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-अभिजीत श्रीवास्तव
अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को गुजरात का दौरा किया. उन्होंने बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले मेहसाणा में तिरंगा रैली की.
इस दौरान केजरीवाल ने कहा, "बीस दिन की परिवर्तन यात्रा में मैंने हज़ारों लोगों से बात की है. गुजरात बदलाव की मांग कर रहा है. बीजेपी से और बीजेपी की बहन कांग्रेस से गुजरात के लोग तंग आ चुके हैं."
उन्होंने कहा, "हम जहां कहीं भी गए, सभी को पता है दिल्ली में कितने अच्छे-अच्छे काम हुए हैं. गुजरात में लोग बीजेपी से डरते हैं. अब बीजेपी से डरने की ज़रूरत नहीं है. अब गुजरात बदलने वाला है. भारतीय जनता पार्टी की एक ही दवाई है- आम आदमी पार्टी. बीजेपी वाले केवल आम आदमी पार्टी से डरते हैं और किसी से नहीं डरते."
गुजरात: क्या यहां भी कांग्रेस को पंजाब वाला झटका लगने वाला है?
दो दिन पहले ही दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने वडोदरा में कहा कि आम आदमी पार्टी गुजरात की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
सिसोदिया ने कहा, "हम गुजरात में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. अब, गुजरात के लोगों को फ़ैसला करना है. अभी तक गुजरात के लोगों के पास कोई विकल्प नहीं था, लेकिन अब उनके पास एक विकल्प है."
पिछले कुछ दिनों में केजरीवाल ने गुजरात के कई दौरे किए हैं. केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 2 अप्रैल को गुजरात में रोड शो किया था. सोमवार यानी 6 जून को मेहसाणा में तिरंगा यात्रा से पहले भी केजरीवाल 1 मई और 11 मई को गुजरात गए थे. तब उन्होंने भरूच और राजकोट में रैली भी की थी.
गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. 2017 के चुनाव में गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पहली बार चुनाव में उतरी थी लेकिन वो कोई सीट नहीं जीत सकी थी. इस बार पार्टी फिर वहां मुक़ाबला करने उतरी है, लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी बदली हुई नज़र आती है.
उधर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 2012 की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया था और बीजेपी की सीटें पहली बार 100 से कम हो गई थीं. हालांकि कांग्रेस को तब बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं मिला था. लेकिन उसके बाद से कांग्रेस की हालत गुजरात में पस्त है.
गुजरात विधानसभा में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहा है?
पिछले चुनाव में कांग्रेस की सीटें बढ़ी थीं. 2012 में कांग्रेस ने जहां 61 सीटें जीती थीं वहीं 2017 में उसने 182 में से 77 सीटें जीती थीं वहीं बीजेपी की सीटें 115 से घट कर 99 रह गई थीं.
भले ही 2017 के चुनाव में कांग्रेस की सीटें बढ़ी थी लेकिन बीते पांच साल के घटनाक्रमों को देखते हुए जानकार आगामी चुनाव में कांग्रेस को कमज़ोर मान रहे हैं और आम आदमी पार्टी को उभरते हुए विकल्प के तौर पर देख रहे हैं.
बीते पांच सालों में कांग्रेस गुजरात में कमज़ोर हुई या मजबूत?
2017 में चुनाव से पहले कांग्रेस के 15 विधायक उसका साथ छोड़ कर चले गए थे. उसमें शंकर सिंह वाघेला भी शामिल थे. बाद में राज्यसभा के चुनाव में अहमद पटेल को भी बहुत कड़े मुक़ाबले का सामना करना पड़ा था और वे बहुत क़रीबी अंतर से जीते थे.
2017 के बाद सात सीटों पर उपचुनाव हुआ उसमें से चार में बीजेपी को और तीन पर कांग्रेस को जीत मिली. 2020 में आठ सीटों पर उपचुनाव हुए जिसमें सभी सीटें बीजेपी ने जीतीं. और फिलहाल बीजेपी के विधायकों की संख्या 111 हो गई है.
साथ ही एक बार फिर, जैसे-जैसे चुनाव का समय नज़दीक आता जा रहा है कांग्रेस के कई पुराने साथी उसका साथ छोड़ते जा रहे हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2017 से अब तक 13 पूर्व और मौजूदा विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं. जिसमें सबसे ताज़ा नाम हार्दिक पटेल का है.
कांग्रेस बनाम आप
इस दौरान पिछले साल फरवरी में आम आदमी पार्टी को सूरत नगर निगम में अप्रत्याशित सफलता मिली थी. तब वहां आम आदमी पार्टी 27 सीटें जीतीं थीं.
सूरत नगर निगम में 120 सीटें हैं और कांग्रेस तब वहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी. इसके अलावा जामनगर, राजकोट, वडोदरा, भावनगर और अहमदाबाद मेंभी बीजेपी बड़े अंतर से जीत गई थी. यह देखा गया है कि 2017 के चुनाव के बाद से गुजरात में कांग्रेस का कद लगातार घटता जा रहा है. तो क्या गुजरात में आम आदमी पार्टी इस चुनाव में एक विकल्प बनती दिख रही है?
वरिष्ठ पत्रकार अजय उमठ का कहना है कि, "ये कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि आम आदमी पार्टी इस बार के चुनाव में कोई बड़ी कामयाबी हासिल करेगी, लेकिन बीजेपी के पक्के वोट बैंक में वो सेंध लगा पाएगी इसकी कम ही गुंजाइश है."
