अंतरराष्ट्रीय

जर्मनी में नस्ली भेदभाव लोगों के लिए रोजमर्रा की बात
07-May-2022 1:03 PM
जर्मनी में नस्ली भेदभाव लोगों के लिए रोजमर्रा की बात

ज्यादातर जर्मन मानते हैं कि उनके समाज में नस्लभेद मौजूद है. यह ना सिर्फ अल्पसंख्यकों को बल्कि यहां रहने वाले सभी को प्रभावित करता है. देश की पहली राष्ट्रीय भेदभाव और नस्लभेद रिपोर्ट में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं.

   डॉयचे वैले पर मार्सेल फुर्स्टेनाउ की रिपोर्ट-

क्या आप कभी नस्लभेद के शिकार बने हैं? हाल ही में हुए एक सर्वे के दौरान जर्मनी में रहने वाले 22 फीसदी लोगों ने इसका जवाब हां में दिया. जर्मन सेंटर फॉर इंटीग्रेशन एंड माइग्रेशन रिसर्च के रिसर्चरों ने 2021 में अप्रैल से अगस्त के बीच 5000 लोगों से टेलिफोन पर बात की. उन्होंने मीडिया कवरेज, एकेडमिक पेपर और कानूनी दस्तावेजों को भी खंगाला.

इनकी खोज इंस्टीट्यूट के पहले राष्ट्रव्यापी रिसर्च रिपोर्ट के रूप में छपी है. इसका शीर्षक है, "नस्लभेद की सच्चाइयां- जर्मनी नस्लभेद से कैसे लड़ता है." यह रिपोर्ट राष्ट्रीय भेदभाव और नस्लभेद मॉनीटर का हिस्सा है और इसे इंस्टीट्यूट की निदेशक नायका फोरुतान ने गुरुवार को बर्लिन में पेश किया.

सबके साथ होता है नस्लभेद
इस दौरान फोरुतान ने कहा, "हम यह देख कर बहुत हैरान हुए कि 90 फीसदी लोगों ने कहा जर्मनी में नस्लभेद है." उन्होंने यह भी कहा कि रिसर्चर भी इस बात से बहुत हैरान थे कि आधे से ज्यादा लोगों ने "हम एक नस्लभेदी समाज में रहते हैं" बयान के साथ सहमति जताई. फोरुतान के मुताबिक यह दिखाता है कि लोगों में संस्थागत और व्यवस्था के तहत नस्लभेद के बारे में जागरुकता है.

रिसर्च में छह समूहों के लोगों के प्रति रवैया पर ध्यान केंद्रित किया गया. इनमें यहूदी, मुसलमान, सिंती और रोमा, काले लोग, एशियाई और पूर्वी यूरोपीय लोग शामिल हैं. पता चला है कि लोगों को उनकी त्वचा और बालों के रंग की वजह से भी भेदभाव झेलनी पड़ती है. इतना ही नहीं, लोगों को हिजाब या फिर सिर ढंकने या विदेशी जैसे लगने वाले नामों की वजह से भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

रिपोर्ट में इस बात पर भी चर्चा की गई है. टीम ने नस्लभेद के संदर्भ में इसे "वर्गीकरण" नाम दिया है. उदाहरण के लिए जब हाउसिंग मार्केट में या भी मजदूरी के संदर्भ में भेदभाव की बात आती है तो रिसर्चरों ने देखा कि "यहूदियों या फिर काले लोगों के खिलाफ हो तो इसे नस्लभेद बड़ी आसानी से कह दिया जाता है लेकिन सिंती और रोमा या मुसलमानों के साथ के साथ ऐसी बात नहीं है."

अलग-अलग नस्ल के इंसान
सर्वे में शामिल आधे से ज्यादा लोगों ने कहा कि वो मानते हैं कि इंसान की "नस्ल" का अस्तित्व है. हालांकि विज्ञान इस बात को बहुत पहले ही खारिज कर चुका है. यह विचार सर्वे में शामिल बुजुर्ग लोगों में ज्यादा है. करीब एक तिहाई लोगों ने कहा इस बात में यकीन जताया कि कुछ जातीय समूह दूसरे की तुलना में ज्यादा मेहनती होते हैं.

