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UPSC की परीक्षा में हिंदी मीडियम के छात्र क्या पिछड़ रहे हैं?
08-Jun-2022 9:31 AM
UPSC की परीक्षा में हिंदी मीडियम के छात्र क्या पिछड़ रहे हैं?

photo/ ANI

-चंदन शर्मा

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की 2021 की सिविल सेवा परीक्षा के नतीजों में इस साल 685 उम्मीदवार सफल हुए हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की श्रुति शर्मा टॉपर बनीं हैं.

राजस्थान के रवि कुमार सिहाग 18वीं रैंक के साथ इस बार हिंदी मीडियम से परीक्षा देने वालों में टॉपर बने हैं. 22वीं रैंक लाने वाले सुनील कुमार धनवंता हिंदी मीडियम के दूसरे टॉपर हैं.

सात साल के बाद हिंदी माध्यम का कोई छात्र यूपीएससी पास करने वाले शीर्ष 25 उम्मीदवारों में जगह बना पाया है. इससे पहले सिविल सेवा की 2014 की परीक्षा में निशांत कुमार जैन 13वें स्थान पर रहे थे.

क्या यूपीएससी पैटर्न में 2013 में हुए बदलाव के बाद, हिंदी माध्यम में परीक्षा देने वालों के लिए बेहतरीन प्रदर्शन है?

हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को इस परीक्षा की तैयारी कराने वाली एक कोचिंग संस्था से जुड़े कमलदेव सिंह बताते हैं, "केवल टॉप 25 में हिंदी मीडियम के दो सफल उम्मीदवारों को देखकर अभी से इस बात का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि इस बार के नतीजे हिंदी मीडियम वालों के लिए पिछले 9 सालों में सबसे बेहतर हैं या नहीं."

कमलदेव सिंह कहते हैं कि यूपीएससी इस बात की जानकारी नहीं देती कि सफल उम्मीदवारों ने किसी मीडियम में परीक्षा दी थी, इसलिए इस प्रश्न का सीधा-सटीक उत्तर मिलना भी संभव नहीं है.

एक अन्य कोचिंग संस्था से जुड़े धर्मेंद्र कुमार कहते हैं, "ऐसा लग रहा है कि इस बार के परिणाम, बदलाव के बाद के सालों में बेहतर है, लेकिन यह अपवाद भी हो सकता है, क्योंकि 2020 और 2021 में तो हिंदी मीडियम का एक भी कैंडिडेट टॉप 100 में नहीं था और उसके पहले के तीन चार सालों के हालात भी ऐसे ही थे."

कैसे पता चलती है हिंदी माध्यम से सफल उम्मीदवारों की संख्या?
यूपीएससी के नए पैटर्न के ख़िलाफ़ आंदोलन करने वालों में शामिल रही शालिनी सोमचंद्र कहती हैं कि "हिंदी मीडियम में यूपीएससी परीक्षा देने वालों की संख्या का अंदाज़ा यूपीएससी की वार्षिक रिपोर्ट और लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन (LBSNAA) के आंकड़ों से मिलता है."

उनके अनुसार, कोचिंग संस्थानों के सर्वे से भी इन आंकड़ों की सच्चाई का एक अनुमान मिल जाता है.

धर्मेंद्र कुमार बताते हैं, "मेन्स का सिलेबस बदलने के पहले, टॉप 100 में हिंदी के 10-12 कैंडिडेट होते थे. लेकिन नए सिलेबस पर 2013 में परीक्षा होने के बाद 2014 में जब परिणाम आया तो हिंदी मीडियम का जनरल कैटेगरी से एक भी कैंडिडेट आईएएस नहीं बन सका. उस बार हिंदी मीडियम का टॉपर 107 रैंक का था जबकि कुल सिलेक्शन क़रीब 25 ही लोगों का हुआ."

हालांकि 2014 की परीक्षा में हिंदी मीडियम के प्रदर्शन में सुधार दिखा और क़रीब पाँच प्रतिशत कैंडिडेट इसमें सफल हुए. उस साल हिंदी मीडियम के टॉपर की रैंक 13वीं थी.