वहीं वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, "पिछला चुनाव देखें तो तब कांग्रेस के पास हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवाणी की तिकड़ी थी. युवा नेताओं की तिकड़ी उभरती दिख रही थी. उससे युवा नेताओं को उत्साह मिला था और ये संभावना दिख रही थी कि कांग्रेस जीत कर सरकार बनाएगी लेकिन आख़िरी फेज़ के चुनाव में सूरत में बीजेपी ने अधिकांश सीटें जीतीं और सरकार बनाई. हालांकि वो पहली बार 100 से कम सीटें जीते थे."
वे कहते हैं, "अब न तो जिग्नेश हैं न ही अल्पेश और न ही हार्दिक. हार्दिक तो हाल ही में छोड़ कर गए हैं. कई और नेता गए हैं. भरत सिंह सोलंकी का भी एक विवादित वीडियो सामने आया था. कांग्रेस की हालत अच्छी नहीं दिख रही, कार्यकर्ता हतोत्साहित हैं. पार्टी में कहीं कोई उत्साह नहीं दिख रहा, तो कांग्रेस समर्थकों को कहीं से कोई संभावना नहीं दिख रही है. ऐसे में कई लोगों को ये लग सकता है कि आम आदमी पार्टी ही बीजेपी के सामने बेहतर विकल्प हो सकती है."
शरद गुप्ता कहते हैं, "कांग्रेस का क़िला कमज़ोर है और ये भी नहीं दिख रहा कि वो अपने पैरों पर दोबारा खड़ा होना चाहती है. लीडरशिप में कमी है, ऐसे में आम आदमी पार्टी को यहां एक वैक्यूम यानी खालीपन दिख रहा है."
वे कहते हैं, "यही उन्होंने गोवा में किया और अब उन्हें हिमाचल और गुजरात में भी ऐसा ही दिख रहा है. ख़ास तौर पर सूरत में नगर निगम चुनाव में मिली 27 सीटों पर जीत से आम आदमी पार्टी को उत्साह मिला है."
वहीं अजय उमठ कहते हैं, "बेशक उनके प्रत्याशी सूरत नगर निगम के चुनाव में जीते लेकिन बाद में उनमें से कई पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए थे और रही बात विधानसभा चुनाव में उनके जीत की तो आम आदमी पार्टी संगठनात्मक रूप से गुजरात में मजबूत नहीं है."
"आप के गुजरात की सत्ता में आने के आसार न के बराबर"
अजय उमठ कहते हैं कि भले ही सूरत के निकाय चुनाव में उसने कामयाबी हासिल की है लेकिन इस साल के चुनाव में वो कोई करिश्मा कर पाएगी उसके फिलहाल कोई आसार नहीं दिख रहे.
इसके पीछे वे पार्टी के पास दो सबसे बड़ी कमी को गिनाते हैं.
वे कहते हैं, "आम आदमी पार्टी निश्चित रूप से अपनी पहचान बनाना चाहती है लेकिन उसके पास गुजरात में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. पंजाब में आम आदमी पार्टी के पास भगवंत मान थे, दिल्ली में ख़ुद अरविंद केजरीवाल चेहरा हैं लेकिन गुजरात में सबसे बड़ी कमी उसी चेहरे की है."
दूसरी सबसे बड़ी कमी वो आम आदमी पार्टी के पास संगठन के अभाव को बताते हैं. उनका कहना है कि "बीजपी की तरह पार्टी के पास कोई संगठन नहीं है और चूंकि चुनाव इसी साल के अंत में होना है और एक संगठन खड़ा करने के लिए पार्टी के पास समय कम है. लिहाजा यह चुनाव जीत पाना पार्टी के लिए मुश्किल होगा."
अजय उमठ साफ़ तौर पर कहते हैं, "गुजरात में आगामी चुनाव में आम आदमी पार्टी सत्ता में आएगी इसके न के बराबर आसार हैं."
गुजरात में गांव के दलित, आदिवासी और ओबीसी कांग्रेस के वोट बैंक माने जाते हैं. जबकि शहरी इलाकों में इन पर बीजेपी की पकड़ मज़बूत मानी जाती है. फिर आम आदमी पार्टी की नज़र इनमें से किस वर्ग पर है? वो शहरी इलाक़ों पर ज़ोर देना चाहती है या गांव के इलाक़ों पर या वो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के ही वोट बैंक में सेंध लगाना चाहती है?
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, "पिछले तीन चार महीनों में बीजेपी के शीर्ष नेता, चाहे वो प्रधानमंत्री हों या गृह मंत्री हों या बीजेपी अध्यक्ष हों उनके गुजरात और हिमाचल के दौरे बहुत ज़्यादा बढ़ गए हैं."
वे कहते हैं, "उसका कारण कांग्रेस नहीं है, क्योंकि कांग्रेस कहीं दिखाई नहीं दे रही है तो वो उसके डर से जा नहीं रहे हैं. अगर इतनी मेहनत वो कर रहे हैं तो वो आम आदमी पार्टी से लड़ने के लिए कर रहे हैं. इसके पीछे उन्हें कहीं न कहीं ये डर है कि शहरी क्षेत्र में आम आदमी पार्टी कहीं उनके वोट बैंक में सेंध न लगा सके. तो वो विकल्प के रूप में तो ज़रूर ही उभर रही है."
वे कहते हैं, "कांग्रेस ही नहीं बल्कि बीजेपी के समर्थकों के लिए भी वो एक विकल्प के तौर पर वहां दिखेगी."
यानी कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में मुख्य विपक्ष बनने की होड़ लगेगी. (bbc.com)