर्तें पार्टी को शायद मंजूर नहीं थी. लेकिन इस बार बातचीत के पहले कोई ग्राउंड बना है ऐसा लगता है. नहीं तो कांग्रेस की तरफ़ से आधिकारिक बयान नहीं आता, जो इस बार आया है. इस वजह से लगता है कि आने वाले दिनों में उनकी और कांग्रेस की कुछ डील हो सकती है.

राजेन्द्र तिवारी : दरअसल वो अपना राजनीतिक रोल तलाश कर रहे हैं. बिहार चुनाव के बाद उन्होंने जेडीयू ज्वाइन की थी. लेकिन बाद में पार्टी के अंदर के लोग जैसे आरसीपी सिंह, लल्लन सिंह से उनकी बनी नई. दोनों को लगा की उनके हाथ से चीज़े जा रही हैं. उस समय जेडीयू के साथ सत्ता में आरजेडी भी थी, जो उन्हें पसंद नहीं करती थी. इस वजह से प्रशांत किशोर को वहाँ दिक़्क़त हुई. फिर वो कांग्रेस में आए. 2017 में कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश चुनाव की रणनीति बनाई लेकिन वो सफ़ल नहीं हुए. वो दिल्ली में आम आदमी पार्टी , डीएमके और दूसरी पार्टियों के साथ भी जुड़े और काम किया. ममता बनर्जी के साथ भी कोशिश की कि राजनीतिक तौर पर उनको कोई भूमिका मिले, लेकिन बात वहाँ भी नहीं बनी. इसलिए अब उन्हें लगने लगा है कि बिना कांग्रेस कोई बात बन नहीं रही है.

रशीद किदवई : चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर काफ़ी सफ़ल रहे. ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत दिलाना उनके रणनीतिकार वाले करियर का दूसरा हाई प्वाइंट था. उनके करियर का पहला हाई प्वाइंट 2014 में बीजेपी की जीत है. लेकिन अब इसके आगे क्या? उनके पास विकल्प बहुत सीमित हैं. आगे वो सक्रिय राजनीति में नेता के रूप में आना तो चाहते हैं लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कुछ दिक़्क़तें हैं. क्षेत्रीय पार्टियों में एक तो भाषा के स्तर पर दिक़्क़त आती है और दूसरी समस्या ये कि रीजनल पार्टियां 'व्यक्ति विशेष' आधारित होती हैं. राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों में भी ऐसी समस्याएं होती हैं, लेकिन काम करने का तरीका क्षेत्रीय पार्टियों से अलग होता है. बीजेपी के साथ वो काम कर चुके हैं. इस वजह से कांग्रेस ही उनका स्वाभाविक विकल्प है.

विनोद शर्मा : कांग्रेस का कार्यकर्ता इस समय हतोत्साहित है. उनमें उत्साह तभी भर सकता है, जब पार्टी एक-दो चुनाव में कुछ सीटें जीत पाए. प्रशांत किशोर के कांग्रेस के साथ जुड़ने से क्या पता ऐसा संभव हो सके. दूसरी बात ये भी है कि कांग्रेस एक सुस्त पार्टी है. उसका मुकाबला एक ऐसी पार्टी से है जो हर वक़्त चुनावी मोड में रहती है, कांग्रेस नेतृत्व को उम्मीद होगी कि पार्टी से जुड़ने के बाद प्रशांत किशोर कांग्रेस की इस सुस्ती को दूर कर सके, ताकि वो पार्टी के भीतर कोई अलग तरह का सिस्टम बना सके. प्रशांत किशोर इस तरह का सिस्टम बनाने के लिए एक ब्लू प्रिंट पार्टी को दे सकते हैं. वो जनता में पैठ रखने वाले नेता तो हैं नहीं. चुनाव के लिए पार्टी को तैयार करना ही उनकी ख़ासियत और उपलब्धि रही है. अगर कांग्रेस के अंदर वो ऐसा कर पाएं तो शायद आगे चल कर पार्टी में उनकी जगह भी बन जाए.

राजेन्द्र तिवारी : कांग्रेस के पास कोई अच्छा मैनेजर नहीं है. कांग्रेस में नेतृत्व की दिक़्क़त तो है ही साथ ही चुनावी मैनेजमेंट करने वाले लीडर की भी दिक़्क़त है. अहमद पटेल की मौत के बाद वो कमी और खल रही है. ये नहीं मालूम की प्रशांत किशोर उनकी जगह पार्टी में ले पाएंगे या नहीं, लेकिन मजबूर कांग्रेस भी है.

रशीद किदवई : पाँच राज्यों में चुनाव हारने के बाद, कांग्रेस काफ़ी नाउम्मीद है. राहुल गांधी के बतौर कांग्रेस नेता दूसरी राजनीतिक पार्टी के नेता के साथ संबंध वैसे नहीं हैं जो विपक्षी दल के सर्व स्वीकार्य नेता के तौर पर उनके होने चाहिए. प्रशांत किशोर ने विपक्ष की क्षेत्रीय पार्टियों में कईयों के साथ काम किया है. कांग्रेस के लिए विपक्षी एकजुटता में स्वीकार्यता बढ़ाने का काम प्रशांत किशोर बखूबी कर सकते हैं.

प्रशांत किशोर का अब तक का रणनीतिकार के तौर पर सफ़र
प्रशांत किशोर अब तक नरेंद्र मोदी, जेडीयू नेता नीतीश कुमार, तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी और तमिलनाडु में डीएमके नेता एमके स्टालिन को अपनी प्रोफ़ेशनल सेवाएँ दे चुके हैं.

पिछले बिहार चुनाव से पहले उन्होंने 'बात बिहार की' भी लॉन्च किया था. लेकिन उम्मीद के मुताबिक़ उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में राहुल और अखिलेश को साथ ला कर उन्होंने 'यूपी के लड़के' के साथ एक प्रयोग किया लेकिन वो भी सफ़ल नहीं रहा. ममता बनर्जी ने गोवा में भी टीएमसी को उतारा. माना जाता है कि प्रशांत किशोर के कहने पर ही उन्होंने ऐसा किया. लेकिन ये प्रयोग भी सफ़ल नहीं रहा.

इस बार कांग्रेस के साथ उनकी बात बनती है, तो सबकी नज़र उनकी आगे होने वाली भूमिका पर रहेगी.

फिलहाल सभी की निगाहें कांग्रेस नेतृत्व के फैसले पर है.

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