LBSNAA की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2016 की परीक्षा में हिंदी मीडियम वालों की सफलता दर लगभग 4-5 प्रतिशत रही, लेकिन 2017 और 2018 की परीक्षा में ये आंकड़ा फिर से 2-3 प्रतिशत के बीच पहुंच गया.

2017 की परीक्षा के जो नतीज़े 2018 में आए उनमें हिंदी मीडियम का टॉप रैंक 337 रहा. इस वजह से सामान्य श्रेणी के तहत हिंदी मीडियम से परीक्षा देनेवाला एक भी कैंडिडेट आईएएस, आईपीएस या आईआरएस नहीं बन सका.

LBSNAA की वेबसाइट पर 2019 और 2020 के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. यूपीएससी की वार्षिक रिपोर्ट में मेन्स लिखने वालों के आंकड़ों को देखकर पता चलता है कि 2015 के बाद से हिंदी मीडियम से मेन्स लिखने वालों का जो आंकड़ा गिर रहा है, वह 2019 और 2020 में भी गिरता ही गया है.

साल 2015 में हिंदी मीडियम से मेन्स लिखने वालों की संख्या 2,439 थी जो 2019 में घटकर 571 और 2020 में 486 रह गई.

इस साल हिंदी मीडियम से परीक्षा पास करने वालों का सटीक आंकड़ा फ़िलहाल मिलना संभव नहीं.

जानकार उम्मीद जता रहे हैं कि इस बार 50 से 60 लोग हिंदी मीडियम से सिलेक्ट हुए होंगे लेकिन ये भी पैटर्न में बदलाव से पहले की तुलना में कम है.

कब-कब हुए विवादास्पद बदलाव?
2010 में खन्ना समिति की सिफ़ारिश के बाद 2011 से पीटी का पुराना पैटर्न बदलकर दूसरे पेपर के रूप में CSAT को लाया गया. लेकिन इसे लेकर पूरे देश में काफ़ी विरोध और विवाद हुआ, जो छिटपुट रूप में अभी भी जारी है.

2014 में तो इसके ख़िलाफ़ जमकर विरोध प्रदर्शन होने के बाद यूपीएससी ने बासवान समिति बनाई, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद 2015 से इसे क्वालिफाईंग बना दिया गया. पीटी के इस पेपर में अब किसी कैंडिडेट को कुल 200 अंकों में से केवल 66 अंक ही लाने होते हैं.

इसके बावजूद अब भी कई लोग इसे पूरी तरह हटाए जाने की मांग कर रहे हैं. यूपीएससी ने पीटी का पैटर्न बदलने के दो साल बाद यानी 2013 में मेन्स के पैटर्न और सिलेबस को भी बदल दिया.

उसी साल से तुरंत प्रभाव से लागू किए गए इस बदलाव की ख़ासियत यह रही कि इसमें चुने जा सकने वाले वैकल्पिक विषय को दो (चार पेपर) से घटाकर एक (दो पेपर) कर दिया गया. इसके साथ ही, सामान्य अध्ययन के पेपरों को दो से बढ़ाकर चार कर दिया गया. निबंध और दो अनिवार्य भाषाओं के कुल तीन पेपर पहले की ही तरह बने रहे.

ख़राब प्रदर्शन की वजह

इस बारे में हिंदी मीडियम की यूपीएससी की कोचिंग चलाने वालों की राय एक जैसी नहीं है. किसी के अनुसार यह यूपीएससी की नीति और परीक्षा पैटर्न के चलते हुआ है, तो कोई इसे छात्रों की विफलता क़रार देते हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो इसके लिए सरकार की नाकामी और देश के सिस्टम की विफलता को ज़िम्मेदार मानते हैं.

रेलवे बोर्ड के पूर्व एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर प्रेमपाल शर्मा हिंदी मीडियम के ख़राब प्रदर्शन की वज़ह अंग्रेज़ी के बढ़ते दबदबे को मानते हैं.