सर्वे में शामिल एक तिहाई लोगों ने यह भी माना का नस्लभेद के पीड़ित ज्यादा "संवेदनशील" थे. करीब 45 फीसदी लोगों का मानना था कि "राजनीतिक रूप से सही होना" और नस्लभेद का विरोध अभिव्यक्ति की आजादी को रोकता है. जर्मनी के ज्यादातर लोगों का मानना है कि नस्लभेद है और वो इसे रोजमर्रा की जिंदगी की हिस्सा मानते हैं. करीब 65 फीसदी जर्मन लोग यह भी मानते हैं कि सरकारी अधिकारी और प्रशासन नस्ली तौर पर भेदभाव करता है.

नस्लभेद के पीड़ित भी करते हैं भेदभाव
फोरुतान का कहना है, "नस्लभेद को स्वीकार करने का मतलब यह नहीं है कि आप नस्लभेद विरोधी हैं." इसके साथ ही यह भी सच है कि नस्लभेद का सामना करने वाले भी दूसरों की तुलना में "कोई कम नस्लभेदी व्यवहार नहीं" करते हैं. रिसर्चरों ने देखा कि नस्लभेद का शिक्षा या जड़ों से कोई लेना देना नहीं है और नस्लभेद के पीड़ित भी ऐसा करने वालों जैसा ही बर्ताव कर सकते हैं.

फोरुतान का कहना है कि यह पदक्रम का मामला ज्यादा है यानी जो जहां श्रेष्ठ है वह वहां दूसरों के साथ नस्लभेद करने की कोशिश करता है. फोरुतान इसमें लिंगभेद से समानता देखती हैं. उनका कहना है, "नस्लभेद और लिंगभेद सैद्धांतिक रूप से एक ही स्तर पर व्यवहार में लाये जाते हैं."

ग्रीन पार्टी की नेता और जर्मनी की परिवार मामलों की मंत्री लीसा पाउस ने रिपोर्ट के नतीजों के कुछ हिस्से को "हैरान करने" वाला माना.

रिसर्च में यह भी पता लगा है कि ऊंचे दर्जे की औपचारिक पढ़ाई भी नस्ली भेदभाव से बचाने में कारगर नहीं होती. लीसा पाउस ने कहा, "तो नस्लभेद का सफल समेकन से कोई लेना देना नहीं है."

नस्लभेद से लड़ाई
सर्वे में शामिल 70 फीसदी लोगों ने कहा कि वो नस्लभेद के खिलाफ कदम उठाने के पक्ष में हैं. युवाओं में खासतौर से नस्लभेद का विरोध करने की ज्यादा प्रतिबद्धता नजर आई और वो इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थे.

नस्लभेद के संघीय सरकार की आयुक्त रीम अलाबाली रादोवान सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी से हैं. रिपोर्ट छपने के बाद उन्होंने कहा, "जर्मनी नस्लभेद की समस्या के बारे में जानता है." रादोवान का यह भी कहना है कि रेसिज्म मॉनिटर बदलाव की दिशा में एक अहम कदम है.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में लीसा पाउ ने इस बात पर जोर दिया कि प्रस्तावित डेमोक्रेसी प्रमोशन एक्ट "नागरिक समाज को चरमपंथ और नस्लभेद के खिलाफ साथ लाने में ज्यादा स्थायी संरचना मुहैया करायेगा." यह विधेयक अभी तैयार किया जा रहा है जो कानून बनने के बाद जमीनी स्तर पर देश में चरमपंथ के खिलाफ कदमों के लिए आधार, प्रचार और धन मुहैया करायेगा.

राष्ट्रीय भेदभाव और नस्लभेद मॉनिटर का लक्ष्य नीतियां बनाने वालों के लिए एक डाटाबेस और बेंचमार्क मुहैया कराना है जिससे कि नस्लभेद के खिलाफ कदम उठाये जा सकें. अब हर दो साल पर इस बारे में एक सर्वे करने की योजना है बशर्ते कि बजट कमेटी इसके लिए धन को मंजूरी दे दे. (dw.com)
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news