उनका कहना है, "देश की सत्ता में बैठे एलीट लोग शिक्षा और भाषा को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं. उनकी यह चुप्पी बताती है कि अंग्रेज़ी के दबदबे को बढ़ाने में उनकी सहमति है. यह उनके हित में भी है."

हालांकि सिविल सर्विसज़ के छात्रों को राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले मृत्युजंय कुमार इससे सहमत नहीं हैं.

वो कहते हैं, "आज के दौर में जब किसी अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वे दुनिया को जानें और उनसे इन्टरैक्ट करें तो इसके लिए अंग्रेज़ी जानना तो ज़रूरी ही है. छात्रों को इन बातों में ज़्यादा वक़्त गंवाने के बजाय अंग्रेज़ी पर काम करने पर लगाना चाहिए."

वो कहते हैं, "2011 में CSAT आने से पहले क़रीब चार से पांच हज़ार छात्र हिंदी मीडियम से मेन्स की परीक्षा देते थे, लेकिन 2015 में CSAT की परीक्षा से अंग्रेज़ी के हटने के बाद भी यह आंकड़ा घटकर केवल पांच से छह सौ रह गया है. इसकी वजह अंग्रेज़ी नहीं हिंदी का ख़राब और मशीनी अनुवाद है."

वो कहते हैं, "एक या दो साल पहले सिविल डिसोबिडिएंस मूवमेंट का अनुवाद असहयोग आंदोलन किया गया था. इंप्लीकेशन का अनुवाद उलझन, लैंड रिफ़ॉर्म का अनुवाद आर्थिक सुधार किया गया था. दिक्कत यह है कि निर्देश में लिखा होता है कि किसी ग़लती की सूरत में अंग्रेज़ी टेक्स्ट ही मान्य होगा. लेकिन यूपीएससी ऐसा कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकती."

'असल समस्या अभी भी CSAT ही है'
शालिनी सोमचंद्र का कहना है कि जब से CSAT और मेन्स का नया पैटर्न आया है तब से मानविकी और कला के साथ-साथ ग्रामीण बैकग्राउंड के विद्यार्थियों के लिए इस परीक्षा में आगे बढ़ना मुश्किल हो गया है.

वे कहती हैं कि CSAT को यह कहकर लाया गया था कि इससे सभी बैकग्राउंड के छात्रों के लिए एक समान स्तर तैयार हो सकेगा, पर हुआ इसका ठीक उल्टा.

वे कहती हैं, "2011 के पहले की तुलना में अब केवल 10 फ़ीसदी हिंदी मीडियम के विद्यार्थी ही पीटी क्वालिफ़ाई कर पा रहे हैं."

यही बात कमलदेव सिंह भी कहते हैं. वे कहते हैं, "मेन्स के सिलेबस मटीरियल की कमी 2015 या 2016 तक समस्या की वजह बनी, लेकिन पीटी की समस्या अब भी बनी हुई है. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं."

उनके अनुसार, पैराग्राफ़ के जटिल अनुवाद, गणित और रीज़निंग के चलते जो इन चीज़ों में सहज नहीं हैं, उनके लिए CSAT का पेपर क्वालिफ़ाइंग होते हुए भी आसान नहीं रह गया.

उनका कहना है कि यदि पीटी पास करने वालों की संख्या बढ़ेगी तो हिंदी मीडियम का प्रदर्शन भी सुधर जाएगा.

और क्या हैं दिक्क़तें?

हिंदी में परीक्षा देने वालों के ख़राब प्रदर्शन देश की शिक्षा व्यवस्था, अंग्रेज़ी को लेकर सरकारों की नीति, और देवनागरी लिपि को लिखने में अंग्रेज़ी की तुलना में ज़्यादा वक़्त लगने आदि को भी माना जा सकता है.

प्रेमपाल शर्मा कहते हैं कि भाषा का न केवल संस्कृति के साथ संबंध गहरा संबंध होता है, बल्कि यह किसी की आर्थिक हैसियत से भी गहराई से जुड़ी होती है. वह कहते हैं इसी से तकनीक की उपलब्धता भी निर्धारित होती है.

वे कहते हैं, "इसके लिए सरकार को सहानुभूति वाला रवैया अपनाकर अनुकूल रुख़ अपनाना होगा, क्योंकि हर जाति और धर्म की तरह हर भाषा में प्रतिभा समान रूप से पाई जाती है. हमें उन पर भरोसा करके सही नीति के ज़रिए उनका विकास करना होगा, नहीं तो अंगेज़ी की ज़रूरत बताते-बताते एक दिन हमारी भाषा इतनी दरिद्र हो जाएगी कि वैश्वीकरण के चक्कर में हम बिखर जाएंगे."

कैसे होती है सिविल सेवा परीक्षा?
भारत की शासन व्यवस्था चलाने के लिए ब्यूरोक्रेसी की क़रीब 50 सेवाएं हैं. इनमें से लगभग आधे यानी 24 के लिए चयन सिविल सेवा परीक्षा के ज़रिए ही होता है.

इस परीक्षा के ज़रिए तीन अखिल भारतीय सेवाओं में से दो यानी आईएएस और आईपीएस का चयन किया जाता है. वहीं भारतीय राजस्व सेवा (इनकम टैक्स), भारतीय राजस्व सेवा (कस्टम एंड एक्साइज़ ड्यूटी), भारतीय रेल की चार सेवाओं सहित कुल 22 केंद्रीय सेवाओं के लिए अफ़सरों का चयन इसी परीक्षा से होता है.

इस परीक्षा के कुल तीन चरण होते हैं. पहले चरण की परीक्षा को प्रारंभिक परीक्षा (PT) कहा जाता है, जो अगले चरण तक पहुंचने का पासपोर्ट मात्र है. इसका मतलब यह हुआ कि बिना इसे पास किए उम्मीदवार अगले चरण की परीक्षा नहीं दे सकते, पर इसके अंक आगे की परीक्षाओं में हासिल अंकों के साथ नहीं जुड़ते.

पीटी में ऑब्जेक्टिव पेपर के ज़रिए उम्मीदवारों की तथ्यों की जानकारी को जांचा जाता है. इसके लिए सामान्य अध्ययन (GS) और (CSAT) के कुल दो पेपर की परीक्षा देनी होती है.

पीटी में CSAT (सिविल सर्विस एप्टीट्यूड टेस्ट) के पेपर को क्वालिफ़ाई करना ज़रूरी होता है, लेकिन सफलता केवल जीएस के पेपर पर निर्भर करती है.

दूसरे चरण की परीक्षा को मुख्य परीक्षा या मेन्स एक्ज़ामिनेशन कहा जाता है, जो सब्जेक्टिव होता है यानी यह परीक्षा लिखित होती है. इसमें कुल नौ पेपर की परीक्षा देनी होती है, जिसमें से मातृभाषा और अंग्रेज़ी के पेपर में केवल पास करना होता है. सफलता के लिए बाक़ी सात पेपर के अंक ही मायने रखते हैं.

इन सात पेपर में से चार सामान्य अध्ययन के होते हैं. एक पेपर निबंध का होता है और दो पेपर किसी चुने हुए वैकल्पिक विषय के होते हैं. ये सभी सातों पेपर 250-250 अंकों के होते हैं. इस तरह मेन्स परीक्षा में कुल 1,750 अंकों की होती है.

तीसरे और अंतिम चरण की परीक्षा में कैंडिडेट का साक्षात्कार या इंटरव्यू होता है, जो दिल्ली के यूपीएससी मुख्यालय में लिया जाता है. इंटरव्यू कुल 275 अंकों का होता है और इसके भी अंक अंतिम चयन में जोड़े जाते हैं.

इस तरह, इस परीक्षा के ज़रिए ब्यूरोक्रेसी का हिस्सा बनने के लिए किसी को 2,025 अंकों में से अधिक से अधिक अंक लाने की कोशिश करनी होती है. इस बार की टॉपर श्रुति शर्मा को मेन्स में 932 अंक तो इंटरव्यू में 173 अंक मिले यानी कुल 1,105 अंक (54.57 प्रतिशत) लाकर उन्होंने नंबर एक रैंक हासिल की. (bbc.com)

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